अंतर्राष्ट्रीय संबंध
दलाई लामा की अरुणाचल प्रदेश यात्रा और भारत -चीन संबंधों की दिशा
- 06 Apr 2017
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सन्दर्भ
दलाई लामा के अरुणाचल प्रदेश के दौरे को लेकर भारत और चीन के बीच वाकयुद्ध छिड़ गया है। चीन ने भारत पर द्विपक्षीय रिश्तों को 'गंभीर नुकसान' पहुँचाने का आरोप लगाया और कहा कि उन संवेदनशील और विवादास्पद इलाकों में उनके दौरे की व्यवस्था से न सिर्फ तिब्बत के मुद्दे से जुड़ी भारतीय पक्ष की प्रतिबद्धता पर विपरीत असर पड़ेगा बल्कि सीमा क्षेत्र को लेकर विवाद भी बढ़ेगा। यह द्विपक्षीय रिश्तों की गहराई और गति पर विपरीत असर डालेगा और किसी भी तरह से भारत के लिए फायदेमंद नहीं होगा।
प्रमुख बिंदु
- चीन ने तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा को अरूणाचल प्रदेश की यात्रा की इजाज़त देने पर अपनी आपत्ति जताई है। चीन ने साफ तौर पर अपनी नाराज़गी ज़ाहिर करते हुए कहा है कि भारत, चीन के हितों की लगातार अनदेखी कर दलाई लामा की अरुणाचल यात्रा को प्रायोजित कर रहा है।
- चीन ने कड़ा विरोध दर्ज करते हुए कहा है कि भारत को इस यात्रा की इजाज़त नहीं देनी चाहिये थी। तिब्बती धर्मगुरु को भारत-चीन सीमा पर विवादित हिस्से में जाने की इजाज़त देना, दोनों देशों के बीच संबंधों पर गंभीर असर डालेगा।
- चीन ने बीजिंग में भारतीय राजदूत के सामने अपना विरोध दर्ज कराया है और भारत से मांग की है कि वह तिब्बती धर्मगुरु का सहारा लेकर ऐसा कुछ भी न करे, जो चीन के हित में न हो। भारत और चीन के बीच के संवेदनशील मुद्दों को बेवजह तूल न दिया जाए।
- हालाँकि, भारत ने इस यात्रा को पूरी तरह धार्मिक यात्रा बताया है और स्पष्ट किया है भारत एक धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक देश है, जो धार्मिक गतिविधियों पर पाबंदी नहीं लगाता। अतः भारत ने इस सन्दर्भ में चीन से अपील की है कि वो दलाई लामा की इस यात्रा को राजनीतिक रूप में न ले।
- किन्तु, सीमा के पूर्वी हिस्से को लेकर चीन का रुख बिल्कुल स्पष्ट और स्थिर है। चीनी विदेश मंत्रालय का कहना है कि दलाई लामा धर्म की आड़ में चीन के खिलाफ पृथकतावादी गतिविधियों में लंबे समय से सक्रिय रहे हैं ऐसे में उन्हें अरुणाचल जैसे संवेदनशील क्षेत्र में आमंत्रित करने से भारत व चीन के रिश्ते प्रभावित हुए हैं। भारत ने दुराग्रह पूर्वक यहाँ दलाई लामा का दौरा कराया, ताकि चीन के हितों को गंभीर नुकसान पहुँचे। इससे न सिर्फ तिब्बत के मुद्दे पर विपरीत असर पड़ेगा, बल्कि सीमा क्षेत्र को लेकर विवाद भी बढ़ेगा। दलाई लामा का अरुणाचल दौरा निश्चित तौर पर चीन के असंतोष को हवा देगा।
- भारत पर चीनी हितों को कुचलने के लिए दलाई लामा का इस्तेमाल करने का आरोप लगाते हुए चीन ने इसे भारत का एक कूटनीतिक पैंतरा बताया है। चीन ने भारत को चुनौती देते हुए कहा है कि अपनी क्षेत्रीय संप्रभुता और कानूनी अधिकारों व हितों की रक्षा के लिए मजबूती से सभी जरूरी कदम उठाएगा।
भारत का रुख़
- भारत ने चीन के सभी आरोपों को खारिज करते हुए दलाई लामा की अरुणाचल यात्रा को राजनीतिक रंग देने से बचने की सलाह दी। भारत का मत स्पष्ट है कि दलाई लामा एक सम्मानित धर्म गुरु हैं। वह पहले भी कई बार अरुणाचल का दौरा कर चुके हैं। भारत में उनकी धार्मिक और आध्यात्मिक गतिविधियों को राजनीतिक रंग न दिया जाए और न ही उसे लेकर कोई कृत्रिम विवाद पैदा किया जाए।
- इसके अतिरिक्त, अरुणाचल प्रदेश भारत का अभिन्न हिस्सा है। भारत ने हमेशा बीजिंग की 'वन चाइना' नीति का सम्मान किया है। लिहाजा चीन को भी भारत के आंतरिक मामलों में दखल नहीं देना चाहिये और न ही दलाई लामा की अरुणाचल यात्रा का विरोध करना चाहिये।
- उल्लेखनीय है कि अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खंडू, चीन को सीधे तौर पर भारत के पडोसी का दर्जा देने से इनकार करते हैं। उनका मानना है कि चीन को इस मामले में विरोध का अधिकार ही नहीं है।
विवाद का मूल कारण
- 1914 के शिमला समझौते के तहत मैकमोहन रेखा को ब्रिटिश भारत और तिब्बत के बीच की नई सीमा के रूप में परिभाषित किया गया। इससे तवांग सहित तिब्बत का बड़ा भू-भाग ब्रिटिश भारत के अधीन आ गया, हालाँकि चीन ने कभी शिमला समझौते को स्वीकार नहीं किया।
- 1950 के दशक में तिब्बत चीन के नियंत्रण में आया, 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान चीन ने तवांग सहित कई हिस्सों पर कब्जा कर लिया। हालाँकि अंतरराष्ट्रीय दबाव के चलते चीन बाद में पीछे हट गया, लेकिन तब उसने यह कहते हुए तवांग पर दावा जताना शुरू किया कि वह मैकमोहन रेखा को नहीं मानता। अब तक विवाद का मुख्य बिंदु, एक तरह से यही क्षेत्र रहा है।
- दोनों देशों के बीच सोलह दौर की वार्ताओं के बावजूद सीमा रेखा पर बने इस गतिरोध के मसले पर कोई ठोस नतीजा सामने नहीं आया है। बल्कि, चीन ने जब इस समस्या को खत्म करने के लिये भारत से तवांग क्षेत्र को देने और बदले में पश्चिमी सीमा का कोई भूखंड ले लेने की बात कही, तो स्वाभाविक ही भारत ने इस शर्त को खारिज कर दिया और उसका बातचीत पर भी विपरीत असर पड़ा।
क्या है अहमियत
- चीन अरुणाचल प्रदेश के तवांग ज़िले को दक्षिणी तिब्बत करार देते हुए उस पर अपना दावा जताता आया है। तवांग अरुणाचल प्रदेश के 16 प्रशासनिक ज़िलों में से एक है। इसकी पश्चिमी सीमा भूटान से और पूर्वी सीमा तिब्बत से सटी हुई है।
- चीन की चिंता की वजह भावी आर्थिक व सामरिक व्यवहार में तिब्बत का महत्त्व बढ़ना भी है। ग्वादर बंदरगाह की गतिविधियों से लेकर नेपाल के साथ व्यवहार तक, सब कुछ तिब्बत से ही जुड़ा है।
- राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, तिब्बत में स्वायत्तता की मांग को कुचलने के लिये चीन तवांग पर नियंत्रण को बेहद अहम मानता है। दरअसल, तवांग में बड़े पैमाने पर तिब्बती आबादी मौजूद है। तवांग बौद्ध धर्म का महत्वपूर्ण केंद्र होने के साथ-साथ छठवें दलाई लामा की जन्मस्थली भी है।
- तवांग सामरिक लिहाज से भी महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इस पर आधिपत्य के माध्यम से भूटान को दोनों तरफ से घेरा जा सकता है। ऐसा होने से सिलिगुड़ी कॉरीडोर तक चीन की पहुँच आसान हो जाएगी। यह दोनों ही स्थितियाँ जहाँ चीन को फायदा देंगी, वहीं भारत की क्षेत्रीय सुरक्षा के लिये बेहद घातक सिद्ध होंगी।
दलाई लामा के विरोध की वजह
- चीन 14वें दलाई लामा तेंजिन ग्यात्सो को 'चीन विरोधी और अलगाववादी' बताता आया है।
- 1959 में तिब्बत में स्वायत्तता की मांग को लेकर हुए विद्रोह के बाद दलाई लामा वहाँ से विस्थापित हो गए थे। तब उन्होंने तवांग के रास्ते भारत में प्रवेश किया। बाद में भारत ने हिमाचल प्रदेश में उन्हें राजनीतिक शरण दी।
- भारत ने इस तिब्बती धर्मगुरु को इस हिदायत के साथ हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में शरण दे दी थी कि वे किसी भी तरह की राजनीतिक गतिविधियों में शामिल नहीं होंगे।
- जिस तरह दलाई लामा अक्सर तिब्बत की आजादी का सवाल उठाते रहे हैं, उससे चीन ने उन्हें और भारत में उनकी गतिविधियों को हमेशा शक की नजर से देखा है। दरअसल, 1959 में जब दलाई लामा ने भारत को अपना ठिकाना बनाया था, तभी से उन्होंने चीन का विरोध जारी रखा है।
- चीन-भारत सीमा के पूर्वी हिस्से पर चीन लगातार अपना दावा जताता रहा है। खासकर अरुणाचल प्रदेश और मठ नगर तवांग को वह दक्षिणी तिब्बत का हिस्सा कहता है, जहाँ इस बार दलाई लामा की यात्रा प्रस्तावित है। जबकि भारत ने हर बार चीन के इस दावे को खारिज किया है।
- ऐसा नहीं कि दलाई लामा की यह कोई पहली अरुणाचल यात्रा है। 2009 में यूपीए सरकार के दौरान भी उन्हें वहाँ जाने की इजाजत मिली थी।
दलाई लामा का मत
- दलाई लामा ने तवांग दौरे पर चीन के विरोध के बीच स्पष्ट किया कि भारत ने बीजिंग के खिलाफ कभी भी उनका इस्तेमाल नहीं किया।
- बोमडिला में तिब्बती अध्यात्म गुरु ने खुद को भारत की पौराणिक विचारधारा का प्रचारक बताया और कहा कि वे सत्य, शांति, अहिंसा, सौहार्द और धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों को मानते हैं।
- दलाई लामा की चीन से तिब्बत को अर्थपूर्ण ‘स्व-शासन’ और ‘स्वायत्तता’ देने की अपील अब भी यथावत है साथ ही स्पष्ट किया कि यह मांग पूर्ण स्वतंत्रता की नहीं है बल्कि वे पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के साथ रहने के लिये तैयार हैं।
- नोबेल पुरस्कार विजेता 81 वर्षीय दलाई लामा की यह टिप्पणी ऐसे वक्त पर आई है जब चीन यह आरोप लगा रहा है कि भारत ने उसकी चिंताओं की उपेक्षा कर ‘दुराग्रहपूर्वक’ चीन-भारत सीमा के पूर्वी हिस्से के ‘विवादित इलाकों’ में दलाई लामा का दौरा कराया जो उसके हितों और द्विपक्षीय रिश्तों को ‘गंभीर नुकसान’ पहुँचा रहा है।
निष्कर्ष
दलाई लामा की अरुणाचल प्रदेश यात्रा के मुद्दे पर चीन किस हद तक संवेदनशील है इसका अंदाज़ा चीन के बयान से लगाया जा सकता है। चीन ने भारत को तिब्बत के मुद्दे पर अपने ‘राजनीतिक संकल्पों’ का सम्मान करने की सलाह देते हुए चेतावनी दी है कि इससे द्विपक्षीय संबंधों को ‘गंभीर क्षति’ हो सकती है। पिछले काफी समय से चीन और भारत के संबंधों में जिस तरह के उतार-चढ़ाव आते रहे हैं, उसमें दोनों तरफ से इसे सहज बनाए रखने के लिए कोशिश की गई है। आर्थिक मोर्चे पर बनी सहमतियों से कई बार ऐसा लगता है कि दोनों देशों के बीच की बर्फ पिघल रही है। लेकिन समाधन के प्रयासों के बीच हर बार, कोई-न-कोई ऐसा मामला सामने आ जाता है जिससे अचानक फिर सब-कुछ असहज हो जाता है।
अंततः एक बात तो निश्चित तौर पर कही जा सकती है कि विवाद चाहे कितना भी क्यों न हो, मगर अपने संप्रभु क्षेत्र में भारत कैसे और क्या करेगा, यह किसी दूसरे देश को तय करने या फिर इस पर राय देने का अधिकार नहीं है। जब भारत साफ तौर पर ‘एक चीन’ की नीति का सम्मान करने की बात कहता रहा है तो चीन को भी भारत की संप्रभुता का सम्मान करते हुए इस तरह के विवादस्पद बयान देने से बचना चाहिये। जिस प्रकार वह भारत को गरिमा,आपसी संबंधों और संवेदनशीलता की दुहाई दे रहा है उसे स्वयं भी इन सभी बातों का अनुपालन सुनिश्चित करना चाहिये ताकि किसी भी प्रकार के तनाव को उत्पन्न होने से रोका जा सके।