अंतर्राष्ट्रीय संबंध
भारत के लिये एक हरित वित्त बाज़ार का निर्माण
- 13 Aug 2018
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संदर्भ
रिकॉर्ड छूती गर्मी पूरे यूरोप में समस्याएँ पैदा कर रही है। ग्रीस, जर्मनी, हॉलैंड, लातविया, नॉर्वे, पोलैंड और स्वीडन के जंगलों में आग लगने की खतरनाक घटनाएँ घटित हुई हैं। कई देशों में अभी भी गर्मी के संबंध में चेतावनियाँ दिया जाना जारी हैं। आउटडोर पिकनिक पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। फिनलैंड में पिछले 30 सालों से हरे-भरे रहने वाले क्षेत्र अब सूखने लगे हैं। यह सब कुछ एक पूर्वानुभव के समान है। हर साल यूरोप में गर्मी पिछले साल की तुलना में अधिक होती है। लेकिन यह कहानी केवल यूरोप की ही नहीं अपितु पूरी दुनिया की है क्योंकि जलवायु परिवर्तन हर किसी को प्रभावित कर रहा है।
जलवायु परिवर्तन, जो कि विश्व के लिये सबसे बड़ा खतरा बन चुका है, अनियंत्रित प्रदूषण का परिणाम है। मनुष्य पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने के लिये प्रदूषण के स्तर को कम करने की आवश्यकता है जिसके लिये ऐसे व्यवसायों को बढावा देने की आवश्यकता है जो जलवायु परिवर्तन से निपट सकें एवं साथ ही आय अर्जित करने वाले भी हों।
हरित वित्त क्या है?
हरित वित्त एक ऐसा बाज़ार-आधारित निवेश या उधार हेतु कार्यक्रम है, जो जोखिम मूल्यांकन में पर्यावरणीय प्रभावों को भी शामिल करता है, या पर्यावरण संबंधी प्रोत्साहनों के माध्यम से व्यवसायगत निर्णयों को संचालित करता है।
ग्लोबल वार्मिंग में कमी लाने के लिये आवश्यक वित्त पोषण
- यूरोप ने यह अनुमान लगाया है कि ग्लोबल वार्मिंग को 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने के पेरिस समझौते की प्रतिज्ञा को पूरा करने के लिये हर साल 180 बिलियन यूरो निवेश करने की आवश्यकता होगी। विश्व आर्थिक मंच का अनुमान है कि इस संकल्प को पूरा करने के लिये 2030 तक हर साल 5 ट्रिलियन डॉलर की ज़रूरत होगी।
- अगर भारत की बात की जाए तो 2040 तक देश को बुनियादी ढाँचे के वित्तपोषण में करीब 4.5 ट्रिलियन डॉलर निवेश करने की जरूरत है।
- इनमें से 2022 तक भारत के राष्ट्रीय नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये 125 बिलियन डॉलर, इलेक्ट्रिक वाहनों के लिये 667 बिलियन डॉलर और किफायती हरित आवासों के लिये लगभग 1 ट्रिलियन डॉलर की आवश्यकता होगी।
- लेकिन हरित क्षेत्र के विकास के लिये और भी कई क्षेत्रों में निवेश किये जाने की आवश्यकता है।
- जैसे कि ऊर्जा दक्षता। उर्जा दक्षता में बहुत अधिक क्षमता है क्योंकि अकेले आवास क्षेत्र में बाज़ार का 35% और कृषि नलकूपों का 18% (सभी उपलब्ध ताज़े पानी के संसाधनों का 85% उपभोग सहित) हिस्सा शामिल हैं।
- अपशिष्ट प्रबंधन, जलवायु-प्रत्यास्थी शहरों, भूमि उपयोग प्रथाओं, वनीकरण और वनों की कटाई, हरित इमारतों और वायु प्रदूषण उन सभी क्षेत्रों में हैं जिन्हें वित्तपोषित करने की आवश्यकता है।
भारत में हरित वित्तपोषण
- आमतौर पर हरित वित्त में निवेश के मामले में ऐसे वित्तपोषण को शामिल किया जाता है जो समावेशी, लचीला और स्वच्छ आर्थिक विकास प्राप्त करने के लिये व्यापक रणनीति के हिस्से के रूप में पर्यावरणीय लाभ उत्पन्न करता है।
- भारत में हरित वित्त के तत्त्व बिखरे हुए और उथले हैं। अधिकांश हरित परियोजनाओं का वित्तपोषण घरेलू बैंकों द्वारा किया गया है।
- हरित बॉण्ड, जो हरित भविष्य के लिये पर्यावरण अनुकूल व्यवसायों और संपत्तियों हेतु वित्त प्रदान करता है, यह वर्तमान वैश्विक अर्थव्यवस्था में संक्रमण को संचालित करने वाले एक प्रमुख वित्तपोषण तंत्र के रूप में उभरा है|
सतत् विकास में भारत के हरित बॉण्ड का योगदान
- वर्ष 2007 में दो प्रमुख बहुपक्षीय विकास बैंकों (World Bank and European Investment Bank) द्वारा प्रथम हरित बॉण्ड जारी किये जाने के बाद से ही, हरित बॉण्ड बाज़ार में उत्तरोत्तर प्रगति हुई है|
- वर्ष 2015 हरित बॉण्ड के लिये अत्यधिक महत्त्वपूर्ण सिद्ध हुआ| इस दौरान वैश्विक अर्थव्यवस्था में हरित बॉण्ड की नवीन संरचनाओं का आगमन हुआ|
- भारत का हरित बॉण्ड बाज़ार, यस बैंक द्वारा 2015 में जारी देश के पहले हरित बॉण्ड के साथ कई महत्त्वपूर्ण उपलब्धियों का साक्षी बना|
- पूंजी जुटाने, विदेशी निवेश को आकर्षित करने और बाज़ार में गति उत्प्रेरण को बढ़ावा देने के लिये विभिन्न कंपनियों और वित्तीय संस्थानों द्वारा इस अभिनव तंत्र का लाभ उठाया गया|
- इस प्रकार, हरित बॉण्ड अक्षय ऊर्जा जैसे क्षेत्रों के वित्तपोषण को बढ़ावा देकर भारत के सतत् विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान कर रहा है।
भारत और अक्षय उर्जा
- स्वच्छ ऊर्जा क्षेत्र में विकास दर से आश्वस्त भारत सरकार ने आईएनडीसी (Intended Nationally Determined Contributions - INDCs) पर संयुक्त राष्ट्र प्रारूप संधि में अपनी प्रस्तुति में निर्दिष्ट किया है कि प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और न्यून लागत के साथ हरित जलवायु कोष की सहायता से वह 2030 तक गैर-जीवाश्म ईधन आधारित ऊर्जा संसाधनों से 40 प्रतिशत संचयी विद्युत ऊर्जा क्षमता प्राप्त करेगा|
- उल्लेखनीय है कि 31 अक्तूबर, 2015 को देश भर में ग्रिड-इंटरैक्टिव नवीकरणीय ऊर्जा की करीब 38 गीगावाट की संचयी क्षमता को स्थापित कर दिया गया था।
- केंद्र सरकार द्वारा एक राष्ट्रीय अपतटीय पवन ऊर्जा नीति को लागू करने और उत्पादन आधारित प्रोत्साहनों एवं त्वरित मूल्य ह्रास में सहायता सहित नीतिगत पहलों के माध्यम से अक्षय ऊर्जा में वृद्धि करने के लिये कई पहलें की जा चुकी हैं।
भारत के आर्थिक विकास को प्रभावी रूप से वित्तपोषित करने के तरीके
- सबसे पहले एक राष्ट्रीय हरित वित्त रणनीति की आवश्यकता होती है, जो कि क्षेत्रों के तैयारी स्तर और सार्वजनिक पूंजीगत उपकरणों को तैनात करने के लिये मान्यता देता है। ऐसी रणनीति में उन क्षेत्रों को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिये, जिन्हें सरकारी सहायता और सब्सिडी की आवश्यकता होती है साथ ही इनके लिये जोखिम-प्रबंधित नियामक सुधार की भी आवश्यकता है।
- दूसरा, पहले से संबंधित या इससे जुड़ा हुआ एक पारिस्थितिकी तंत्र की आवश्यकता है जो निवेशकों और बैंकों के विशिष्ट आरामदायक स्थिति के बाहर के क्षेत्रों में समाधान खोजने के लिये अधिक नवीन उपकरणों के विकास का समर्थन करता है।
- उदाहरण के लिये, ऑफ-ग्रिड ऊर्जा को मापने के लिये इलेक्ट्रिक वाहनों, या क्रेडिट-एन्हांसमेंट उपकरणों के वित्तपोषण हेतु अधिक अभिनव तरीके। इस तरह के प्रयासों में मिश्रित वित्त दृष्टिकोण, सार्वजनिक संस्थागत वाहनों के निवेश और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में हरित वित्त को एकीकृत करने के लिये विचार शामिल होना चाहिये।
- तीसरा, वित्तीय बाज़ारों को आकार देने के लिये नियामक स्तर पर वास्तविक वार्तालाप की आवश्यकता होती है- जैसे कि हरित वित्त के लिये वर्गीकरण शुरू करना, वित्तीय उत्पादों के लिये हरित मानकों, परिसंपत्ति प्रबंधकों के कर्त्तव्यों, स्टॉक एक्सचेंज की आवश्यकताओं, कंपनियों के अनिवार्य प्रकटीकरण मानदंड इत्यादि।
हरित वित्त बाज़ार स्थापित करने की आवश्यकता
- लंदन और लक्ज़मबर्ग जैसे वित्तीय केंद्रों ने पूंजी जुटाने, कम कार्बन उत्सर्जन को प्रोत्साहन देकर और ज्ञान को समेकित करके हरित वित्त के अवसर को हासिल करने की अपनी योजनाएँ निर्धारित की हैं।
- भारत को भी ऐसे अवसरों को जल्दी से हासिल करने और अपना खुद का हरित वित्त बाज़ार बनाने की आवश्यकता है।
निष्कर्ष
- प्रौद्योगिकीय सफलताओं ने नवीकरणीय ऊर्जा को जीवाश्म ईंधनों के साथ प्रतिस्पर्द्धा करने योग्य बना दिया है| आज अंतर्राष्ट्रीय समुदाय, सतत् विकास और जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई को लेकर महत्त्वपूर्ण समझौते करने की ओर अग्रसर प्रतीत होता है। यदि समावेशी विकास को बरकरार रखना है तो हमें अपनी वित्तीय प्रणाली की विफलताओं के मूल तक जाकर विचार करना होगा| ऐसे मानकों, विनियमों और प्रथाओं को अपनाना होगा जो इसे अधिक समावेशी और टिकाऊ अर्थव्यवस्था की दीर्घकालिक आवश्यकताओं के अनुरूप बनाएँ।