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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

भारत में डिजिटल प्रतिभा: अवसर और चुनौतियाँ

  • 30 Sep 2021
  • 13 min read

यह एडिटोरियल 29/09/2021 को ‘लाइवमिंट’ में प्रकाशित ‘‘The war for digital talent: India can emerge as a global hub for it’’ लेख पर आधारित है। इसमें डिजिटल प्रतिभा और भारत में डिजिटल विशेषज्ञ पारितंत्र से संबद्ध मुद्दों के संबंध में चर्चा की गई है।

संदर्भ

कोविड-19 महामारी के कारण उद्यमों के डिजिटल ट्रांसफॉर्मेशन में तेज़ी आई है, जिससे सभी संगठनों के लिये महत्त्वपूर्ण अवसरों का निर्माण हुआ है। भारत में प्रौद्योगिकी उद्योग की ग्राहक-केंद्रितता के मद्देनज़र मांग वातावरण बेहद सकारात्मक है और कई कंपनियों ने इस वित्तीय वर्ष में दोहरे अंकों में वृद्धि करने की घोषणा की है। 

प्रतिभा संबंधी समस्याओं से निपटने के लिये कंपनियाँ एक बहुआयामी दृष्टिकोण अपना रही हैं, जिसके अंतर्गत आपूर्ति पूल में वृद्धि हेतु नई नियुक्तियाँ, ऑनलाइन लर्निंग के माध्यम से री-स्किलिंग कार्यक्रमों को बढ़ावा देना, ऑन-द-जॉब लर्निंग हेतु संलग्न-प्रतिभा कौशल (Adjacent-Talent Skills) की तैनाती और कर्मचारियों को एक समग्र रोज़गार अनुभव प्रदान करना आदि शामिल हैं।

एक उभरते प्रौद्योगिकी पारितंत्र में भारत के पास विश्व का डिजिटल प्रतिभा केंद्र बनने का एक बड़ा अवसर है। विशेषज्ञों का मानना है कि वर्ष 2025 तक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, रोबोटिक्स और डेटा साइंस जैसी उन्नत प्रौद्योगिकियों में प्रतिभा की मांग, उसकी आपूर्ति की तुलना में 20 गुना अधिक हो जाएगी।    

डिजिटल प्रतिभा

  • इसका आशय प्रतिभाशाली कर्मियों के ऐसे समूह से है, जो मौजूदा डिजिटल तकनीकों को अपनाने और उनका उपयोग करने में सक्षम हैं।
  • डिजिटल प्रतिभा की आवश्यकता: विश्व आर्थिक मंच (WEF) की एक रिपोर्ट के अनुसार, ‘अपस्किलिंग’ (Upskilling) में निवेश वर्ष 2030 तक वैश्विक अर्थव्यवस्था में 6.5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर और भारतीय अर्थव्यवस्था में 570 बिलियन अमेरिकी डॉलर की वृद्धि कर सकता है।  
  • यहाँ ‘डिजिटल प्रतिभा’ का अभिप्राय पारंपरिक ‘STEM’ विषयों (S- विज्ञान, T-तकनीक, E-इंजीनियरिंग और M-गणित) में शिक्षा से नहीं है।
    • इसके बजाय, ‘डिजिटल प्रतिभा’ की अवधारणा डिजिटल-फर्स्ट मानसिकता से उत्पन्न होती है, जिसमें डेटा विश्लेषण जैसी हार्ड डिजिटल स्किल्स और ‘स्टोरीटेलिंग’ तथा ‘कम्फर्ट विद एम्बिग्युटी’ (Comfort with Ambiguity) जैसी सॉफ्ट डिजिटल स्किल्स शामिल हैं।    
    • अब वह युग नहीं रहा जब कोई इंजीनियर्स बस कमरे में बैठ कर कोड लिखते थे। आज किसी डेटा साइंटिस्ट के लिये सबसे महत्त्वपूर्ण कौशल ‘स्टोरीटेलिंग’ है।

भारतीय संभावनाएँ

  • भारत को डिजिटल युग में अपनी बढ़त बनाए रखने के लिये प्रतिभा विकास के पारंपरिक दृष्टिकोण में परिवर्तन लाने की आवश्यकता है।  
    • ‘टैलेंट हब’ बनने और दिखने की होड़ पूरी दुनिया में आकार ले रही है।
    • उदाहरण के लिये संयुक्त अरब अमीरात ने हाल ही में ‘ग्रीन वीज़ा’ शुरू करने, ‘गोल्डन वीज़ा’ के लिये पात्रता का विस्तार करने और शीर्ष प्रौद्योगिकी कर्मियों को आकर्षित करने संबंधी योजनाओं की घोषणा की है, ताकि वह प्रौद्योगिकी कंपनियों के लिये एक पसंदीदा निवेश केंद्र बन सके।
    • ब्रिटेन, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया जैसे कई अन्य देश उच्च-कौशल प्रतिभा को आकर्षित करने के प्रयासों पर पुनर्विचार कर रहे हैं, जिसमें जोखिमयुक्त क्षेत्रों के लिये फास्ट-ट्रैकिंग वीज़ा और अत्यधिक कुशल आवेदकों के लिये वीज़ा को बढ़ावा देने जैसे कदम शामिल हैं।
  • भारत के लिये सबसे बड़ा अवसर भविष्य के विश्व हेतु डिजिटल प्रतिभा का विकास करना है। इस प्रकार भारत दुनिया का ‘टैलेंट लीडर’ बन सकता है।
    • भारत में मौजूद प्रतिभा देश के लिये सबसे बड़ा प्रतिस्पर्द्धी लाभ होगा। व्यवसाय वहीं जाएंगे, जहाँ बेहतर प्रतिभा उपलब्ध होगी और वे उसी आधार पर अपने निवेश निर्णय लेंगे।

डिजिटल प्रतिभा में कमी के कारण

  • डिजिटल कौशल की कमी: कौशल की कमी के कारण वर्ष 2019 में 53% भारतीय व्यवसाय नई नियुक्तियों में असमर्थ रहे।  
    • इस प्रकार, डिजिटल कौशल की कमी वर्तमान में प्रमुख चुनौतियों में से एक है।
  • ‘ब्रेन ड्रेन’ की समस्या: प्रमुख समस्याओं में से एक यह भी है कि हमारे सर्वश्रेष्ठ प्रशिक्षित लोग ही प्रायः हमारे देश में कार्य नहीं करते हैं, बल्कि वे अवसरों के लिये दूसरे देशों की ओर पलायन कर जाते हैं।  
    • इसे ‘ब्रेन ड्रेन’ अथवा भारत से कुशल कामगारों के बड़े पैमाने पर पलायन के रूप में जाना जाता है।  
  • निजी संस्थानों के गुणवत्ता मानक: ऐसे निजी इंजीनियरिंग कॉलेजों की संख्या काफी अधिक है, जिनकी शिक्षण गुणवत्ता काफी खरब है और जो मुख्य रूप से व्यक्तिगत लाभ के लिये संचालित होते हैं।  
    • ये कॉलेज अपने परिसर में अनुसंधान एवं विकास को प्रोत्साहित नहीं करते हैं।
  • पारिश्रमिक की कमी: प्रौद्योगिकी क्षेत्रों में कार्यरत लोगों को पर्याप्त पारिश्रमिक नहीं दिया जाता है।  
    • भारत उन चुनिंदा देशों में से एक है, जहाँ इंजीनियरिंग में स्नातक के बाद प्रायः प्रतिभाशाली छात्र मार्केटिंग या मैनेजमेंट के क्षेत्र में जाने के लिये MBA की भी पढ़ाई करते हैं।
  • उच्च बेरोज़गारी: देश में असमानता बढ़ रही है और ग्रामीण एवं शहरी संकट में भी वृद्धि हो रही है। प्रवासन बढ़ रहा है, अचल संपत्ति की कीमतों में गिरावट आ रही है, व्यय में वृद्धि हो रही है, और मज़दूरी स्थिर या गतिहीन बनी हुई है। ये सारी समस्याएँ कोई नई नहीं हैं, बल्कि कुछ अरसे से बनी हुई हैं। 
  • अनुसंधान एवं विकास की कमी: भारत की डिजिटल प्रतिभा प्रायः सैलरी पैकेज पर अधिक ध्यान केंद्रित करती है और नवाचार की अनदेखी करती है। 

आगे की राह

  • राष्ट्रीय शिक्षा नीति का केंद्रित कार्यान्वयन: राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर दीर्घकालिक ध्यान केंद्रित करना महत्त्वपूर्ण है और इसके प्रति सही दृष्टिकोण विकसित करना भी आवश्यकता है।  
    • निरंतर लर्निंग, स्किल क्रेडिट, विश्वस्तरीय अकादमिक नवाचार, अनुभवात्मक लर्निंग, संकाय प्रशिक्षण—इन सभी विषयों को सही ढंग से संबोधित किये जाने की आवश्यकता है।
  • वैकल्पिक ‘टैलेंट पूल’ का निर्माण: छोटे शहरों में भी डिजिटल क्षमताओं का निर्माण किया जाना चाहिये; हाइब्रिड कार्य मानदंडों के साथ अधिकाधिक महिलाओं को कार्य-धारा में शामिल किया जाए; और औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों एवं पॉलिटेक्निक संस्थानों द्वारा प्रदत्त व्यावसायिक शिक्षा में सुधार लाया जाए।  
  • कौशल को प्रोत्साहन देना: प्रौद्योगिकी क्षेत्र के आरंभिक दौर में भारत में बहुराष्ट्रीय निगमों के वैश्विक फुटप्रिंट के निर्माण में कर प्रोत्साहनों ने उल्लेखनीय भूमिका निभाई थी।  
    • हमें अब ऐसी योजनाओं का निर्माण करना चाहिये, जो न केवल उनकी अपनी आवश्यकताओं के लिये, बल्कि पूरे पारितंत्र के लिये कौशल को प्रोत्साहित करें।
  • नवोन्मेषी लर्निंग मॉडल्स: नवोन्मेषी लर्निंग मॉडल्स को अपनाते हुए न केवल प्रमाणपत्र के लिये, बल्कि मूल्यांकन के लिये भी व्यापक पैमाने पर ‘शिक्षुता कार्यक्रमों’ का उपयोग किया जाना चाहिये।  
    • विश्वस्तरीय ‘फ्री कंटेंट’ के निर्माण में निवेश किया जाना चाहिये जिसका लाभ कोई भी उठा सकता हो और यह प्रमाणन की एक विश्वसनीय प्रणाली के साथ संरेखित हो।
  • प्रशिक्षण का लोकतंत्रीकरण: लोगों में कौशल के विकास के लिये सभी बाधाओं को दूर करना आवश्यक होगा। अनावश्यक प्रवेश योग्यता और पात्रता मानदंड को समाप्त करना आवश्यक है। प्रवेश में किसी भी प्रकार की कोई बाधा नहीं होनी चाहिये, लेकिन निकास प्रक्रिया गुणवत्ता-नियंत्रित हो।

निष्कर्ष

भारत को विकास और नवाचार के अगले चरण को उत्प्रेरित करने के लिये न केवल घरेलू प्रतिभाओं की वृद्धि पर लक्षित रणनीतियों पर विचार करना चाहिये, बल्कि सर्वश्रेष्ठ वैश्विक प्रतिभाओं को आकर्षित करने की दिशा में भी कार्य करना चाहिये। इसके लिये री-स्किलिंग में लगातार निवेश के साथ ही कौशल विकास को बढ़ावा देने वाली संस्कृति को अपनाने की भी आवश्यकता है। एक सुदृढ़ डिजिटल प्रतिभा पारितंत्र का निर्माण हमें भविष्य के लिये तैयार होने और डिजिटल भविष्य के अवसरों का लाभ उठा सकने में सक्षम करेगा।

अभ्यास प्रश्न: एक उभरते प्रौद्योगिकी पारितंत्र में भारत के पास विश्व का डिजिटल प्रतिभा केंद्र बनने का बड़ा अवसर मौजूद है। चर्चा कीजिये।

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