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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

उपेक्षित रहा है सिविल सेवा में आवश्यक सुधार

  • 25 Jan 2017
  • 11 min read

सन्दर्भ

  • गौरतलब है कि हाल ही में केंद्र सरकार ने भारतीय प्रशासनिक सेवा के एक और भारतीय पुलिस सेवा के दो वरिष्ठ अधिकारियों को कथित तौर पर काम में कोताही बरतने के कारण बर्खास्त कर दिया है| सरकार के इस कदम की प्रशंसा की जा रही है और यह माना जा रहा है कि पिछले 40 सालों से उपेक्षित रहे सिविल सेवा सुधारों की अब सुध ली जाएगी|
  • नौकरशाही किसी राष्ट्र की प्रगति में बाधक नहीं है, जैसा कि बहुत से लोग मानते हैं| हमारी राष्ट्रीयता राजनैतिक नेताओं और चुनाव पद्धति पर टिकी हुई नहीं है, बल्कि इसकी बुनियाद देश की नौकरशाही है| हमारा देश ठीक-ठाक ढंग से चल रहा है, तो केवल इसलिये क्योंकि हमारे पास एक सुदृढ़ और सुव्यवस्थित नौकरशाही व्यवस्था है, जो एक खास तरीके से प्रशिक्षित है|
  • देश का प्रशासन चलाने का कार्य एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी है| यह उन ज़िम्मेदारियों से कहीं बड़ी है जो राजनेताओं को पाँच सालों के लिये मिलती है| इसलिये एक नौकरशाह के जीवन को इस तरह से सशक्त करना ज़रूरी हो जाता है जिससे उसका जीवन तनाव और रोगों से मुक्त रहे, ताकि राष्ट्र अपने ही भार से दबकर चरमरा न जाए|
  • लेकिन आज हमारी नौकरशाही जनविमुख और भ्रष्ट होती जा रही है और ऐसा कई कारणों से है, लेकिन सबसे अहम कारण है नौकरशाही का राजनीतिक रुझान और नौकरशाहों पर राजनीतिक दबाव| नौकरशाही में भ्रष्टाचार एक सच्चाई है, इसके अलावा हमारी नौकरशाही संरचना भी लगातार विकृत होती जा रही है|

देश के विकास में सिविल सेवकों की भूमिका और चिंताएँ

  • उपनिवेशीय युग में नौकरशाहों को प्रायः निरंकुश शासन के लिये इस्तेमाल किया जाता था| वे कर वसूली करने वाले और सरकार के आदेशों को लागू कराने वाले के रूप में जाने जाते थे| दुर्भाग्य से आज भी हमारे देश में जिला प्रशासकों को ‘कलेक्टर’ के रूप में ही देखा जाता है| इस सोच को, जो व्यापक रूप से फैली हुई है, जड़ से उखाड़ फेंकने की ज़रूरत है|
  • लोगों को चाहिये कि वो नौकरशाहों को इस नजर से देखें कि ये वे लोग हैं जो उनके सुख और  कल्याण के लिये काम करते हैं| प्रत्येक लोक सेवक के पास यह अवसर होता है कि वह अपने कार्यकाल दौरान करोड़ों ज़िंदगियों को प्रभावित कर सके|
  • एक ऐसी शक्ति का होना, जो लोगों के जीवन को बदल सकती हो, बड़े सौभाग्य की बात है| ध्यातव्य है कि हमारे जैसे देश में आबादी का बहुत बड़ा हिस्सा दयनीय ज़िन्दगी जी रहा है और बुनियादी सुविधाओं से वंचित है, लेकिन हमारे पास सिविल सेवा के रूप में एक ऐसी शक्ति है जो उनकी दुर्दशा को ठीक कर सकती है|
  • लेकिन यह बहुत महत्त्वपूर्ण है कि इस सौभाग्य को बोझ में न बदलने दिया जाए| इसलिये यह बहुत ज़रूरी हो जाता है कि हर नौकरशाह अपने भीतर एक स्वाभाविक और सहज सुख की स्थिति में रहे| जब तक हम खुद अपने भीतर एक सुख की स्थिति में न हों, तो कैसे हम औरों की ज़िन्दगी छू सकते हैं?
  • हमारी नौकरशाही के जनविमुख, असंवेदनशील और भ्रष्ट होने का मतलब है कहीं न कहीं हमारे देश में नौकरशाहों की चयन प्रक्रिया में दोष है| यही वजह है कि विभिन्न प्रशासनिक सुधार आयोगों द्वारा समय-समय पर चयन प्रक्रिया में सुधार लाने हेतु सिफारिश की जाती रही है| इसका एकमात्र मकसद है कि बदलती घरेलू और वैश्विक संरचना में भारतीय प्रशासकों की भूमिका भी बदल रही है जिसके अनुकूल चयन प्रणाली होनी चाहिये|
  • आज यह एक गंभीर प्रश्न है कि देश को ईमानदार, कर्तव्यनिष्ठ और कुशल प्रशासक कैसे मिलें? कई अधिकारी भ्रष्टाचार में लिप्त हैं तो कई जनहित के प्रति उपेक्षा भाव रखते हैं| सिविल सेवकों को न केवल देश के अंदर बल्कि देश के बाहर के संबंध में भी अपनी कुशल भूमिका निभानी होती है| लेकिन हम तमाम प्रयासों के बावज़ूद भी वांछित नौकरशाही समूह विकसित नहीं कर पा रहे हैं|

क्या हो आगे का रास्ता

  • अखिल भारतीय सेवाओं के शीर्ष के तीस फीसदी अधिकारी अभी भी शानदार काबिलियत रखते हैं, लेकिन इस तीस फीसदी के दायरे के नीचे आने वाले अधिकारियों की क्षमता का स्तर लगातार गिरता जा रहा है| ज़्यादातर राज्यों में मुख्यमंत्री अपने पाँच या छह खास अधिकारियों की मदद से प्रशासन चलाते हैं, हमें इस प्रवृत्ति को बदलना होगा| गौरतलब है कि अखिल भारतीय सेवाओं के नियम 16(3) के अनुसार सभी अधिकारियों के काम-काज़ की समय-समय पर समीक्षा होनी चाहिये, लेकिन इस नियम का कभी सख्ती से पालन नहीं किया गया| सरकार का तत्कालीन कदम इस दिशा में एक सकारात्मक प्रयास है|
  • अधिकारी वर्ग ने आम जनता के मन में एक भ्रम पैदा कर दिया है कि सरकार द्वारा उन्हें उनकी आवश्यकता के अनुसार धनलाभ नहीं दिया जा रहा है| आम जनता को यह जानना चाहिये कि अखिल भारतीय सेवा और केन्द्रीय सेवाओं में कार्यरत अधिकारियों को भारतीय मानकों पर अच्छी तरह से भुगतान किया जा रहा है| प्रत्येक वेतन आयोग की सिफारिशें लागू होते ही सिविल सेवकों के वेतन और अनुलाभ में बढ़ोतरी होती है| सिविल सेवक को सेवानिवृत्त होने के बाद 1,12,500 रुपये प्रति माह तक का अधिकतम पेंशन लाभ मिल सकता है| संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद, केवल 10 प्रतिशत अधिकारीं ही ऐसे हैं जिनके ज्ञान और कौशल में वृद्धि नहीं होती| जनता और अधिकारी दोनों को इस बात को समझना होगा कि भारत सरकार ने सिविल सेवकों की आवश्यकता का ख्याल भलीभाँति रखा है|
  • लंबे समय से प्रशासनिक सुधार की मांग उठती रही है| इसे लेकर कई समितियाँ भी गठित की गर्इं, जिन्होंने कुछ अहम सुधार के लिये सुझाव भी दिये| मगर उन पर गंभीरता से ध्यान नहीं दिया गया। यह छिपी बात नहीं है कि बहुत सारे प्रशासनिक अधिकारी सत्ता पक्ष की मंशा के अनुरूप खुद को ढालने में ही अपना भलाई समझते हैं| इससे आम लोगों के हितों पर बुरा प्रभाव पड़ता है और जन-सरोकार के कामों से लगातार उनकी दूरी बनी रहती है| एक प्रमुख चिंता यह भी है कि भारतीय प्रशासनिक ढाँचा कुछ इस तरह का है कि आम लोगों और अधिकारियों के बीच काफी दूरी बनी रहती है। इस दूरी को समाप्त करने के लिये द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग के कुछ महत्त्वपूर्ण सुझावों को व्यवहारिक तौर पर अमल में लाना होगा|
  • भारत में प्रशासनिक सुधारों को गति न मिल पाने का एक प्रमुख कारण न्यायपालिका का सुस्त रवैया भी रहा है| एक ओर प्रायः न्यायपालिका किसी भ्रष्ट लोकसेवक के खिलाफ़ कारवाई के दौरान नियमों एवं कानूनों के जाल में स्वम् को पंगु बना लेती है, वहीं दूसरी तरफ कोई ईमानदार लोकसेवक प्रायः इन्ही नियमों एवं कानूनों के जाल में फँसकर अपनी बेगुनाही साबित नहीं कर पाता है| और यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि इस महत्त्वपूर्ण मुद्दे पर न्यायिक सक्रियता देखने को नहीं मिलती| अतः न्यायपलिका को भी प्रशासनिक सुधारों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी|

निष्कर्ष

  • सरकार की तमाम योजनाएँ प्रशासनिक अधिकारियों के बल पर ही कामयाब हो पाती हैं| अगर वे अपना कर्तव्य निभाने में लापरवाही बरतते हैं, तो योजनाएँ चाहे जितनी दूरगामी हों, वे नाकाम ही साबित होती हैं| इसलिये अपेक्षा की जाती है कि प्रशासनिक अधिकारी अधिक से अधिक जनता से निकटता बनाएँ, उसकी ज़रूरतों को समझें और स्थितियों के अनुरूप कदम बढ़ाएँ|
  • अनेक प्रशासनिक अधिकारियों ने अपने कामकाज से मिसाल कायम की है| मगर उनसे प्रेरणा लेने के बजाय अधिकतर अधिकारी लोगों से दूरी बनाकर और उनमें भय का माहौल पैदा कर अपना प्रभाव जमाने की कोशिश करते देखे जाते हैं| योजनाएँ उनके लिए कमाई का ज़रिया नज़र आती हैं। ऐसे में केंद्र सरकार के अधिकारियों को सेवा निवृत्त करने के इस फैसले से एक उम्मीद तो बनती ही है कि वह  प्रशासनिक सुधार की दिशा में कठोर कदम उठाने की पहल करेगी|
  • हम यह कहकर अपनी पीठ थपथपा सकते हैं कि भारत आज दुनिया की दूसरी सबसे तेजी से बढ़ रही अर्थव्यवस्था है, लेकिन इससे अपने बुनियादी सच पर पर्दा नहीं डाल सकते| इसलिये ज़रूरी है कि नौकरशाही की साफ-सफाई करके इसे बेहतर बनाया जाए| ताकि हमारे अधिकारी बेहतर ढंग से काम करें और देश की प्राथमिकताओं को समझकर बेहतर नीतियों को अमल मे लाएँ| कल्याणकारी राज्य का सपना तभी सच होगा जब अधिकारी वर्ग काबिल हो और प्रशासनिक व्यवस्था व्यावहारिक एवं प्रभावी हो|
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