संयुक्त राष्ट्र पर चीन का बढ़ता प्रभाव | 04 Nov 2019

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में संयुक्त राष्ट्र पर चीन के बढ़ते प्रभाव की चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ

चीन सरकार लगातार संयुक्त राष्ट्र सहित अन्य अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों में अपनी भूमिका एवं प्रभाव को मज़बूत करने का प्रयास कर रही है और चीन की यह नीति काफी हद तक सफल भी रही है। ध्यातव्य है कि जून 2019 में चीन के उप कृषि मंत्री क्यू डोंग्यू (Qu Dongyu) को संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन का महानिदेशक चुना गया । क्यू डोंग्यू के चुनाव के साथ ही UN की 15 विशिष्ट एजेंसियों में से चार अब किसी चीनी नागरिक के नेतृत्व आ गई हैं अर्थात् अप्रत्यक्ष रूप से अब उन पर चीन का प्रभाव है। पिछले महीने अक्तूबर में जब चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने कम्युनिस्ट शासन की 70वीं वर्षगाँठ के अवसर पर चीन की सबसे बड़ी सैन्य परेड का नेतृत्व किया तो पहली बार चीन की 8000 सैनिकों वाली अतिरिक्त संयुक्त राष्ट्र शांति सेना की एक टुकड़ी ने भी इसमें हिस्सा लिया था। यह स्पष्ट है कि चीन संयुक्त राष्ट्र में अपने प्रभाव को बढ़ाने का भरपूर प्रयास कर रहा है और यह भी संभव है कि भविष्य में चीन अपने विचारों के प्रसार हेतु संयुक्त राष्ट्र जैसे अंतर्राष्ट्रीय मंचों का प्रयोग करे।

संयुक्त राष्ट्र और चीन

  • बीते कुछ दशकों में संयुक्त राष्ट्र के लिये चीन का समर्थन काफी तेज़ी से बढ़ा है, जबकि इससे पूर्व चीन UN में सक्रिय भूमिका निभाने से काफी हद कतराता था।
  • यदि वर्तमान में UN में चीन की स्थिति पर नज़र डालें तो ज्ञात होता है कि वह संयुक्त राष्ट्र के नियमित बजट में दूसरा सबसे बड़ा योगदानकर्त्ता है।
  • साथ ही वह शांति व्यवस्था के बजट में भी दूसरा सबसे बड़ा योगदानकर्त्ता है और सुरक्षा परिषद के किसी भी अन्य स्थायी सदस्य की तुलना में शांति अभियानों के लिये सर्वाधिक कर्मी प्रदान करता है। यही योगदान चीन को वैश्विक स्तर पर राजनयिक और राजनीतिक प्रभाव डालने में सक्षम बनाते हैं।

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य के रूप में चीन

  • संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में पाँच स्थायी सदस्य- चीन, फ्राँस, रूस, यूनाइटेड किंगडम और यूनाइटेड स्टेट तथा 10 अस्थायी सदस्य हैं।
  • UNSC के सभी पाँच स्थायी सदस्यों को वीटो पॉवर दी गई है, जो यकीनन संयुक्त राष्ट्र के भीतर सबसे महत्त्वपूर्ण राजनीतिक उपकरण है।
  • संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में वीटो का प्रयोग बहुत ही कम देखने को मिलता है, परंतु ऐसे कई उदाहरण हैं जहाँ देशों ने अपने राजनीतिक अथवा राजनयिक हितों को साधने के लिये वीटो शक्ति का प्रयोग किया है।
    • उदाहरण के लिये चीन ने कई बार मसूद अज़हर के मुद्दे पर अपनी वीटो शक्ति का प्रयोग किया है।
  • उल्लेखनीय है कि चीन ने अब तक केवल 12 बार ही अपने वीटो विशेषाधिकार का प्रयोग किया है, जो कि किसी अन्य स्थायी सदस्य की तुलना में काफी कम है।
    • चीन की तुलना में अमेरिका और रूस ने वीटो विशेषाधिकार का क्रमशः 80 और 34 बार प्रयोग किया है।

संयुक्त राष्ट्र में चीन का बढ़ता प्रभाव

  • चाहे संयुक्त राष्ट्र की विशेष एजेंसियों के माध्यम से हो या संयुक्त राष्ट्र की शांति सेना के माध्यम से, चीन हर प्रकार से विभिन्न बहुपक्षीय मंचों पर अमेरिका द्वारा छोड़े गए रिक्त स्थान को भरने के लिये स्वयं को एक विकल्प के रूप में प्रस्तुत करने का भरसक प्रयास कर रहा है।
  • संयुक्त राष्ट्र में भारत की पहुँच उसके पुराने मुद्दों जैसे- सुरक्षा परिषद के विस्तार तक ही सीमित है, जबकि इस नीति के विपरीत चीन संयुक्त राष्ट्र में विभिन्न प्रमुख पदों पर अपने प्रभाव को बढ़ाने का प्रयास कर रहा है।
  • इसके अलावा चीन का उद्देश्य शांति अभियानों में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाना है।
  • कई जानकार मानते हैं कि बीजिंग अपनी विचारधारा को फैलाने के लिये सक्रिय रूप से संयुक्त राष्ट्र के मंच का उपयोग करने की कोशिश कर रहा है।
  • चीन ने पिछले एक दशक में संयुक्त राष्ट्र में अपने मौद्रिक योगदान को भी पाँच गुना तक बढ़ा दिया है।
  • जहाँ एक ओर अमेरिकी राष्ट्रपति व्यापार युद्ध और बहुपक्षीय समझौतों को समाप्त करने में व्यस्त हैं, वहीं दूसरी ओर चीन स्वयं को ‘बहुपक्षवाद के चैंपियन’ (Champion of Multilateralism) के रूप में प्रस्तुत करने में लगा हुआ है।
  • अपने प्रभाव में वृद्धि के परिणामस्वरूप चीन, संयुक्त राष्ट्र की एक-चौथाई से अधिक विशिष्ट एजेंसियों में कम्युनिस्ट पार्टी के पदाधिकारियों को बिठाने में सफल हो पाया है।
    • ध्यातव्य है कि इन एजेंसियों में खाद्य और कृषि संगठन, औद्योगिक विकास संगठन, अंतर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन प्रशासन और अंतर्राष्ट्रीय दूरसंचार संघ शामिल हैं।

मानवाधिकार का प्रश्न

  • मानवाधिकार के मुद्दे पर चीन का मानना है कि प्रत्येक देश अपनी परिस्थितियों के संदर्भ में मानवाधिकार संरक्षण के नियम स्वयं तय कर सकता है। चीन संयुक्त राष्ट्र में अपने बढ़ते प्रभाव से अपनी इस नीति को प्रसारित करने को उत्सुक है।
  • वर्ष 2017 में ह्यूमन राइट्स वॉच नामक एक गैर-सरकारी संगठन ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार विशेषज्ञों और कर्मचारियों को नियंत्रित करने के चीन के प्रयासों को उजागर किया था।

अमेरिकी संरक्षणवाद

द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात् अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र के माध्यम से विश्व में अपना प्रभाव बढ़ाने का प्रयास किया। इसी नीति के अंतर्गत उदारवाद पर बल दिया गया। लेकिन अमेरिका में ट्रंप सरकार के आगमन के बाद अमेरिकी नीति में परिवर्तन आया है तथा अमेरिका स्वयं को अंतर्राष्ट्रीय मामलों से अलग कर रहा है। इसी नीति के तहत अमेरिका संयुक्त राष्ट्र के विभिन्न मामलों के संदर्भ में स्वयं के प्रभाव को धीरे-धीरे सीमित कर रहा है। वर्तमान में चीन की अर्थव्यवस्था तेज़ी से विकास कर रही है, साथ ही वह विश्व में अपनी नीतियों और प्रभावों में वृद्धि चाहता है, इसलिये अमेरिका द्वारा रिक्त स्थान को भरकर चीन स्वयं को स्थापित करने का प्रयास कर रहा है।

चीन को लाभ

शीत युद्ध के दौरान तथा उसके बाद भी संयुक्त राष्ट्र एवं उसकी संस्थाओं का उपयोग पश्चिमी देशों ने आर्थिक क्षेत्र में उदारीकरण को प्रचारित-प्रसारित करने के लिये किया। अब चीन अपनी नीतियों जिसमें बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव प्रमुख रूप से शामिल है के प्रसार में संयुक्त राष्ट्र का उपयोग करना चाहता है। संयुक्त राष्ट्र के झंडे के नीचे BRI को अमली जामा पहनाना अधिक आसान होगा। जो देश चीन की नीतियों का विरोध कर रहे हैं, उन्हें सार्वभौमिक सहमति के नाम पर दरकिनार किया जा सकेगा। इस प्रकार चीन की अर्थव्यवस्था जो कि निर्यात आधारित है, लंबे समय तक चीन को लाभ पहुँचती रहेगी।

भारत पर प्रभाव

चीन भारत का पड़ोसी है तथा दोनों देश आर्थिक वृद्धि के समान दौर से गुज़र रहे हैं। इससे भारत और चीन के मध्य विभिन्न क्षेत्रों में आर्थिक हितों के लिये प्रतिस्पर्द्धा के कारण टकराव की स्थिति रहती है। यदि संयुक्त राष्ट्र में चीन का दबदबा बढ़ता है तो यह भारतीय हितों को कई मोर्चों पर प्रभावित कर सकता है। मसूद अजहर के मामले में देखा गया है कि किस प्रकार चीन ने वीटो का दुरुपयोग किया। इसी प्रकार चीन BRI के क्रियान्वयन में भी भारतीय हितों को दरकिनार कर सकता है। ध्यातव्य है कि चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC), जो की बेल्ट एवं रोड पहल का हिस्सा है, POK से गुजरता है। इस तरह न सिर्फ यह भारत को आर्थिक रूप से चोट पहुँचाएगा बल्कि भारत की संप्रभुता और अखंडता पर भी आघात करेगा। इसके अतिरिक्त भारत भी संयुक्त राष्ट्र के विभिन्न संगठनों में स्वयं का प्रतिनिधित्त्व चाहता है, साथ ही इस संगठन में सुधार की भी मांग करता है। यदि चीन का प्रभाव निरंतर इसी प्रकार संयुक्त राष्ट्र में बढ़ता रहा तो यह भारत के न सिर्फ वर्तमान हितों बल्कि दीर्घकाल में महत्त्व रखने वाले हितों को भी नकारात्मक रूप से प्रभावित करेगा।

निष्कर्ष

संयुक्त राष्ट्र एक बहुपक्षीय संगठन है जिसमें कुछ छोटे देशों को छोड़कर विश्व के सभी देश शामिल हैं। साथ ही यह अंतर्राष्ट्रीय मामलों में कहीं-न-कहीं अभी भी महत्त्व रखता है। इस प्रकार के संगठन में किसी भी एक देश का अत्यधिक प्रभाव इस संगठन के महत्त्व तथा इसके मूल्यों दोनों को खतरे में डाल सकता है। अतीत में पश्चिमी देशों पर इसका प्रभाव था, जिसको सदैव अनुचित ठहराया गया, वर्तमान में चीन का बढ़ता प्रभाव भी इसी श्रेणी में आता है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के देशों तथा अन्य बड़े देशों पर यह ज़िम्मेदारी है कि वह चीन के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करें, साथ ही संयुक्त राष्ट्र को एक तटस्थ एवं भेदभाव रहित संगठन के रूप में स्थापित करें। विभिन्न देशों के प्रयासों के बाद ही इस संगठन के लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा की जा सकती है तथा चीन द्वारा अन्य देशों के अनुचित शोषण से उनका बचाव किया जा सकता है।

प्रश्न: संयुक्त राष्ट्र संगठन पर चीन के बढ़ते प्रभाव के परिप्रेक्ष्य में इस संगठन की प्रासंगिकता का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये।