जैव विविधता और पर्यावरण
दक्षिणी-एशिया में जलवायु सहयोग की स्थिति
- 01 Sep 2022
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यह एडिटोरियल 31/08/2022 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित “Floods in Pakistan bear similarities to those in India. It’s time for a collaborative mechanism to deal with extreme weather events” लेख पर आधारित है। इसमें पाकिस्तान में आई विनाशकारी बाढ़ और चरम मौसमी घटनाओं से निपटने हेतु सहयोगी तंत्र की आवश्यकता के संबंध में चर्चा की गई है।
संदर्भ
दक्षिण एशिया एक भौगोलिक क्षेत्र के साथ ही एक जातीय-सांस्कृतिक इकाई है जिसमें अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, भारत, मालदीव, नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका शामिल हैं।
- उत्तर में वृहत हिमालय, दक्षिण में विशाल हिंद महासागर, पश्चिम में अरब सागर और पूर्व में बंगाल की खाड़ी इस क्षेत्र को एक प्राकृतिक पृथकता प्रदान करती है जहाँ विविध जलवायु क्षेत्र और भौतिक स्थालाकृतियाँ मौजूद हैं।
- हाल के वर्षों में जलवायु परिवर्तन से प्रेरित असामान्य मानसून पैटर्न ने दक्षिण एशिया को व्यापक रूप से प्रभावित किया है जहाँ हिमनदों के फटने, वनाग्नि, पर्वतीय एवं तटीय मृदा का कटाव और अभी पाकिस्तान में विनाशकारी बाढ़ जैसी घटनाएँ प्रकट हुई हैं। ये आपदाएँ और घटनाएँ दक्षिण एशियाई देशों के बीच वृहत सहयोग की आवश्यकता उत्पन्न करती हैं।
दक्षिण एशिया में जलवायु संकट के प्रमुख कारण
- तापमान में वृद्धि: हाल के दशकों में हिंद महासागर के समुद्र सतह तापमान (Sea Surface Temperatures- SST) में लगभग 1 डिग्री सेल्सियस (वैश्विक औसत 0.7 डिग्री सेल्सियस) की वृद्धि देखी गई है। गर्म वातावरण अधिक जलवाष्प धारण कर सकता है जिससे दक्षिण एशिया में आर्द्रता और वर्षा की मात्रा में वृद्धि हुई है।
- ‘ला नीना’ के दौरान भी सामान्य से अधिक वर्षा होने की प्रवृत्ति होती है जिसके परिणामस्वरूप दक्षिण एशिया में बाढ़ की घटनाओं की वृद्धि हुई है।
- ग्रीष्म लहर: भारत और पाकिस्तान के वृहत क्षेत्र दीर्घकालिक एवं घातक ग्रीष्म लहर (Heat Wave) की चपेट में आए जिससे लाखों लोग प्रभावित हुए। इसने हिमनदों के पिघलने और हिमनदों के विस्फोट की घटनाओं को भी जन्म दिया है जिससे खाद्य और ऊर्जा की कमी की स्थिति उत्पन्न हुई है।
- जेट स्ट्रीम: जेट स्ट्रीम पवन की नदियों जैसे होते हैं जो वायुमंडल के ऊपरी भाग में बहते हैं। तेज़ पवनों की इन पतली पट्टियों का जलवायु पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है, क्योंकि वे वायु राशियों को चारों ओर धकेल सकती हैं और मौसम के पैटर्न को प्रभावित कर सकती हैं।
- ग्लोबल वार्मिंग के कारण जेट स्ट्रीम विसर्प या घुमावदार पथ पर बहते हैं, ठंडी ध्रुवीय हवा को गर्म उष्णकटिबंधीय हवा के साथ मिलाकर वायुमंडलीय परिसंचरण को बदलते हैं जिससे चरम मौसमी घटनाएँ उत्पन्न होती हैं।
जलवायु संकट दक्षिण एशियाई देशों को कैसे प्रभावित कर रहा है?
- भारत: तिब्बत के पठार पर तापमान की वृद्धि से हिमालय के ग्लेशियर पीछे हट रहे हैं, जिससे गंगा, ब्रह्मपुत्र, यमुना और कई अन्य प्रमुख नदियों की प्रवाह दर को खतरा पहुँच रहा है।
- जलवायु परिवर्तन के कारण भारत में ग्रीष्म लहर की आवृत्ति बढ़ रही है।
- असम जैसे राज्यों में गंभीर भूस्खलन और बाढ़ जैसी घटनाओं के आम हो जाने का का अनुमान लगाया गया है।
- अफगानिस्तान: अफगानिस्तान के तापमान में वर्ष 1950 के बाद से 1.8 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है।
- यह गंभीर सूखे की स्थिति उत्पन्न कर रहा है जिसकी त्वरा भविष्य में और बढ़ सकती है। ग्लोबल वार्मिंग के कारण सूखे की घटनाओं में वृद्धि के परिणामस्वरूप अफगानिस्तान को आने वाले भविष्य में मरुस्थलीकरण और भूमि क्षरण का भी सामना करना पड़ सकता है।
- बांग्लादेश: जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति बांग्लादेश की भेद्यता कई भौगोलिक कारकों (जैसे कि इसकी समतल, निचली और डेल्टा सम्मुख स्थलाकृति) तथा सामाजिक-आर्थिक कारकों (जैसे इसका उच्च जनसंख्या घनत्व) के कारण है।
- एशियाई विकास बैंक (ADB) का अनुमान है कि जलवायु परिवर्तन के कारण बांग्लादेश को वर्ष 2050 तक 2% वार्षिक जीडीपी क्षति उठानी पड़ सकती है।
- भूटान: गंभीर जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप भूटान के कई ग्लेशियर तेज़ी से पिघल रहे हैं जिससे हिमनदों के फटने से उत्पन्न बाढ़ (Glacial Lake Outburst Floods- GLOFs) की आवृत्ति और गंभीरता बढ़ गई है।
- मालदीव: मालदीव में कई निचले द्वीपों को समुद्र के स्तर में वृद्धि से खतरा है,जहाँ कुछ अनुमान बताते हैं कि आने वाले वर्षों में यह राष्ट्र निर्जन हो जाएगा यदि उपयुक्त उपाय नहीं किये जाएँ।
- नेपाल: जलवायु परिवर्तन नेपाल में मौसम के पैटर्न में व्यापक भिन्नता और चरम मौसमी घटनाओं में वृद्धि पैदा कर रहा है। वर्ष 2016 के पूर्व-मानसून मौसम के दौरान सूखे की स्थिति से नेपाल में बड़ी संख्या में वनाग्नि की घटना सामने आई।
- पाकिस्तान: बढ़ती गर्मी के अलावा, हिमालय में ग्लेशियरों के पिघलने से पाकिस्तान की कुछ प्रमुख नदियों के प्रवाह पर असर पड़ा है।
- वर्ष 1999 से 2018 के बीच जलवायु परिवर्तन के कारण चरम जलवायु के मामले में पाकिस्तान को 5वाँ सर्वाधिक प्रभावित देश का दर्जा दिया गया था।
- वर्तमान में पाकिस्तान एक गंभीर जलवायु आपदा का सामना कर रहा है जहाँ मानसून की आरंभिक वर्ष ने पाकिस्तान में विनाशकारी बाढ़ की स्थिति उत्पन्न कर दी है।
- दक्षिण एशिया में पारिस्थितिक और जलवायु निरंतरता को देखते हुए जलवायु संबंधी मामलों पर क्षेत्रीय सहयोग आवश्यक और महत्त्वपूर्ण है।
दक्षिण एशिया में जलवायु संकट से निपटने हेतु क्षेत्रीय सहयोग के राह की बाधाएँ
- शक्ति विषमता और भूगोल: छोटे दक्षिण एशियाई राज्य भारत के प्रभुत्व के विरुद्ध एक संतुलन शक्ति के निर्माण के लिये प्रायः भूभाग से दूर बाह्य विश्व की ओर देखने की प्रवृत्ति रखते हैं।
- इसके साथ ही, दक्षिण एशिया में श्रीलंका और मालदीव को छोड़कर शेष सभी देश भारत के साथ एक साझा सीमा रखते हैं। यह भौगोलिक निर्भरता इन देशों की आंतरिक और बाह्य निर्णयकारी क्षमता को प्रभावित करती है
- जलवायु परिवर्तन जैसे महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर क्षेत्रीय सहयोग के मामले में इस अंतराल को भरना कठिन हो जाता है।
- भू-राजनीति की चुनौतियाँ: हाल के वर्षों में भू-राजनीति ने ‘एक दक्षिण एशिया’ के विचार को ही कमज़ोर कर दिया है।
- चीन के आर्थिक प्रभुत्व और इस क्षेत्र में नए गठबंधनों के निर्माण ने भारत और पाकिस्तान, बांग्लादेश एवं नेपाल जैसे उसके पड़ोसी देशों के बीच तनाव की वृद्धि की है। इस परिदृश्य में दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (SAARC) भी एक दुविधा का शिकार है।
- क्षेत्रीय मुद्दे: चूँकि राष्ट्रीय सीमाएँ बेतरतीब हैं, इसलिये जलवायु परिवर्तन से निपटना मुश्किल है। वे राजनीति द्वारा शासित होते हैं और पारिस्थितिक सीमाओं एवं गलियारों की प्रायः उपेक्षा करते हैं।
- आपसी कूटनीतिक कटुता ने क्षेत्रीय सहयोग को व्यापक रूप से प्रभावित किया है।
- 20वीं सदी के मध्य में जल्दबाजी में स्थापित दक्षिण एशिया की कठोर सीमाएँ 21वीं सदी की चुनौतियों से निपटने की पूरी क्षमता नहीं रखतीं।
आगे की राह
- संसाधनों का इष्टतम उपयोग: अफगानिस्तान, भूटान, भारत, नेपाल और पाकिस्तान जैसे हिमालयी देशों में बड़े, अप्रयुक्त जलविद्युत संसाधन मौजूद हैं।
- प्रौद्योगिकियों और वित्त के मामले में सहयोग के साथ ही एक साझा दक्षिण एशियाई बिजली बाज़ार के विकास से बिजली की लागत और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करते हुए ऊर्जा सुरक्षा की वृद्धि की जा सकती है।
- सौर ऊर्जा के क्षेत्र में भारत का नेतृत्व अन्य पड़ोसी देशों के लिये इस नवीकरणीय संसाधन को सस्ते और प्रमुख ऊर्जा स्रोत के रूप में विकसित करने में मदद कर सकता है।
- प्रौद्योगिकियों और वित्त के मामले में सहयोग के साथ ही एक साझा दक्षिण एशियाई बिजली बाज़ार के विकास से बिजली की लागत और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करते हुए ऊर्जा सुरक्षा की वृद्धि की जा सकती है।
- भारत के लिये नेतृत्व का अवसर: भारत के पास वैश्विक मंचों पर दक्षिण एशिया की आवाज़ के रूप में कार्य करने के साथ-साथ अपनी ‘नेबरहुड फर्स्ट’ नीति के एक अंग के रूप में पड़ोसी देशों को समय पर मानवीय सहायता प्रदान करने का अवसर है।
- इसके अलावा, भारत के पास ‘स्मार्ट सिटी मिशन’ और ‘अटल नवीकरण एवं शहरी परिवर्तन मिशन’ जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से आर्थिक रूप से उत्पादक और संवहनीय शहरों के विकास का एक समृद्ध अनुभव है जिसे वह अन्य दक्षिण एशियाई देशों के साथ साझा कर सकता है।
- एक दूसरे से सीखना: नवाचार, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण, ज्ञान के आदान-प्रदान और क्षमता निर्माण पर सामूहिक ध्यान देने के साथ-साथ ऐसी कई पहलें मौजूद हैं जिनसे दक्षिण एशिया के सभी देशों को जलवायु परिवर्तन से निपटने और एक इकाई के रूप में विकसित होने का सबक मिल सकता है।
- इन पहलों में शामिल हैं:
- बांग्लादेश की अनुकूलन रणनीतियाँ (‘डेल्टा योजना 2100’ सहित)
- भूटान द्वारा वनों का सतत प्रबंधन
- बांग्लादेश और भारत द्वारा मत्स्य प्रबंधन
- नेपाल में सूक्ष्म जलविद्युत
- मालदीव और श्रीलंका में इकोटूरिज्म
- बांग्लादेश, भारत और पाकिस्तान में जलवायु-कुशल कृषि।
- नदी के प्रवाह पर डेटा-शेयरिंग तंत्र, बाढ़ चेतावनी प्रणाली और यहाँ तक कि एक साझा अक्षय ऊर्जा-प्रभुत्व वाली बिजली ग्रिड दक्षिण एशिया में जलवायु भेद्यता को काफी हद तक कम कर सकती है।
- इन पहलों में शामिल हैं:
- दक्षिण एशिया क्षेत्रीय सहयोग संगठन जलवायु कोष: दक्षिण एशियाई देशों द्वारा अनुकूलन और शमन उपायों में मदद के लिये (विशेष रूप से आपदा संभावित क्षेत्रों में) एक दक्षिण एशिया क्षेत्रीय सहयोग संगठन जलवायु कोष (Creation of South Asia Association for Regional Cooperation Climate Fund) की स्थापना की जा सकती है।
- विश्व बैंक समूह का दक्षिण एशिया जलवायु रोडमैप: दक्षिण एशिया जलवायु रोडमैप कुछ प्रमुख क्षेत्रों में जलवायु-प्रत्यास्थी योजना और विकास रणनीतियों के लिये प्रमुख अत्याधुनिक विश्लेषणात्मक उपकरणों के विकास का समर्थन कर सकेगा। ये प्रमुख क्षेत्र हैं:
- कृषि, खाद्य, जल और भूमि प्रणाली संक्रमण
- ऊर्जा और परिवहन संक्रमण
- शहरी संक्रमण
अभ्यास प्रश्न: असामान्य मानसून पैटर्न दक्षिण एशिया में प्राकृतिक आपदाओं और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को किस प्रकार बढ़ा रहे हैं? दक्षिण एशियाई राष्ट्र इनके शमन के लिये कैसे सहयोग कर सकते हैं?
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