शासन व्यवस्था
COVID-19 और खाद्य सुरक्षा
- 03 Sep 2020
- 13 min read
यह एडिटोरियल 2 सितंबर 2020 को इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित “Fighting COVID-19 and food insecurity requires new ideas, robust political will” लेख पर आधारित है। यह विश्व की खाद्य सुरक्षा पर विशेष रूप से दक्षिण एशिया के गरीबों पर COVID-19 के प्रभावों का विश्लेषण करता है।
संदर्भ
COVID-19 महामारी के चलते विश्व भर में विकास की गति गंभीर रूप से प्रभावित हुई है। इसे खाद्य असुरक्षा और कुपोषण के पूर्व-संकट के साथ-साथ रोज़गार में ह्रास, आपूर्ति श्रंखला में व्यवधान, प्रमुख निर्यात एवं प्रेषण के माध्यम से राजस्व में आई गिरावट के संयोजित संदर्भ में बेहतर तरीके से समझा जा सकता है। विश्व खाद्य कार्यक्रम (World Food Programme) के अनुमान के अनुसार, वैश्विक स्तर पर भुखमरी का सामना करने वाले लोगों की संख्या लगभग दोगुनी होकर 270 मिलियन हो जाएगी, जिसमें COVID-19 के कारण भुखमरी का शिकार हुए 121 मिलियन नए खाद्य असुरक्षित भी शामिल हैं। हालाँकि दक्षिण एशिया विशेष रूप से सुभेद्य स्थिति में है, जहाँ वर्ष 2030 तक कुपोषित आबादी की संख्या बढ़कर 330 मिलियन तक पहुँचने का अनुमान है। यह विश्व का एकमात्र ऐसा उप-समूह क्षेत्र है जहाँ समाज के सबसे गरीब वर्ग के आधे से अधिक बच्चे अविकसित हैं।
खाद्य सुरक्षा पर प्रभाव
अत्यधिक भूख
- COVID-19 महामारी के प्रभाव से भूख या अल्पपोषण की दर में वृद्धि हो रही है।
- संयुक्त राष्ट्र के नवीनतम अनुमानों के अनुसार, महामारी से उत्पन्न आर्थिक मंदी के परिणामस्वरूप वर्ष 2020 में 83 से 132 मिलियन से अधिक लोग अत्यधिक भूख से पीड़ित हो सकते हैं।
- वर्तमान में पहले से ही भुखमरी का शिकार लोगों का आँकड़ा 690 मिलियन के पार है, ऐसे में संयुक्त राष्ट्र के आँकड़ें बेहद डरावने प्रतीत होते हैं।
कुपोषण
- अत्यधिक भूख के अलावा लोग अल्पपोषण से भी पीड़ित हैं।
- इसका मतलब यह है कि वे एक सामान्य, सक्रिय जीवन जीने के लिये आवश्यक भोजन का उपभोग करने में भी असमर्थ हैं। यदि यह स्थिति लंबे समय तक बनी रहती है तो इसका उनके भविष्य पर दीर्घकालिक और नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
अत्यधिक गरीबी
- विश्व बैंक के अनुसार, महामारी की वजह से प्रभावित हुई अर्थव्यवस्था के चलते लगभग 100 मिलियन लोग अत्यधिक गरीबी का शिकार हो जाएंगे।
- बढ़ती बेरोज़गारी दर, आय में कमी और खाद्य लागतों की बढती दर विकसित और विकासशील देशों में खाद्य पहुँच को खतरे में डाल रही है और इससे खाद्य सुरक्षा पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ेगा।
मंदी
- इसके अलावा महामारी के चलते विश्व के अधिकतर देशों की अर्थव्यवस्थाएँ मंदी का शिकार हो सकती हैं जो गरीबों और वंचितों के लिये संचालित कल्याणकारी योजनाओं को सुचारू रूप से कार्यान्वित करने में बाधा उत्पन्न करेगी।
तीव्र सामाजिक विभाजन
- COVID-19 ने विश्व भर में व्याप्त कुछ गहरी विषमताओं को उजागर किया है।
- जहाँ एक ओर अमीर लोग अपने धन संचय के कारण आरामदायक जीवन यापन कर रहें हैं ।
- वहीं दूसरी ओर लाखों लोगों का रोज़गार छिन गया है और उनके पास इतना पैसा भी नहीं है कि वे अपने परिवार को पेट भर खिला सकें।
आगे की राह
अमीरों से गरीबों की ओर धन का प्रवाह करना
- इन नई समस्याओं से निपटने के लिये नए विचारों और अधिक मज़बूत राजनीतिक इच्छाशक्ति की आवश्यकता होगी।
- अतीत में हुई आर्थिक प्रगति मज़बूत अर्थव्यवस्थाओं के ट्रिकल-डाउन प्रभाव यानी अमीरों से गरीबों की ओर धन के प्रवाह द्वारा जारी थी। इसी बात को ध्यान में रखते हुए सरकार को ऐसे लोगों की ज़िम्मेदारी उठानी चाहिये जो कमज़ोर हैं और हाशिए पर खड़े हैं।
बढ़ता लचीलापन
- हमें ई-कॉमर्स जैसे नए विपणन चैनलों की पहचान करके अपनी खाद्य प्रणालियों में लचीलापन बढ़ाने के तरीकों को खोजने की आवश्यकता है ताकि स्थानीय बाज़ार में कम मांग की स्थिति में भी किसानों को अपने उत्पाद बेचने के लिये और अधिक मार्ग प्रदान किये जा सकें।
- यदि संभव हो तो स्वास्थ्य, स्वच्छता, गुणवत्ता और खाद्य सुरक्षा को बनाए रखने के लिये उचित बुनियादी ढाँचे को सुनिश्चित करते हुए बाज़ारों को बड़े परिसरों में स्थानांतरित किया जाना चाहिये।
दक्षता में वृद्धि
- हमें महामारी के चलते हुए नुकसान को कम करने और उपलब्ध उत्पादों की गुणवत्ता में सुधार करने के लिए अपनी दक्षता में सुधार करना चाहिये।
- उत्पादकों के समीप संग्रह केंद्रों की पहचान करके ऐसा किया जा सकता है; उदाहरण के लिये गोदाम रसीद प्रणाली प्लेटफार्मों जैसी भंडारण सुविधाएँ विकसित करना, जहाँ किसान बाज़ार में जाए बिना अपनी उपज को वितरित कर सकते हैं।
- अगर संभव हो तो बाज़ार के भीतर और बाहर शारीरिक दूरी बनाए रखने के उपायों को लागू करते हुए स्थानीय बाज़ारों को खुले रखने की अनुमति दी जा सकती है।
समावेशी वित्त
- ग्रामीण आपूर्ति श्रंखलाओं को मज़बूत बनाने और विस्तारित करने के लिये वित्त की समावेशी पहुँच भी महत्त्वपूर्ण है।
- बैंकिंग उत्पादों और वित्तीय सेवाओं को प्राथमिकता के आधार पर गरीब आबादी के लिये उपलब्ध कराया जाना चाहिये।
व्यापक रिकवरी कार्यक्रम
- संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (Food and Agriculture Organisation- FAO) ने हाल ही में एक व्यापक और समन्वित वैश्विक प्रतिक्रिया प्रदान करने के लिये एक नया कार्यक्रम “COVID-19 प्रतिक्रिया और पुनर्प्राप्ति कार्यक्रम” शुरू किया है जिसका उद्देश्य सभी के लिये पौष्टिक भोजन तक पहुँच सुनिश्चित करना है।
नवाचार को प्रोत्साहित करना
- हमें किसानों को निरंतर नवाचार के माध्यम से अधिक गतिशील, उद्यमी और प्रतिस्पर्द्धी बनाने पर बल देना चाहिये, यह हमारी प्रमुख प्राथमिकता होनी चाहिये।
- खाद्य असुरक्षा की स्थिति से निपटने के लिये हमें ऐसे छोटे किसानों की आवश्यकता है जो फसल के खराब होने के डर के बिना पोषक तत्त्वों वाले खाद्य पदार्थों का उत्पादन कर सकें। इन खाद्य पदार्थों को देश भर और उसके बाहर भी, ऐसे लोगों तक पहुँचाया जा सकता है जो भुखमरी का सामना करने को विवश हैं।
- ऐसा करने के लिये छोटे शेयरधारकों की वित्तीय संसाधनों, प्रौद्योगिकी और नवाचार तक पहुँच सुनिश्चित किये जाने की आवश्यकता है।
COVID-19 के संबंध में भारतीय प्रतिक्रिया
- COVID-19 महामारी से उत्पन्न स्थिति की माप करने, मानव जीवन और आजीविका को पहुँच रही क्षति को कम करने के लिये समस्त राष्ट्र ने एकजुट होकर कुछ त्वरित निर्णय लिये हैं।
- महामारी से निपटने के लिये सरकार ने प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण सहित अपने सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों को भी विस्तारित किया है, उदाहरण के लिये; PM किसान योजना (PM Kisan scheme) के अंतर्गत नकद हस्तांतरण, मनरेगा के अंतर्गत अधिक उदार वित्तपोषण जैसे- अग्रिम संवितरण, निर्माण श्रमिकों को सीधे नकद अनुदान और सभी लोगों के लिये खाद्य सुनिश्चित करने के लिये लगभग 800 मिलियन लोगों को प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना (Pradhan Mantri Garib Kalyan Yojana) के अंतर्गत निःशुल्क और रियायती खाद्यान्न प्रदान करने जैसे कार्यक्रम।
- देश को वैश्विक आपूर्ति के संदर्भ में कड़ी प्रतिस्पर्द्धा के खिलाफ स्वतंत्र बनाने और महामारी से प्रतिकूल रूप से प्रभावित हुए गरीबों, मज़दूरों, प्रवासियों को सशक्त बनाने के लिये सरकार ने आत्मनिर्भर भारत योजना (Atma Nirbhar Bharat Scheme) के अंतर्गत 20 लाख करोड़ रुपए (भारत की GDP के 10% के बराबर) के विशेष आर्थिक पैकेज की घोषणा की।
- स्वास्थ्य के बुनियादी ढाँचे और जनशक्ति के तेज़ी से उन्नयन, सक्रिय भागीदारी के साथ नीतियों और कार्यक्रमों के त्वरित पुनर्मूल्यांकन तथा सभी हितधारकों (राजनेताओं, सरकारों, गैर सरकारी संगठनों और निजी क्षेत्रों सहित) की भागीदारी;, कुछ ऐसे चुनौतीपूर्ण कार्य हैं जिनके संदर्भ में सरकार ने महत्त्वपूर्ण उपाय किये हैं।
निष्कर्ष
एशिया-प्रशांत क्षेत्र में बेहतरीन कृषि वैज्ञानिक और संस्थान विद्यमान हैं। यदि हम सहयोग और समन्वय पर विशेष बल देते हैं, जैसा कि हम कर भी कर रहे हैं तो हम इस महामारी से भी लड़ सकते हैं। इस समय हर किसी को एक दूसरे के साथ मिलकर कार्य करना होगा। सरकारें, शिक्षाविद, निजी क्षेत्र, संयुक्त राष्ट्र की एजेंसियाँ, नागरिक समाज संगठन, अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थान और सामान्य लोग सभी के लिये भोजन की पहुँच सुनिश्चित करने का निरंतर प्रयास कर रहे हैं।
महामारी को दूर करने के लिये हमें एकजुट होकर काम करने की ज़रूरत हैं। FAO ने इन सामूहिक चुनौतियों से निपटने के लिये हैंड-इन-हैंड पहल शुरू की है। इसके अतिरिक्त एशिया एवं प्रशांत क्षेत्र के लिये FAO क्षेत्रीय सम्मेलन, जिसे भूटान द्वारा वर्चुअली आयोजित किया जाएगा, इस दिशा में एक सुनहरा अवसर साबित होगा। एक साथ काम करने, सीखने और एक साथ योगदान देने से, हम महामारी और कृषि-खाद्य प्रणाली दोनों समस्याओं का समाधान खोज सकते हैं।
मुख्य परीक्षा प्रश्न : COVID-19 संकट ने विश्व की विकास प्रक्रिया को गंभीर रूप से प्रभावित किया है, ऐसे में केवल एक निरंतर अभिनव और समन्वित प्रयास के माध्यम से ही विश्व को इस संकट से उबारा जा सकता है। इस कथन के आलोक में भारत सरकार द्वारा उठाए गए कदमों पर चर्चा करें।