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जैव विविधता और पर्यावरण

विकेंद्रीकृत जलवायु सहायता

  • 06 Apr 2021
  • 8 min read

यह एडिटोरियल 03/04/2021 को ‘हिंदुस्तान टाइम्स’ में प्रकाशित लेख “The role of MGNREGA in the climate crisis” पर आधारित है। इसमें जलवायु परिवर्तन से निपटने में MGNREGA की भूमिका पर चर्चा की गई है।

महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना (MGNREGA) ने आजीविका सुरक्षा को बढ़ाने और ग्रामीण क्षेत्रों में टिकाऊ परिसंपत्तियों के निर्माण में बहुत बड़ा योगदान दिया है।

प्रवासी संकट के दौरान मनरेगा एक महत्त्वपूर्ण रोज़गार उपकरण और सुरक्षा जाल साबित हुई, जलवायु संकट से निपटने और पारिस्थितिक तंत्र के निर्माण में इसकी भूमिका की तीव्रता से पहचान की  जा रही है।

एक जलवायु-स्मार्ट मनरेगा शमन और अनुकूलन दोनों स्थितियों में योगदान देता है। यह जलवायु  संकट से उत्पन्न जोखिमों को कम करने के साथ-साथ उन गरीब परिवारों, जिनके पास उचित संसाधन नहीं हैं, को  कानूनी रूप से अनिवार्य मांग-संचालित रोज़गार प्रदान करती है।

इसलिये जलवायु आपातकाल का सामना करते समय जीवन और आजीविका के मामलों को संबोधित करने हेतु योजना की क्षमता का उपयोग किये जाने की आवश्यकता है।

मनरेगा और जलवायु परिवर्तन 

  • हालाँकि मनरेगा को विशेष रूप से एक जलवायु कार्यक्रम के रूप में नहीं बनाया गया था, यह गरीब-समर्थक जलवायु सहायता उद्देश्यों को आगे बढ़ाने की क्षमता के साथ तीन प्रमुख तत्त्वों को शामिल करता है:
    • न्यूनतम मज़दूरी के प्रावधान के माध्यम से सामाजिक सुरक्षा;
    • छोटे पैमाने पर प्राकृतिक संसाधन-केंद्रित बुनियादी ढाँचे का विकास; 
    • एक विकेंद्रीकृत, समुदाय आधारित नियोजन वास्तुकला।
  • मनरेगा, लागत संबंधी नियोजन, वितरण और निगरानी के लिये एक सुस्थापित तंत्र है।
    • यह गरीब ग्रामीण परिवारों को (विशेष रूप से महिलाओं, अनुसूचित जातियों और जनजातियों तथा कमज़ोर वर्ग) उनकी प्राथमिकताओं के आधार पर जलवायु वित्त प्रदान कर सकता है।

जलवायु परिवर्तन से निपटने में मनरेगा की भूमिका

  • प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन: वित्तीय वर्ष 2020-21 में मनरेगा के कुल व्यय में से लगभग दो-तिहाई प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन (NRM) से संबंधित कार्यों में खर्च किये गए थे।
    • मनरेगा, प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन घटक को बड़े पैमाने पर भूमि, जल और वन संसाधनों की उत्पादक क्षमता में सुधार करने के लिये बढ़ावा देता है। 
  • जलवायु जोखिम के प्रति भेद्यता को कम करना: यह जलवायु जोखिम के प्रति भेद्यता को कम करने में मदद करता है क्योंकि इससे भूजल उपलब्धता में वृद्धि, मिट्टी की उर्वरता में सुधार, वनारोपण में वृद्धि तथा सूखे और बाढ़ से बचाव के उपाय किये  जाते हैं।
  • जलवायु परिवर्तन अनुकूलन को बढ़ावा देना: हाल ही में विज्ञान और पर्यावरण केंद्र द्वारा किये गए एक अध्ययन से पता चलता है कि मनरेगा "दुनिया का सबसे बड़ा अनुकूलन कार्यक्रम है क्योंकि यह जलवायु परिवर्तन अनुकूलन को बढ़ावा देने के लिये निवेश बढ़ाकर सूखे का सामना करने में लोगों के श्रम का उपयोग करता है"।
  • INDC को प्राप्त करना: जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये प्रयासों के अंतर्गत भारत को तीन प्रमुख लक्ष्यों को पूरा करना है- गैर-जीवाश्म ईंधन से 40% विद्युत शक्ति क्षमता का निर्माण,  2005 में तुलना में उत्सर्जन में 33-35% की कटौती करना और लगभग 2.5 से 3 बिलियन टन का कार्बन सिंक बनाना।
    • भारत प्रथम दो लक्ष्यों को पूरा करने के समीप है लेकिन तीसरे लक्ष्य में अभी काफी पीछे है। वर्तमान आंँकड़ों के अनुसार, लक्ष्य प्राप्ति करना एक बड़ी चुनौती साबित होगी।
    • जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन के लिये केंद्र सरकार द्वारा सौंपी गई रिपोर्ट में 2017-18 में MGNREGA द्वारा कार्बन पृथक्करण में 62 मिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड के बराबर के योगदान का आकलन किया गया था।
    • इसके प्रदर्शन को बढ़ाने की ज़रूरत है।

आगे की राह:

मनरेगा को मज़बूत करने और जलवायु परिवर्तन से जुड़ी समस्याओं से निपटने के लिये निम्नलिखित कार्य करने होंगे:

  • वित्तीय संसाधनों का संवर्द्धन: जलवायु परिवर्तन को कम करने तथा निम्न-कार्बन परिसंपत्तियों के निर्माण और लाभ हेतु मनरेगा की कार्यकारी शक्तियों और श्रमिकों के कौशल को मज़बूती प्रदान करने के लिये प्रशासनिक या अभिसरण निधि को बढ़ाना  होगा।
    • यह जलवायु परिवर्तन उपशमन हेतु मांग-संचालित और अधिक लोगों को संलग्न करने का काम करेगा।
  • अभिसरण का दायरा बढ़ाना: कृषि संपत्ति को जलवायु-स्मार्ट कृषि प्रौद्योगिकियों और परियोजनाओं से जोड़ने के लिये अभिसरण के दायरे को बढ़ाने की आवश्यकता है। जलवायु-स्मार्ट कृषि परियोजना खाद्य सुरक्षा और जलवायु परिवर्तन की परस्पर चुनौतियों का सामना करने के लिये बनाई गई है।
    • इस संदर्भ में पर्यावरण सेवाओं के मापन और लेखांकन के लिये मज़बूत तरीके विकसित किये जा सकते हैं।
  • मनरेगा निगरानी और मूल्यांकन प्रणालियों को मज़बूत बनाना: इस प्रणाली में स्वतंत्र अध्ययन और सर्वेक्षण कराया जाना चाहिये जो योजना के तहत जलवायु जोखिमों के अनुकूलन और शमन क्षमता निर्धारित करेगा।
    • इसके अतिरिक्त फीडबैक प्रोफार्मा के लिये न केवल काम की संख्यात्मक गणना, बल्कि प्रदान की गई पर्यावरणीय सेवाओं की भी आवश्यकता है।
  • अग्रिम वेतन रोज़गार: अग्रिम वेतन रोज़गार के समर्थन करने के लिये जलवायु जोखिम की जानकारी (मौसम, जलवायु खतरों और जलवायु भेद्यता), सेवाओं और कौशल का निर्माण।

निष्कर्ष:

वर्तमान में मनरेगा को एक जलवायु-स्मार्ट हरित रोज़गार सृजन कार्यक्रम के रूप में स्वीकार करने की आवश्यकता है क्योंकि लगातार वैश्विक तापन बढ़ने से ग्रामीण गरीबों को इसके बुरे परिणाम भुगतने पड़ेंगे। इस दिशा में सार्वजनिक हस्तक्षेप के रूप में जलवायु-स्मार्ट मनरेगा एक सही कदम प्रतीत होता है।

प्रश्न- विश्व में निरंतर वैश्विक तापन बढ़ने से ग्रामीण गरीबों को इसके बुरे परिणाम भुगतने पड़ेंगे। जलवायु संकट से निपटने में मनरेगा द्वारा निभाई जाने वाली भूमिका पर चर्चा कीजिये।

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