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समवर्ती सूची में 'पानी'

  • 24 Jan 2017
  • 9 min read

सन्दर्भ

  • आप दिनभर के काम के बाद घर आते हैं, पानी की बोतल उठाते हैं और पानी की कुछ बूंदें जैसे ही आपके गले के नीचे उतरती हैं आपके मुँह से निकलता है ‘जल ही जीवन है’ लेकिन जैसे ही आप अपना टेलीविजन सेट ऑन करते हैं आपके मुँह से निकलता है ‘जल ही विवाद की असली वजह है’| कौन सा पानी किसका है? नदी-समुद्र का पानी किसका है? सरकार का नदियों एवं तालाबों के जल पर मालिकाना अधिकार है या सिर्फ़ रख-रखाव की जिम्मेदारी? वर्तमान में ये सभी यक्ष-प्रश्न बने हुए हैं|
  • गौरतलब है कि केंद्र सरकार पिछले वर्ष से ही पानी को समवर्ती सूची में शामिल करने की वकालत कर रही है और हाल ही में जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा 13 जनवरी, 2017 को जल मंथन-3 का आयोजन किया गया है| जल मंथन-3 में केन्द्रीय मंत्री उमा भारती ने कहा कि पानी को समवर्ती सूचि में शामिल किये जाने को लेकर केंद्र सरकार राज्यों से सलाह मशविरा कर रही है|
  • यदि पानी पर राज्यों के बदले, केन्द्र का अधिकार हो, तो बाढ़ और सूखे जैसी स्थितियों से बेहतर ढंग से निपटना क्या सम्भव होगा? क्या दो राज्यों के बीच जल को लेकर हो रहे विवाद को समुचित ढंग से निपटाया जा सकता है? इन सभी प्रश्नों के उत्तर ढूँढने से पहले यह जानना आवश्यक होगा कि पानी के लेकर वर्तमान संवैधानिक स्थिति क्या है और पानी को समवर्ती सूची में लाने का मतलब क्या है!

पानी को लेकर वर्तमान संवैधानिक स्थिति

  • वर्तमान संवैधानिक स्थिति के अनुसार किसी भूमि के नीचे का पानी उसकी है, जिसकी वह भूमि है| सतह पर प्रवाहित हो रहे जल को लेकर अलग-अलग राज्यों में थोड़ी भिन्नता जरूर है, किन्तु सामान्य नियम है कि निजी भूमि पर बनी जल संरचना का मालिक, निजी भूमि का स्वामी होता है|
  • विदित हो कि किसी ग्राम पंचायत के अधिकार क्षेत्रफल में आने वाली एक तय भूमि की सार्वजनिक जल संरचना के प्रबन्धन व उपयोग तय करने का अधिकार ग्राम पंचायत का होता है| दरअसल, ग्राम पंचायत के अंतर्गत आने वाली इस तय भूमि का क्षेत्रफल प्रत्येक राज्य में अलग-अलग है| भौगोलिक क्षेत्रफल के हिसाब से सार्वजनिक जल संरचना के प्रबन्धन व उपयोग तय करने का अधिकार क्रमशः ज़िला पंचायतों, नगर निगम/नगर पालिकाओं और राज्य सरकारों को प्राप्त है|
  • इस तरह आज की संवैधानिक स्थिति में पानी, राज्य का विषय है| इसका एक मतलब यह है कि केन्द्र सरकार, पानी को लेकर राज्यों को मार्गदर्शी निर्देश जारी कर सकती है; पानी को लेकर केन्द्रीय जल नीति व केन्द्रीय जल कानून बना सकती है, लेकिन उसे जैसे का तैसा मानने के लिये राज्य सरकारों को बाध्य नहीं कर सकती है|
  • राज्य अपनी स्थानीय परिस्थितियों और ज़रूरतों के मुताबिक बदलाव करने के लिये संवैधानिक रूप से स्वतंत्र हैं लेकिन राज्य का विषय होने का मतलब यह कतई नहीं है कि पानी के मामले में केन्द्र सरकार इसमें कोई दखल नहीं दे सकती है| केन्द्र को राज्यों के अधिकार में दखल देने का अधिकार है, लेकिन तब जबकि दो राज्यों के बीच बहने वाले किसी जल के संबंध में विवाद उत्पन्न हो जाए और इस अधिकार के तहत ही केन्द्र सरकार द्वारा ‘केन्द्रीय भूजल बोर्ड’ एवं ‘केन्द्रीय जल आयोग’ का गठन किया गया है|

पानी को समवर्ती सूचि में लाने के मायने

  • पानी के समवर्ती सूची में आने से बदलाव यह होगा कि केन्द्र, पानी सम्बन्धी जो भी कानून बनाएगा, उन्हें मानना राज्य सरकारों की बाध्यता होगी| केन्द्रीय जल नीति हो या जल कानून, वे पूरे देश में एक समान लागू होंगे| पानी के समवर्ती सूची में आने के बाद केन्द्र द्वारा बनाए जल कानून के समक्ष, राज्यों के सम्बन्धित कानून स्वतः निष्प्रभावी हो जाएंगे|

क्यों यह प्रयास सकारात्मक नहीं है?

  • वर्तमान परिस्थितियों में पानी को समवर्ती सूचि में डालना एक पश्चगामी कदम होगा| आज जहाँ हम संघवाद और प्रशासन के विकेन्द्रीकरण पर जोर दे रहें हैं वहाँ पानी का केन्द्रीकरण संविधान के प्रगतिवादी सिद्धांत के विरुद्ध होगा|
  • गौरतलब है कि पानी को समवर्ती सूचि में शामिल करने का अर्थ यह होगा कि इस संबंध में केंद्र और राज्य दोनों कानून बना सकते हैं| यदि केवल जल के बँटवारे से संबंधित विवादों का समाधान प्रस्तुत करना ही उद्देश्य है तो अनुच्छेद 246 में प्रविष्टि 56 के अनुसार केंद्र सरकार नियम कानून बनाने के लिये स्वतंत्र है, हालाँकि केंद्र सरकार ने अभी तक इस शक्ति का उपयोग नहीं किया है| अतः पानी को समवर्ती सूचि में शामिल करना उतना आवश्यक प्रतीत नहीं हो रहा है|

यह कदम सकारात्मक क्यों?

  • दरअसल, ‘पानी’ एक व्यापक रूप में नदियों के जल तक ही सीमित नहीं है बल्कि पानी की कमी, भूजल स्तर की गिरावट और खराब होती गुणवत्ता ने देश के योजनाकारों के माथे पर चिंता की लकीरें खींच दी हैं| अब स्थिति यह बन रही है कि देश में पानी की उपलब्धता का जल्दी से जल्दी पुख्ता इंतजाम हो| पेयजल की कमी और सूखे से मुक्ति मिले| अतः पर्यावरण, पारिस्थितिकी और सामाजिक चिंताओं को ध्यान में रखते हुए पानी को समवर्ती सूची के अंतर्गत लाना एक स्वागत योग्य कदम है|
  • गौरतलब है कि भारत के संविधान में भूजल का उल्लेख ही नहीं है| अर्थात भूजल के प्रबन्धन का दायित्व किसका है? और भूजल पर स्वामित्व किसका है? इस बात को लेकर हमेशा से विवाद की स्थिति रही है| प्रावधानों के अभाव में, भूजल के मामलों में केन्द्र सरकार या राज्य सरकार की प्रभावी भूमिका लगभग ना के बराबर है| हाल के कुछ वर्षों में देखा गया है कि कई राज्यों के भूजल में आर्सेनिक और फ्लोराइड की मात्रा बढ़ रही है| इन सभी बातों पर गौर करने के बाद कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि पानी को समवर्ती सूची में शामिल कर लेना चाहिये|
  • हमारी अधिकांश बड़ी नदियाँ एक से अधिक राज्यों से होकर बहती हैं और ऐसी स्थिति में नदी जल बँटवारे को लेकर प्रायः दो राज्यों में विवाद देखने को मिलता है| इन परिस्थितियों में विवाद में शामिल दोनों में से कोई भी राज्य एक-दुसरे की नहीं सुनते अतः कुछ विद्वानों का मत है कि विवादों के निपटारे के लिये केंद्र सरकार की भूमिका के दायरे का विस्तार करना होगा और ऐसा पानी को समवर्ती सूचि में शामिल करने से किया जा सकता है|

निष्कर्ष

  • इस बात की नितांत ही आवश्यकता है कि पानी की एक सीमित और खत्म हो रहे संसाधन के रूप में पहचान की जाए| सरकार को चाहिये कि राज्यों से विचार विमर्श के बाद तुरंत एक ऐसी राष्ट्रीय जल नीति का निर्माण करे जो भारत में भूजल के अत्यधिक दोहन, जल के बँटवारे से संबंधित विवादों और जल को लेकर पर्यावरणीय एवं सामाजिक चिंताओं का समाधान प्रस्तुत कर सके|
  • यह आवश्यक नहीं है कि पानी को समवर्ती सूचि में शामिल करना संघवाद के मूल्यों के खिलाफ़ हो बशर्ते यह अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने में सफल रहे|
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