डिकोडिंग जेनेटिक मोडिफिकेशन | 31 Oct 2022
यह एडिटोरियल 27/10/2022 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित “Understanding GM mustard: what is it, and how has it been achieved?” लेख पर आधारित है। इसमें आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलों और हाल ही में स्वीकृत ‘जीएम सरसों’ के संबंध में चर्चा की गई है।
संदर्भ
भारत में कृषि प्रयोगों का एक सुदीर्घ एवं संदिग्ध रिकॉर्ड रहा है, लेकिन जैव प्रौद्योगिकी ने आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलों (Genetically Modified Crops) के साथ एक नए मोड़ का ही योग कर दिया है। कृषि संबंधी भेद्यताओं को संबोधित करने के लिये आनुवंशिक इंजीनियरिंग साधनों का उपयोग केवल भारत तक ही सीमित नहीं है। कई अन्य देश भी नए आनुवंशिक रूप से संशोधित साधनों की तैनाती की कतार में हैं।
भारत, संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्राजील, अर्जेंटीना और कनाडा 5 शीर्ष जीएम उत्पादक देश हैं, जो संयुक्त रूप से आनुवंशिक रूप से संशोधित खेती के लगभग 90% क्षेत्र को दायरे में लेते हैं। आनुवंशिक संशोधन के समर्थकों का जहाँ यह तर्क है कि इसमें भारत की कृषि उत्पादकता की समस्या को दूर करने की क्षमता है, वहीं इसके विरोधी पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य पर इसके नकारात्मक प्रभाव की ओर ध्यान दिलाते हैं।
इस परिदृश्य में, आनुवंशिक संशोधन के साथ भारतीय कृषि के अनुभवों के अधिक गहन और व्यापक मूल्यांकन करने की आवश्यकता है।
आनुवंशिक संशोधन:
- आनुवंशिक संशोधन (Genetic Modification- GM) में किसी जीव के जीन को बदलना शामिल है, चाहे वह पादप हो, कोई जंतु या कोई सूक्ष्मजीव।
- जीएम प्रौद्योगिकी में वांछित विशेषताओं की प्राप्ति के लिये नियंत्रित परागण (Pollination) का उपयोग करने के बजाय डीएनए में प्रत्यक्ष रूप से बदलाव करना (direct manipulation of DNA) शामिल है।
- यह फसल सुधार का एक तरीका है, जिसका उद्देश्य बेहतर किस्मों के उत्पादन के लिये वांछनीय जीनों को जोड़ना और अवांछनीय जीनों को हटाना है।
भारत में आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलों का विनियमन
- भारत में आनुवंशिक रूप से संशोधित जीवों एवं उत्पादों से संबंधित सभी गतिविधियों का विनियमन केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) द्वारा पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के प्रावधानों के तहत किया जाता है।
- MoEFCC के अंतर्गत कार्यरत आनुवंशिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (Genetic Engineering Appraisal Committee- GEAC) आनुवंशिक रूप से संशोधित जीवों (GMO) के आयात, निर्यात, परिवहन, निर्माण, उपयोग या बिक्री सहित सभी गतिविधियों की समीक्षा, निगरानी और अनुमोदन के लिये अधिकृत है ।
- जीएम खाद्य पदार्थ (GM foods) खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2006 (Food Safety and Standards Act, 2006) के तहत भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (Food Safety and Standards Authority of India- FSSAI) के विनियमनों के भी अधीन हैं।
- GEAC ने हाल ही में आनुवंशिक रूप से संशोधित सरसों की वाणिज्यिक खेती को मंज़ूरी प्रदान की है।
- इससे पहले बीटी कपास (Bt cotton) एकमात्र जीएम फसल थी जिसे वर्ष 2002 में वाणिज्यिक खेती हेतु मंज़ूरी दी गई थी।
- ‘Bt’ बैसिलस थुरिंजिएनसिस (Bacillus thuringiensis) का शब्द-संक्षेप है, जो मुख्य रूप से मृदा में पाया जाने वाला एक जीवाणु है जो कुछ कीड़ों, विशेष रूप से कपास के बोलवर्म्स के लिये विषाक्त प्रोटीन उत्पन्न करता है।
- इससे पहले बीटी कपास (Bt cotton) एकमात्र जीएम फसल थी जिसे वर्ष 2002 में वाणिज्यिक खेती हेतु मंज़ूरी दी गई थी।
आनुवंशिक संशोधन प्रौद्योगिकी के प्रमुख योगदान
- फार्मा सेक्टर में क्रांति: जीएम सूक्ष्मजीवों और पादपों ने सुरक्षित एवं सस्ते टीकों और उपचारों के उत्पादन को सक्षम कर जटिल औषधियों के उत्पादन में क्रांति ला दी।
- जीएम प्रौद्योगिकी आधारित मानव इंसुलिन, टीकों, वृद्धि हार्मोन और अन्य औषधियों के बड़े पैमाने पर उत्पादन ने जीवन रक्षक दवाओं की उपलब्धता एवं पहुँच को बेहद आसान बना दिया है।
- उदाहरण के लिये: मानव हेपेटाइटिस B विषाणु का टीका खमीर में पुनः संयोजक तकनीक (recombinant technology) द्वारा उत्पादित एंटीजन का उपयोग करके तैयार किया गया।
- शाकनाशी सहिष्णु: आनुवंशिक संशोधन ने शाकनाशी सहिष्णु (Herbicide Tolerance) में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जहाँ फसलों को कई तरह के विशिष्ट शाकनाशियों को सहन करने की सक्षमता प्रदान की है। ये शाकनाशी आसपास के खरपतवारों को तो नष्ट कर देते हैं, लेकिन फसलों पर इनका प्रभाव नहीं पड़ता।
- उदाहरण के लिये सोयाबीन, मक्का, कपास और कैनोला को शाकनाशी सहिष्णुता चरित्र के साथ संशोधित किया गया है।
- जलवायु परिवर्तन अनुकूलन (Climate Change Adaptation): पादपों को तेज़ी से बदलती जलवायु के अनुकूल बनाने में मदद करने के लिये आनुवंशिक संशोधन का उपयोग पहले से ही किया जा रहा है। शोधकर्त्ता चावल, मक्का और गेहूँ की ऐसी किस्में विकसित कर रहे हैं जो लंबे समय तक शुष्क मौसम और मानसून के गीले मौसम का सामना करने में सक्षम होंगे।
- लवणता सहिष्णु (Salinity Tolerance): वैज्ञानिकों ने लवणता के उच्च स्तर को सह सकने के लिये पादपों को आनुवंशिक रूप से संशोधित किया है जिससे लवणीय मृदा में भी खाद्य फसलों का उत्पादन संभव हो सकेगा।
- इस क्रम में शोधकर्त्ताओं ने एक जीन का प्रवेश कराया है जो पत्तियों तक पहुँचने से पहले जल से सोडियम आयनों के रूप में मौजूद लवण को हटाने और जड़ों में कोशिकाओं के आयनिक एवं ऑस्मेटिक संतुलन को समायोजित करने में योगदान करता है।
- खाद्य सुरक्षा में योगदान: आनुवंशिक संशोधन से फसल की पैदावार में सुधार आया है, जिसके परिणामस्वरूप लक्षित फसल का उत्पादन बढ़ा है। वैज्ञानिकों ने कीट-प्रतिरोधी फसलों को भी तैयार किया है, जिससे स्थानीय किसानों को पर्यावरणीय चुनौतियों का बेहतर ढंग से सामना करने में मदद मिली है जो अन्यथा एक पूरे मौसम के उत्पादन को नष्ट कर सकती है।
- सूक्ष्मजीवों के आनुवंशिक संशोधन ने भी खाद्य सुरक्षा में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। उदाहरण के लिये, पनीर उत्पादन के लिये पशु-आधारित रेनेट (rennet) के उपयोग को आनुवंशिक रूप से संशोधित सूक्ष्मजीवों द्वारा उत्पादित एंजाइम काइमोसिन द्वारा 80-90% की सीमा तक प्रतिस्थापित कर दिया गया है।
- जैव-ईंधन उत्पादन में वृद्धि: निम्न तापीय और ऑक्सीडेटिव स्थिरता में सुधार के इरादे से कच्चे जैट्रोफा ऑइल (Crude Jatropha Oil- CJO) का रासायनिक संशोधन किया गया है। इस संशोधित जैट्रोफा को एक व्यवहार्य जैव-इथेनॉल फीडस्टॉक माना जाता है।
- इसके साथ ही, यह ‘जैव-ईंधन पर राष्ट्रीय नीति’ (National Policy on Biofuels) को बल प्रदान करता है, जिसका उद्देश्य वर्ष 2025-26 तक पेट्रोल में 20% इथेनॉल का मिश्रण करना है।
आनुवंशिक संशोधन से संबंधित प्रमुख चिंताएँ
- पोषण सुरक्षा से समझौता: दुर्भाग्यजनक है कि आनुवंशिक रूप से संशोधित कुछ खाद्य पदार्थों को पोषण मूल्य से रहित पाया गया है।
- चूँकि आनुवंशिक संशोधन खाद्य पदार्थों के उत्पादन की वृद्धि, उनके जीवनकाल को बढ़ाने और कीटों को दूर करने पर अधिक ध्यान केंद्रित करता है, इसलिये कई बार कुछ फसलों के पोषण मूल्य से समझौते की स्थिति बनती है।
- स्वदेशी किस्म की हानि: आनुवंशिक रूप से संशोधित उत्पादन पारिस्थितिकी तंत्र और जैव विविधता के विघटन का उच्च जोखिम उत्पन्न करता है क्योंकि जीन संशोधन से उत्पन्न बेहतर लक्षण एक प्रकार के जीव के पक्ष में झुका हो सकता है। इस प्रकार, यह अंततः जीन प्रवाह की प्राकृतिक प्रक्रिया को बाधित कर सकता है और स्वदेशी किस्म की संवहनीयता/सततता को प्रभावित कर सकता है।
- एलर्जी प्रतिक्रिया का जोखिम: आनुवंशिक रूप से संशोधित खाद्य पदार्थों में एलर्जी प्रतिक्रिया की अत्यधिक संभावना होती है क्योंकि यह जैविक रूप से परिवर्तित होता है। आनुवंशिक संशोधन के अचानक उभरने से उन मनुष्यों के लिये एलर्जी प्रतिक्रिया का एक सामान्य दुष्प्रभाव उत्पन्न हो सकता है जो पारंपरिक किस्म के प्रति अधिक अनुकूलित हो चुके हैं।
- वन्यजीवों के लिये खतरा: पादपों के जीन रूपांतरण से वन्यजीवों पर भी गंभीर प्रभाव पड़ सकता है। उदाहरण के लिये, आनुवंशिक रूप से संशोधित तंबाकू या चावल के पौधे, जिनका उपयोग प्लास्टिक या फार्मास्यूटिकल्स के उत्पादन के लिये किया जाता है, वे चूहों या हिरणों को खतरे में डाल सकते हैं जो कटाई के बाद खेतों में छोड़े गए फसल अवशेषों का उपभोग करते हैं।
आगे की राह
- जैव-सुरक्षा की ओर: कृषि उत्पादन के साथ-साथ पादप, पशु और मानव स्वास्थ्य पर ध्यान केंद्रित करते हुए जैविक अखंडता (Biological Integrity) की वृहत हानि को रोकने की आवश्यकता है।
- आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलों का सृजन एवं उपयोग पारिस्थितिक तंत्र के प्रबंधकों के सहयोग से किया जाना चाहिये ताकि पर्यावरण, स्थानीय आबादी और व्यापक वैश्विक समुदाय की आवश्यकताओं की पूर्ति की जा सके।
- आनुवंशिक संशोधन को पूरकता प्रदान करना: खाद्य सुरक्षा के लिये आनुवंशिक संशोधन ही एकमात्र समाधान नहीं है; इसे बेहतर कृषि ऋण प्रबंध, जल के बेहतर उपयोग एवं अपशिष्ट न्यूनीकरण, बेहतर खाद्य विकल्प और संवहनीय फसल प्रबंधन के साथ संयुक्त किया जाना चाहिये।
- प्रभावी विनियमन के लिये प्रौद्योगिकीय सक्षमता: जीएम फसलों से संबंधित सभी नियामक निकायों, विशेष रूप से GEAC को प्रौद्योगिकीय रूप से सक्षम बनाया जाना चाहिये।
- निगरानी एवं सूचना प्रणाली कौशल (Monitoring and Information Systems skills) के साथ जीएम फसलों के जोखिम मूल्यांकन और जोखिम प्रबंधन पर विशिष्ट सक्षमता प्राप्त करना समय की आवश्यकता है।
- इसके साथ ही, जीएम फसलों के तीव्र प्रलेखन एवं विश्लेषण के लिये कानूनी रूप से अनिवार्य ज़िला स्तरीय एवं पंचायत स्तरीय समितियों का तत्काल प्रभाव से निर्माण करने की आवश्यकता है।
- ऊर्ध्वगामी आनुवंशिक संशोधन: छोटे किसानों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लक्ष्य के साथ जैव प्रौद्योगिकी के माध्यम से आनुवंशिक सुधार के लिये फसलों एवं लक्षणों को प्राथमिकता देने के लिये एक परामर्शी एवं भागीदारीपूर्ण प्रक्रिया स्थापित की जानी चाहिये।
- स्वदेशी जीन बैंक: रोगों के प्रति अनुकूलता और पोषण मूल्य जैसी क्षमताएँ रखने के कारण स्वदेशी किस्म को संरक्षित करना महत्त्वपूर्ण है।
- जीन बैंकों (Gene Banks) की स्थापना की जा सकती है जो अनुसंधान में विभिन्न शोध संस्थानों की सहायता करने के साथ-साथ स्वदेशी फसलों के संरक्षण में मदद करेंगे।
अभ्यास प्रश्न: भारत में आनुवंशिक संशोधन के प्रमुख योगदान पर प्रकाश डालते हुए चर्चा कीजिये कि भारत में आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलों का विनियमन कैसे किया जाता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:'रिकॉम्बिनेंट वेक्टर टीके' के संबंध में हाल के घटनाक्रमों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2021)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (A) केवल 1 उत्तर: (C) राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण (NBA) भारतीय कृषि की सुरक्षा में कैसे मदद करता है? (2012)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (A) केवल 1 उत्तर: (C) |