अंतर्राष्ट्रीय संबंध
स्वच्छ वायु के लिये कारपूल
- 18 Apr 2017
- 7 min read
संदर्भ
भारत में वायु प्रदूषण से प्रतिवर्ष कम से कम 10 लाख मौतें होती हैं| इनमें से केवल दिल्ली में ही वायु प्रदूषण से प्रतिवर्ष 30,000 लोगों की मृत्यु हो जाती हैं| वायु प्रदुषण के मुख्य कारणों में सड़कों पर बढ़ता ट्रैफिक और फैक्ट्री से निकलने वाले प्रदूषक तथा फसल एवं कचरे का जलना इत्यादि शामिल होते हैं|
प्रमुख बिंदु
- ध्यातव्य है कि वर्ष 2016 के अंत में दिल्ली सरकार सरकार ने वायु प्रदूषण की समस्या से निपटने के लिये कई उपाय किये (जैसे - 10 दिनों तक तापीय संयंत्रों को बंद रखा गया तथा अस्थायी रूप से होने वाले निर्माण कार्यों पर रोक लगा दी गई)| परन्तु, इन सबके बावजूद भी वायु प्रदूषण में निरंतर वृद्धि दर्ज़ की गई|
- विदित हो कि ये सभी उपाय अस्थायी थे, जिनका उद्देश्य उन दिनों शहर में प्रतिदिन के वायु प्रदूषण से निपटना था|
- वर्ष 2016 के प्रथम छह माह के दौरान दिल्ली सरकार द्वारा लागू की गई सम-विषम योजना (वाहनों के प्रयोग के संबंध में) अत्यधिक महत्त्वाकांक्षी कदम के रूप में दृष्टिगत हुई| हालाँकि, इस पहल के बावजूद भी सम-विषम योजना के पहले व दूसरे चरण में शहर का सामान्य वायु प्रदूषण (PM 2.5) क्रमशः 15% एवं 23% रहा|
- इस प्रकार वायु प्रदूषण को समाप्त करने की मौजूदा नीतियों के संबंध में कुछ चिंताएँ उभर कर सामने आई| स्पष्ट है कि सरकार को वायु प्रदूषण की समस्या को दूर करने के लिये गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है|
हॉट लेन (HOT lanes) का निर्माण
- इसका तात्पर्य यह है कि एक से अधिक व्यक्ति को ले जाने वाली कार के लिये चुनिंदा सड़कों और राजमार्गों में एक या अधिक लेन को संरक्षित करना|
- शेष लेनों में एक व्यक्ति को ले जाने वाले वाहनों प्रतिबंधित होंगे, जिसके कारण हॉट लेनों में अन्य लेनों की तुलना में वाहनों की गति तीव्र होगी (इनमें गति की सीमा में भी छूट प्रदान की जाएगी)|
- यद्यपि इस विचार की शुरुआत अमेरिका में वर्ष 1969 में हुई थी, तथापि चीन और इंडोनेशिया जैसे देशों में आज भी इसका प्रभावी क्रियान्वयन किया जाता है|
- इस विचार की सफलता का अंदाज़ा अमेरिका की 2005 की रिपोर्ट से लगाया जा सकता है| इस रिपोर्ट में यह खुलासा किया गया था कि सुबह 9.30 से शाम 6.30 के मध्य लोगों को बैठाने की उच्च क्षमता वाले (hov3+) वाहनों युक्त दो लेनों की सुविधा के कारण 31,700 लोगों ने 8,600 वाहनों (प्रति वाहन 3.7 व्यक्ति) में यात्रा की| जबकि चार सामान्य उद्देश्य के लेनों में 23,500 लोगों ने 21,300 वाहनों (प्रति वाहन 1.1 व्यक्ति) में यात्रा की|
- इसके अतिरिक्त hov लेनों में लगने वाला यात्रा का कुल समय 29 मिनट था, जबकि सामान्य उद्देश्य के लेन में लगने वाला समय 64 मिनट था|
भारतीय परिदृश्य
- हालाँकि भारत में इस विचार के अनुपालन की अभी कल्पना भी नहीं की जा रही है|
- इसमें एक बड़ा सांस्कृतिक मुद्दा भी शामिल है| भारत में नीतियों के क्रियान्वयन की मंद गति को देखते हुए हॉट और hov लेनों का क्रियान्वयन एक दीर्घावधिक विचार प्रतीत होता है|
- जैसा ही हम सभी जानते हैं कि हॉट लेन के प्रभावी क्रियान्वयन से ड्राइविंग में एक अनुशासित संस्कृति का विकास होगा| अत: इसके क्रियान्वयन के लिये उचित विचार-विमर्श की आवश्यकता है|
अन्य महत्त्वपूर्ण बिंदु
- इस योजना का अनुपालन करने से पूर्व एवं दौरान निम्नलिखित बिन्दुओं पर ध्यान देना अत्यंत आवश्यक है-
• इसे दिन के किन घंटों में लागू किया जाना चाहिये|
• लाभ प्राप्त के लिये न्यूनतम कितने यात्रियों की आवश्यकता होगी|
• हॉट लेन चालाक निम्न सड़क टोल का भुगतान करेंगे अथवा उन्हें इससे पूरी तरह छूट प्राप्त होगी|
• यदि हॉट लेनों का उल्लंघन करने वालों पर कुल शुल्क आरोपित किया जाए तथा नीतियों को कठोरता से लागू किया जाए तो यात्रियों को कारपूलिंग के लिये प्रोत्साहित कर वायु प्रदूषण को कम किया जा सकता है|
- भारत जैसे देश में जहाँ सभी कारें औसत रूप से तीन से चार यात्रियों को ले जाती हैं, वहां ऐसी हॉट और hov परियोजनाओं को लागू करने की प्राथमिकता दी जानी चाहिये जो तीन से अधिक यात्रियों को ले जाने में सक्षम हो|
- इन लेनों को पूर्णतः शुल्क मुक्त करने से उन पर लगने वाला टोल अन्य लेनों के मुकाबले अपेक्षाकृत कम होगा|
- कार में बैठने वालों की संख्या के आधार पर भिन्न-भिन्न टोल प्रणाली और वाहनों के प्रदूषण की आधुनिक जाँच इस समय भारत की आवश्यकता है|
- दिल्ली जैसे कई महानगरों में चालाकों को अपने साथ एक वैद्य प्रदूषण नियंत्रण प्रमाणपत्र ले के चलना चाहिये| जो कि भारत स्टेज के मानदंडों पर आधारित होना चाहिये| ध्यातव्य है कि भारत स्टेज मानदंड यूरोपीय नियामकों पर आधारित हैं|
निष्कर्ष
स्पष्ट है कि सरकार को वायु प्रदूषण को कम करने के इस विकल्प को संज्ञान में लेना चाहिये और कम प्रदूषणकारी व अधिक यात्री वहन क्षमता वाले वाहनों के लिये भिन्न-भिन्न टोल का निर्धारण करना चाहिये| इसके अतिरिक्त इलेक्ट्रिक कारों और बैटरी चालित वाहनों को टोल से पूर्णतः मुक्त किया जाना चाहिये| इसका कारण यह है कि यह प्रक्रिया न केवल लोगों को निरन्तर अपने वाहनों के प्रदूषण की जाँच करने के लिये प्रोत्साहित करेगी बल्कि वायु प्रदूषण की समस्या का समाधान भी उपलब्ध कम कराएगी|