राजनीतिक दलों का लोकतंत्रीकरण | 26 Oct 2021

यह एडिटोरियल 23/10/2021 को इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित “How to democratise the party” लेख पर आधारित है। इसमें भारत में राजनीतिक दलों के कार्यकरण को लोकतांत्रिक बनाने की आवश्यकता के संबंध में चर्चा की गई है।

संदर्भ

लोकतांत्रिक सिद्धांत में प्रक्रियात्मक लोकतंत्र (Procedural Democracy) और वास्तविक लोकतंत्र (Substantive Democracy) दोनों शामिल हैं। यहाँ प्रक्रियात्मक लोकतंत्र से तात्पर्य सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार, आवधिक चुनाव, गुप्त मतदान आदि के अभ्यास से है, जबकि वास्तविक लोकतंत्र राजनीतिक दलों—जो कथित तौर पर लोगों का प्रतिनिधित्व करते हैं, के आंतरिक लोकतांत्रिक कार्यकरण को संदर्भित करता है।     

वर्तमान में भारतीय राजनीति के समक्ष विद्यमान विभिन्न प्रासंगिक चुनौतियों की जड़ें उम्मीदवारों के चयन और दलीय चुनावों में ’इंट्रा-पार्टी/अंतरा-दलीय लोकतंत्र’ की कमी में ढूँढी जा सकती हैं ।  

राजनीतिक दलों में लोकतंत्र की आवश्यकता

  • प्रतिनिधित्त्व: ’इंट्रा-पार्टी/अंतरा-दलीय लोकतंत्र’ के अभाव ने राजनीतिक दलों को संकीर्ण निरंकुश संरचनाओं में बदल दिया है। यह नागरिकों के राजनीति में भाग लेने और चुनाव लड़ सकने के समान राजनीतिक अधिकार पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। 
  • गुटबाजी में कमी: इससे मज़बूत ज़मीनी संपर्क या जनाधार रखने वाले नेता को दल में दरकिनार नहीं किया जा सकेगा। जिससे पार्टी के भीतर गुटबाजी और विभाजन का खतरा कम हो जाएगा। उदाहरण के लिये भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस (INC) छोड़कर शरद पवार ने राष्ट्रवादी कॉन्ग्रेस पार्टी (NCP) और ममता बनर्जी ने अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस (TMC) का गठन कर लिया था।   
  • पारदर्शिता: पारदर्शी प्रक्रियाओं के साथ एक पारदर्शी दलीय संरचना, उपयुक्त टिकट वितरण और उम्मीदवार चयन को बढ़ावा देगी। ऐसे चयन पार्टी के कुछ शक्तिशाली नेताओं की इच्छा पर आधारित नहीं होंगे, बल्कि वे समग्र रूप से पार्टी की पसंद का प्रतिनिधित्त्व करेंगे।
  • उत्तरदायित्त्व: एक लोकतांत्रिक दल अपने सदस्यों के प्रति उत्तरदायी होगा, क्योंकि अपनी कमियों के कारण वे आगामी चुनावों में हार सकते हैं।
  • सत्ता का विकेंद्रीकरण: प्रत्येक राजनीतिक दल की राज्य और स्थानीय निकाय स्तर की इकाइयाँ होती हैं। दल में प्रत्येक स्तर पर चुनाव का आयोजन विभिन्न स्तरों पर शक्ति केंद्रों के निर्माण का अवसर देगा। इससे सत्ता या शक्ति का विकेंद्रीकरण हो सकेगा और ज़मीनी स्तर पर निर्णय लिये जा सकेंगे।      
  • राजनीति का अपराधीकरण: चूँकि भारत में चुनाव से पूर्व उम्मीदवारों को टिकटों के वितरण हेतु कोई सुव्यवस्थित प्रक्रिया मौजूद नहीं है, इसलिये उम्मीदवारों को बस उनके ‘जीत सकने की क्षमता’ की एक अस्पष्ट अवधारणा के आधार पर टिकट दिये जाते हैं। इससे धनबली-बाहुबली अथवा आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों के चुनाव मैदान में उतरने की अतिरिक्त समस्या उत्पन्न हुई है।    

लोकतंत्र की कमी के कारण

  • वंशवाद की राजनीति: अंतरा-दलीय लोकतंत्र की कमी ने राजनीतिक दलों में भाई-भतीजावाद (Nepotism) की प्रवृति में योगदान दिया है। पार्टी के वरिष्ठ नेताओं द्वारा अपने परिवार के सदस्यों को चुनाव मैदान में उतारा जा रहा है।     
  • राजनीतिक दलों की केंद्रीकृत संरचना: राजनीतिक दलों के कार्यकरण का केंद्रीकृत स्वरूप और वर्ष 1985 में अधिनियमित दल-बदल विरोधी कानून, राजनीतिक दलों के निर्वाचित सदस्यों को राष्ट्रीय और राज्य विधानमंडलों में अपने व्यक्तिगत पसंद या विवेक से मतदान करने से अवरुद्ध करता है।     
  • कानून की कमी: वर्तमान में भारत में राजनीतिक दलों के आंतरिक लोकतांत्रिक विनियमन के लिये कोई स्पष्ट प्रावधान मौजूद नहीं है और एकमात्र शासी कानून ‘लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951’ की धारा 29A द्वारा प्रदान किया गया है, जो भारतीय निर्वाचन आयोग में राजनीतिक दलों के पंजीकरण का प्रावधान करता है। हालाँकि, राजनीतिक दलों द्वारा अपने पदाधिकारियों के चयन हेतु नियमित रूप से आंतरिक चुनाव आयोजित किये जाते हैं, किंतु किसी दंडात्मक प्रावधान के अभाव में यह अत्यंत सीमित ही है।     
  • व्यक्ति पूजा: प्रायः आम लोगों में नायक पूजा की प्रवृत्ति होती है और कई बार पूरी पार्टी पर कोई एक व्यक्तित्व हावी हो जाता है जो अपनी मंडली बना लेता है, जिससे सभी प्रकार के अंतरा-दलीय लोकतंत्र का अंत हो जाता है। उदाहरण के लिये माओत्से तुंग का चीनी कम्युनिस्ट पार्टी पर आधिपत्य या अमेरिका में रिपब्लिक पार्टी पर डोनाल्ड ट्रंप का प्रभाव।       
  • आंतरिक चुनावों को अप्रभावी करना: पार्टी में शक्ति समूहों द्वारा अपनी सत्ता को मज़बूत करने और यथास्थिति बनाए रखने के लिये आंतरिक संस्थागत प्रक्रियाओं को नष्ट करना बेहद सरल है।

अनुशंसाएँ

  • विधि आयोग: चुनावी कानूनों के सुधार पर भारतीय विधि आयोग की 170वीं रिपोर्ट में एक पूरा अध्याय राजनीतिक दलों में आंतरिक लोकतंत्र के लिये कानूनों की आवश्यकता को समर्पित किया गया है।
    • आयोग ने माना था कि कोई राजनीतिक दल, जो अपने आंतरिक कार्यकरण में लोकतांत्रिक सिद्धांतों का सम्मान नहीं करता है, उससे देश के शासन में मौजूद आधारभूत सिद्धांतों का सम्मान करने की आशा और अपेक्षा नहीं की जा सकती है।
  • NCRWC रिपोर्ट: ’राष्ट्रीय संविधान कार्यकरण समीक्षा आयोग’ (National Commission for Review of Working of Constitution- NCRWC) ने माना है कि भारत में राजनीतिक दलों या गठबंधनों के पंजीकरण और कार्यकरण के विनियमन हेतु एक व्यापक विधायी व्यवस्था होनी आवश्यक है।   
  • द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग रिपोर्ट: प्रशासनिक सुधार आयोग (ARC) की द्वितीय रिपोर्ट (नैतिकता और शासन) ने उल्लेख किया है कि भ्रष्टाचार मुख्यतः अति-केंद्रीकरण के कारण ही होता है, क्योंकि जनता से जितनी दूर रहकर शक्ति का उपभोग किया जाता है, अधिकारिता और उत्तरदायित्त्व के बीच उतना ही व्यापक अंतराल होता है।  

आगे की राह

  • आंतरिक चुनाव की अनिवार्यता के लिये कानून का निर्माण: यह राजनीतिक दलों का कर्तव्य है कि सभी स्तरों पर चुनाव आयोजन सुनिश्चित करने हेतु उचित कदम उठाए जाएँ। राजनीतिक दलों को निर्वाचन आयोग द्वारा नामित पर्यवेक्षकों की उपस्थिति में राष्ट्रीय और राज्य स्तर के आंतरिक चुनाव संपन्न कराने चाहिये।       
  • दल-बदल विरोधी कानून में संशोधन: ‘दल-बदल विरोधी कानून, 1985’ पार्टी के निर्वाचित सदन सदस्यों को पार्टी ‘व्हिप’- जो शीर्ष नेतृत्त्व के फरमानों पर तय होते हैं, के अनुरूप कार्य करने को बाध्य करता है। राजनीतिक दलों में लोकतंत्रीकरण को बढ़ावा देने का एक उपाय यह है कि अंतरा-दलीय असंतोष को अभिव्यक्त कर सकने का अवसर प्रदान किया जाना चाहिये।  
    • दल-बदल विरोधी कानून को केवल उन मामलों में प्रयोग किया जाना चाहिये, जब अविश्वास प्रस्ताव जैसे अत्यंत महत्त्वपूर्ण अवसरों पर वे पार्टी व्हिप के विरुद्ध मतदान करते हैं।
  • आरक्षण: महिलाओं, अल्पसंख्यकों और पिछड़े समुदाय के सदस्यों के लिये सीटें आरक्षित की जा सकती हैं।    
  • वित्तीय पारदर्शिता/लेखापरीक्षा: सभी राजनीतिक दलों के लिये यह अनिवार्य किया जाना चाहिये कि वे निर्धारित समय सीमा के भीतर अपने व्यय का विवरण भारतीय निर्वाचन आयोग को प्रस्तुत करें। समय पर या निर्धारित प्रारूप में ये विवरण जमा नहीं करने वाले राजनीतिक दलों पर भारी जुर्माना लगाया जाना चाहिये।   
  • भारतीय निर्वाचन आयोग को सशक्त बनाना: 
    • निर्वाचन आयोग को आंतरिक चुनाव की आवश्यकता संबंधी किसी भी प्रावधान के गैर-अनुपालन के आरोपों की जाँच कर सके।  
    • गैर-अनुपालन के लिये दंड की व्यवस्था: यदि राजनीतिक दल स्वतंत्र और निष्पक्ष रूप से चुनाव आयोजित नहीं करते हैं, तो ऐसी स्थिति में निर्वाचन आयोग के पास दल का पंजीकरण रद्द करने की दंडात्मक शक्ति होनी चाहिये।

निष्कर्ष

राजनीति को राजनीतिक दलों से पृथक रखकर नहीं देखा जा सकता, क्योंकि वे ही देश में लोकतंत्र के क्रियान्वयन के प्रमुख माध्यम होते हैं। राजनीतिक दलों के भीतर आंतरिक लोकतंत्र और पारदर्शिता का प्रवेश वित्तीय और चुनावी जवाबदेही को बढ़ावा देने, भ्रष्टाचार को कम करने और समग्र रूप से देश के लोकतांत्रिक कार्यकरण में सुधार लाने हेतु महत्त्वपूर्ण है।       

यह आवश्यक है कि राजनीतिक दल चुनावी राजनीतिक सुधारों की लगातार बढ़ती मांगों पर विचार करें और अंतरा-दलीय लोकतंत्र लाने की दिशा में कदम उठाएँ। 

अभ्यास प्रश्न: “भारत में राजनीतिक दलों का लोकतंत्रीकरण भारतीय राजनीति के लोकतंत्रीकरण का मार्ग प्रशस्त करेगा।” टिप्पणी कीजिये।