ई-वाहनों के बजाय ई-परिवहन पर ध्यान केंद्रित करने की ज़रूरत | 10 Oct 2017
संदर्भ
- हाल ही में केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने कहा है कि भारत में ई-वाहनों को बढ़ावा देना आवश्यक है और वे वैकल्पिक ईंधन के इस्तेमाल को बढ़ावा देने के लिये वाहन उद्योग को 'मजबूर' करने से भी नहीं हिचकिचाएंगे। वाहन का उद्योग कहना है कि वे पहले से ही स्वच्छ वाहन तकनीक की दिशा में आगे बढऩे के लिये ज़रूरत से ज़्यादा प्रयास कर रहे हैं।
- दरअसल भारत की परिवहन नीति जहाँ विसंगतियों से युक्त है, वहीं उद्योग जगत पर्यावरण सुरक्षा के प्रति कभी उतना गंभीर नहीं रहा है। इस लेख में हम दोनों की ही कमियों की पहचान करते हुए आगे की राह के संबंध में चर्चा करेंगे।
कैसे इस संबंध में असंवेदनशील नज़र आया है उद्योग जगत?
- दरअसल, उद्योग जगत पास स्वच्छ ईंधन की दिशा में आगे बढऩे की एक योजना रही है, लेकिन या तो इसने उसे नज़रअंदाज़ किया या फिर जानबूझकर उसे कमज़ोर करने की कोशिश की गई।
- मसलन, ईंधन एवं उत्सर्जन के बीएस-4 मानकों को मार्च 2017 तक पूरे देश में लागू हो जाना था, लेकिन उद्योग जगत ने इसके लिये तैयारी करने के बजाय मान लिया था कि अधिक स्वच्छ ऊर्जा उपलब्ध ही नहीं हो पाएगी, लिहाज़ा वे इस समय-सीमा के बाद भी बीएस-3 मानक वाले वाहन बेचते रहेंगे। लेकिन सरकार ने इसकी इज़ाज़त नहीं दी, जिसे लेकर वाहन उद्योग ने निराशा जताई थी।
- कुल मिलाकर कार निर्माताओं ने साफ नज़र आ रही उस तस्वीर को देखने की कोशिश नहीं की जिसमें प्रदूषण और उससे होने वाली स्वास्थ्य समस्याएँ एक बड़ा सरोकार बनकर उभरी हैं। यह नीतिगत अनिश्चितता नहीं बल्कि सार्वजनिक विमर्श के प्रति आँख मूंदने जैसा है।
सरकार की परिवहन नीति में क्या विसंगतियाँ हैं?
- सरकार की वैकल्पिक ऊर्ज़ा को बढ़ावा देने की यह नीति निश्चित ही सराहनीय है, हालाँकि इसके क्रियान्वयन को लेकर कई तमाम समस्याएँ मौजूद हैं। दरअसल, सवाल यह है कि भारतीय सड़कों पर अधिक स्वच्छ ईंधन वाले वाहनों की संख्या बढ़ाने के लिये क्या कदम उठाए जाने चाहिये?
- यदि ई-वाहन प्राकृतिक गैस एवं कोयले से पैदा होने वाली बिजली का इस्तेमाल करते हैं तो फिर हम वातावरण में कार्बन डाईऑक्साइड को विस्थापित करेंगे न कि उसे खत्म कर सकेंगे। यानी ई-वाहनों का इस्तेमाल बढ़ने पर भी प्रदूषण बरकरार रहेगा। दरअसल होगा यह कि अब धुआँ कारों के साइलेंसर से न निकलकर ऊर्जा संयंत्रों की चिमनियों से निकलेगा।
- अब भी भारत में वाहनों की गिनती खासकर कारों की काफी कम है। वर्ष 2011 की जनगणना के मुताबिक केवल 10 फीसदी भारतीयों के पास ही कारें थीं। इसका मतलब है कि मोटर वाहन अब भी एक बड़े तबके की पहुँच से दूर हैं। यानी भारत में अधिकांश आबादी अभी भी सार्वजनिक परिवहन के साधनों का उपयोग करती है। ऐसे में हमें ई-वाहन निर्माण का दायरा व्यापक करना होगा।
- ई-वाहन अपनाने की दिशा में अधिक साहसिक एवं आक्रामक होने के बजाय भारत की नीति ढुलमुल ही रही है। कुछ महीने पहले हाइब्रिड एवं इलेक्ट्रिक वाहनों के त्वरित समेकन एवं विनिर्माण के पहले चरण में इलेक्ट्रिक मोबिलिटी बढ़ाने के नाम पर डीज़ल की औसत हाइब्रिड कारों को ही बढ़ावा दिया गया।
आगे की राह
- विदित हो कि अधिकतर भारतीय निजी वाहनों से नहीं चलते हैं। ऐसे में हमें ऐसी नीतियाँ बनानी होंगी जिससे कि स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा देने वाले निजी वाहनों के साथ सार्वजनिक परिवहन के साधनों को भी बढ़ावा मिल सके।
- शहरों में लाइट रेल यानी ट्राम चलाना एक विकल्प हो सकता है। इसके अलावा कुछ राजमार्गों का विद्युतीकरण कर उन पर बिजली-चालित बसें चलाई जा सकती हैं। उन बसों को ज़रूरत पडऩे पर रास्ते में ही चार्ज किया जा सकता है। अगर लोगों को उनके अंतिम गंतव्य तक पहुँचाने वाले वाहनों को भी इलेक्ट्रिक बनाया जा सके तो इससे आवागमन से संबंधित परिदृश्य ही बदल जाएगा।
- लेकिन इसके लिये सजग सोच की ज़रूरत है। पहला बड़ा मसला इस सार्वजनिक ढाँचागत क्षेत्र की लागत को कम करने के तरीके तलाशने का है। एक विकल्प है कि हम बड़े स्तर पर सार्वजनिक खरीद करें जैसा एलईडी लाइट के मामले में किया गया था।
- दूसरा विकल्प है कि वाहनों को इस तरह से बनाया जाए कि बैटरी के निर्माण की लागत उस वाहन की कीमत में न जुड़े। अगर हम ई-वाहनों के बजाय ई-परिवहन को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित करें तो हमारे विकल्प भी बदल जाएंगे और हम तय लक्ष्यों की प्राप्ति भी कर पाएंगे।
निष्कर्ष
- किसी भी देश की प्रगति का व्यक्तियों की आवाजाही और माल की ढुलाई से संबंधित उसकी दक्षता से गहरा संबंध होता है। अच्छी परिवहन व्यवस्था उपलब्ध संसाधनों, उत्पादन केन्द्रों और बाज़ार के बीच अनिवार्य संपर्क उपलब्ध कराते हुए आर्थिक वृद्धि में सहायता प्रदान करती है।
- प्रदूषण आज गंभीर समस्या है, अतः सरकार को चाहिये कि इस समस्या के समाधान के मुद्दे पर भी विचार करे और उन नीतियों का पालन करे जो व्यावहारिक हों और ये उपाय हैं:
♦ पुराने वाहनों को हटाना।
♦ 01 अप्रैल, 2020 से बीएस-6 उत्सर्जन नियमों को अपनाना।
♦ स्थानीय आबादी के सहयोग से राजमार्गों पर वृक्षारोपण को बढ़ावा देना।
♦ इलेक्ट्रॉनिक टोल क्लेक्शन प्रक्रिया को लागू करना।
♦ इथेनॉल, बायो-सीएनजी, बायो-डीज़ल, मीथेनॉल और बिजली के इस्तेमाल जैसे वैकल्पिक ईंधनों को प्रोत्साहन देना।