भारत में उपभोक्ता बाज़ार की चुनौतियाँ | 10 Apr 2019

संदर्भ

हाल ही में एक वैश्विक कंसल्टेंसी फर्म की रिपोर्ट में भारत के उपभोक्ता बाज़ार की तस्वीर पेश करते हुए कहा गया है कि 2008 से यह हर साल 13% की दर से बढ़ रहा है। उपभोक्ता बाज़ार की इस वृद्धि के प्रमुख कारणों में देश में बढ़ती आबादी, तेज़ शहरीकरण और तेज़ी से बढ़ते मध्यम वर्ग को माना गया है। एक अन्य महत्त्वपूर्ण बात जो देखने में आ रही है वह यह कि उपभोक्ता बाज़ार में उत्पादों के साथ-साथ सेवाओं की मांग भी तेज़ी से बढ़ रही है।

विश्व आर्थिक मंच (WEF) की रिपोर्ट

  • वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2030 तक भारत का बाज़ार अमेरिका और चीन के बाद तीसरे नंबर पर होगा।
  • इस तीसरे सबसे बड़े बाज़ार का आकार तब लगभग 420 लाख करोड़ रुपए का होगा, जो अभी लगभग 105 लाख करोड़ रुपए का है।
  • वर्ष 2030 तक 14 करोड़ लोग मध्य वर्ग में शामिल होंगे और दो करोड़ लोग मध्य वर्ग से उच्च आय वर्ग में जाएंगे। ये लोग खाने-पीने, कपड़े, पर्सनल केयर, गैजेट, ट्रांसपोर्ट और हाउसिंग पर दो से ढाई गुना ज़्यादा खर्च करेंगे।
  • स्वास्थ्य, शिक्षा और मनोरंजन जैसी सेवाओं पर इनका खर्च 3 से 4 गुना बढ़ जाएगा।
  • अमीरों, घनी आबादी वाले शहरों और विकसित कस्बों से यह उपभोक्ता खपत आएगी।
  • रिपोर्ट में स्किल डेवलपमेंट, रोज़गार के मौके और ग्रामीण इलाकों में सामाजिक-आर्थिक समावेश को भविष्य की चुनौती बताया गया है।
  • WEF ने बेन एंड कंपनी के साथ मिलकर यह रिपोर्ट तैयार की है और इसके लिये 30 शहरों में 5100 घरों का सर्वे किया गया।

कुल खर्च में 75% हिस्सेदारी मध्य आय वर्ग की होगी

  • अभी 50% लोग मध्य आय वर्ग के हैं और यह संख्या 2030 में बढ़कर 80% हो जाएगी। तब कुल खर्च में 75% हिस्सेदारी इस वर्ग की होगी।
  • 2030 में शीर्ष 40 शहरों में खपत 105 लाख करोड़ रुपए की होगी।
  • विकसित ग्रामीण इलाकों में यह 84 लाख करोड़ रुपए होगी।
  • तब भी भारत दुनिया के सबसे युवा देशों में होगा, जहाँ 100 करोड़ से ज़्यादा इंटरनेट यूज़र होंगे।
  • 2.5 करोड़ और लोग गरीबी रेखा से ऊपर आएंगे।

क्या है ई-कॉमर्स?

इलेक्ट्रॉनिक कॉमर्स की शॉर्ट फॉर्म है ई-कॉमर्स। यह ऑनलाइन बिज़नेस करने का एक तरीका है। इसके तहत इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम के द्वारा इंटरनेट के माध्यम से वस्तुओं और सेवाओं की खरीद-बिक्री की जाती है। ई-कॉमर्स बुनियादी ढाँचे के साथ-साथ उपभोक्ता और व्यापार के लिये अवसरों के नए द्वार खोलता है। इसके माध्यम से उपभोक्ताओं के लिये समय और दूरी जैसी बाधाएँ समाप्त हो जाती हैं। इसमें कंप्यूटर, इंटरनेट नेटवर्क, वर्ल्डवाइड वेव और ई-मेल को उपयोग में लाकर व्यापारिक क्रियाकलापों को संचालित किया जाता है।

तेज़ी से बढ़ रहा है भारत का उपभोक्ता बाज़ार

इसमें कोई दो राय नहीं कि ई-कॉमर्स ने देश में खुदरा कारोबार का चेहरा ही बदल दिया है। देश में इंटरनेट उपयोगकर्त्ताओं की संख्या साठ करोड़ से भी अधिक होने के कारण ई-कॉमर्स की रफ्तार तेज़ी से बढ़ी है।

  • भारत का उपभोक्ता बाज़ार दुनिया में सबसे तेज गति से आगे बढ़ रहा है। देश के उपभोक्ता बाज़ार के बढ़ने का एक बड़ा कारण ई-कॉमर्स का तेज़ी से बढ़ना भी है।
  • वर्ष 2008 में यह केवल 31 लाख करोड़ रुपए था, जो पिछले साल 110 लाख करोड़ रुपए का हो गया।
  • माना जा रहा है कि 2028 तक यह तीन गुना बढ़कर 335 लाख करोड़ रुपए का हो जाएगा।
  • डेलॉय इंडिया और रिटेल एसोसिएशन ऑफ इंडिया की रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत का ई-कॉमर्स बाज़ार वर्ष 2021 तक 84 अरब डॉलर का हो जाएगा।
  • वर्ष 2017 में यह 24 अरब डॉलर का था। भारत में ई-कॉमर्स बाज़ार सालाना 32% की दर से बढ़ रहा है।
  • भारत के विशालकाय उपभोक्ता बाज़ार की मांग पूरी करने के लिये देश-विदेश की बड़ी-बड़ी कंपनियाँ अपनी रणनीतियाँ बना रही हैं।

देश की बढ़ती जनसंख्या और उपभोक्ता बाज़ार के बीच सीधा संबंध है। इस समय भारत की जनसंख्या दुनिया में सबसे तेज़ी से बढ़ रही है। संयुक्त राष्ट्र की वैश्विक जनसंख्या रिपोर्ट के अनुसार, 2024 में भारत की जनसंख्या चीन से अधिक हो जाएगी। दुनिया के अन्य सभी देशों की तुलना में भारत की जनसंख्या सबसे अधिक बढ़ेगी और यह विशालकाय आबादी सबसे बड़े वैश्विक उपभोक्ता बाज़ार का आधार भी होगी। इसके साथ, भारत में जैसे-जैसे उद्योगीकरण, कारोबारी विकास और शहरीकरण बढ़ रहा है वैसे-वैसे देश का उपभोक्ता बाज़ार भी तेज़ी से बढ़ रहा है।

वैश्वीकरण के इस नए परिदृश्य में भारतीय शहर प्रतिभाओं के लिये नए केंद्र बन गए हैं। ये प्रतिभाएँ शहरों में इसलिये रहना चाहती हैं क्योंकि शहरों में विश्वस्तरीय रोज़गार के अवसर सृजित हो रहे हैं।

  • भारत दुनिया का सबसे बड़ा प्लेसमेंट सेंटर बनता जा रहा है और देश के कई शहरों से विकसित देशों के लिये आउटसोर्सिंग का प्रवाह तेज होता जा रहा है।
  • भारत में इंग्लिश बोलने वाले प्रोफेशनल आसानी से मिल जाते हैं और व्यावसायिक कार्यस्थल पश्चिमी देशों के मुकाबले काफी कम दरों पर उपलब्ध हैं।

वैश्विक शहरीकरण और भारत के शहर

यह बात भी महत्त्वपूर्ण है कि नए शहरों का तेजी से विकास भारत में उपभोक्ता बाज़ार को तेजी से आगे बढ़ा रहा है। WEF ने इसी साल ‘वैश्विक शहरीकरण में भारतीय शहरों की छलांग’ से संबंधित रिपोर्ट जारी की है। यह रिपोर्ट दुनिया के 780 बड़े और मझोले शहरों की बदलती आर्थिक तस्वीर और आबादी की बदलती प्रवृत्ति को लेकर तैयार की गई है। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि 2019 से 2035 तक दुनिया के शहरीकरण में काफी बदलाव आएगा। तेज़ी से विकसित होते हुए नए शहरों की रफ्तार के मामले में शीर्ष के 20 में पहले 17 शहर भारत के होंगे। इन शहरों से भारत का उपभोक्ता बाज़ार और व्यापक बनेगा।

उपभोक्ता बाज़ार का राजा है मध्यम वर्ग

भारतीय उपभोक्ता बाज़ार के विस्तार में मध्यम वर्ग की अहम भूमिका है। शहरों में रहने वाले मध्यम वर्ग के लोग अपने उद्यम-कारोबार, अपनी सेवाओं और पेशेवर योग्यताओं से न केवल अपनी आय बढ़ा रहे हैं, बल्कि अपनी क्रय शक्ति से उपभोक्ता बाज़ार को भी मज़बूती दे रहे हैं। देश में मध्यम वर्ग की बढ़ती क्रयशक्ति उपभोक्ता बाज़ार को नई गति दे रही है। भारत में मध्यम वर्ग के लोगों की आर्थिक ताकत तेजी से बढ़ी है। इसी ताकत के बल पर भारत ने 2008 की मंदी का सामना किया था और इस मंदी का कोई विशेष प्रभाव देश पर नहीं पड़ा था।

1991 से शुरू हुए आर्थिक सुधारों के बाद देश में मध्यम वर्ग के लोगों की संख्या और क्रय क्षमता काफी बढ़ी है। नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर अप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च की एक नवीनतम रिपोर्ट से पता चलता है कि वर्तमान में देश में मध्यम वर्ग के लोगों की संख्या 30 करोड़ से अधिक है। देश में उच्च मध्यम वर्ग के 17 करोड़ लोगों की 46% क्रेडिट कार्ड, 49% कार, 52% एसी और 53% कंप्यूटर में हिस्सेदारी है।

मध्यम वर्ग की ताकत से आगे बढ़ रहे भारतीय बाज़ार में अपार संभावनाएँ मौज़ूद हैं। इसके लिये दुनिया के विकसित और विकासशील देशों के उद्यमी और कारोबारी भारत की ओर आकर्षित हो रहे हैं। इस समय जब भारत की विकास दर दुनिया में सर्वाधिक 7% के स्तर पर है, उसमें मध्यम वर्ग की अहम भूमिका है। शेयर बाज़ार की ऊँचाई में भी मध्यम वर्ग की अग्रणी भूमिका है।

चुनौतियाँ भी कम नहीं

ऐसे में जब देश का उपभोक्ता बाज़ार बढ़ रहा है, तब उपभोक्ताओं को किसी भी प्रकार के छल-कपट से बचाने और उनके हितों के संरक्षण की चुनौतियां भी बढ़ रही हैं। बाज़ार का राजा कहे जाने वाले उपभोक्ता को कई बार बाज़ार में मिलावट, दोयम दर्जे की वस्तुओं की बिक्री, अधिक दाम, कम नाप-तौल जैसी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। देश में उपभोक्ता संरक्षण के वर्तमान कानून पर्याप्त नहीं हैं तथा उत्पादों की गुणवत्ता संबंधी शिकायतों के संतोषजनक समाधान के लिये नए नियामक बनाए जाने भी ज़रूरी हैं।

नई ई-कॉमर्स नीति में किये गए हैं कुछ उपाय

  • पिछले वर्ष के अंत में जारी नई ई-कॉमर्स नीति के तहत कैशबैक, एक्सक्लूसिव सेल, ब्रांड लॉन्चिंग, एमेजॉन प्राइम या फ्लिपकार्ट प्लस जैसी विशेष सेवाओं आदि पर नकेल कसने का प्रयास किया गया है।
  • इस नई ई-कॉमर्स नीति का नया नियम किसी ई-कॉमर्स कंपनी को उन सामानों की बिक्री अपने प्लेटफॉर्म पर करने से रोकता है, जिनका उत्पादन वह खुद या उनकी कोई आनुषंगिक कंपनी करती हो।

नई नीति में प्रावधान किया गया है कि कि यदि किसी कंपनी में ई-कॉमर्स मार्केटप्लेस या इसकी ग्रुप कंपनियों के शेयर हैं या उस कंपनी की इन्वेंटरी में ई-कॉमर्स मार्केटप्लेस या इसकी ग्रुप कंपनियों का नियंत्रण है तो उसे उस मार्केटप्लेस प्लेटफॉर्म पर प्रॉडक्ट्स बेचने की अनुमति नहीं होगी। यानी ऑनलाइन मार्केटप्लेस से जुड़ी किसी भी कंपनी को उस मार्केटप्लेस पर प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से अपने उत्पादों की बिक्री नहीं करने दी जाएगी।

  • इसमें यह भी सुनिश्चित किया गया है कि कोई वेंडर किसी पोर्टल पर अधिकतम कितने सामान की बिक्री कर सकता है।
  • ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स पर किसी सप्लायर को विशेष सुविधा दिये जाने पर भी रोक लगाई गई है।
  • बड़े-बड़े डिस्काउंट ऑफर्स के ज़रिये ग्राहकों को लुभाने का दौर भी अब समाप्ति की ओर है, क्योंकि नई नीति के नियमों के तहत ऐसा संभव नहीं हो पाएगा।

नई नीति में इन्वेंटरी आधारित प्रावधानों को भी कठोर बनाया गया है। यदि किसी वेंडर की इन्वेंटरी की 25% प्रतिशत से ज्यादा की खरीद मार्केटप्लेस या इसकी ग्रुप कंपनियां करती हैं, तो उसे ई-कॉमर्स मार्केटप्लेस के नियंत्रण की इन्वेंटरी ही माना जाएगा। इस प्रावधान से कोई ब्रांड या सप्लायर किसी एक मार्केटप्लेस के साथ एकमात्र (Exclusively) नहीं जुड़ पाएगा, जैसा कि कई मोबाइल और वाइट गुड्स ब्रांड्स अक्सर करते रहे हैं।

  • नया नियम लागू होने के बाद ऑनलाइन शॉपिंग पर बड़ी छूट मिलना संभव नहीं हो पाएगा और मुफ्त या फास्ट डिलीवरी और कैशबैक जैसी सुविधाएँ भी नहीं मिल पाएंगी।
  • ई-कॉमर्स मार्केटप्लेस से किसी भी रूप में जुड़े वेंडरों को सेवाएँ देने में काफी सतर्कता बरतनी होगी और पक्षपात नहीं करना होगा।
  • इन नए नियमों का अप्रत्यक्ष असर डिजिटल पेमेंट्स और फिनटेक इंडस्ट्री पर पड़ सकता है। पक्षपातपूर्ण कीमत निर्धारण के खिलाफ नए प्रावधान ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स को किसी खास उत्पाद या खास रिटेलर्स के लिये बैंकों एवं पेमेंट कंपनियों के साथ एक्सक्लूसिव पार्टनरशिप करने से भी रोकते हैं।

निवेश एवं रोज़गार पर असर

ई-कॉमर्स संबंधी नई नीति का असर विदेशी निवेश और नई नौकरियों पर भी पड़ेगा। अमेरिकी कंपनी एमेजॉन ने अपनी भारतीय इकाई में अरबों डॉलर निवेश किये हैं, जबकि वॉलमार्ट ने हाल ही में फ्लिपकार्ट को 16 अरब डॉलर में खरीदा है। कारोबार बढ़ने के कारण एमेजॉन और फ्लिपकार्ट ने बड़ी संख्या में वेयरहाउस बनाए हैं और सप्लाई चेन से जुड़ी नौकरियों का सृजन किया। लेकिन नई नीति से उनके कारोबार की वृद्धि की गति कम हो सकती है, जिसका सीधा असर निवेश और रोज़गार पर पड़ेगा।

डेटा की सुरक्षा है अहम मुद्दा

ई-कॉमर्स कंपनियाँ जिस तरह लोगों का डेटा कलेक्ट कर रही हैं उससे लोगों की चिंता बढ़ गई है। डेटा सुरक्षा को लेकर गठित जस्टिस श्रीकृष्ण समिति भी सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंप चुकी है। ऐसे में उपभोक्ताओं के उपयुक्त संरक्षण तथा मोबाइल डेटा उपभोग मामले में सबसे पहले भारत को डेटा सुरक्षा पर विशेष ध्यान देना होगा। आज के आर्थिक जगत में जो देश अपने उपभोक्ताओं के डेटा को जितना अधिक संरक्षित कर सकेगा, वह आर्थिक रूप से उतना ही मज़बूत होगा। चूँकि आर्थिक संदर्भ में भारत में डेटा एक ऐसा क्षेत्र है जहां कोई नियम-कानून फिलहाल नहीं हैं, अतएव इससे संबंधित उपयुक्त नियमन का होना जरूरी है। इसके लिये यह सुनिश्चित करना होगा कि डेटा पर देश का ही नियंत्रण हो और विशिष्ट प्रकार के डेटा को भारत में ही रखा जाए। डेटा को देश में ही स्टोर करने की आवश्यकता इसलिये है, ताकि उपभोक्ताओं की व्यक्तिगत जानकारी का संरक्षण हो सके और अपनी व्यक्तिगत जानकारी पर उपभोक्ताओं का ही नियंत्रण रहे।

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