अंतर्राष्ट्रीय संबंध
क्या भारत राजस्व विकेंद्रीकरण पर नियंत्रण कर पाएगा?
- 12 Apr 2017
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संदर्भ
जब जी.एस.टी. (Goods and Services Tax) की बात की जाती है तो सरकार का सदैव एक ही उत्तर रहता है कि यह संघीय (federal) है| हाल ही में वित्त मंत्री द्वारा एकबार फिर से संसद को इस विषय में सूचित किया गया है कि जी.एस.टी. परिषद् (GST COUNCIL) भारत का पहला वास्तविक संघीय निकाय है, जहाँ ‘कर’ के संबंध में निर्णय केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा मिलकर लिया जाएगा|
महत्त्वपूर्ण बिंदु
- ध्यातव्य है कि नई कर व्यवस्था की संपूर्ण संरचना कुछ इस प्रकार से की गई है कि अप्रत्यक्ष कर के सन्दर्भ में केन्द्र और राज्यों के मध्य ‘कर’ का बँटवारा करके राज्यों के राजस्व संग्रह की जिम्मेदारियों को और अधिक बढ़ाया गया है|
- ऐसा इसलिये किया गया है क्योंकि 14वें वित्त आयोग द्वारा राज्यों की ‘करों’ में हिस्सेदारी दर को बढ़ाकर 42% करने की अनुशंसा की गई थी|
- इन बढ़ी हुई विचलन दरों का एक पहलू यह भी है कि पिछले कुछ समय से केंद्र सरकार द्वारा कई मुख्य क्षेत्रों (जैसे-अवसंरचना, स्वास्थ्य और शिक्षा) में किये जाने वाले कुल व्यय में उल्लेखनीय कमी की है|
- परन्तु इस सबमें विवाद यह है कि यदि राज्यों को केंद्र के राजस्व का एक बड़ा हिस्सा प्राप्त होता है तो उन पर उसके व्यय का दबाव भी अधिक होना चाहिये अथवा नहीं|
- हालाँकि यह कहने में जितना आसान प्रतीत हो रहा है वास्तविक रूप में करने में उतना ही कठिन भी होगा| ऐसे में देखना यह होगा कि क्या बढ़ा हुआ विकेंद्रीकरण तथा जी.एस.टी. का अनुपालन भारत उदारवादी देश में कारगर साबित होगा अथवा नहीं?
आई.एम.एफ. के दृष्टिकोण से
- ध्यातव्य है कि हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा प्रकाशित एक लेख में राजस्व विकेंद्रीकरण (fiscal decentralization) के लाभ एवं हानियों का उल्लेख किया गया| हालाँकि इस लेख में कुछ सामान्य क्षेत्रों पर विशेष पर ही बल दिया गया तथापि इसमें भारत के विशिष्ट मामले पर भी प्रकाश डाला गया|
- इस लेख में यह स्पष्ट किया गया है कि राजस्व विकेंद्रीकरण राजस्व अनुशासन को बेहतर तरीके से मज़बूती प्रदान कर सकता है| अत: सरकार को इस दिशा में विशेष रूप से कार्य करने की आवश्यकता है|
- वस्तुतः राजस्व विकेंद्रीकरण के संबंध में विवाद यह है कि सीमित संसाधनों के साथ सार्वजनिक वस्तुएँ उपलब्ध कराने में केंद्र सरकार की तुलना में स्थानीय प्राधिकरणों पर अधिक दबाव रहता है|
- इस लेख में यह भी स्पष्ट किया गया है कि अधिकतर ऐसा होता है कि स्थानीय सरकारें अपने लोगों की आवश्यकताओं और प्राथमिकताओं के विषय में दूसरे लोगों की अपेक्षा अधिक गंभीर होती हैं| जिसका परिणाम यह होता है कि इससे दूसरे लोगों के हित प्रभावित होने की आशंका बढ़ जाती है| जो कि किसी भी देश की अर्थव्यवस्था को एक अस्थिर अवधारणा के केंद्र में ला खड़ा करती है|
- इस लेख के अनुसार, इस समस्या का निपटान करने के किये सरकार को व्यय विकेंद्रीकरण के साथ-साथ राजस्व विकेंद्रीकरण की दिशा में भी गंभीर रूप से विचार करने की आवश्यकता है|
- इस संबंध में 14वें वित्त आयोग और जी.एस.टी. की प्रस्तावित संरचना के मध्य इस पर विशेष रूप से ध्यान दिया जाना चाहिये|
अन्य पक्ष
- राजस्व विकेंद्रीकरण (fiscal decentralization) के लिये आवश्यक प्रथम शर्त लोगों के प्रति जवाबदेहिता का भाव है|
- वस्तुतः एक ऐसे देश में जहाँ प्रत्येक पाँच वर्ष में चुनाव आयोजित किये जाते है तथा जहाँ की जनसँख्या को बुनियादी रूप से आवश्यक अन्य दूसरी चीजों की बजाय शराब, बीफ और नैतिक नीतियों जैसों मुद्दों के दम पर बहुत आसानी से बहलाया-फुसलाया जा सकता है, ऐसी जनता के समक्ष जवाबदेहिता का मुद्दा एक मुनाफे की बात सिद्ध होगा|
- इस संबंध में एक अन्य समस्या यह है कि राजस्व विकेंद्रीकरण के लिये राज्यों में उचित बजट प्रबंधन की भी आवश्यकता होती है| एक ऐसा उचित बजट प्रबंधन जिसे भारतीय रिज़र्व बैंक भी उचित मानता है|
- आर.बी.आई. द्वारा वर्ष 2016 में किये गए एक अध्ययन में पाया गया कि पूंजी व्यय और विकास व्यय में की गई बढ़ोतरी से राज्यों के सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि होती है| यही कारण है कि राज्यों के व्ययों को राजस्व व्यय के माध्यम से निर्धारित किया जाता है| अन्य शब्दों में कहे तो व्यय का एक बड़ा भाग गैर-योजनाबद्ध है|
- आई.एम.एफ. के अनुसार, इस संबंध में की गई पूर्व अपेक्षाओं की अनुपस्थिति में राजस्व विकेंद्रीकरण में बड़े राजस्व खतरों को कम करने की क्षमता विद्यमान होती है|
निष्कर्ष
अन्य शब्दों में कहें तो उक्त परिचर्चा के बाद यह कहना गलत नहीं होगा कि उक्त सभी समस्याओं के संबंध में राजस्व विकेंद्रीकरण (जिसे केवल जी.एस.टी. के अंतर्गत बढ़ाया जाना तय किया गया है) एक अच्छा विचार प्रतीत होता है| अत: इस विषय में अधिक ध्यान केन्द्रित करने की आवश्यकता है ताकि यह प्रणाली ऐसी परिस्थितियों में भी कार्य करने में सक्षम हो, जब राज्यों के पास राजस्व और व्यय के एक बड़े हिस्से को नियंत्रित करने के लिये पर्याप्त बजटीय योजना और जवाबदेहिता का अभाव प्रतीत होता हो|