COVID-19 संकट और केंद्र-राज्य संबंध | 10 May 2021
यह लेख 24/04/2021 को Economic and Political weekly में प्रकाशित “COVID-19 Crisis and the Centre–State Relations” पर आधारित है। इसमें महामारी के दौरान होने वाले संघीय मुद्दों के संबंध में चर्चा की गई है ।
भारत में राज्यों और केंद्र के बीच संघीय संबंधों के इतिहास को सहकारी संघवाद, सौदेबाजी संघवाद या अर्द्ध-संघवाद जैसे शब्दों के माध्यम से संदर्भित किया जा सकता है।
हालाँकि अधिकतर समय में, भारतीय संघवाद सहयोगी के बजाय परस्पर विरोधी की भावना में रहा है, जिसे केंद्र सरकार के विपक्षी राजनीतिक पृष्ठभूमि वाले राज्यों के प्रति अपने रवैये में भेदभावपूर्ण तरीके में प्रतिबिंबित किया जा सकता है।
हाल ही में वैक्सीन वितरण, ऑक्सीजन की आपूर्ति, जीवनरक्षक दवाओं की उपलब्धता को लेकर संघ और राज्यों के बीच के संघर्ष न केवल सहकारी संघवाद के विचार को अच्छी तरह से प्रभावित किया है, बल्कि देश में लोगों की मृत्यु का कारण भी बना है।
इसलिये कोविड-19 महामारी से लड़ने के अभूतपूर्व प्रयासों की आवश्यकता है जो प्रत्येक स्तर पर देश को इस संकट से बचाने के लिये सरकार का कर्तव्य है।
महामारी के दौरान संघीय मुद्दे
- असुविधाजनक संघवाद का मामला: केंद्र सरकार की वैक्सीन और ऑक्सीजन के उत्पादन तथा वितरण को विनियमित करने के लिये एकमात्र एजेंसी होने के नाते यह अनन्य ज़िम्मेदारी थी कि वह वैक्सीन और ऑक्सीजन का पर्याप्त एवं विवेकपूर्ण वितरण सुनिश्चित करे।
- हालाँकि वैक्सीन के वितरण, दवाओं की आपूर्ति, ऑक्सीजन की उपलब्धता आदि के भेदभाव को लेकर कई राज्यों की शिकायतें हो रही हैं।
- इसके अलावा नई टीकाकरण नीति, राज्यों पर ज़िम्मेदारी को टालने का प्रयास करती है क्योंकि यह राज्यों को वैक्सीन उत्पादकों से प्रत्यक्ष तौर पर वैक्सीन खरीदने के लिये उत्तरदायी बनाती है और अंतर-मूल्य निर्धारण की अनुमति देता है।
- इससे न केवल उन राज्यों के वित्तीय बोझों में इजाफा होगा, जो पहले से ही वित्तीय बोझ के तले तबे हुए हैं, बल्कि यह विभिन्न राज्यों के बीच टकराव को भी जन्म दे सकता है।
- केंद्रीयकृत शक्तियाँ: केंद्र ने महामारी से निपटने के लिये शक्तियों को केंद्रीकृत करते हुए महामारी रोग अधिनियम और आपदा प्रबंधन अधिनियम लागू किया था।
- हालाँकि, इन अधिनियमों के तहत राज्यों से परामर्श लेना, केंद्र के लिये एक विधायी अधिदेश है और केंद्र द्वारा राज्यों को बाध्यकारी COVID-19 दिशा-निर्देश जारी किये जा रहे हैं।
- कोविड-19 का ग्रामीण भारत में प्रवेश: कोविड-19 की पहली लहर के दौरान अपने गृह राज्यों जैसे उत्तर प्रदेश, बिहार में प्रवासी श्रमिकों के सामूहिक पलायन को देखा गया।
- अब, क्योंकि ये श्रमिकों को फिर से अपने गृह राज्यों में प्रवास करना पड़ा, इससे लोगों के बीच यह डर पैदा हो गया है कि कोविड-19 ग्रामीण भारत में प्रवेश कर रहा है।
- इसके अलावा, कृषि, औद्योगिक और निर्माण गतिविधियाँ, इस कार्यबल की अनुपस्थिति में प्रभावित या कठिन होंगे क्योंकि ये श्रमिक अपने गृहनगर वापस जा रहे हैं।
- यदि केंद्र और राज्य दोनों सरकारों ने कोविड-19 की पहली लहर से सबक लिया होता, तो इस संकट के विनाशकारी प्रभाव को कम किया जा सकता था।
आगे की राह:
- राजकोषीय उत्तरदायित्व एवं बजट प्रबंधन अधिनियम (FRBM) में ढील: राज्यों द्वारा बाज़ार उधार के संबंध में FRBM अधिनियम द्वारा लगाई गई सीमा की छूट, सही दिशा में एक कदम है।
- हालाँकि इन उधारों को केंद्र सरकार द्वारा संप्रभु गारंटी देकर समर्थित किया जा सकता है।
- इसके अलावा, केंद्र सरकार राज्यों को धन मुहैया करा सकती है ताकि वे राज्य स्तर पर संकट से निपटने के लिये आवश्यक कदम उठा सकें।
- रियल कोऑपरेटिव फेडरलिज़्म: इस संकट से निपटने के लिये केंद्र के एक सफल दृष्टिकोण, हस्तक्षेप और मार्गदर्शन की आवश्यकता है, जहाँ केंद्र सभी राज्यों में बड़े पैमाने पर सर्वोत्तम प्रथाओं का संचार करेगा, वित्तीय आवश्यकताओं की प्रभावी ढंग से पूर्ति करेगा और समाधान के लिये राष्ट्रीय विशेषज्ञता का लाभ उठाएगा।
- दीर्घकालिक उपाय: आपदाओं और आपात स्थितियों (प्राकृतिक और मानव निर्मित दोनों) के प्रबंधन को सातवीं अनुसूची की सूची-III (समवर्ती सूची) में शामिल किया जाना चाहिये।
- साथ ही सरकार को अंतर-राज्य परिषद को स्थायी निकाय बनाने पर विचार करना चाहिये।
निष्कर्ष:
वर्तमान स्थिति से निपटने के लिये सरकार को सहकारी संघवाद के ढाँचे से आगे बढ़ने की ज़रूरत है, जो मूल रूप से राष्ट्र और क्षेत्रों के विकास को प्राप्त करने में केंद्र तथा राज्यों की भागीदारी को बढ़ावा देने के कार्य पर आधारित है।
दृष्टि अभ्यास प्रश्न: सहकारी संघवाद के ढाँचे को राज्यों के विकास की अनदेखी किये बिना केंद्र और राज्यों दोनों को राष्ट्र के सर्वांगीण विकास को प्राप्त करने की अनुमति देनी चाहिये। टिप्पणी कीजिये।