कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व:महत्त्व | 06 Jun 2022
यह एडिटोरियल 11/06/2022 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित “Corporate Social Responsibility Is A Strategic Endeavour” लेख पर आधारित है। इसमें कंपनियों द्वारा कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) का अनुपालन किये जाने के महत्त्व और अनुपालन से संबद्ध संभावित चुनौतियों के बारे में चर्चा की गई है।
संदर्भ
‘कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व’ (Corporate Social Responsibility- CSR) को सामान्यतः पर्यावरण पर किसी कंपनी के प्रभावों एवं सामाजिक कल्याण पर असर का आकलन करने और उत्तरदायित्व ग्रहण करने के एक कॉर्पोरेट पहल के रूप में संदर्भित किया जा सकता है।
- जीवन की गुणवत्ता के वर्तमान मानकों पर आज भी जहाँ भारत की लगभग दो-तिहाई आबादी गरीबी में जी रही है और जलवायु की स्थिति दिन-ब-दिन बिगड़ती जा रही है, वहाँ CSR के महत्त्व को कम करके नहीं आँका जा सकता। कंपनियों को CSR अनुपालन के प्रति अधिक गंभीर और उत्तरदायित्वपूर्ण रुख अपनाने की ज़रूरत है।
कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व
क्या भारत में CSR को कानूनी समर्थन प्राप्त है?
- भारत में CSR की अवधारणा कंपनी अधिनियम, 2013 के खंड 135 द्वारा शासित है।
- भारत विश्व का पहला देश है जिसने संभावित CSR गतिविधियों की पहचान करने के लिये एक ढाँचे के साथ CSR व्यय को अनिवार्य बनाया है।
- अधिनियम के अंतर्गत CSR प्रावधान उन कंपनियों पर लागू होते हैं जिनका वार्षिक कारोबार 1,000 करोड़ रुपए और उससे अधिक है, या जिनकी कुल संपत्ति 500 करोड़ रुपए और उससे अधिक है, या उनका शुद्ध लाभ 5 करोड़ रुपए और उससे अधिक है।
- अधिनियम के तहत कंपनियों के लिये एक CSR समिति गठित करने की आवश्यकता है जो निदेशक मंडल को एक कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व नीति की अनुशंसा करेगी और समय-समय पर उसकी निगरानी भी करेगी।
- अधिनियम कंपनियों को पिछले तीन वर्षों के अपने औसत शुद्ध लाभ का 2% CSR गतिविधियों पर खर्च करने के लिये प्रोत्साहित करता है।
CSR के तहत एक कंपनी द्वारा कौन-सी गतिविधियाँ की जा सकती हैं?
- कंपनी अधिनियम, 2013 की अनुसूची VII के अंतर्गत निर्दिष्ट इन गतिविधियों में शामिल हैं:
- चरम भुखमरी और निर्धनता का उन्मूलन
- शिक्षा, लैंगिक समानता और महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देना
- एचआईवी-एड्स और अन्य बीमारियों का मुकाबला करना
- पर्यावरणीय संवहनीयता सुनिश्चित करना
- प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष या केंद्र सरकार द्वारा सामाजिक-आर्थिक विकास एवं राहत के लिये स्थापित किसी अन्य कोष में योगदान करना।
CSR अनुपालन का महत्त्व
- कॉर्पोरेशन के लिये सकारात्मक ब्राण्ड छवि के निर्माण हेतु और उनके ESG अनुपालन में सहायता हेतु CSR का अधिकाधिक लाभ उठाया जा रहा है।
- वर्तमान समय में ब्राण्ड छवि महत्त्वपूर्ण हो गई है क्योंकि हितधारक अधिक जागरूक हो गए हैं और सामाजिक मुद्दों में संलग्नता रखते हैं।
- कोविड-19 महामारी की शुरुआत के बाद से भारत के परोपकारी सहयोगिताओं की संख्या दोगुनी से अधिक हो गई है, जो विदेशी एवं घरेलू परोपकार कार्यों, उच्च-निवल मूल्य रखने वाले व्यक्तियों, CSR फंडर्स, निजी पूंजी आदि से वृहत रूप से धन जुटा रही है।
- इन विविध धाराओं के माध्यम से लोगों के जीवन में सुधार के लिये सहयोगात्मक धन की मात्रा में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
- फंडिंग स्तर की वृद्धि के साथ ही सामाजिक प्रभाव के संचालन के लिये नवोन्मेषी वित्तपोषण दृष्टिकोण का भी विकास हुआ है; इसमें शिक्षा एवं स्वास्थ्य हेतु ‘विकास प्रभाव बॉण्ड’ (Development Impact Bonds- DIBs) और अन्य मिश्रित वित्तपोषण तंत्र जैसे ‘पे-फॉर-आउटकम मॉडल’ (pay-for-outcomes models) शामिल हैं।
CSR अनुपालन से संबंधित समस्याएँ
- सही भागीदारों की तलाश: CSR अनुपालन के महत्त्व के बारे में बढ़ती जागरूकता के बावजूद सही भागीदारों एवं परियोजनाओं की पहचान कर सकने के साथ ही दीर्घावधिक रूप से प्रभावशाली, मापनीय (Scalable) और आत्मनिर्भर (Self-Sustaining) परियोजनाओं का चयन कर सकने की चुनौतियाँ बनी हुई हैं।
- CSR गतिविधियों में सामुदायिक भागीदारी का अभाव: स्थानीय समुदायों में कंपनियों की CSR गतिविधियों में भाग लेने और योगदान करने के प्रति रुचि का अभाव है।
- ऐसा मुख्यतः इस कारण है कि स्थानीय समुदायों को CSR के बारे में कोई जानकारी नहीं है या बहुत कम जानकारी है। यह स्थिति इस कारण है कि CSR के बारे में जागरूकता फैलाने की दिशा में गंभीर प्रयास नहीं किये गए हैं।
- ज़मीनी स्तर पर कंपनी और समुदाय के बीच संवाद की कमी के कारण यह स्थिति और गंभीर हो जाती है।
- पारदर्शिता की समस्याएँ: कंपनियों द्वारा एक बात यह कही जाती है कि स्थानीय कार्यान्वयन एजेंसियों की ओर से पारदर्शिता की कमी है क्योंकि वे अपने कार्यक्रमों, लेखा परीक्षा विषयों, प्रभाव आकलन और धन के उपयोग के संबंध में सूचना का खुलासा करने के लिये पर्याप्त प्रयास नहीं करते हैं।
- पारदर्शिता की यह कमी कंपनियों और स्थानीय समुदायों के बीच विश्वास निर्माण की प्रक्रिया को नकारात्मक रूप से प्रभावित करती है, जबकि स्थानीय स्तर पर किसी भी CSR पहल की सफलता की कुंजी इसी भरोसे में निहित है।
- सुसंगठित गैर-सरकारी संगठनों की अनुपलब्धता: दूरस्थ और ग्रामीण क्षेत्रों में सुसंगठित गैर-सरकारी संगठन (NGOs) उपलब्ध नहीं हैं, जो समुदाय की वास्तविक आश्यकताओं का आकलन एवं पहचान कर सकते हैं और CSR गतिविधियों के सफल कार्यान्वयन की सुनिश्चितता के लिये कंपनियों के साथ मिलकर कार्य कर सकते हैं।
CSR को और अधिक प्रभावी कैसे बनाया जा सकता है?
- कंपनियों की भूमिका: केवल धन आवंटित करने से आगे बढ़ते हुए कंपनियों को CSR अनुपालन की प्रगति की नियमित समीक्षा करनी चाहिये और इसके प्रति अधिक पेशेवर दृष्टिकोण के लिये कुछ उपाय करने चाहिये। इसके साथ ही, उन्हें स्पष्ट उद्देश्य निर्धारित करने चाहिये और सभी हितधारकों को इनके साथ संरेखित करना चाहिये।
- उनकी व्यावसायिक आवश्यकताओं के संबंध में उनके NGO भागीदारों को अवगत किया जाना भी उतना ही महत्त्वपूर्ण है।
- NGOs को पता होना चाहिये कि जो कंपनियाँ अपने CSR बजट से धन देती हैं, वे उनके द्वारा चयनित विषयों के प्रति गंभीर भी हैं।
- उनकी व्यावसायिक आवश्यकताओं के संबंध में उनके NGO भागीदारों को अवगत किया जाना भी उतना ही महत्त्वपूर्ण है।
- कंपनियों को बोर्ड, CSR समिति, CFO की भूमिकाओं पर भी पुनर्विचार करना चाहिये और फंड के उपयोग के लिये एक परिभाषित प्रक्रिया सहित नई मानक परिचालन प्रक्रियाएँ (SOPs) स्थापित करनी चाहिये। इसके साथ ही प्रभाव मूल्यांकन की प्रयोज्यता निर्धारित की जाए, मालिकों और समयसीमा के साथ प्रक्रियाओं की एक विस्तृत चेकलिस्ट तैयार की जाए और एक वार्षिक कार्रवाई योजना को आकार दिया जाए।
- सरकार की भूमिका: सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि कंपनी की CSR नीति में शामिल गतिविधियों को उसके द्वारा कार्यान्वित किया जाए।
- गैर-सरकारी संगठनों की अनुपलब्धता के मुद्दों को संबोधित करना और CSR एवं इसकी गतिविधियों के महत्त्व के बारे में समाज में जागरूकता पैदा करना भी सरकार की ज़िम्मेदारी है।
- सरकार CSR पर अपनी नीति में बदलाव लाने के लिये निर्दिष्ट रिपोर्टों की डेटा माइनिंग हेतु आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और मशीन लर्निंग जैसे प्रौद्योगिकी उपकरणों का उपयोग करने की योजना बना रही है।
- सरकार द्वारा कंपनियों की निगरानी में सुधार के लिये प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना स्वागतयोग्य है, लेकिन इसे कंपनियों के सामाजिक दायित्वों पर लागू करने से पहले उनके वित्तीय और शासन पहलुओं पर लागू किया जाना चाहिये।
वे कौन से उपयुक्त क्षेत्र हैं जिधर CSR निवेश को मोड़ा जा सकता है?
- प्रौद्योगिकीय नवाचार: किसी भी परियोजना के गैर-रेखीय स्केल-अप की कुंजी प्रौद्योगिकी का लाभ उठाने में निहित है और सामाजिक समस्याओं को हल करना भी इसका अपवाद नहीं है।
- एक नीतिगत वातावरण, जो प्रौद्योगिकी आधारित समाधानों में CSR निवेश को प्रोत्साहित करता है, ने संवहनीय और मापनीय समाधानों को वास्तविक रूप से घटित किया है।
- इसके अतिरिक्त, स्थानीय निकायों के साथ सहयोग और शासन एवं सामुदायिक संलग्नता संरचनाओं की स्थापना यह सुनिश्चित कर सकती है कि ये परियोजनाएँ दीर्घावधि में आत्मनिर्भर बन सकें।
- उच्च शिक्षा: CSR का उपयोग कई तरह से तृतीयक शिक्षा क्षेत्र को सार्थक रूप से समर्थन देने हेतु किया जा सकता है।
- संकाय सदस्यों द्वारा संकल्पित सामाजिक रूप से प्रासंगिक परियोजनाओं के कार्यान्वयन में या वैज्ञानिक अनुसंधान का समर्थन करने के लिये धन का उपयोग किया जा सकता है जो सामाजिक समस्याओं में अंतर्निहित प्रमुख वैज्ञानिक प्रश्नों के उत्तर दे सकेगा।
- ‘इन्क्यूबेटर’ प्रबंधन: इस तरह के अनुदान सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त इन्क्यूबेटर्स, नए इन्क्यूबेटर्स की स्थापना, इंटर्नशिप एवं फेलोशिप के माध्यम से अधिक लोगों को संलग्न करने हेतु मौजूदा इन्क्यूबेटरों की सहायता और स्टार्ट-अप के लिये सीड फंडिंग प्रदान करने के उद्देश्य से भी दिये जा सकते हैं।
- यह तथ्य कि सरकार की CSR नीति किसी कंपनी को एंड-टू-एंड प्रौद्योगिकी मूल्य निर्माण प्रक्रिया में किसी भी बिंदु पर हस्तक्षेप करने का विकल्प चुनने की अनुमति देती है, एक महत्त्वपूर्ण प्रवर्तक है।
- पर्यावरण-अनुकूल परियोजनाएँ: संवहनीय निर्माण सामग्री बनाना जो कि सस्ती और पुन: प्रयोज्य हो, भारत-केंद्रित हरित विकल्प (जैसे नई ऊष्मा एवं बिजली प्रबंधन प्रणाली) विकसित करना और प्रासंगिक मानदंड पर गहन जोखिम विश्लेषण के साथ सामाजिक-प्रौद्योगिकीय मुद्दों (जैसे बाढ़ प्रबंधन प्रणाली) को संबोधित करना।
- CSR फंडिंग के माध्यम से समर्थित और उच्च शिक्षा संस्थानों के नेतृत्व में कार्यान्वित इस तरह की परियोजनाएँ संक्रमण को प्रयोगशाला से वास्तविक धरातल पर तेज़ करेंगी और समुदायों को नवीन तरीकों से सेवा प्रदान करेंगी।
अभ्यास प्रश्न: ‘‘जीवन की गुणवत्ता के वर्तमान मानकों पर आज भी जहाँ भारत की लगभग दो-तिहाई आबादी गरीबी में जी रही है और जलवायु की स्थिति दिन-ब-दिन बिगड़ती जा रही है, वहाँ CSR के महत्त्व को कम करके नहीं आँका जा सकता है। यह कंपनियों और सरकार दोनों का उत्तरदायित्व है कि वे CSR का अधिक सख्त अनुपालन सुनिश्चित कराएँ।” विश्लेषण कीजिये।