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भारतीय अर्थव्यवस्था

कैसे सुधर सकती है भारत में प्रति व्यक्ति विद्युत खपत?

  • 14 Nov 2017
  • 6 min read

आँकड़े बताते हैं कि विद्युत उपभोग के मामले में भारत एक गरीब राज्य है। भारत में प्रति व्यक्ति वार्षिक खपत लगभग 1,100 किलोवाट है, जबकि वैश्विक स्तर पर वार्षिक विद्युत खपत प्रति व्यक्ति 2,500 किलोवाट है।

कम उपभोग का कारण क्या है?

  • उपरोक्त चिंताजनक आँकड़े इसलिये सामने आ रहे हैं क्योंकि कोयला आधारित बिजली उत्पादन क्षेत्र (coal based power generation sector) अपनी कुल क्षमता का 60 प्रतिशत तक का ही उपयोग कर पा रहा है।
  • यह क्षेत्र भारत की ऊर्जा ज़रूरतों का लगभग 60-70 प्रतिशत पूरा करता है और मौजूदा बिजली क्षमता का बेहतर उपयोग और नई क्षमताओं के विकास द्वारा हम इस क्षेत्र में बेहतर कर सकते हैं।

क्या हैं क्षमता से कम उपयोग के कारण?

  • कुल क्षमता का उपयोग न किये जाने से पूरे बिजली मूल्य श्रृंखला पर अत्यधिक वित्तीय दबाव पड़ रहा है।
  • दरअसल देश में ऊर्जा उत्पादन की अपार संभावनाएँ हैं, लेकिन विनियामक कमियों की वज़ह से हम ऐसा नहीं कर पा रहे हैं।
  • डिस्कॉम्स यानी विद्युत वितरण कंपनियाँ जो कि मुख्य रूप से राज्य सरकारों के स्वामित्व के अंतर्गत आती हैं को वित्तीय बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है।
  • यह विडंबना ही कही जाएगी कि मांग बढ़ने के बावज़ूद डिस्कॉम्स बिजली खरीद को तैयार नहीं हैं। वे बिजली की उच्च लागत का हवाला देते हुए नए बिजली खरीद समझौते पर हस्ताक्षर नहीं कर रहे हैं।

डिस्कॉम्स की उदासीनता के कारण

  • डिस्कॉम्स द्वारा बिजली की खरीद इसलिये नहीं की जा रही, क्योंकि उनका मानना है कि बिजली के दाम बहुत अधिक हैं। दरअसल, बिजली इकाई तक कोयला पहुँचने में कोयले की लागत में कई अन्य अधिभार जुड़ जाते हैं।
  • इसमें राज्यों द्वारा लगाए गए कर, केंद्र व राज्यों के उपकर, कोल टर्मिनल अधिभार, व्यस्त सीजन उपकर और विकास उपकर शामिल हैं।
  • अक्षय ऊर्जा पर निवेश की लागत वसूलने व पर्यावरण परियोजनाओं के लिये धन जुटाने हेतु जो स्वच्छ ऊर्जा उपकर लिया जाता था उसके स्थान पर जीएसटी लागू होने के बाद अब जीएसटी क्षतिपूर्ति उपकर लिया जाता है।
  • कोयले की खरीद पर प्रति टन 400 रुपए का अतिरिक्त जीएसटी क्षतिपूर्ति उपकर एवं अन्य करों के कारण कोल इंडिया द्वारा तय आधार मूल्य से लगभग 60-65 प्रतिशत के अधिक भुगतान पर कोयला उपलब्ध होता है।
  • ज़ाहिर है उत्पादन मूल्य के बढ़ने के साथ डिस्कॉम्स के लिये बिजली की खरीद भी महँगी हो जाती है। 

आगे की राह

  • डिस्कॉम्स की द्वारा बिजली खरीद को थोड़ा सस्ता बनाते हुए हम भारत में प्रति व्यक्ति विदुत खपत को बढ़ा सकते हैं और इसके लिये कोयले के मूल्य निर्धारण के तरीके में बदलाव किया जाना चाहिये।
  • विदित हो कि वाणिज्य मंत्रालय की ओर से जारी किये जाने वाले थोक मूल्य सूचकांक पर आधारित महँगाई के आँकड़े के मुताबिक कोल इंडिया विभिन्न श्रेणियों के कोयले के मूल्य का निर्धारण करती है।
  • बिजली उत्पादक कोयले के दाम और उसके परिवहन की दर का निर्धारण करने के लिये अलग सूचकांक बनाए जाने की ज़रूरत है।
  • कोयला पर जीएसटी क्षतिपूर्ति उपकर को हटाया जाना चाहिये, यदि ऐसा होता है तो बिजली की लागत 0.30 रुपए प्रति यूनिट तक कम हो सकती है।
  • दरअसल जीएसटी के कार्यान्वयन के बाद राज्य सरकारों को जीएसटी से संभावित राजस्व में कमी की क्षतिपूर्ति करने के उद्देश्य से जीएसटी क्षतिपूर्ति उपकर लगाया गया है।
  • राज्यों के राजस्व को नकारात्मक रूप से प्रभावित होने से बचाने के उद्देश्य से लगाया जा रहा यह उपकर उचित तो है, लेकिन कोयले और बिजली जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्र जो कि पहले से ही वित्तीय चुनौतियों का सामना कर रहे हैं उनके मामले में यह अन्यायपूर्ण प्रतीत होता है।

निष्कर्ष

  • इसमें कोई शक नहीं है कि कोयला आधारित बिजली संयंत्रों से होने वाले पर्यावरणीय क्षति को देखते हुए हमें इसे बढ़ावा देने के बजाय नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देना चाहिये।
  • लेकिन, मौज़ूदा क्षमताओं का संपूर्ण उपयोग भी उतना ही आवश्यक है जितना कि नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देना।
  • हमारे कराधान प्रणाली के इस दोष का निवारण न केवल बिजली क्षेत्र के लिये एक गेम चेंजर साबित होगा, बल्कि सम्पूर्ण आर्थिक विकास को भी बल मिलेगा। 
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