वस्त्र उद्योग हेतु प्रोत्साहन | 15 Sep 2021

यह एडिटोरियल दिनांक 13/09/2021 को ‘द हिंदू बिजनेस लाइन’ में प्रकाशित ‘‘A boost for textile sector’’ लेख पर आधारित है। इसमें वस्त्र क्षेत्र में व्याप्त समस्याओं और उन्हें दूर करने के आवश्यक उपायों के संबंध में चर्चा की गई है।

हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने वस्त्र क्षेत्र के लिये उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) योजना को मंज़ूरी प्रदान की है। वस्त्र क्षेत्र के लिये PLI योजना केंद्रीय बजट 2021-22 में 1.97 लाख करोड़ रुपये के परिव्यय से 13 क्षेत्रों के लिये PLI योजनाओं की समग्र घोषणा का ही एक अंग है।  

37 बिलियन अमेरिकी डॉलर के निर्यात और 85 बिलियन अमेरिकी डॉलर की घरेलू खपत के साथ भारतीय वस्त्र एवं परिधान क्षेत्र देश के सबसे बड़े नियोक्ताओं में से एक है। परिधान विनिर्माण क्षेत्र में प्रत्येक 1 बिलियन अमेरिकी डॉलर का अतिरिक्त निर्यात 1.5 लाख नए रोज़गार का सृजन कर सकता है।

यदि समय पर कुछ उपयुक्त उपाय किये जाते हैं तो भारतीय निर्यात अगले कई वर्षों तक दोहरे अंकों में वृद्धि कर सकता है, जिससे लाखों नौकरियाँ पैदा होंगी। इस संदर्भ में, वस्त्र क्षेत्र की समस्याओं को दूर करना और कुछ तत्काल उपाय करना अत्यंत आवश्यक है।

भारतीय परिधान क्षेत्र को वैश्विक व्यापार में कोविड के बाद के उभरते अवसरों का लाभ उठाने के लिये पैमाने (scale), विशेषज्ञता और प्रतिस्पर्द्धात्मकता की आवश्यकता है।

वस्त्र क्षेत्र में विद्यमान चुनौतियाँ

  • अत्यधिक खंडित: भारतीय वस्त्र उद्योग अत्यधिक खंडित है और यहाँ असंगठित क्षेत्र तथा छोटे एवं मध्यम उद्योगों का प्रभुत्व है। 
  • पुरानी प्रौद्योगिकी: भारतीय वस्त्र उद्योग नवीनतम प्रौद्योगिकी तक पहुँच की सीमितता रखता है (विशेषकर लघु उद्योगों में) और अत्यधिक प्रतिस्पर्द्धी बाज़ार में वैश्विक मानकों को पूरा कर सकने में विफल रहता है। 
  • कर संरचना संबंधी समस्याएँ: GST (वस्तु एवं सेवा कर) की कर संरचना घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों में कपड़ों को महँगा और अप्रतिस्पर्द्धी बनाती है। एक और खतरा श्रम मज़दूरी और मज़दूरों के वेतन में हो रही वृद्धि से उत्पन्न हो रहा है।
  • गतिहीन निर्यात: इस क्षेत्र का निर्यात गतिहीन बना रहा है और पिछले छह वर्षों से 40 बिलियन डॉलर के स्तर पर ही स्थिर है। 
  • पैमाने की कमी: भारत में परिधान इकाइयों का औसत आकार 100 मशीनों का है जो बांग्लादेश की तुलना में बहुत कम है, जहाँ प्रति कारखाना औसतन कम से कम 500 मशीनें मौजूद हैं। 
  • विदेशी निवेश की कमी: इन चुनौतियों के कारण विदेशी निवेशक वस्त्र क्षेत्र में निवेश को लेकर अधिक उत्साहित नहीं हैं जो चिंता का एक अन्य विषय है।  
    • जबकि पिछले पाँच वर्षों के दौरान इस क्षेत्र में निवेश में तेज़ी देखी गई है, इसने अप्रैल 2000 से दिसंबर 2019 तक मात्र 3.41 बिलियन अमेरिकी डॉलर का ही प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) आकर्षित किया।

आगे की राह 

  • पैमाने की आवश्यकता: उत्पादन लागत को कम करने और वैश्विक बेंचमार्क की पूर्ति के लिये उत्पादकता स्तर में सुधार लाने हेतु पैमाना महत्त्वपूर्ण है और इसके बाद ही अमेरिका जैसे बाज़ारों से बड़े ऑर्डर की पूर्ति की जा सकती है। 
    • सही पैमाने और प्रौद्योगिकी हस्तक्षेप के साथ, भारत प्रतिस्पर्द्धी देशों की विनिर्माण लागत की बराबरी कर सकता है।
  • पर्यावरणीय दृष्टि से अनुकूल विनिर्माण प्रक्रिया: सामाजिक और पर्यावरण संबंधी मुद्दों पर जागरूकता में वृद्धि के साथ, वैश्विक खरीदार अधिक अनुपालनकर्त्ता, संवहनीय और बड़े कारखानों को थोक आदेश देना पसंद करते हैं तथा यह परिदृश्य चीन और वियतनाम में उपलब्ध है। प्रतिस्पर्द्धा के लिये भारत को भी ये सुविधाएँ विकसित करनी होगी।  
    • वृद्धिशील बिक्री वृद्धि की शर्त के साथ, नई शुरू की गई PLI योजना निरंतर आधार पर क्षमता बढ़ाने के लिये उद्यम से निवेश सुनिश्चित करती है। भारत निश्चित रूप से अगले कुछ वर्षों में 10 एक बिलियन डॉलर पूँजी की कंपनियों का निर्माण कर सकता है।
  • विशेषज्ञता: भारत ने सूती परिधानों के क्षेत्र में एक मज़बूत पारितंत्र का निर्माण किया है, लेकिन मानव-निर्मित फाइबर (MMF) परिधान के निर्माण में पिछड़ रहा है। वैश्विक फैशन अब ब्लेंड परिधानों की ओर आगे बढ़ रहा है।    
    • अमेरिका सालाना लगभग 3 लाख करोड़ रूपये मूल्य के MMF परिधान आयात करता है। इस वृहत बाज़ार में भारत की हिस्सेदारी महज 2.5% है।
    • इसलिये, एक केंद्रित दृष्टिकोण के साथ इस क्षेत्र को वैश्विक फैशन माँगों के अनुरूप संरेखित किया जाना आवश्यक है।
    • उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन MMF परिधान और कपड़ों के निर्माण को प्रोत्साहित करता है। इतने सारे उत्पादों को अलग-अलग प्रोत्साहन प्रदान करने के बजाय, यह कुछ ऐसे उत्पादों में विशेषज्ञता हासिल करने का उपयुक्त समय है जिनके पास बाज़ार के बड़े अवसर मौजूद हैं।
    • एकीकृत कंपनियाँ MMF परिधान निर्माण के लिये ग्रीनफील्ड परियोजनाओं में निवेश कर सकती हैं और लागत के मामले में चीन तथा वियतनाम जैसे मज़बूत खिलाड़ियों के साथ प्रतिस्पर्द्धा कर सकती हैं।
  • प्रतिस्पर्द्धात्मकता: कम लागत वाले प्रतिस्पर्द्धियों के साथ मुकाबला करने के लिये भारत को मूल्य निर्धारण में अत्यधिक कुशल होने की आवश्यकता है। PLI योजना में सुनिश्चित उत्पादन प्रोत्साहन के साथ, विकास की आकांक्षा रखने वाले उद्यमी एकीकृत स्मार्ट कारखानों में साहसपूर्वक निवेश कर सकेंगे। यह विश्वस्तरीय उत्पादकता और विनिर्माण दक्षता हासिल करने में मदद कर सकता है। 
  • पूँजी आकर्षित करना: भारतीय वस्त्र क्षेत्र का केवल 10% स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध है। वस्त्र क्षेत्र (कच्चे माल निर्माताओं को छोड़कर) का बाज़ार पूँजीकरण लगभग 2 लाख करोड़ रुपये का है जो BSE के 250 लाख करोड़ रूपये बाज़ार पूँजीकरण का मात्र 1% है।  
    • लघु एवं मध्यम क्षेत्र की कई वस्त्र कंपनियाँ शेयर बाज़ार में भागीदारी नहीं रखती हैं।
    • कई गैर-सूचीबद्ध वस्त्र कंपनियाँ विश्वस्तरीय संवहनीय अभ्यास का प्रदर्शन कर रही हैं और यदि वे सही रुख प्रस्तुत करती हैं तो पर्याप्त पूँजी आकर्षित कर सकती हैं।
    • पिछले दो वर्षों में, सरकार ने वस्त्र क्षेत्र में नई ऊर्जा लाने के लिये कई संरचनात्मक सुधारों की शुरुआत की है। PLI ऐसा ही एक सुधार है। यह उपयुक्त समय है कि उद्योग आगे आएँ और इस योजना के तहत नई परियोजनाओं की घोषणा करें तथा भारत को दुनिया की फैशन राजधानी बनाने की दिशा में आगे बढ़ें।

निष्कर्ष

भारत को वस्त्र क्षेत्र के लिये एक व्यापक रूपरेखा की आवश्यकता है। एक बार यह रूपरेखा तैयार हो जाने के बाद, देश को इसकी पूर्ति के लिये मिशन मोड में आगे बढ़ने की ज़रूरत है। इस संदर्भ में फिर केंद्र द्वारा तैयार की जा रही नई वस्त्र नीति 2020 का उद्देश्य एक प्रतिस्पर्द्धी वस्त्र क्षेत्र का विकास होना चाहिये जो आधुनिक, संवहनीय और समावेशी हो।

Advantage-India

अभ्यास प्रश्न: वस्त्र क्षेत्र को आधुनिक, संवहनीय और समावेशी प्रतिस्पर्द्धी क्षेत्र बनाने के लिये भारत को एक वृहत रूपरेखा तैयार करने की आवश्यकता है। चर्चा कीजिये।