उम्र के उस पड़ाव से संघर्ष जब परिवार ही साथ न हो | 22 Feb 2017

पृष्ठभूमि

वैश्विकरण के दौर में जैसे-जैसे समाज में विकास की गति तेज़ होती जा रही है वैसे-वैसे काम के संबंध में होने वाले प्रवासों में भी व्यापकता आई हैं| उल्लेखनीय है कि पिछले कुछ समय से देश के कार्यशील वर्ग में रोज़गार के बेहतर विकल्पों की तलाश हेतु विदेशों (विशेषकर, उत्तरी अमेरिका, पश्चिमी यूरोप, ऑस्ट्रेलिया तथा दक्षिण-पूर्व एशिया) की ओर रुख करने की प्रवृत्ति में तेज़ी देखी गई है| वस्तुतः प्रवास के दौरान कई बार ऐसी स्थितियाँ उत्पन्न होती हैं जब परिवार के वृद्ध सदस्यों को साथ ले जाना संभव नहीं हो पाता है जिसके कारण वे स्वदेश में रहकर एकांत में जीवन जीने को मज़बूर हो जाते हैं| दूसरी ओर वैसे वृद्ध सदस्य जो अपने परिवारों के साथ विदेशों में जा बसते हैं, या तो वे नए मुल्क में अकेलेपन के शिकार हो जाते हैं अथवा पूरी तरह से अपने परिवार पर निर्भर हो जाते हैं|

  • उल्लेखनीय है कि रोज़गार की मारामारी और बदलते समय के साथ सामंजस्य बैठाने की दौड़ में समाज में संयुक्त परिवार का चलन लगभग समाप्त हो गया है| जिसके परिणामस्वरूप अब परिवार के वरिष्ठ सदस्य अकेलेपन एवं उपेक्षा का जीवन जीने को विवश हो गए हैं|
  • कुछ मामलों में यह भी देखा गया है कि अपने परिवार के साथ रहने के लिये वरिष्ठ सदस्यों को मज़बूरीवश अपने समाज तथा देश से नाता तोड़ना पड़ता है| जिसका परिणाम पुन: अकेलेपन के रूप में सामने आता है|

वृद्धाश्रमों की बढ़ती संख्या

  • गौरतलब है कि कुछ वर्ष पहले तक भारत में वरिष्ठ नागरिक एक समाज तथा समुदाय के रूप में धर्मार्थ संस्थाओं से संबद्ध थे, बुजुर्गों एवं बेसहारा वरिष्ठ नागरिकों की सुरक्षा करना, उनकी गरिमा को बनाए रखते हुए इनका पुनर्वास करना चुनौतीपूर्ण था|
  • परन्तु, बदलते समय तथा आवश्यकताओं को मद्देनज़र रखते हुए इन संस्थाओं ने मध्यम वर्गीय परिवारों से आने वाले वृद्धों तथा उच्च वर्ग के उपेक्षित नागरिकों हेतु एक विलासिता-पूर्ण वृद्धाश्रमों का रूप धारण कर लिया है|
  • कुछ मामलों में यह भी सामने आया है कि कई बार लोग अपने बुजुर्गों को जान-बुझकर विशेष सेवाओं वाले वृद्धाश्रमों में भर्ती कराते हैं, ताकि उन्हें इन बुजुर्गों की सेवा एवं देखभाल न करनी पड़े|
  • वर्तमान में देश में बहुत से ऐसे निजी वृद्धाश्रम खुल गए हैं, जिनमें डॉक्टरों के निरंतर भ्रमण तथा अन्य आवश्यक गतिविधियों से संबंधित सुविधाएँ भी प्रदान की जाती हैं| यह और बात है कि इन वृद्धाश्रमों में रहने की लागत बहुत अधिक होती है|

मध्यम वर्ग में वृद्धि

  • गौरतलब है कि हेल्पेज इंडिया (HelpAge India) नामक संगठन के मुख्य कार्यकारी प्रमुख मैथ्यू चेरियन (Mathew Cherian) के अनुसार, वर्तमान में देश में वरिष्ठ नागरिकों की सहायता हेतु कार्यरत इस वृहद् गैर-लाभकारी संगठन के अधीन तकरीबन 4000 वृद्धाश्रम अवस्थित हैं|
  • इन 4000 वृद्धाश्रमों में से लगभग 130 वृद्धाश्रमों को सेवानिवृत्त समुदायों की अपेक्षाओं तथा गैर-प्रवासी भारतीयों की मांग के अनुरूप तैयार किया गया है|
  • इन विशेष वृद्धाश्रमों की कीमत 25 लाख से 1 करोड़ तक होती है, हालाँकि वतर्मान में कुछ लोगों द्वारा ऐसे आवासों को मध्यम वर्ग के लोगों की आवश्यकताओं एवं बजट के अनुरूप भी तैयार किया जा रहा है| इस प्रकार की सेवाएँ प्रदान करने वाले कुछ प्रमख संगठनों अथवा कंपनियों में बयादा होम हेल्थ केयर (Bayada Home Health Care), उबरहेल्थ (UberHealth) जैसे संगठन शामिल हैं|
  • ध्यातव्य है कि उबरहेल्थ द्वारा प्रदत्त स्वास्थ्य देखभाल संबंधी सुविधाओं के अंतर्गत डॉक्टर से मुलाकात का समय, बुजुर्गों को कहीं आने-जाने के लिये वाहन तथा चालक की सुविधा तथा उनके स्वास्थ्य एवं अन्य आवश्यकताओं से संबंधित सभी जानकारी विदेश में बैठे उनके परिवारजनों को पहुँचाने आदि का काम भी किया जाता है|
  • इसी तरह कोलकाता अवस्थित एक अन्य कंपनी पैरेंटल केयर इंडिया (Parental Care India) के द्वारा एनआरआई लोगों को कुछ विशेष सुविधाओं जैसे अस्पताल आने-जाने अथवा डॉक्टर से मिलने आदि के लिये मात्र 15 डॉलर का शुल्क लगाया जाता है|

वरिष्ठ नागरिकों के मध्य संपर्क का तरीका

  • स्पष्ट है कि वरिष्ठ नागरिकों की देखभाल के लिये बाज़ार में मौजूद कृत्रिम रूप से परिष्कृत व्यवस्थाओं के बावजूद, पुरानी व्यवस्थाओं के रूप में मौजूद सामाजिक संबंध (दोस्तों एवं पड़ोसियों के साथ उठना-बैठना, मिलना-जुलना इत्यादि) ही बुजुर्गों की सटीक देखरेख एवं प्यार के लिये सबसे सार्थक एवं उपयोगी तरीका है, विशेषकर उन लोगों के लिये जिनके बच्चे विदेश में रहते हैं|
  • इसी कारण अकेलेपन के शिकार बुजुर्गों की सहायता के लिये अब से 12 साल पहले महाराष्ट्र के औरंगाबाद में एक गैर-प्रवासी भारतीय पेरेंट्स एसोसिएशन (Non-resident Indian Parents Association) की स्थापना की गई थी, इस एसोसिएशन के अंतर्गत विदेश में रहने वाले लोगों के माता-पिता की देखभाल की जाती है|
  • इस मुद्दे के संबंध में गहराई से विचार करते हुए यह निष्कर्ष सामने आया है कि बदलते समय के साथ-साथ ऐसे बुजुर्गों की संख्या में और अधिक इज़ाफा होने की सम्भावना है| इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुए महाराष्ट्र के बाहर भी एनआरआई पेरेंट्स संगठन की कईं शाखाएँ खोली गई हैं, यथा ; पुणे, वड़ोदरा, बैंगलोर इत्यादि|

निष्कर्ष

हालाँकि इन सभी सुविधाओं तथा उच्चस्तरीय देखभाल के बावजूद सबसे बड़ी समस्या इन बुजुर्गों के जीवन का अकेलापन तथा उससे उत्पन्न अवसाद की स्थिति है| वस्तुतः इन सभी स्थानों में प्यार, सम्मान तथा अपनेपन के भाव का प्रायः अभाव होता है| जैसा कि हम सभी जानते हैं कि उम्र के एक पड़ाव के बाद इंसान को सबसे अधिक देखभाल, प्यार तथा साथ की आवश्यकता होती है, परन्तु वर्तमान की बदलती सामाजिक व्यवस्था में इसका अभाव तथा घर के बुजुर्गों एवं युवाओं के मध्य खाई गहराती जा रही है| वर्तमान में परिवार के सदस्यों के मध्य बातचीत के माध्यम के रूप में केवल फोन कॉल, स्काइप तथा फेसबुक आदि पर बातचीत ही वास्तविक साधन बनकर रह गए हैं| पहले की संयुक्त आवास तथा साझेपन की अवधारणा अब पूरी तरह से खत्म होती जा रही है| ऐसे में समाज की इस अमूल्य धरोहर को सहेजने के लिये हमें अपनी सामाजिक व्यवस्था के सभी पहलुओं पर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है क्योंकि भविष्य में इन बुजुर्गों का स्थान आप और हम ही लेने वाले हैं|