अंतर्राष्ट्रीय संबंध
आर्थिक समीक्षा 2017-18
- 30 Jan 2018
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संदर्भ:
पिछले 12 महीनों में देश की अर्थव्यवस्था के घटनाक्रम की समीक्षा समेत विभिन्न विकास कार्यक्रमों के निष्पादन का अवलोकन तथा सरकार द्वारा लागू विभिन्न नीतियों की प्रमुख बातें और भविष्य में अर्थव्यवस्था में विकास की संभावनाओं का लेखा-जोखा प्रस्तुत करने वाले दस्तावेज़ “आर्थिक समीक्षा” को जारी कर दिया गया है। इसमें मौजूदा वित्त वर्ष की आर्थिक वृद्धि दर 6.75 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया है।
पहली आर्थिक समीक्षा 1950-51 में प्रस्तुत की गई थी तथा 1964 तक इसे केंद्रीय बजट के साथ ही प्रस्तुत किया जाता रहा।
आर्थिक समीक्षा 2017-18 की प्रमुख बातें:
- GST से अप्रत्यक्ष करदाताओं की संख्या में वृद्धि:
► वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) ने भारतीय अर्थव्यवस्था को एक नया परिप्रेक्ष्य दिया है। जीएसटी लागू होने के बाद अप्रत्यक्ष करदाताओं की संख्या में 50 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है।
► यह वृद्धि विशेषकर उन छोटे उद्यमों द्वारा कराए गए स्वैच्छिक पंजीकरण के कारण दर्ज की गई है, जो बड़े उद्यमों से खरीदारी करते हैं। जीएसटी के कारण विनिर्माण उद्योगों वाले प्रमुख राज्यों के कर संग्रह में गिरावट की आशंका भी निराधार साबित हुई है। - विमुद्रीकरण या नोटबंदी से प्रत्यक्ष करदाताओं की संख्या में वृद्धि :
► नवंबर, 2016 में विमुद्रीकरण के बाद व्यक्तिगत आयकर रिटर्न दाखिल करने वालों की संख्या में लगभग 18 लाख की वृद्धि दर्ज की गई है।
► नए करदाताओं ने अधिकांश मामलों में औसत आय करीब 2.5 लाख रुपए दिखाई जिससे राजस्व पर शुरुआती प्रभाव पड़ा। जैसे-जैसे इनकी आय बढ़ेगी और ये आयकर दायरे में आएंगे, राजस्व में तीव्र वृद्धि होगी। - संगठित क्षेत्र में कामगारों की संख्या अनुमान से अधिक :
► संगठित क्षेत्र, विशेषकर गैर-कृषि औपचारिक क्षेत्र में नौकरीपेशा लोगों की संख्या अनुमान से अधिक है।
► कर्मचारी भविष्य निधि (ईपीएफओ) और राज्य कर्मचारी बीमा निगम योजना (ईएसआईसी) में पंजीकरण की दृष्टि से यदि रोज़गार की औपचारिकता को परिभाषित किया जाए तो औपचारिक क्षेत्र में कार्यरत गैर-कृषि श्रम बल का अनुपात लगभग 31 प्रतिशत पाया गया है।
► वहीं जब उपरोक्त के साथ-साथ औपचारिक रोज़गार को जीएसटी में पंजीकृत इकाइयों से भी परिभाषित करें तो औपचारिक क्षेत्र में काम करने वाले लोगों की हिस्सेदारी 53 प्रतिशत पाई गई है। - राज्यों का विकास अंतर्राज्यीय व्यापार और निर्यात पर निर्भर:
► राज्यों के अंतर्राष्ट्रीय निर्यात से जुड़े आँकड़ों को आर्थिक समीक्षा में पहली बार शामिल किया गया। इनसे निर्यात प्रदर्शन और राज्यों की आबादी के जीवन स्तर के बीच मज़बूत संबंधों के संकेत मिलते हैं।
► वैसे राज्य जो अंतर्राष्ट्रीय निर्यात करते हैं तथा अंतर्राज्यीय व्यापार करते हैं, वे अपेक्षाकृत अधिक समृद्ध पाए गए हैं। - शीर्ष की बड़ी कंपनियाँ करती हैं कम निर्यात:
► निर्यात में सबसे बड़ी कंपनियों की हिस्सेदारी अपेक्षाकृत बहुत कम पाई गई है, जबकि अन्य समतुल्य देशों में यह स्थिति विपरीत देखी जाती है।
► निर्यात में शीर्ष एक प्रतिशत भारतीय कंपनियों की हिस्सेदारी केवल 38 प्रतिशत आंकी गई है, जबकि ठीक इसके विपरीत कई देशों में इन शीर्ष कंपनियों की हिस्सेदारी बहुत अधिक पाई गई है।
► ब्राजील, जर्मनी, मेक्सिको और अमेरिका में यह हिस्सेदारी क्रमश: 72, 68, 67 और 55 प्रतिशत है। - रेडीमेड कपड़ों के निर्यात में वृद्धि:
► राज्यस्तरीय शुल्कों में छूट (Rebate of State Levies -ROSL) की योजना (प्रोत्साहन पैकेज) से रेडीमेड परिधानों (मानव निर्मित फाइबर) का निर्यात लगभग 16 प्रतिशत बढ़ गया है, जबकि अन्य के मामलों में ऐसा नहीं देखा गया है। - भारतीय समाज में अब भी बेटों को प्राथमिकता:
► भारतीय समाज में लड़के के जन्म की इच्छा अब भी तीव्र है। इस इच्छा को पूर्ण करने के प्रयास में संतानों की संख्या बढ़ती जाती है। - कर विवादों में कम है सफलता की दर:
► आर्थिक समीक्षा में यह बात भी रेखांकित की गई है कि भारत में कर विभागों ने कई कर विवादों में चुनौती दी है, लेकिन इसमें सफलता की दर 30 प्रतिशत से कम आंकी गई है।
► लगभग 66 प्रतिशत लंबित मुकदमे दाँव पर लगी रकम का केवल 1.8 प्रतिशत हैं। आर्थिक समीक्षा में यह भी बताया गया है कि 0.2 प्रतिशत मुकदमे दाँव पर लगी रकम का 56 प्रतिशत हैं। - निवेश के साथ बढ़ेगी विकास दर:
► आँकड़ों के आधार पर आर्थिक समीक्षा में इस ओर ध्यान दिलाया गया है बचत में वृद्धि की बजाय निवेश में वृद्धि आर्थिक संवृद्धि का प्रमुख कारक है। - राज्यों और स्थानीय निकायों द्वारा कम कर संग्रह:
► भारत में राज्यों और अन्य स्थानीय निकायों का कर संग्रह का अनुपात अन्य संघीय व्यवस्था वाले समकक्ष राष्ट्रों की तुलना में बहुत कम है।
► आर्थिक समीक्षा में भारत, ब्राज़ील और जर्मनी में स्थानीय निकायों के प्रत्यक्ष कर-कुल राजस्व अनुपातों की तुलनात्मक तस्वीर पेश की गई है। - कृषि पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव:
► आर्थिक समीक्षा में भारतीय क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन दर्शाने वाले स्थलों और इसके कारण कृषि पैदावार पर हुए व्यापक प्रतिकूल असर को भी रेखांकित किया गया है।
► तापमान में हुई अत्यधिक बढ़ोतरी के साथ-साथ बारिश में हुई कमी को भी दर्शाया गया है। इसके साथ ही इस तरह के आँकड़ों से कृषि पैदावार में हुए परिवर्तनों को रेखांकित किया गया है।
► जलवायु परिवर्तन का प्रभाव सिंचित क्षेत्रों की तुलना में गैर-सिंचित क्षेत्रों में दोगुना पाया गया है। - इस्पात के निर्यात में वृद्धि :
► वैश्विक अर्थव्यवस्था की धीमी गति और इस्पात उत्पादन की अधिक क्षमता के साथ ही भारत को 2014-15 की शुरुआत से ही चीन, दक्षिण कोरिया और यूक्रेन जैसे देशों से सस्ते इस्पात के बढ़ते आयात से जूझना पड़ा है।
► आर्थिक समीक्षा 2017-18 में कहा गया, 'सस्ते इस्पात के आयात ने घरेलू उत्पादकों पर प्रतिकूल प्रभाव डाला। इस समस्या के समाधान के लिये फरवरी 2016 में एक साल की अवधि के लिये सीमा शुल्क, डंपिंग रोधी शुल्क और कुछ उत्पादों पर न्यूनतम आयात मूल्य (एमआईपी) लगाया गया। जिसके फलस्वरूप अप्रैल-दिसंबर 2017 के दौरान इस्पात निर्यात 52.9 प्रतिशत बढ़कर 76 लाख टन हो गया|
अब आगे क्या ?
- आगामी समय में अर्थव्यवस्था में निजी निवेश बढ़ने के आसार दिखाई दे रहे हैं। फिलहाल कंपनियाँ अपने लाभ का एक बड़ा हिस्सा ब्याज चुकाने में उपयोग कर रही हैं। ब्याज दरें कम किये जाने पर यह उम्मीद की जा सकती है कि कंपनियाँ अपने लाभ का कुछ हिस्सा निवेश करेंगी। गौरतलब है कि आर्थिक समीक्षा ने भी निजी निवेश और निर्यात को रोज़गार वृद्धि और आर्थिक विकास की धुरी बताया है। आर्थिक समीक्षा की अहम् बातों पर गौर करें तो यह कहा जा सकता है कि:
► आर्थिक सुधारों की गति धीमी नहीं होगी।
► किसानों एवं महिलाओं के लिये पर्याप्त बजट आवंटन की उम्मीद है।
► व्यक्तिगत और कॉर्पोरेट कर में राहत संभव है।
► राजकोषीय घाटे को लेकर ज़्यादा सख्त रवैया देखने को नहीं मिलेगा।
क्या हैं बड़ी चुनौतियाँ:
क्या है आर्थिक समीक्षा?
- केंद्रीय बजट (Union Budget) पेश करने से पहले देश का आर्थिक सर्वेक्षण प्रस्तुत किया जाता है। दरअसल, बजट से पूर्व संसद में वित्त मंत्री देश की आर्थिक दशा की जो आधिकारिक रिपोर्ट पेश करते हैं, वह आर्थिक समीक्षा कहलाती है।
- इस समीक्षा में देश की आर्थिक हालत का लेखा-जोखा पेश किया जाता है। इसमें इन बातों का ज़िक्र होता है कि देश में विकास की दिशा क्या रही है, किस क्षेत्र में कितना निवेश हुआ, किस क्षेत्र में कितना विकास हुआ, किन योजनाओं को किस तरह अमल में लाया गया, जैसे सभी पहलुओं पर इस सर्वे में सूचना दी जाती है।
- अर्थव्यवस्था, पूर्वानुमान और नीतिगत स्तर पर चुनौतियों संबंधी विस्तृत सूचनाओं का भी इसमें समावेश होता है। इसमें क्षेत्रवार हालातों की रूपरेखा और सुधार के उपायों के बारे में बताया जाता है।
- यदि संक्षेप में कहा जाए तो, यह सर्वेक्षण भविष्य में बनाई जाने वाली नीतियों के लिये एक दृष्टिकोण का काम करता है।
- हालाँकि, यह जानना आवश्यक है कि आर्थिक समीक्षा केवल सिफारिशें हैं और इन्हें लेकर कोई कानूनी बाध्यता नहीं होती है। सरकार इन्हें केवल निर्देशात्मक रूप में ही लेती है।