अंतर्राष्ट्रीय संबंध
डिज़िटल इंडिया को साइबर सुरक्षा की आवश्यकता।
- 01 Jul 2017
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संदर्भ
भारत को डिज़िटल अर्थव्यवस्था बनाने के लिये सरकार एक कार्यक्रम पर कार्य कर रही है। इसके लिये डिज़िटल लॉकर से लेकर विमुद्रीकरण जैसे कई पहल किये गए हैं। डिज़िटल अर्थव्यवस्था के बनने से आर्थिक विकास में नई लहर आने की संभावना है, जिससे विभिन्न क्षेत्रों में निवेश में वृद्धि होगी तथा रोज़गार के नए अवसर पैदा होंगे।
डिज़िटल लॉकर
- यह डिज़िटल इंडिया कार्यक्रम का एक अहम् हिस्सा है। यह दस्तावेज़ों की छायाप्रति सुरक्षित रखने के काम आती है। भारत सरकार के सूचना एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा प्रबंधित इस वेबसाईट आधारित सेवा के ज़रिये उपयोगकर्त्ता अपने दस्तावेज़ों को ऑनलाइन सुरक्षित रख सकते हैं।
चुनौतियाँ
- डिज़िटल अर्थव्यवस्था की अपनी चुनौतियाँ भी हैं। डिज़िटल अर्थव्यवस्था के बनने से बड़ी मात्रा में ग्राहकों एवं नागरिकों के डाटा को डिज़िटल रूप में रखने की आवश्यकता पड़ेगी तथा बड़ी मात्रा में ऑनलाइन विनिमय भी होंगे, जिसके कारण भारत साइबर अपराधियों एवं हैकरों का बड़ा लक्ष्य बन सकता है। इसलिये इस चुनौती से निपटने के लिये विभिन्न दावेदारों को अपनी तैयारी बेहतर बनानी होगी।
- एक अनुमान के अनुसार वर्तमान में भारत में साइबर हमले से 25000 करोड़ रुपए से अधिक का नुकसान हो रहा है। यहाँ आपको जानना ज़रूरी है कि भारत में अनेक छोटे साइबर हमलों की रिपोर्ट ही दर्ज़ नहीं होती, अन्यथा यह अनुमान और भी अधिक हों सकता है।
- साइबर हमले के दौरान नुकसान कई कारणों से होता है, जैसे – व्यवसाय के संचालन में व्यवधान आने से, संवेदनशील सूचनाओं एवं डिज़ाइनों के खो जाने से, ब्रांड की छवि खराब होने से तथा कानूनी दावों एवं बीमा प्रीमियमों के बढ़ने से।
- जिस तरह से भारत में व्यवसायों का आपस में जुड़ाव होता जा रहा है, उससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि भविष्य में इन समस्याओं में और वृद्धि होगी तथा आने वाले समय में यह आँकड़ा 1.25 खरब रुपए ($20 बिलियन) तक पहुँच सकता है।
जागरूकता की कमी
- वर्तमान में भारत में साइबर सुरक्षा के महत्त्व एवं इसके प्रभाव के प्रति जागरूकता की कमी है। स्वयं अधिकांश कंपनियाँ इसे एक रणनीतिक एजेंडा मानने की बजाय अपने सूचना एवं प्रौद्योगिकी विभाग की एक छोटी-सी घटना मानकर नज़रअंदाज कर देती हैं। एक सच्चाई यह भी है कि साइबर सुरक्षा की अनेक छोटी घटनाओं की पहचान ही नहीं हो पाती है तो उनकी रिपोर्टिंग कहाँ से होती होगी।
- अत: उद्योग-विशेष के अनुसार साइबर सुरक्षा के उपायों को अपनाये जाने की आवश्यकता है, क्योंकि इसके प्रति विशेष रूप से जागरूकता की कमी है तथा यह सूचना एवं प्रौद्योगिकी सुरक्षा से महत्त्वपूर्ण रूप से भिन्न भी है।
गलत धारणा
- साइबर सुरक्षा को लेकर सबसे अधिक गलत धारणा यह है कि साइबर हमले केवल वित्तीय सेवाओं एवं बैंकिंग उद्योग को ही प्रभावित करते हैं। यहाँ यह नोट करना महत्त्वपूर्ण है कि औद्योगिक क्षेत्र भी साइबर हमले से उतने ही सुभेद्य हैं, जितने की अन्य क्षेत्र।
- हाल की घटनाओं से यह स्पष्ट हो चुका है कि तेज़-तर्रार साइबर अपराधियों एवं हैकरों की चुनौतियों से निपटने में हमारी पारंपरिक सुरक्षा प्रणालियाँ एवं फायरवाल पूरी तरह से सक्षम नहीं हैं।
- भारतीय कंपनियों को अपने साइबर सुरक्षा तंत्र को और मज़बूत करना होगा। इसकी शुरुआत शीर्ष पर बैठे अधिकारियों को एक विज़न बना कर करना चाहिए। कंपनियों के मुख्य कार्यकारी अधिकारियों को अपने प्रबंधन एजेंडे में इसे उच्च प्राथमिकता देनी होगी तथा एक सुपरिभाषित रोड-मैप बनाना होगा।
- कंपनियों को अपने महत्त्वपूर्ण परिसंपत्तियों, जिनकी जोखिम की संभावना सर्वाधिक हो, की पहचान कर लेनी चाहिये। इसके अलावा उनको समय-समय पर रियल-टाइम हमलों के मुताबिक नियमित अभ्यास करना चाहिये। इससे उन्हें अपनी तैयारियों को जानने-परखने तथा जवाबी कार्यवाही करने का मौका मिलेगा।
- इसके अलावा, कंपनियों को एक-दूसरे के अनुभवों से सीखने के लिये सहकर्मियों के साथ सहयोग करना चाहिये।
- साइबर सिक्योरिटी के प्रति नज़रिये को बदलने की आवश्यकता है। इसे निष्क्रिय एजेंट समझने की बजाय व्यवसाय को बनाये रखने वाला सक्रिय एजेंट मानना चाहिये।
- अंत में, नियामकों को यह सुनिश्चित करना होगा कि वे अपने दायरे तक सभी पहलुओं को शामिल कर रहे हैं। इसमें ऐसे नियम शामिल हैं, जो पूरे देश में कंपनियों के लिये साइबर सुरक्षा पर न्यूनतम मानक निर्धारित करते हैं। इसके साथ-साथ साइबर अपराधियों के लिये कड़े कानूनों की आवश्यकता है।
निष्कर्ष
भारत आज डिज़िटल विकास के छोर पर बैठा है। कंपनियों को सुनिश्चित करना है कि वे डिज़िटल विकास से आने वाले अवसरों का लाभ उठाने के लिये तैयार हैं। ऐसा करने का एकमात्र तरीका यह सुनिश्चित करना है कि कंपनी बोर्ड के एजेंडे में साइबर सुरक्षा सर्वोपरि हो।