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सोशल बिज़नेस की अवधारणा

  • 26 Sep 2017
  • 9 min read

संदर्भ

अर्थशास्त्री व नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद युनुस ने बांग्लादेश में ग्रामीण बैंक का शुभारंभ किया इस बैंक के ज़रिये गरीबों के लिये पूंजी उपलब्ध कराई गई, जिसमें बड़ी संख्या में महिलाएँ भी शामिल हैं। अपनी एक नई किताब- अ वर्ल्ड ऑफ थ्री ज़ीरोज़: ज़ीरो एम्प्लोयीमेंट, ज़ीरो पावर्टी एंड ज़ीरो कार्बन एमिशन (A World of Three Zeros: The New Economics of Zero Poverty, Zero Unemployment, and Zero Net Carbon Emissions) में उन्होंने लाखों लोगों को गरीबी से मुक्त करने में माइक्रो क्रेडिट (micro credit) के महत्त्व को रेखांकित किया है तथा एक पारंपरिक बैंकिंग व्यवस्था की कमियों का पर्दाफाश भी किया है।

कैसे चर्चा में आया सोशल बिज़नेस?

  • दरअसल, देश अमीर हो या गरीब, विकसित हो या अल्प-विकसित सबसे कम आय वाले लोगों की समस्याएँ हर जगह एक जैसी ही हैं और इन समस्याओं में शामिल हैं-संस्थागत सेवाओं का अभाव, अपर्याप्त स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा का अभाव, घटिया आवास सेवाएँ आदि। ये समस्याएँ हमारी आर्थिक व्यवस्था की विफलता की निशानी हैं।
  • चूँकि गरीबी, बेरोज़गारी और पर्यावरणीय चिंताएँ हमारी आर्थिक व्यवस्था की विफलता है और यह व्यवस्था मानवो द्वारा बनाई गई है| इसलिये मानव व्यवहारों में उचित बदलाव लाते हुए इस व्यवस्था को बदलने पर बल दिया जाना चाहिये।
  • हमें एक ऐसी व्यवस्था का निर्माण करना होगा, जो लोगों की ज़रूरतों और मानवीय इच्छाओं को अधिक सटीकता से प्रतिबिंबित करती हो या दूसरे शब्दों में कहें तो हमें ज़रूरत है उस अर्थव्यवस्था की जो सोशल बिज़नेस पर आधारित हो।

‘सामाजिक कारोबार पर आधारित अर्थव्यवस्था’ (economics of social business) क्या है?

  • पूंजीवाद पर आधारित केंद्रीय व्यवस्था की सबसे बड़ी खामी ‘व्यक्तिगत लाभ’ कमाने का इसका उद्देश्य है। अतः पूंजीवाद धन और शक्ति के अनुचित वितरण के साथ जुड़ा हुआ है। फलस्वरूप, इस व्यवस्था में केवल लाभ कमाने के उद्देश्य से चलाए जा रहे व्यवसायों को ही मान्यता और समर्थन प्राप्त है।
  • यह सच है कि बड़ी संख्या में लोग केवल व्यक्तिगत लाभ कमाना चाहते हैं, फिर भी दुनिया भर के लाखों लोग गरीबी उन्मूलन, बेरोज़गारी, और पर्यावरणीय चिंताओं से संबंधित बातों का संज्ञान लेते हुए लाभ कमाना चाहते हैं।
  • यदि गरीबी, बेरोज़गारी और पर्यावरणीय चिंता इन तीन घटकों को साथ लेते हुए कारोबार आरंभ किया जाए तो जिस व्यवस्था के अंतर्गत ये क्रियाकलाप चलते हैं उसी व्यवस्था को हम ‘सोशल बिज़नेस पर आधारित अर्थव्यवस्था’ कहते हैं।

सामाजिक कारोबार (social business) क्या है?

  • प्रोफेसर मोहम्मद यूनुस के मुताबिक, सोशल बिज़नेस को एक गैर-लाभांश कंपनी के रूप में परिभाषित किया जा सकता है, जो एक सामाजिक समस्या को हल करने के लिये बनाई गई है। यह एक ऐसा कारोबार है जिसमें न तो हानि होती है न ही लाभ होता है।
  • यह आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर है, अर्थात् यह बाहरी स्रोतों से लगातार निवेश आकर्षित करने की आवश्यकता से मुक्त है। इस कारोबार से प्राप्त होने वाले लाभ का किसी अन्य उद्यम में लगाए जाने के बजाय इसी कारोबार में निवेश कर दिया जाता है। यदि कोई नया कारोबार आरंभ भी करना हुआ तो यह सोशल बिज़नेस ही होगा।
  • सोशल बिज़नेस से प्राप्त होने वाला लाभ कंपनी के पास ही रहता है न की कंपनी के मालिक के पास। कंपनी का मालिक केवल उतने ही लाभ का अधिकारी होगा जितना की उसने कंपनी में निवेश कर रखा है।

सोशल बिज़नेस की ज़रूरत क्यों?

  • मोहम्मद युनुस के अनुसार विश्व की आर्थिक व्यवस्था का डिज़ाइन खोखला हो चुका है। यह व्यवस्था सिर्फ मुट्ठी भर लोगों को अमीर से और अमीर बना रही है, जबकि गरीब और गरीब होते जा रहे हैं। विदित हो कि वैश्विक अर्थव्यवस्था का 99 फीसद धन विश्व के महज एक फीसद लोगों के पास है। उन्होंने इस व्यवस्था के मौजूदा डिज़ाइन में तत्काल बदलाव की वकालत की है।
  • आज मौजूदा आर्थिक व्यवस्था के डिज़ाइन को सोशल बिज़नेस से जोड़ना होगा। दरअसल, मौज़ूदा व्यवस्था लोक कल्याणकारी होने के बजाय पैसा डबल करने वाले रोबोट की तरह काम कर रही है। इस डिज़ाइन को बदलकर इसे लोगों के लिये लाभकारी बनाना होगा।
  • विदित हो कि मोहम्मद युनुस ने बांग्लादेश में ग्रामीण बैंक स्थापित कर बैंकिंग की नई डिज़ाइन स्थापित करने के लिये विश्व भर में अलग पहचान बनाई है। कुछ इसी तरह हमारी बैंकिंग व्यवस्था को ग्रामीण बैंक की तरह लोक कल्याणकारी व न्यूनतम लाभकारी नीति पर चलना होगा, तभी हर वर्ग के लोगों के लिये धन का समानांतर सदुपयोग किया जा सकता है।

वर्तमान में क्यों अधिक प्रासंगिक है सोशल बिज़नेस

  • सोशल बिज़नेस मुक्त बाज़ार अर्थव्यवस्था में पूरी तरह से एक अलग आयाम जोड़ता है और वह यह कि सामाजिक लक्ष्यों की प्राप्ति से अर्जित आत्मसंतोष को मूल्यांकन का पैमाना माना जाएगा।
  • वर्तमान में ऑटोमेशन के कारण रोज़गार जनित चिंताएँ बढ़ गई हैं, ग्लोबल वार्मिंग आज मानव जीवन को सर्वाधिक प्रभावित कर रहा है। आय असमानता की खाई लगातार चौड़ी होती जा रही है, ऐसे में सोशल बिज़नेस आज कुछ ज़्यादा ही प्रासंगिक है।
  • ऑटोमेशन से जहाँ रोज़गार के लिये संकट है वहीं इसके लाभ भी बहुत हैं। सोशल बिज़नेस भी ऑटोमेशन द्वारा प्राप्त लाभों से समृद्ध हो सकता है।

निष्कर्ष

  • आज मानव जाति की समृद्धि का स्तर अद्वितीय है। इस समृद्धि ने कई लोगों के जीवन को बदल दिया है, फिर भी अरबों लोग गरीबी, भूख और बीमारी से पीड़ित हैं। साथ ही पिछले दशक में आई आर्थिक मंदी जैसे कई बड़े संकटों ने दुनिया के 4 बिलियन लोगों के दुःख और निराशा को और अधिक बढ़ा दिया है।
  • उल्लेखनीय है कि 2000-2015 तक की अवधि के लिये सहस्त्राब्दि विकास लक्ष्यों (millennium development goals-MDG) की प्राप्ति की योजना बनाई गई थी, जिनकी समयावधि वर्ष 2015 में पूरी हो चुकी थी। भारत सहित कई देश इसके कई लक्ष्यों की प्राप्ति के मामले में बहुत पीछे हैं और हम एजेंडा-2030 की तरफ कदम बढ़ा चुके हैं।
  • एजेंडा-2030 भी एमडीजी की तरह आधे-अधूरे परिणामों वाला न साबित हो इसके लिये हमें सोशल बिज़नेस की अवधारण पर गंभीरता से विचार करना होगा।
  • आज इतनी बड़ी संख्या में किसान आत्महत्याएँ इसलिये कर रहे हैं, क्योंकि पैसा बनाने की जुगत में लगी इस व्यवस्था में उन्हें उनकी लागत तक नहीं मिल पा रही। अतः हमें ऐसा बिज़नेस डिज़ाइन करना होगा, जिससे कि किसान को सीधे लाभांश मिले और यहाँ सोशल बिज़नेस महत्त्वपूर्ण साबित होगा। 
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