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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

कूटनीति और मज़बूत प्रतितुलक उपाय

  • 11 Aug 2021
  • 10 min read

यह एडिटोरियल 10/08/2021 को ‘हिंदुस्तान टाइम्स’ में प्रकाशित ‘‘To take on China, rely on diplomacy and strong counter-measures’’ लेख पर आधारित है। इसमें LAC पर जारी संकटों के समाधान के लिए कूटनीति की आवश्यकता के साथ-साथ मज़बूत प्रतितुलक उपायों के संबंध में चर्चा की गई है।

भारत और चीन द्वारा पूर्वी लद्दाख में गोगरा विवादित स्थल से अपने-अपने सैन्य बलों को पीछे हटाने के लिए बनी सहमति अप्रैल 2020 (गलवान में झड़प) से पूर्व की यथास्थिति की बहाली की दिशा में बढ़ाया गया नवीन कदम है। ज्ञात हो कि चीनी सेना द्वारा वास्तविक नियंत्रण रेखा (Line of Actual Control- LAC) पर विभिन्न क्षेत्रों में पूर्व-नियोजित घुसपैठों से दोनों देशों के बीच तनाव और संघर्ष की स्थिति बनी हुई है। 

वर्तमान में गोगरा, गलवान और पैंगांग त्सो सहित तीन संघर्ष क्षेत्रों से दोनों पक्षों ने अपनी सेनाएँ पीछे हटा ली हैं, जबकि कई अन्य सामरिक स्थलों पर गतिरोध बना हुआ है और इनके त्वरित समाधान की आवश्यकता है। इन तीन क्षेत्रों में हुई प्रगति से सबक लेते हुए चीन और भारत को अन्य क्षेत्रों में भी गतिरोध समाप्ति की दिशा में आगे बढ़ने की ज़रूरत है।

LAC

समझौता वार्ता: सीखे गए सबक 

  • सतत कूटनीति सकारात्मक परिणाम देती है: कई दौर की वार्ताओं के कारण दोनों दिग्गज एशियाई शक्तियों ने एक तीखे संघर्ष को टाल दिया है, गलवान में हुई हिंसक झड़प के बाद जिसकी प्रबल संभावना बनी हुई थी।  
    • LAC पर दोनों सेनाओं की बातचीत ने प्रत्यक्ष रूप से एक-दूसरे को उनकी अपेक्षाओं और आकांक्षाओं से अवगत कराने में मदद की।  
    • इसके अलावा, चीन के मुक़ाबले भारत के पक्ष में अमेरिका की संलग्नता ने भी तनाव को कम करने में सहायता की।
  • कूटनीतिक वार्ता आवश्यक, लेकिन पर्याप्त नहीं: सैन्य प्रतिरोध और संकल्प के प्रदर्शन के बिना आक्रामक और विस्तारवादी चीन को अपने बंकरों और अर्द्ध-स्थायी संरचनाओं को नष्ट करने अथवा अपने टैंकों और बख्तरबंद वाहनों को अप्रैल 2020 से पूर्व की स्थिति में वापस ले जाने के लिए मनाया जाना संभव नहीं था।   
    • चीन ने तीन अतिक्रमित क्षेत्रों से अपनी सेना वापस करने का निर्णय तब लिया जब उसने पाया कि भारत बराबरी से मुक़ाबले के लिए तैयार है, कुछ क्षेत्रों में चीनी सैन्य बलों की संख्या से बराबर या उससे अधिक सैन्य बलों की तैनाती कर रहा है, और उस क्षेत्र में प्रतिरोधी आक्रामकता की वृद्धि कर रहा है जिसे चीन अपने हिस्से का LAC बताता है।
  • आक्रामक रक्षा: इस पूरे संकटकाल के दौरान LAC पर भारत का रणनीतिक अवसंरचना-निर्माण और बल प्रक्षेपण "आक्रामक रक्षा" (offensive defence) की अवधारणा से निर्देशित रहा, जिसने चीन को अपनी विस्तारवादी इच्छाओं की लाभ-हानि की पुनर्गणना करने के लिए विवश किया। 
  • शक्ति के माध्यम से शांति: चूँकि संकट का कूटनीतिक समाधान सैन्य अभियानों पर निर्भर है और रणनीतिक दृढ़ संकल्प को प्रकट करता है, भारत को शक्ति के माध्यम से शांति (peace through strength) पाने के इस मार्ग पर बने रहना चाहिए।  
    • इस रणनीति में इंडो-पैसिफ़िक क्षेत्र में बहुपक्षीय प्रतिसंतुलनकारी दबाव बनाने के लिए क्वाड (Quad) को सक्रिय और कार्यान्वित करना; चीनी वस्तुओं, प्रौद्योगिकी और निवेश पर अधिकाधिक नियंत्रण; और तिब्बत एवं ताइवान की स्थिति जैसे संवेदनशील मुद्दों पर पुनः सक्रिय होने जैसे सभी उपाय शामिल हो सकते हैं।

चुनौतियाँ

  • एक-दूसरे की मंशाओं पर संदेह: चूँकि भारत और चीन एक-दूसरे की मंशाओं, लक्ष्यों और अंतर्राष्ट्रीय संरेखताओं को लेकर लंबे समय से संदेह का रुख रखते हैं, इसने सीमा संकट को गहरा करने में योगदान किया है।  
    • LAC पर दोनों ओर लगभग 50,000 सैनिकों की तैनाती की स्थिति में पुनः हिंसक झड़पों की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है।
  • शक्ति के लिए प्रतिस्पर्द्धा: निश्चय ही, दोनों पड़ोसी देश एशिया में और उसके बाहर अपनी शक्ति और प्रभाव के लिए प्रतिस्पर्द्धा करना बंद नहीं करेंगे, लेकिन वे सीमा विवाद को एक वास्तविक युद्ध में परिणत होने देने पर नियंत्रण अवश्य रख सकते हैं। 
  • भारत-अमेरिका संबंधों का गहरा होना: भारत-चीन संबंधों में आगे और कठिनाई आ सकती है, विशेष रूप से जबकि भारत-संयुक्त राज्य अमेरिका की रणनीतिक साझेदारी परिपक्व हो रही है और अमेरिका-चीन संबंधों में भारी गिरावट आ रही है। 
  • सैन्य अग्रसक्रियता से संबद्ध चुनौतियाँ: यद्यपि भारतीय सैन्य अग्रसक्रियता (military proactiveness) इस संकट से निपटने के लिए अनिवार्य विकल्प है, लेकिन इस प्रकार का संतुलन अस्थिर प्रवृत्ति रखता है और तनाव में अनुचित वृद्धि का जोखिम उत्पन्न करता है।

आगे का रास्ता

  • आपसी संवाद के माहौल को बनाए रखना: दोनों पक्षों के लिए यह अत्यंत आवश्यक होगा कि वे कड़ी मेहनत से प्राप्त विश्रांति की स्थिति पर संतोष करें और इस दिशा में हुई प्रगति के समेकन के लिए मिलकर कार्य करें। इसके साथ ही, आपसी संवाद के माहौल को बनाए रखते हुए तनाव में और कमी लाने की आवश्यकता है, जबकि सीमा प्रबंधन और नियंत्रण तंत्र में सुधार किया जाना चाहिए। 
  • दोनों देशों को इन चार आधारभूत विषयों में महारत हासिल करने की आवश्यकता है: 
    • नेतृत्व: इसका अभिप्राय है दोनों देशों के कुशल नेतृत्व के मार्गदर्शन में आपसी सहमति तक पहुँचना और द्विपक्षीय संबंधों के विकास की दिशा को निर्देशित करना। 
    • संचरण: इसका अभिप्राय है नेतृत्व की आपसी सहमति को सभी स्तरों तक संचरित करना और इसे मूर्त सहयोग एवं परिणामों के रूप में साकार करना।   
    • आकार देना: इसका अर्थ है मतभेदों को दूर करने से आगे बढ़ते हुए द्विपक्षीय संबंधों को सक्रिय रूप से आकार देना और सकारात्मक माहौल को सुदृढ़ करना। 
    • एकीकरण: इसका अर्थ है आदान-प्रदान और आपसी सहयोग को मज़बूत करना, हितों के अभिसरण को बढ़ावा देना और साझा विकास की स्थिति प्राप्त करना।     
  • परस्पर विकास: दो बड़ी उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं के रूप में चीन और भारत को साथ-साथ विकास करने, एक-दूसरे के लिए अवरोध उत्पन्न करने के बजाय साझेदारी में आगे बढ़ने और साझा प्रगति के लिए मिलकर कार्य करने की आवश्यकता है। 

निष्कर्ष

भारत के पास इसके विरुद्ध प्रेरित चीनी नीति के समक्ष संकोच करने  या कमज़ोर पड़ने का विकल्प नहीं है। इस लंबे समय से जारी संकट में वीरता और विवेक के मेल से ही भारत सफलता प्राप्त कर सकता है।

अभ्यास प्रश्न: सैन्य प्रतिरोध और संकल्प के प्रदर्शन के बिना आक्रामक और विस्तारवादी चीन को वास्तविक नियंत्रण रेखा पर अपने बंकरों और अर्द्ध-स्थायी संरचनाओं को नष्ट करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। चर्चा कीजिये।

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