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साइबर सुरक्षा के आर्थिक पहलू

  • 13 Jul 2017
  • 8 min read

सन्दर्भ
भारत में साइबर सुरक्षा को मज़बूत बनाने के क्रम में हाल ही में घटित दो घटनाएँ महत्त्वपूर्ण हैं। पहला यह कि सरकार ने वित्तीय क्षेत्र में एक कंप्यूटर इमरजेंसी टीम के गठन में सहायता करने वाले कार्यकारी समूह के सुझावों को सार्वजनिक कर दिया है और दूसरा यह कि भारतीय रिज़र्व बैंक ने ‘अनाधिकृत इलेक्ट्रॉनिक बैंकिंग लेन-देन में ग्राहकों का उत्‍तरदायित्‍व सीमित’ करने के लिये ग्राहक संरक्षण परिपत्र का प्रारूप जारी किया है।

दोनों ही कदम भारत में साइबर सुरक्षा को मज़बूत बनाएंगे, लेकिन यहाँ दूसरा प्रयास ज़्यादा महत्त्वपूर्ण है। यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि जब दोनों ही साइबर सुरक्षा को मज़बूत बना रहे हैं तो दूसरा अधिक महत्त्वपूर्ण किन कारणों से है? दरअसल, पहला प्रयास जहाँ साइबर सुरक्षा के तकनीकी पक्ष से संबंधित है, वहीं दूसरा आर्थिक पक्ष से। इस लेख की विषयवस्तु ही यह है कि क्यों साइबर सुरक्षा के आर्थिक पक्ष को अधिक महत्त्व दिया जाए?

क्या है आरबीआई का ग्राहक सरंक्षण परिपत्र (RBI's Consumer Protection Circular)?

  • विदित हो कि भारतीय रिज़र्व बैंक ने ‘अनाधिकृत इलेक्ट्रॉनिक बैंकिंग लेन-देन में ग्राहकों का उत्‍तरदायित्‍व सीमित’ करने के लिये ग्राहक संरक्षण परिपत्र का प्रारूप जारी किया है।
  • अनाधिकृत इलेक्ट्रॉनिक बैंकिंग लेन-देन संबंधी शिकायतों में हाल ही में तेज़ी आई है। ऐसी परिस्थितियों में ग्राहक के उत्‍तरदायित्व का निर्धारण करने के लिये मापदंडों की समीक्षा करते हुए आरबीआई ने यह कदम उठाया है।
  • परिपत्र प्रारूप में कहा गया है कि जहाँ ग्राहक की खुद की सहभागिता स्थापित होगी, वहाँ ग्राहक उत्तरदायी होगा, जबकि निम्‍न के लिये ग्राहक उत्तरदायी नहीं होगा:

→ जहाँ धोखाधड़ी / लापरवाही बैंक की ओर से हुई हो।
→ जहाँ ग्राहक की खुद की संलिप्तता नहीं है और उसने 4 से 7 कार्य दिवसों के भीतर उसकी सूचना बैंक को दे ही है, तो ग्राहक का उत्‍तरदायित्व अधिकतम ₹ 5000/- तक सीमित हो जाएगा।
→ यदि ग्राहक 7 कार्य दिवसों के बाद रिपोर्ट करता है, तो ग्राहक का उत्‍तरदायित्व बैंक के बोर्ड की अनुमोदित नीति के आधार पर निर्धारित किया जाएगा।

क्यों अधिक महत्त्वपूर्ण है आर्थिक पक्ष ?

  • दरअसल, साइबर सुरक्षा का अर्थ किसी कंप्यूटर नेटवर्क में उत्पन्न अवरोधों और उसके तकनीकी समाधान तक ही सीमित नहीं है, बल्कि प्रभावितों को होने वाले नुकसान का न्यूनीकरण और भरपाई करना भी है। यह चिंताजनक है कि हमने अब तक केवल तकनीकी पक्ष पर ही ध्यान दिया है।  
  • साइबर अपराधों से पिछले साल कारोबारी जगत को 30 खरब डॉलर का नुकसान झेलना पड़ा था और विशेषज्ञों का कहना है कि यह आँकड़ा आने वाले दिनों में 210 खरब डॉलर के हैरतअंगेज़ स्तर तक जा सकता है।
  • एक बात तो तय है कि दुनिया का कोई कंप्यूटर नेटवर्क फूलप्रूफ नहीं है, ऐसे में साइबर हमलों के दौरान होने वाले आर्थिक नुकसान का ध्यान रखते हुए हमें एक फूलप्रूफ नीति भी बनानी होगी, जिससे की होने वाले नुकसान की भरपाई हो सके।
  • साइबर सुरक्षा के मोर्चे पर अमेरिका में जहाँ धोखाधड़ी साबित करने का दायित्व बैंकों को दिया गया था ने ब्रिटेन, नॉर्वे और नीदरलैंड्स से बेहतर प्रदर्शन किया, जहाँ कि ग्राहकों को प्रमाणित करना होता है कि उनके साथ धोखाधड़ी हुई है। आरबीआई का ग्राहक सरंक्षण परिपत्र इस संदर्भ में स्वागत योग्य कदम है, लेकिन ऐसे और भी प्रयास होने चाहिये।
  • हालिया सर्वेक्षणों के मुताबिक भारत में चार में से केवल एक कंपनी ही साइबर हमलों के खतरे को लेकर विस्तृत आकलन कराती है, जबकि अन्य तीन के पास हमले की सूरत में उससे निपटने की कोई योजना नहीं होती है।
  • इससे पता चलता है कि भारतीय कंपनी जगत साइबर अपराध से होने वाले भारी कारोबारी नुकसान को लेकर काफी हद तक बेपरवाह है। यदि कंपनियों के समुचित आर्थिक दायित्व तय किये जाएं तो बेशक वे साइबर अपराधों को अधिक गंभीरता से लेंगी।

निर्णायक साबित हो सकता है ‘साइबर बीमा’

  • कंपनियों एवं बैंकों के दायित्वों का निर्धारण बेशक एक स्वागत योग्य कदम है, लेकिन कंपनियाँ भी यह दलील दे सकती हैं कि साइबर हमलों में जब उनका ही पैसा डूब गया तो वे कैसे अन्य हिताकरकों का ख्याल रखें ? इसका उपाय है “साइबर बीमा”।
  • आज के दौर के खतरे आगजनी या पानी में सामान डूबने जैसे परंपरागत सुरक्षा खतरों से एकदम अलग हैं। यह न तो किसी एक परिपाटी तक सीमित हैं और न ही एक खास तरह के सुरक्षात्मक उपायों से इन्हें रोका ही जा सकता है।
  • समस्या यह है कि भारत में साइबर बीमा में निवेश का स्तर बहुत निम्न है। वैश्विक स्तर पर साइबर बीमा बाज़ार करीब 4 अरब डॉलर का है और इसके वर्ष 2025 तक बढ़कर 20 अरब डॉलर हो जाने का अनुमान है।
  • इसकी तुलना में भारत में साइबर बीमा का बाज़ार 30 करोड़ रुपए ही है और वर्ष 2020 तक इसके 75 करोड़ रुपए होने का अनुमान है। हमें साइबर बीमा को बढ़ावा देना होगा, ताकि सबके हितों का सरंक्षण हो सके।

निष्कर्ष
डिजिटल होती दुनिया में साइबर अपराध एक गंभीर समस्या है। हैकरों द्वारा प्रायः उन्ही कंप्यूटर नेटवर्कों में सेंध लगाई जाती है, जिनका सुरक्षा-नेटवर्क कमज़ोर होता है। अतः तकनीक को उन्नत करते हुए तकनीकी रूप से सुदृढ़ नेटवर्क का निर्माण करना हमारी प्राथमिकता अवश्य होनी चाहिये, लेकिन उन्नत होती तकनीक से हैकर भी स्वयं को उन्नत करते जाते हैं और साइबर अपराध, पूर्णतः बंद हो जाएं यह शायद ही संभव हो पाए। ऐसे में साइबर सुरक्षा का आर्थिक पक्ष भी उतना ही महत्त्वपूर्ण है, जितना की इसका तकनीकी पक्ष।

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