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जैव विविधता और पर्यावरण

जीवनदायी नदी गंगा: प्रदूषण एवं संरक्षण

  • 19 Apr 2021
  • 8 min read

यह एडिटोरियल 17/04/2021 को द इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित लेख “River of life” पर आधारित है। इसमें गंगा नदी में प्रदूषण के कारण और इससे निपटने के लिये किये जा रहे उपायों पर चर्चा की गई है।

हाल ही में भारत में विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक मेला ‘कुंभ’ आयोजित किया गया तथा इस मेले  के दौरान लाखों श्रद्धालु गंगा में डुबकी लगाने के लिये एकत्र हुए। प्राचीन काल से कुंभ मेला विभिन्न मान्यताओं, प्रथाओं, दर्शन और विचारधाराओं के सम्मेलन स्थल का प्रतीक रहा है।

दुर्भाग्य से समय के साथ आबादी में वृद्धि, अनियोजित औद्योगीकरण और असंवहनीय कृषि प्रथाओं के कारण गंगा एवं इसकी सहायक नदियों में प्रदूषक तत्त्वों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।

हालाँकि, फ्लैगशिप परियोजना 'नमामि गंगे' के क्रियान्वयन के बाद धीरे-धीरे गंगा नदी में प्रदूषण काफी कम हो गया है। इस परियोजना के तहत सार्वजनिक नीतियों, प्रौद्योगिकी का प्रयोग एवं सामुदायिक भागीदारी को शामिल करते हुए एक समग्र दृष्टिकोण अपनाया है।

नमामि गंगे परियोजना:

  • यह केंद्र सरकार की योजना है जिसे वर्ष 2014 में शुरू किया गया था।
  • सरकार द्वारा इस परियोजना की शुरुआत गंगा नदी के प्रदूषण को कम करने के उद्देश्य से की गई थी। 
  • इस योजना का क्रियान्वयन केंद्रीय जल संसाधन, नदी विकास और गंगा कायाकल्प मंत्रालय द्वारा किया जा रहा है।

गंगा नदी के प्रदूषित होने का कारण

  • शहरीकरण: हाल के दशकों में भारत में तेज़ी से हुए शहरीकरण के कारण कई पर्यावरणीय समस्याएँ, जैसे- जल आपूर्ति, अपशिष्ट जल और इसका एक स्थान पर जमा होना साथ ही, इसके उपचार और निपटान जैसे समस्याएँ उत्पन्न हुई हैं। गंगा नदी के तट पर बसे कई शहरों एवं कस्बों के लोगों एवं प्रशासन ने शहर से निष्कासित होने वाले अपशिष्ट जल, सीवरेज आदि की समस्या के बारे में गंभीरता पूर्वक विचार नहीं किया है।
  • उद्योग: गंगा में सीवरेज और औद्योगिक अपशिष्टों के अप्रबंधित एवं अनियोजित प्रवाह के कारण इसके जल की शुद्धता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। जल में घुले ये औद्योगिक अपशिष्ट नदियों के जल का उपयोग करने वाले सभी जीवों के लिये हानिकारक हैं।
    • पेपर मिल्स, स्टील प्लांट्स, टेक्सटाइल और चीनी उद्योगों से भी काफी मात्रा में अपशिष्ट जल का निष्कासन नदियों के जल में होता है।
  • कृषि अपवाह और अनुचित कृषि प्रथाएँ: कृषि के दौरान अत्यधिक उर्वरकों के प्रयोग के कारण मिट्टी में घुले हुए उर्वरक एवं कीटनाशक वर्षा-जल के साथ निकटतम जल निकायों में पहुॅंच जाते हैं। 
  • जल निकासी की व्यवस्था: गंगा में न्यूनतम प्रवाह के अध्ययन पर जल संसाधन मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार, नदी के जल की गुणवत्ता पर उपचारित या अनुपचारित अपशिष्ट जल के निकास का प्रभाव नदी के प्रवाह पर निर्भर करता है। ज्ञातव्य है कि गंगा नदी जब मैदानी क्षेत्र में प्रवेश करती है तो इसमें जल की मात्रा कम हो जाती है और इसका न्यूनतम प्रवाह बाधित होता है। उदाहरण के लिये, ऊपरी गंगा नहर और निचली गंगा नहर के कारण गंगा की निचली धाराएँ  लगभग सूखने लगी हैं।
  • धार्मिक और सामाजिक आचरण: धार्मिक आस्था और सामाजिक प्रथाएँ भी गंगा नदी में प्रदूषण को बढ़ाने के लिये ज़िम्मेदार हैं।
    • नदी किनारे शवों का अंतिम संस्कार एवं आंशिक रूप से जले हुए शव नदी में बहाना, धार्मिक त्योहारों के दौरान लोगों का बड़ी संख्या में नदी में स्नान करना पर्यावरणीय रूप से हानिकारक प्रथाएँ है। ये प्रथाएँ नदी के जल को प्रदूषित करती हैं और जल की गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं। 

गंगा नदी में प्रदूषण को कम करने के लिये उठाए गए कदम

  • सार्वजनिक नीति: वर्ष 2016 में सरकार ने राष्ट्रीय गंगा स्वच्छ मिशन (एनएमसीजी) को पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के तहत प्रदत्त अधिकारों का प्रयोग करने के लिये अधिकृत करते हुए अधिसूचना जारी की।
    • एनएमसीजी ने नदी तटों पर खनन गतिविधियों को नियंत्रित करने, अतिक्रमण को रोकने और मूर्तियों के विसर्जन जैसी गतिविधियों को विनियमित करने के निर्देश भी जारी किये।
  • प्रौद्योगिकी का प्रयोग: एनएमसीजी ने उपग्रह इमेज़री, रिमोट सेंसिंग और भू-स्थानिक समाधान जैसी अत्याधुनिक तकनीकों को अपनाया है, जिससे वास्तविक समय में गंगा और उसकी सहायक नदियों में प्रदूषकों की निगरानी की जा सकती है।
    • सीवेज उपचार हेतु नए बुनियादी ढाॅंचे को डिज़ाइन करने के लिये वैज्ञानिकों ने पूर्वानुमानित मॉडल तैयार किये हैं।
  • सामुदायिक भागीदारी: गंगा नदी की सफाई हेतु सामुदायिक भागीदारी को प्रोत्साहित करने के लिये गंगा तट पर बसे शहरों, गाॅंवों एवं कस्बों में "गंगा प्रहरी" नामक नव-स्थापित समुदाय समूह के माध्यम से जागरुकता अभियान नियमित रूप से चलाया जा जा रहा है। उनके माध्यम से, सरकार "जल चेतना" को "जन चेतना" एवं पुनः इसे "जल आंदोलन" में बदल सकती है।

निष्कर्ष

भारत का संविधान, केंद्र और राज्य सरकारों को इसके नागरिकों के लिये स्वच्छ तथा स्वस्थ वातावरण एवं स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराने का प्रावधान करता है। (अनुच्छेद 48A, अनुच्छेद 51 (A) (g), अनुच्छेद 21)। साथ ही, सर्वोच्च न्यायालय ने घोषणा की है कि स्वस्थ और स्वच्छ पर्यावरण का अधिकार एक मौलिक अधिकार है।

इस संदर्भ में नमामि गंगे परियोजना गंगा नदी को साफ करने के लिये सही दिशा में उठाया गया एक कदम है एवं भारत की अन्य नदियों में प्रदूषण से निपटने के लिये इस परियोजना का अनुकरण किया जाना चाहिये।

अभ्यास प्रश्न: नमामि गंगे परियोजना गंगा नदी को साफ करने के लिये सही दिशा में उठाया गया एक कदम है। भारत की अन्य नदियों में प्रदूषण से निपटने के लिये इस परियोजना का अनुकरण किया जाना चाहिये। चर्चा करें।

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