ब्रह्मोस मिसाइल का निर्यात | 19 Mar 2021

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में ‘ब्रह्मोस मिसाइल के निर्यात’ पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ: 

हाल ही में भारत और फिलीपींस के मध्य ‘रक्षा सामग्री और उपकरणों की खरीद’ हेतु ‘क्रियान्वयन समझौते’ (Implementing Arrangement) पर हस्ताक्षर किये गए हैं। यह समझौता दोनों देशों के मध्य ब्रह्मोस क्रूज़ मिसाइल के भावी निर्यात हेतु आवश्यक आधार प्रदान करता है।

इसके अलावा भारत द्वारा कई देशों जैसे- वियतनाम, संयुक्त अरब अमीरात (यूएई), इंडोनेशिया और दक्षिण अफ्रीका आदि के साथ ब्रह्मोस मिसाइल प्रणाली की बिक्री हेतु उच्च स्तरीय वार्ता की जा रही है।

भारत द्वारा विश्व के अन्य देशों को ब्रह्मोस मिसाइल प्रणाली का निर्यात किया जाना अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि यह वैश्विक स्तर पर रक्षा निर्यातक के रूप में भारत की विश्वसनीयता को बढ़ाएगा तथा वर्ष 2025 तक रक्षा निर्यात में 5 बिलियन डॉलर के लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद करेगा। इसके अलावा एक क्षेत्रीय महाशक्ति के रूप में यह भारत की स्थिति को और मज़बूत करेगा। हालाँकि, इस प्रणाली के निर्यात में कई प्रकार की चुनौतियाँ भी मौजूद हैं।

ब्रह्मोस मिसाइल के बारे में: 

  • 1990 के दशक के अंत में ब्रह्मोस क्रूज़ मिसाइल प्रणाली का अनुसंधान और विकास का कार्य शुरू हुआ।
  • इसे ब्रह्मोस एयरोस्पेस लिमिटेड (BrahMos Aerospace Limited) द्वारा रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (Defence Research and Development Organisation) तथा रूस के सैन्य औद्योगिक कंसोर्टियम एनपीओ मशिनोस्ट्रोयेनिया के संयुक्त उद्यम के रूप में विकसित किया गया है ।
  • यह सेना में शामिल होने वाली पहली सुपरसोनिक क्रूज़ मिसाइल है
  • इसकी गति  2.8 मैक (ध्वनि की गति से लगभग तीन गुना) तथा इसकी रेंज 290 किमी. है (इसके नए संस्करण की रेंज 400 किमी. तक है) अर्थात् यह 290 किमी. की दूरी तक लक्ष्य भेदने में सक्षम है। 
  • ब्रह्मोस की तीव्र गति के कारण सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइलों द्वारा इसे बाधित करना वायु रक्षा प्रणालियों के लिये मुश्किल होगा।
  • ब्रह्मोस के नौसैनिक और भूमि संस्करण को क्रमशः वर्ष 2005 में भारतीय नौसेना और वर्ष 2007 में भारतीय सेना द्वारा सेवा में शामिल किया जा चुका है।
  • इसी क्रम में भारतीय वायु सेना द्वारा नवंबर 2017 में अपने सुखोई-30 एमकेआई फाइटर जेट से इस मिसाइल का सफल परीक्षण किया गया, जिससे तीनों क्षेत्रों (जल, थल, वायु) में इस मिसाइल ने अपने प्रभावशालिता साबित कर दिया ली है।
  • इसके अलावा इस  मिसाइल की गति और रेंज को बढ़ाने का प्रयास चल रहा है, जिसमें इसकी गति को हाइपरसोनिक गति (मैक 5 या उससे ऊपर) और 1,500 किमी. की अधिकतम रेंज को प्राप्त करने का लक्ष्य है।
  • ब्रह्मोस की यह उन्नत और शक्तिशाली क्षमता न केवल भारतीय सेना की क्षमता में वृद्धि करेगी, बल्कि अन्य देशों के लिये भी इसे खरीदने हेतु एक उच्च वांछनीय उत्पाद बनाती है।

ब्रह्मोस के निर्यात का महत्त्व:

  • इसके अलावा भारत द्वारा चीन को प्रतिसंतुलित करने हेतु अमेरिका, जापान और आसियान देशों के साथ अपने रक्षा संबंधों को मज़बूत बनाया गया है।
    •  इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में मज़बूत उपस्थिति: इसका अर्थ है कि फिलीपींस, ब्रह्मोस का आयात करने वाला पहला देश बन जाएगा, जो इंडो-पैसिफिक में व्यापक और परिणामी साबित होगा।
  • चीन की सैन्य हठधर्मिता से निपटना: फिलीपींस और वियतनाम जैसे आसियान देशों को ब्रह्मोस मिसाइल प्रणाली बेचने का भारत का निर्णय उसके पड़ोस में चीन की बढ़ती सैन्य मुखरता के बारे में चिंताओं को दर्शाता है।
    • इसके अलावा भारत, चीन को उसी की भाषा में जवाब देने की कोशिश करता है, क्योंकि चीन भारत के कट्टर प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान को सैन्य सहायता प्रदान करता है।
  • भारत की भू-राजनीतिक सीमा का विस्तार: ब्रह्मोस का निर्यात भारत की अर्थव्यस्था को मज़बूती प्रदान करेगा,  यह भारत को एक कठोर एवं मज़बूत शक्ति के रूप में स्थापित करने में सहायक होगा तथा इंडो-पैसिफिक देशों के मध्य एक मज़बूत आधार प्रदान करेगा जिस पर वे अपनी संप्रभुता और क्षेत्र की रक्षा करने हेतु विश्वास कर सकते हैं।
  • आयातक से निर्यातक में परिवर्तित: सुपरसोनिक ब्रह्मोस मिसाइल बेचने से भारत की स्थिति में बदलाव आएगा कि जो अब तक विश्व के सबसे बड़े हथियार आयातक देशों में शामिल था, खुद एक प्रमुख रक्षा निर्यातक देश के रूप में स्थापित होगा।
    • इसके अलावा यह देश को रक्षा विनिर्माण क्षेत्र में 'आत्मनिर्भर' बनाने में मदद करेगा, साझेदारों को मज़बूती प्रदान करेगा तथा राजस्व प्राप्ति के लक्ष्य को बढ़ाएगा।
    • वर्तमान परिदृश्य में वर्ष 2016-20 के दौरान वैश्विक स्तर पर हथियारों के निर्यात में भारत की हिस्सेदारी 0.2% थी, जो वैश्विक स्तर पर भारत को प्रमुख हथियारों के मामले में 24वाँ सबसे बड़ा निर्यातक देश बनाता है।

ब्रह्मोस के निर्यात से संबंधित चुनौतियाँ:

  • CAATSA: ब्रह्मोस का निर्यात अमेरिका द्वारा प्रतिद्वंद्वियों के विरोध हेतु बनाए गए दंडात्मक अधिनियम (Countering America’s Adversaries Through Sanctions Act-CAATSA) के प्रावधानों के अधीन है 
    • संयुक्त राज्य अमेरिका जो कि भारत का एक प्रमुख रक्षा भागीदार है, ने इस बात पर अस्पष्टता बनाए रखी है कि क्या CAATSA के प्रावधान भारत द्वारा एस-400 के अधिग्रहण, एके-203 असॉल्ट राइफल के अधिकृत उत्पादन और ब्रह्मोस के निर्यात पर लागू होंगे अथवा नहीं।

नोट 

  • अब तक तुर्की और चीन को रूस से एस-400 ट्रायम्फ नामक वायु रक्षा प्रणाली खरीदने के लिये CAATSA के तहत दंडित किया जा चुका है।
  • एनपीओ मशिनोस्ट्रोएनिया सूचीबद्ध रूसी संस्थाओं में से एक है जिसके द्वारा ब्रह्मोस में प्रयुक्त होने वाले 65% घटक, जिसमें रैमजेट इंजन और रडार आदि शामिल हैं।
    • इस तरह यदि भारत ब्रह्मोस का निर्यात करता है तो प्रतिबंध लगाए जाने की प्रबल संभावना है।
  • रूस-चीन रक्षा सहयोग: क्रीमिया के अधिग्रहण के बाद रूस द्वारा चीन के साथ संबंध सुधारने की काफी कोशिश की गई है।
    • रूस वर्तमान में चीन को सामरिक महत्त्व की अन्य संयुक्त परियोजनाओं के साथ एक मिसाइल अटैक वार्निंग सिस्टम (Missile-Attack Warning System) के विकास में मदद कर रहा है जो केवल रूस और अमेरिका के पास है।
    • इस प्रकार रूस-चीन रणनीतिक संबंध ब्रह्मोस मिसाइल के निर्यात में बाधा उत्पन्न कर  सकते हैं।
  • वित्तपोषण: कोविड-19 महामारी से प्रभावित कई देश जो ब्रह्मोस में रुचि रखते हैं, उनके लिये इसकी खरीद करना मुश्किल होगा।

आगे की राह: 

  • CAATSA के मुद्दे पर अमेरिका के साथ जुड़ाव: कुछ विश्लेषकों का मानना ​​है कि CAATSA, जिसका रूस पर बहुत कम या कोई प्रभाव नहीं पड़ा है, का उपयोग अमेरिका द्वारा 'भारत को अमेरिका से अतिरिक्त सैन्य उपकरण आयात करने के लिये राज़ी करने हेतु किया जा सकता है।
    • इसके अलावा भारत द्वारा आसियान देशों को ब्रह्मोस का निर्यात चीन के साथ टकराव की स्थिति उत्पन्न कर सकता है। इस प्रकार भारत को CAATSA से छूट प्राप्त करने हेतु नए अमेरिकी प्रशासन के साथ बातचीत करनी चाहिये।
  •  लाइन ऑफ क्रेडिट प्रदान करना: फिलीपींस के साथ एक समझौते पर आगे बढ़ने में लागत एक बड़ी बाधा रही है। इसके लिये भारत द्वारा 100 मिलियन डॉलर के क्रेडिट लाइन की पेशकश की गई है।
  • स्वदेशी रक्षा उत्पादन: ब्रह्मोस का संयुक्त विकास इसके निर्यात को लेकर कई जटिलताएँ पैदा कर सकता है।
    • इसलिये यदि भारत एक प्रमुख रक्षा निर्यातक देश बनना चाहता है, तो उसे रक्षा प्रौद्योगिकी के स्वदेशीकरण का प्रयास करना चाहिये।

निष्कर्ष: 

भारत स्वयं को वैश्विक स्तर पर रक्षा विनिर्माण के केंद्र के रूप में स्थापित करना चाहता है, ऐसे में इंडो-पैसिफिक में एक क्षेत्रीय सुरक्षा प्रदाता के रूप में भारत के संभावित उद्भव पर इस बात का काफी प्रभाव पड़ेगा कि वह ब्रह्मोस के निर्यात के मुद्दे को किस प्रकार संबोधित करता है।

अभ्यास प्रश्न: भारत द्वारा फिलीपींस को ब्रह्मोस का निर्यात किया जाना देश के लिये अत्यधिक महत्त्वपूर्ण होगा, हालाँकि इसमें कई चुनौतियाँ भी निहित हैं। विवेचना कीजिये।