भारतीय राजनीति
CBI का संकुचित होता क्षेत्राधिकार
- 24 Sep 2022
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यह एडिटोरियल 21/09/2022 को ‘हिंदुस्तान टाइम्स’ में प्रकाशित “What CBI’s shrinking jurisdiction implies” लेख पर आधारित है। इसमें केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो से संबंधित समस्याओं और इनके समाधान के बारे में चर्चा की गई है।
संदर्भ:
केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (Central Bureau of Investigation- CBI) भारत सरकार की एक संविधानेतर बहु-विषयक जाँच एजेंसी है, जो आधिकारिक तौर पर इंटरपोल के साथ संपर्क के लिये नामित एकल एजेंसी भी है।
CBI को केंद्र सरकार के कर्मचारियों के भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी और कदाचार के मामलों की जाँच करने और राज्य सरकार के अनुरोध पर सार्वजनिक महत्त्व के किसी भी मामले का अन्वेषण करने का अधिदेश प्राप्त है।
वर्तमान में CBI पुनः चर्चा के केंद्र में है जहाँ विपक्षी दल आरोप लगा रहे हैं कि यह संघीय एजेंसी राजनीतिक कारणों से उन्हें निशाना बना रही है। अभी तक 9 भारतीय राज्यों ने अपने-अपने क्षेत्राधिकार में अभियोजन के लिये CBI को प्राप्त शक्ति से सहमति वापस ले ली है। भारत के लगभग एक तिहाई राज्यों द्वारा CBI पर अविश्वास सहकारी संघवाद की कमज़ोर भावना को रेखांकित करता है।
भारत में CBI की स्थापना की पृष्ठभूमि
- वर्ष 1941 में भारत सरकार ने विशेष पुलिस स्थापना (Special Police Establishment- SPE) का गठन किया था जो केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो का अग्रदूत निकाय था।
- द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान SPE को भारतीय युद्ध और आपूर्ति विभाग के कार्यकरण में व्याप्त रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार के आरोपों की जाँच का कार्य सौंपा गया था।
- द्वितीय विश्व युद्ध के बाद केंद्र सरकार के कर्मचारियों द्वारा रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार के आरोपों की जाँच के लिये एक संघीय निकाय की आवश्यकता महसूस की गई।
- परिणामस्वरूप, वर्ष 1946 में दिल्ली विशेष पुलिस स्थापन अधिनियम (Delhi Special Police Establishment Act) लाया गया।
- इसके साथ ही, SPE के पर्यवेक्षण का दायित्व गृह विभाग में स्थानांतरित कर दिया गया और इसकी शक्तियों और क्षेत्राधिकार का विस्तार करते हुए भारत सरकार के सभी विभागों को इसके दायरे में कर दिया गया।
- वर्ष 1963 में गृह मंत्रालय ने विशेष पुलिस स्थापन का नाम बदलकर केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) कर दिया।
- CBI की स्थापना भ्रष्टाचार की रोकथाम पर संथानम समिति’ 1962-1964) की सिफारिशों पर की गई।
- वर्तमान में CBI भारत सरकार के कार्मिक, पेंशन और लोक शिकायत मंत्रालय के अधीन कार्मिक विभाग के अंतर्गत कार्य करती है।
CBI के प्रमुख कार्य
- यह भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम (Prevention of Corruption Act)के तहत केंद्र सरकार के कर्मचारियों के भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी और कदाचार के मामलों की जाँच करती है। इसके क्षेत्राधिकार में भारत के सरकारी विभाग, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम, निगम एवं निकाय और भारत सरकार के स्वामित्व या नियंत्रण में कार्यान्वित अन्य निकाय शामिल हैं।
- यह राजकोषीय और आर्थिक कानूनों के उल्लंघन से संबंधित मामलों (निर्यात एवं आयात नियंत्रण, सीमा शुल्क एवं केंद्रीय उत्पाद शुल्क, आयकर विदेशी मुद्रा विनियमन आदि) की भी जाँच करती है।
- उदाहरण: नकली भारतीय नोट, बैंक धोखाधड़ी, आयात-निर्यात और विदेशी विनिमय उल्लंघन आदि।
- यह राज्य सरकार के अनुरोध पर भी सार्वजनिक महत्त्व के किसी मामले की जाँच कर सकती है। केंद्रशासित प्रदेशों में वह स्वतः संज्ञान से भी अपराधों की जाँच कर सकती है।
- यह अपराध के आँकड़ों का रखरखाव करती है और आपराधिक सूचनाओं का प्रसार करती है।
केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो से संबंधित वर्तमान मुद्दे
- CBI बनाम राज्य पुलिस: विशेष पुलिस स्थापन (CBI का एक प्रभाग) राज्य पुलिस बलों के साथ अपराधों की जाँच और अभियोजन की समवर्ती शक्तियाँ साझा करता है, जिससे कभी-कभी जाँच के दोहराव और ओवरलैपिंग की स्थिति भी बनती है।
- संकीर्ण जाँच क्षेत्र: राज्य विशेष में CBI का अन्वेषण राज्य सरकार के अनुमोदन के अधीन है।
- राज्य में सत्तारूढ़ दल कभी-कभी वास्तविक तो कई बार तुच्छ आधारों पर CBI को मामलों की जाँच करने की अनुमति देने से इनकार कर देते हैं जिससे उनका अन्वेषण क्षेत्राधिकार सीमित होता है।
- अन्य कानून प्रवर्तन एजेंसियों के साथ टकराहट: ऐसे उदाहरण भी मिलते हैं जब CBI को इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB), आयकर प्राधिकरण (ITA), प्रवर्तन निदेशालय (ED) जैसे अन्य कानून प्रवर्तन एजेंसियों के साथ टकराहट का सामना करना पड़ा।
- ये टकराहट CBI के पास अखिल भारतीय आधार पर कार्यकरण की सीमित कानूनी शक्तियों के कारण उत्पन्न हुए।
- राजनीतिक हस्तक्षेप: भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने CBI के कार्यकरण में अत्यधिक राजनीतिक हस्तक्षेप के लिये इसकी आलोचना की है और इसे "अपने मालिक की आवाज़ में बोलने वाला पिंजराबंद तोता" कहा है।
- सरकारों ने प्रायः इसका इस्तेमाल अपने गलत कार्यों को छिपाने, गठबंधन सहयोगियों पर दबाव बनाए रखने और राजनीतिक विरोधियों पर लगाम रखने के लिये किया है।
- वर्ष 2019 में भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश ने ‘राजनीतिक रूप से संवेदनशील’ मामलों में CBI की भूमिका पर सवाल उठाया था और यह राय प्रकट की थी कि ‘संस्थागत आकांक्षाओं और शासन की राजनीति के बीच गहरी असंगतता’ नज़र आती है।
आगे की राह
- वैधानिक प्रावधानों का समावेशन: CBI को सर्वप्रथम एक समर्पित और पृथक कानून की आवश्यकता है जो इसे स्पष्ट वैधानिक समर्थन प्रदान कर सके और CBI की कानूनी स्थिति के बारे में मौजूद चिंताओं को दूर कर सके।
- एक नया CBI अधिनियम इस तरह से प्रख्यापित किया जाना चाहिये कि यह CBI की स्वायत्तता को तो सुनिश्चित करे ही, साथ ही पर्यवेक्षण की गुणवत्ता में भी सुधार लाए।
- समकालीन राजनीतिक से रोधन: सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि CBI जैसी एजेंसियों को बाहरी राजनीतिक प्रभावों के विरुद्ध स्थायी रोधन या सुरक्षा (insulation) प्रदान करने की आवश्यकता है ताकि वे विधि के शासन के उचित कार्यान्वयन के लिये उपयुक्त तरीके से अपने कर्तव्यों का निर्वहन कर सकें।
- CBI का आंतरिक पुनरोद्धार: CBI के प्रभावी ढंग से कार्य करने के लिये न केवल बाह्य कारकों, बल्कि आंतरिक कारकों (जैसे आचार संहिता, अधिकारियों का निश्चित कार्यकाल और विभिन्न विभागों के बीच आम सहमति निर्माण) को भी ध्यान में रखना होगा ताकि एजेंसी की पवित्रता, विश्वसनीयता, स्थिरता और स्थायित्व बना रहे।
- संसदीय स्थायी समिति की सिफारिशें: CBI के कार्यकरण पर कार्मिक, लोक शिकायत, कानून और न्याय विभाग से संबंधित संसदीय स्थायी समिति की 24वीं रिपोर्ट में निम्नलिखित प्रमुख बातों की सिफारिश की गई है:
- अवसंरचना निवेश में सुधार लाया जाए
- मानव संसाधन को सुदृढ़ करने के लिये CBI की शक्ति को बढ़ाया जाए
- CBI के क्षेत्राधिकार का विस्तार हो (संघ, राज्य और समवर्ती सूचियों के विषय में)।
अभ्यास प्रश्न: ‘‘संस्थागत आकांक्षाओं और शासन की राजनीति के बीच असंगतता के कारण CBI में हालिया अविश्वास सहकारी संघवाद की कमज़ोर भावना को रेखांकित करता है।’’ टिप्पणी कीजिये।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रश्न: एक विशेष राज्य के भीतर प्राथमिकी दर्ज करने और जांँच करने के संबंध में केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) के अधिकार क्षेत्र पर विभिन्न राज्यों द्वारा सवाल उठाए जा रहे हैं। हालांँकि, राज्यों की CBI से सहमति रोकने की शक्ति पूर्ण नहीं है। भारत के संघीय स्वरूप के विशेष संदर्भ में स्पष्ट कीजिये। (2021) |