चाबहार बंदरगाह में निवेश पर छूट के मायने | 27 Nov 2018
संदर्भ
अफगानिस्तान में गृहयुद्ध की समाप्ति के लिये मॉस्को में आयोजित महत्त्वपूर्ण वार्ता प्रारंभ होने से दो दिन पूर्व ही अमेरिकी सरकार ने ईरान के समुद्री बंदरगाह, चाबहार (Chabahar) में भारतीय निवेश पर अपनी मंज़ूरी देते हुए छूट की घोषणा की। कुछ विचारकों का मानना है कि यह सामुद्रिक बंदरगाह पूरी तरह से अमेरिका के अनुकूल है क्योंकि चीन की बजाय भारत, ईरानी बंदरगाह का विकास कर रहा है, जबकि कुछ अन्य विचारकों का यह भी मानना है कि अमेरिकी प्रशासन द्वारा ईरानी बंदरगाह को असामान्य छूट देने के पीछे की मुख्य वज़ह भारत द्वारा ईरान में अपने निवेश को बचाने और अफगानिस्तान तथा मध्य एशिया से जोड़ने वाली अपनी इस नई नीति को आक्रामक लॉबिंग के साथ प्रस्तुत करना था।
चाबहार बंदरगाह के बारे में
- भारत ने मई 2016 में ईरान और अफगानिस्तान के साथ एक त्रिपक्षीय कनेक्टिविटी सौदे पर हस्ताक्षर किये जो पाकिस्तान को बाईपास कर और यूरोप तथा मध्य एशिया तक पहुँचने की अनुमति देता है।
- इस कनेक्टिविटी समझौते का केंद्र चाबहार बंदरगाह है, जिसका प्रबंधन 18 महीने तक भारत को दिया गया था।
- इसके माध्यम से भारत के लिये समुद्री सड़क मार्ग द्वारा अफगानिस्तान पहुँचने का मार्ग प्रशस्त हो जाएगा और इस स्थान तक पहुँचने के लिये पाकिस्तान के रास्ते की आवश्यकता भी नहीं होगी।
- चाबहार बंदरगाह ईरान के अर्द्ध-रेगिस्तानी मकरान तट पर स्थित है, जो अफगानिस्तान के लिये समुद्र के सबसे छोटे मार्ग का प्रतिनिधित्त्व करता है।
- चाबहार ईरान में सिस्तान और बलूचिस्तान प्रांत का एक शहर है तथा यह एक मुक्त बंदरगाह है और ओमान की खाड़ी के किनारे स्थित है।
- यहाँ मौसम सामान्य रहता है और हिंद महासागर से गुजरने वाले समुद्री रास्तों तक भी यहाँ होकर पहुँचना बहुत आसान है।
प्रतिबंधों में छूट से विश्वव्यापी असर
- अफगान व्यापारियों के लिये यह ईरान के बंदार अब्बास बंदरगाह (Bandar Abbas) से 700 किमी की दूरी को कम करता है और कराची स्थित पाकिस्तान के बंदरगाह से करीब 1,000 किमी की दूरी पर स्थित है।
- उल्लेखनीय है कि चाबहार फ्री जोन ऑथोरिटी (Chabahar Free Zone authority) द्वारा पंजीकृत 500 कंपनियों की कुल संख्या में से 165 अफगान कंपनियाँ हैं।
- दूरी की गणना से पता चलता है कि अफगान व्यवसायी यदि चाबहार का उपयोग करते हैं तो वे अपनी शिपिंग लागत का 50 प्रतिशत बचाएंगे।
- इस बंदरगाह के लिये अमेरिकी छूट के बाद अफगान व्यवसायी इतने उत्साहित हैं कि वे अपनी खुद की शिपिंग लाइन लॉन्च करने की योजना बना रहे हैं।
- इस बंदरगाह से ईरानी सरकार को P5 + 1(अमेरिका, फ्राँस, जर्मनी, ब्रिटेन, रूस और चीन) परमाणु समझौते से अमेरिका के अलग होने के बाद अमेरिकी सरकार द्वारा लगाए गए कड़े प्रतिबंधों से निपटने के लिये और विकल्प मिलता है।
- हालाँकि, यह स्पष्ट नहीं है कि भारत ईरानी कंपनियों के साथ कैसे काम करेगा जोकि पहले से ही अमेरिका द्वारा स्वीकृत आतंकी सूची में शामिल हैं।
- इसके साथ ही भारत सरकार अपने बुनियादी ढाँचे को वित्तपोषित करने में प्रमुख बैंकिंग बाधाओं का सामना कर रही है, लेकिन यह तेल की खरीद के लिये भुगतान के साथ-साथ बंदरगाह की प्रगति को तेज़ करने हेतु रुपए-रियाल व्यवस्था के साथ अन्वेषण करने की कोशिश कर रही है।
- गौरतलब है कि अमेरिकी प्रतिबंध स्विफ्ट (SWIFT) संचार प्रणालियों के उपयोग को रोक देता, जो धनराशि के अंतर बैंक हस्तांतरण की अनुमति देता है। जिससे संपूर्ण व्यापर बाधित हो जाता।
स्विफ्ट (SWIFT)
- यह एक वैश्विक सदस्य-स्वामित्व वाली दुनिया की अग्रणी सुरक्षित वित्तीय सेवा प्रदाता है
- यह वैश्विक समुदाय को क्षेत्रीय और स्थानीय स्तर पर बाज़ार की क्रियाओं को आकार देने, मानकों को परिभाषित करने और पारस्परिक हित या चिंता के मुद्दों पर बहस करने के लिये एक मंच प्रदान करता है।
- इसका मुख्यालय बेल्जियम में है।
- अमेरिका के लिये यह स्थान रणनीतिक रूप से बहुत अहम है क्योंकि यहाँ से वह रूस और ईरान जैसे शत्रुओं पर नज़र रख सकता है।
भारत हेतु चाबहार का महत्त्व
- मध्ययुगीन यात्री अल-बरूनी द्वारा चाबहार को भारत का प्रवेश द्वार (मध्य एशिया से) कहा गया था। ज्ञात हो कि यहाँ से पाकिस्तान का ग्वादर बंदरगाह भी यहाँ से समीप ही है, जिसके विकास के लिये चीन द्वारा बड़े स्तर पर निवेश किया जा रहा है।
- चाबहार, भारत के लिये अफगानिस्तान और मध्य एशिया के द्वार खोल सकता है और यह बंदरगाह एशिया, अफ्रीका तथा यूरोप को जोड़ने के लिहाज़ से सर्वश्रेष्ठ जगह है।
- भारत वर्ष 2003 से ही इस बंदरगाह के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने के प्रति अपनी रुचि दिखा रहा है। लेकिन ईरान पर पश्चिमी प्रतिबंधों और कुछ हद तक ईरानी नेतृत्व की दुविधा की वज़ह से इसके विकास की गति धीमी रही। लेकिन, पिछले तीन वर्षों में काफी प्रगति भी हुई है।
- चाबहार कई मायनों में ग्वादर से बेहतर है, क्योंकि:
- चाबहार गहरे पानी में स्थित बंदरगाह है और यह ज़मीन के साथ मुख्य भू-भाग से भी जुड़ा हुआ है, जहाँ सामान उतारने-चढ़ाने का कोई शुल्क नहीं लगता।
- यहाँ मौसम सामान्य रहता है और हिंद महासागर से गुजरने वाले समुद्री रास्तों तक पहुँचना भी यहाँ बहुत आसान है।
- चाबहार बंदरगाह पर परिचालन आरंभ होने के साथ ही अफगानिस्तान को भारत से व्यापार करने के लिये एक और रास्ता मिल जाएगा।
- अभी तक पाकिस्तान के रास्ते भारत-अफगानिस्तान के बीच व्यापार होता है, लेकिन पाकिस्तान इसमें रोड़े अटकाता रहता है।
चाबहार में किये जाने वाले निवेश से संबंधित आशंकाएँ
- चाबहार में किये जाने वाले निवेश भारत के लिये वित्तीय तथा रणनीतिक दोनों प्रकार के निवेश हैं। बीते वर्षों में चाबहार पर निवेश और विकास को लेकर भारत तथा ईरान के बीच संबंधों को मज़बूत करने में तेज़ी आई है।
- यदि चाबहार परियोजना की कमी धीमी पड़ती है तो इसके परिणामस्वरूप ट्रंप प्रशासन के निवेदन पर शुरू की गई अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण की प्रक्रिया में भारत द्वारा दी जाने वाली 1 बिलियन डॉलर की सहायता तथा 100 छोटी परियोजनाओं पर किया जाने वाला कार्य भी प्रभावित होगा।
- चाबहार भारत के हित में होने के साथ-साथ इसलिये भी महत्त्वपूर्ण है क्योंकि ईरान चीन जैसे अन्य देशों को भी यह बंदरगाह प्रस्तावित कर रहा है।
- ईरान को लक्ष्य बनाने के लिये ट्रंप की चाल के साथ ही इसके क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्वी सऊदी अरब और इज़राइल इस क्षेत्र को अस्थिर कर सकते हैं, जहाँ 8 मिलियन से अधिक भारतीय प्रवासी रहते हैं और काम करते हैं।
- पश्चिम एशिया में सैन्य तनाव ने अतीत में भी भारत को अपने नागरिकों को वहाँ से हटाने के लिये विवश किया है, हालाँकि ऐसा करने के लिये भारत की क्षमता सीमित है। अतः पश्चिम एशिया में शांति कायम रखने में भारत की इस बंदरगाह के माध्यम से अहम भूमिका हो सकती है।
- इसके अतिरिक्त यह बंदरगाह भारत और ईरान दोनों देशों के बीच संबंधों को स्थिर तथा मज़बूत बनाए रखने के लिये रणनीतिक महत्त्व रखता है।
- कई विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार को रुपया-रियाल व्यापार प्रक्रिया तथा दोनों देशों के बीच धन के प्रवाह तथा आय को बनाए रखने के लिये भारत में ईरानी बैंकों की स्थापना जैसे विकल्पों की तरफ ध्यान देना चाहिये।
निष्कर्ष
- व्यापारिक और कूटनीतिक दोनों ही दृष्टि से चाबहार का अपना महत्त्व है। गौरतलब है कि ईरान-इराक युद्ध के समय ईरानी सरकार ने इस बंदरगाह को अपने समुद्री संसाधनों को सुरक्षित रखने के लिये इस्तेमाल किया था।
- हालाँकि इन बातों के बावजूद भारत में एक तबका है जो मानता है कि तालिबान या किसी अन्य चरमपंथी समूह ने अगर काबुल पर कब्ज़ा कर लिया तो चाबहार में भारत का पूरा निवेश डूब जाएगा। लेकिन, इन आशंकाओं के बावजूद हमें चाबहार की अहमियत तो पहचाननी ही होगी।
- यह अफगानिस्तान तक सामान पहुँचाने के लिये सबसे बढ़िया रास्ता है, यहाँ वे तमाम सुविधाएँ हैं, जिनके द्वारा अफगानिस्तान ही नहीं बल्कि ईरान में भी आसानी से व्यावसायिक पहुँच बनाई जा सकती है।
- उपर्युक्त सभी आशंकाओं और संभावनाओं से बढ़कर यह बंदरगाह भारत को पश्चिमी एशिया की अस्थिरता में संतुलन स्थापित करने और परिणामस्वरूप अपने मानवीय चेहरे को विश्व पटल पर पहचान दिलाने में सहायक साबित हो सकता है।
- अतः स्पष्ट है कि वर्तमान निवेश संबंधी छूट के पीछे अमेरिका का स्वयं का हित (रणनीतिक और व्यावसायिक) सबसे अहम वजह तो है ही साथ ही भारत की विश्व परिदृश्य में बढ़ती प्रभावी भूमिका भी किसी से छिपी नहीं है।