श्रीलंका में संकट | 13 Jul 2022
यह एडिटोरियल 11/07/2022 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित “Sri Lanka uprising: A new social contract” लेख पर आधारित है। इसमें श्रीलंकाई संकट और संबंधित मुद्दों के बारे में चर्चा की गई है।
संदर्भ
नागरिकों के ऐतिहासिक विरोध प्रदर्शन के दबाव में राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे और प्रधानमंत्री रानिलि विक्रमसिंघे द्वारा इस्तीफ़ा देने की घोषणा के एक दिन बाद श्रीलंका के विभिन्न राजनीतिक दलों ने एक सर्वदलीय सरकार निर्माण के प्रयास तेज़ कर दिये हैं।
- श्रीलंका के विभिन्न भागों में सरकार विरोधी भावना के लगातार प्रसार ने देश में राजनीतिक अस्थिरता की स्थिति उत्पन्न कर दी है। देश में आर्थिक संकट की स्थिति में जनता सड़क पर उतर आई है और सरकार विरोधी प्रदर्शन उग्र होते जा रहे हैं।
- श्रीलंका की अर्थव्यवस्था भुगतान संतुलन (BoP) की गंभीर समस्या के कारण एक अभूतपूर्व संकट का सामना कर रही है। इसका विदेशी मुद्रा भंडार तेज़ी से घटता रहा है और देश के लिये आवश्यक उपभोग की वस्तुओं का आयात करना कठिन होता जा रहा है।
- श्रीलंकाई रुपए का 80% से अधिक अवमूल्यन हुआ है, खाद्य लागतों में 50% से अधिक की तीव्र वृद्धि हुई है और पर्यटन (जो देश का एक प्रमुख राजस्व स्रोत है) में कोविड-19 महामारी के कारण भारी कमी आई है।
- इस परिदृश्य में, श्रीलंका में राजनीतिक एवं आर्थिक अस्थिरता के उभार के कारणों और इसके प्रभावों पर विचार करना प्रासंगिक होगा।
श्रीलंकाई संकट का उभार क्यों हुआ?
- पृष्ठभूमि:
- वर्ष 2009 में जब श्रीलंका 26 वर्ष लंबे गृहयुद्ध से उबर कर बाहर आया, तब इसकी युद्धोत्तर जीडीपी वृद्धि 8-9% प्रति वर्ष के पर्याप्त उच्च स्तर पर थी और यह स्थिति वर्ष 2012 तक बनी रही।
- लेकिन वर्ष 2013 के बाद इसकी औसत जीडीपी विकास दर घटकर लगभग आधी हो गई क्योंकि वैश्विक कमोडिटी की कीमतों में गिरावट आई, निर्यात मंद हो गया और आयात में उल्लेखनीय वृद्धि हुई।
- युद्धकाल में श्रीलंका का बजट घाटा उच्च स्तर पर रहा था और वर्ष 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट ने उसके विदेशी मुद्रा भंडार को समाप्त कर दिया था जिसके कारण देश को वर्ष 2009 में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) से 2.6 बिलियन डॉलर का ऋण लेना पड़ा था।
- वर्ष 2016 में वह फिर 1.5 बिलियन डॉलर के ऋण के लिये IMF के पास पहुँचा, लेकिन IMF की शर्तों के पालन ने श्रीलंका के आर्थिक स्वास्थ्य को और खराब कर दिया।
- श्रीलंका का उर्वरक प्रतिबंध:
- वर्ष 2021 में सरकार ने सभी उर्वरक आयातों पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया और श्रीलंका को रातोंरात 100% जैविक कृषि देश में परिणत करने की घोषणा कर दी गई।
- जैविक कृषि की ओर इस त्वरित कदम ने देश में खाद्य उत्पादन को बुरी तरह प्रभावित किया।
- बिगड़ते परिदृश्य में बढ़ती खाद्य कीमतों, मुद्रा के अवमूल्यन और तेज़ी से घटते विदेशी मुद्रा भंडार पर नियंत्रण के लिये सरकार ने देश में आर्थिक आपातकाल की घोषणा कर दी।
- विदेशी मुद्रा की कमी के साथ-साथ रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों पर रातोंरात आरोपित प्रतिबंध ने खाद्य कीमतों में अत्यधिक वृद्धि की स्थिति उत्पन्न कर दी।
- हाल के आर्थिक झटके:
- कोलंबो के चर्चों में अप्रैल 2019 के ईस्टर बम विस्फोटों की घटना में 253 लोग हताहत हुए, जिसके परिणामस्वरूप पर्यटकों की संख्या में तेज़ी से गिरावट आई, जिससे देश के विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट आई।
- वर्ष 2019 में सत्ता में आई गोटाबाया राजपक्षे के नेतृत्व वाली सरकार ने अपने चुनावी अभियानों में निम्न कर दरों और किसानों के लिये व्यापक SoPs का वादा किया था।
- नई सरकार द्वारा इन वादों के त्वरित कार्यान्वयन ने समस्या को और बढ़ा दिया।
- वर्ष 2020 में कोविड-19 महामारी ने चाय, रबर, मसालों, कपड़ों और पर्यटन क्षेत्र के निर्यात को प्रभावित किया।
- चीन की ऋण जाल नीति (Debt Trap Policy) ने भी श्रीलंका में आर्थिक अस्थिरता उत्पन्न करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- श्रीलंका का संकट मुख्यतः विदेशी मुद्रा भंडार की कमी के कारण उत्पन्न हुआ है, जो पिछले दो वर्षों में 70% घटकर फ़रवरी 2022 के अंत तक केवल 2 बिलियन डॉलर रह गया था।
- जबकि वर्तमान में देश पर लगभग 7 बिलियन डॉलर के विदेशी ऋण दायित्व का भार है।
- वर्तमान राजनीतिक शून्यता की स्थिति:
- प्रधानमंत्री विक्रमसिंघे और राष्ट्रपति राजपक्षे ने संकेत दिया था कि वे इस्तीफ़ा दे देंगे ताकि एक सर्वदलीय सरकार निर्माण की राह खुल सके।
श्रीलंकाई संकट भारत को कैसे प्रभावित कर रहा है?
- चुनौतियाँ:
- आर्थिक:
- भारत के कुल निर्यात में श्रीलंका की हिस्सेदारी वित्त वर्ष 2015 में 2.16% रही थी जो घटकर वित्त वर्ष 2022 में मात्र 1.3 प्रतिशत रह गई है।
- टाटा मोटर्स और टीवीएस मोटर्स जैसी ऑटोमोटिव फर्मों ने श्रीलंका को वाहन किट का निर्यात बंद कर दिया है और देश के अस्थिर विदेशी मुद्रा भंडार एवं ईंधन की कमी को देखते हुए अपनी श्रीलंकाई असेंबली इकाइयों में उत्पादन रोक दिया है।
- आर्थिक:
- शरणार्थी संकट:
- जब भी श्रीलंका में कोई राजनीतिक या सामाजिक संकट आया है, भारत को पाक जलडमरूमध्य और मुन्नार की खाड़ी के रास्ते से जातीय तमिल समुदाय के शरणार्थियों की एक बड़ी आमद का सामना करना पड़ा है।
- भारत के लिये तमिल शरणार्थियों की एक बड़ी संख्या को संभालना आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक रूप से अत्यंत जटिल हो सकता है, इसलिये इस संकट से निपटने के लिये एक सुदृढ़ नीति की ज़रूरत है।
- तमिलनाडु राज्य ने संकट के प्रभाव को अनुभव करना शुरू भी कर दिया है जहाँ श्रीलंका से अवैध तरीकों से 16 व्यक्तियों का आगमन दर्ज हुआ है।
- जब भी श्रीलंका में कोई राजनीतिक या सामाजिक संकट आया है, भारत को पाक जलडमरूमध्य और मुन्नार की खाड़ी के रास्ते से जातीय तमिल समुदाय के शरणार्थियों की एक बड़ी आमद का सामना करना पड़ा है।
- अवसर:
- चाय बाज़ार:
- वैश्विक चाय बाज़ार में श्रीलंकाई चाय आपूर्ति के अचानक अवरुद्ध होने के बीच भारत इस आपूर्ति अंतराल को भरने का इच्छुक है।
- भारत ईरान के साथ ही तुर्की, इराक जैसे नए बाज़ारों में अपनी उपस्थिति को सुदृढ़ कर सकता है।
- ईरान, तुर्की, इराक और रूस के बड़े श्रीलंकाई चाय आयातक कथित तौर पर असम और कोलकाता में चाय बागानों की तलाश में भारत आ रहे हैं।
- इसके परिणामस्वरूप हाल ही में कोलकाता में हुई नीलामियों में पारंपरिक रूप से उत्पादित चायपत्तियों (orthodox leaf) के औसत मूल्य में पिछले वर्ष की इसी बिक्री की तुलना में 41 प्रतिशत तक की वृद्धि देखी गई।
- परिधान (वस्त्र) बाज़ार:
- यूनाइटेड किंगडम, यूरोपीय संघ और लैटिन अमेरिकी देशों के कई परिधान ऑर्डर अब भारत को भेजे जा रहे हैं।
- ऐसे कई ऑर्डर तमिलनाडु में वस्त्र उद्योग के प्रमुख केंद्र तिरुपुर में अवस्थित कंपनियों को मिले हैं।
- चाय बाज़ार:
श्रीलंका की सहायता करना भारत के हित में क्यों है?
- श्रीलंका भारत के लिये रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण भागीदार रहा है। भारत इस अवसर का उपयोग श्रीलंका के साथ अपने राजनयिक संबंधों को संतुलित करने के लिये कर सकता है, जो चीन के साथ श्रीलंका की निकटता के कारण कुछ प्रभावित हुआ है।
- चूँकि श्रीलंका और चीन के बीच उर्वरक के मुद्दे पर असहमति बढ़ती जा रही है, श्रीलंका के अनुरोध पर भारत द्वारा उर्वरक आपूर्ति को द्विपक्षीय संबंधों में सकारात्मक विकास के रूप में देखा जा रहा है।
- श्रीलंका के साथ राजनयिक संबंधों का विस्तार भारत को हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के ‘स्ट्रिंग ऑफ़ पर्ल’ नीति से श्रीलंकाई द्वीपसमूह को दूर रखने के प्रयासों में मदद कर सकेगा।
- श्रीलंका के लोगों की कठिनाइयों को कम करने के लिये भारत की यथासंभव सहायता को इस सतर्कता के साथ आगे बढ़ाया जाना चाहिये कि उसकी मदद दृष्टिगोचर भी हो ताकि श्रीलंका में भारत के लिये एक सौहार्द का प्रसार हो।
श्रीलंका इस संकट से कैसे उबर सकता है?
- लोकतंत्र को वास्तविक अर्थों में लागू करना:
- बेहतर संकट-प्रबंधन के लिये श्रीलंका में प्रबल राजनीतिक सहमति की आवश्यकता है। प्रशासन के सैन्यीकरण में कमी लाना भी एक उपयुक्त कदम होगा।
- गरीब एवं भेद्य आबादी को पुनः सक्षम करने और अर्थव्यवस्था की दीर्घकालिक क्षति को रोकने में मदद करने के लिये विभिन्न उपायों पर विचार करने की आवश्यकता है।
- इन उपायों में कृषि उत्पादकता में वृद्धि लाना, गैर-कृषि क्षेत्रों में नौकरी के अवसरों में वृद्धि करना, सुधारों का बेहतर कार्यान्वयन करना और पर्यटन क्षेत्र को पुनर्जीवित करना शामिल होगा।
- बेहतर संकट-प्रबंधन के लिये श्रीलंका में प्रबल राजनीतिक सहमति की आवश्यकता है। प्रशासन के सैन्यीकरण में कमी लाना भी एक उपयुक्त कदम होगा।
- भारत से समर्थन:
- पड़ोसी देशों के साथ अपने संबंधों की मज़बूती के लिये ‘नेबरहुड फ़र्स्ट नीति’ का अनुसरण करने वाले भारत को श्रीलंका को मौजूदा संकट से उबरने के लिये और अपनी क्षमताओं को साकार करने के लिये अतिरिक्त मदद देनी चाहिये जिसका लाभ एक स्थिर और मैत्रीपूर्ण पड़ोस के रूप में स्वयं भारत को भी प्राप्त होगा।
- भारतीय व्यवसाय ऐसी आपूर्ति शृंखलाओं का निर्माण कर सकते हैं जो आवश्यक वस्तुओं से लेकर सूचना प्रौद्योगिकी सेवाओं तक वस्तु एवं सेवा के व्यापक दायरे में भारतीय और श्रीलंकाई अर्थव्यवस्थाओं को परस्पर संबद्ध करे।
- भारत द्वारा श्रीलंका को मार्च के मध्य से अभी तक 270,000 मीट्रिक टन से अधिक डीजल और पेट्रोल दिया गया है।
- इसके अलावा, हाल ही में विस्तारित 1 बिलियन डॉलर की ऋण सुविधा के तहत भारत द्वारा लगभग 40,000 टन चावल की आपूर्ति भी की गई है।
- भारत G20 जैसे बहुपक्षीय मंचों में श्रीलंका की उपस्थिति की राह को भी आसान बना सकता है जो श्रीलंका को विकसित राष्ट्रों से सहायता पा सकने का आधार प्रदान करेगा।
- अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से राहत:
- श्रीलंका ने ‘बेलआउट’ के लिये IMF से संपर्क किया है। IMF मौजूदा आर्थिक संकट से उबरने के श्रीलंका के प्रयासों का समर्थन कर सकता है।
- IMF गरीबों एवं कमज़ोरों की रक्षा, वित्तीय स्थिरता की सुरक्षा और भ्रष्टाचार संबंधी भेद्यताओं को दूर करने एवं श्रीलंका की विकास क्षमता को साकार करने हेतु संरचनात्मक सुधारों को आगे बढ़ाने के साथ वृहत आर्थिक स्थिरता और ऋण संवहनीयता की पुनर्बहाली के रूप में योगदान कर सकता है।
- श्रीलंका ने ‘बेलआउट’ के लिये IMF से संपर्क किया है। IMF मौजूदा आर्थिक संकट से उबरने के श्रीलंका के प्रयासों का समर्थन कर सकता है।
- चक्रीय अर्थव्यवस्था की संभावनाओं का उपयोग:
- श्रीलंका में आर्थिक अस्थिरता के संदर्भ में आयात पर निर्भरता को चक्रीय अर्थव्यवस्था (Circular Economy) द्वारा न्यूनतम किया जा सकता है जो रिकवरी में सहायता के लिये एक स्थायी विकल्प प्रदान करेगा।
अभ्यास प्रश्न: श्रीलंका को मौजूदा संकट से उबारने में भारत की ‘नेबरहुड फर्स्ट’ नीति एक अतिरिक्त कदम आगे बढ़ा सकती है। अपने विचार की पुष्टि करें।