कृषि
बीज विधेयक मसौदा
- 09 Dec 2019
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इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में हालिया बीज विधेयक मसौदे से जुड़े सभी महत्त्वपूर्ण पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।
संदर्भ
वर्तमान में किसानों के बीच खाद बीज और कीटनाशकों में मिलावट एक बड़ा मुद्दा बना हुआ है, इसे लेकर कई स्थानों पर बाकायदा अभियान भी चलाया जा रहा है। उल्लेखनीय है कि खाद बीज और कीटनाशकों में मिलावट के कारण भारतीय किसानों का काफी नुकसान का सामना करना पड़ता है। इस तथ्य के मद्देनज़र कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने बीज विधेयक 2019 का मसौदा तैयार किया है। उम्मीद है कि इसे जल्द ही संसद के वर्तमान शीतकालीन सत्र में प्रस्तुत किया जाएगा। इस मसौदे का मुख्य उद्देश्य किसानों को बेचे गए बीजों की गुणवत्ता को विनियमित करना और किसानों को इन बीजों के उत्पादन एवं आपूर्ति की सुविधा प्रदान करना है।
मसौदे के प्रमुख प्रावधान
- विशेषज्ञों के अनुसार, यह किसानों को आधुनिक और उच्च गुणवत्ता वाले बीजो की आपूर्ति सुनिश्चित करने हेतु एक महत्त्वपूर्ण कानून है जो उन्हें अपनी उत्पादकता और लाभप्रदता बढ़ाने में मदद करेगा।
- बीज समिति का गठन
- बीज विधेयक मसौदे में केंद्र सरकार को केंद्रीय बीज समिति के पुनर्गठन का दायित्व सौंपा गया है जो इसके प्रावधानों के प्रभावी कार्यान्वयन के लिये उत्तरदायी होगी।
- बीज के विभिन्न किस्मों का पंजीकरण
- विक्रेताओं को बिक्री के लिये मौजूद सभी बीजों का पंजीकरण कराना होगा और साथ ही कुछ निर्धारित न्यूनतम मानकों को पूरा करना होगा।
- रियायतें
- मसौदे के तहत किसानों को उनके द्वारा विकसित किस्मों के लिये पंजीकरण प्राप्त करने से छूट दी गई है। हालाँकि यदि किसान वाणिज्यिक लाभ प्राप्त करने के उद्देश्य से उसे बेचता है तो उसके लिये पंजीकरण कराना अनिवार्य होगा।
- इसके अलावा किसानों को अपने खेत के बीज और रोपण सामग्री को बोने, आदान-प्रदान करने या बेचने की अनुमति है। लेकिन वे किसी ब्रांड नाम के तहत कोई बीज नहीं बेच सकते हैं।
- अनुसंधान-आधारित कंपनियाँ
- मसौदे में लाइसेंस के उद्देश्य के लिये बीज उत्पादक, बीज प्रोसेसर और बीज डीलर के बीच अंतर को स्पष्ट किया गया है। जबकि मसौदे के अंतर्गत अनुसंधान और विकास (R&D) क्षमताओं वाली राष्ट्रीय स्तर की एकीकृत बीज कंपनियों की कोई मान्यता नहीं है।
- नर्सरी
- मसौदे में निर्धारित प्रावधानों के अनुसार, केवल फलों से संबंधित नर्सरी के लिये ही लाइसेंस लेना या पंजीकरण कराना अनिवार्य है। इसके अतिरिक्त सभी नर्सरियों को पंजीकृत होने की आवश्यकता नहीं है।
- मूल्य नियंत्रण
- बीज विधेयक मसौदे में सरकार को आकस्मिक स्थितियों जैसे- बीज की कमी, मूल्य में असामान्य वृद्धि, एकाधिकार मूल्य निर्धारण, मुनाफाखोरी आदि के मामले में कुछ चयनित किस्म के बीजो के मूल्य निर्धारण में हस्तक्षेप का अधिकार दिया गया है।
- शिकायतों की समीक्षा
- मसौदे के अनुसार, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 का उपयोग भविष्य में बीज के संबंध में आने वाली विभिन्न शिकायतों से निपटने के लिये किया जाएगा।
भारत में बीज विनियमन का इतिहास
- ऐतिहासिक रूप से भारतीय बीज उद्योग को नियंत्रित करने के लिये कई अधिनियमों और नीतिगत ढाँचों का प्रयोग किया गया है।
- बीज अधिनियम (1966)
- बीज (नियंत्रण) आदेश (1983)
- नई बीज विकास नीति (1988)
- आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955
- राष्ट्रीय बीज नीति (2002)
- उपरोक्त सभी नियमों को उत्पादन से लेकर विपणन तक सभी स्तरों पर बीज की देखभाल करने के लिये पारित किया गया था, ताकि बीज अधिनियम 1966 के तहत गठित केंद्रीय बीज समिति द्वारा निर्धारित गुणवत्ता मानकों को बनाए रखा जा सके।
- ये कानून एक सामान्य किसान को गुणवत्ता वाले बीज और रोपण सामग्री तक आसान पहुँच प्रदान करने में सहायक हैं और उसे किसी धोखे की स्थिति में न्याय प्राप्ति के लिये संबंधित प्राधिकरण से संपर्क करने हेतु एक तंत्र प्रदान करते हैं।
- वर्ष 2004 में बीज विधेयक के माध्यम से बीज अधिनियम (1966) को बदलने का प्रस्ताव किया गया था, परंतु कई कमियों के कारण इसे संसद में पारित नहीं किया जा सका था। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2019 का बीज विधेयक मसौदा वर्ष 2004 के बीज विधेयक की कमियों को दूर करने का प्रयास करता है।
बीज विधेयक मसौदे की कमियाँ एवं विवाद
- विशेषज्ञों का कहना है कि इस मसौदे में दिये गए कई प्रावधान प्रोटेक्शन ऑफ प्लांट वैरायटी एंड फार्मर राइट एक्ट (PPVFR Act), 2001 के प्रावधानों का उल्लंघन करते हैं।
- साथ ही उनका मानना है कि यह मसौदा किसानों के हितों के खिलाफ और निजी कंपनियों को अधिक-से-अधिक लाभ पहुँचाने के लिये लाया जा रहा है।
- बीज विधेयक मसौदा बीजों के अनिवार्य पंजीकरण पर ज़ोर देता है, जबकि PPVFR अधिनियम बीजों के स्वैच्छिक पंजीकरण पर आधारित है।
- PPVFR अधिनियम के तहत बीज पंजीकरण के लिये आने वाले सभी आवेदनों में किसानों सहित बीज की किस्म के निर्माण हेतु योगदान देने वाले सभी लोगों का ब्योरा दिया जाना आवश्यक था, परंतु बीज विधेयक मसौदे में बीज के पंजीकरण के लिये इस प्रकार की जानकारी प्राप्त करने का कोई भी प्रावधान नहीं है जिसके कारण बीज किस्म की उत्पत्ति में किसानों के योगदान के महत्त्व को पूरी तरह से समाप्त कर दिया जाएगा।
- IPR पर आधारित होने के कारण PPVFR अधिनियम वैधता अवधि के बाद बीजों के पुन: पंजीकरण की अनुमति नहीं देता है जबकि हालिया बीज विधेयक मसौदे के अनुसार, कोई भी निजी कंपनी वैधता अवधि के बाद भी कई बार बीज का पुन: पंजीकरण करा सकती है। गौरतलब है कि इस प्रावधान के कारण कई बीजों की किस्में कभी भी मुफ्त प्रयोग के लिये उपलब्ध नहीं हो पाएंगी।
- बीज की कीमतों पर सख्त सरकारी नियंत्रण किसान संगठनों की एक महत्त्वपूर्ण मांग रही है परंतु हालिया बीज विधेयक मसौदे में बीज की कीमतों के नियमन को लेकर अस्पष्ट प्रावधान से किसान चिंतित हैं। जानकारों का कहना है कि ये प्रावधान न तो पर्याप्त हैं और न ही विश्वसनीय।
- किसान संगठन बीज की कीमतों और रॉयल्टी को विनियमित करने के लिये एक आधिकारिक निकाय की भी मांग करते रहे हैं, क्योंकि इसकी अनुपस्थिति में बीज कंपनियाँ बीज की कीमतों को अपनी सहूलियत के हिसाब से निर्धारित करती हैं जिससे किसानों को काफी नुकसान होता है।
- PPVFR अधिनियम के अनुसार, यदि कोई पंजीकृत बीज किस्म के कारण किसान को नुकसान होता है तो वह PPVFR प्राधिकरण के समक्ष मुआवज़े का दावा कर सकता है। PPVFR अधिनियम के विपरीत हालिया बीज विधेयक मसौदे के प्रावधानों के तहत इस प्रकार की स्थिति में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अनुसार विवाद का निपटारा किया जाएगा।
- इस विषय पर कई जानकारों का मत है कि उपभोक्ता अदालतें वे आदर्श और मैत्रीपूर्ण संस्थाएँ नहीं हैं जिनसे किसान संपर्क कर सकें।
बीज उद्योग के सुझाव
बीज विधेयक मसौदे के संबंध में बीज उद्योग ने भी सरकार को निम्नलिखित सिफारिशें की हैं:
- बीज पंजीकरण प्रक्रिया को समयबद्ध किया जाना चाहिये।
- लाइसेंस लेने या पंजीकरण कराने का प्रावधान मात्र फल नर्सरियों तक सीमित नहीं रखना चाहिये बल्कि इसे सभी प्रकार की नर्सरियों पर लागू किया जाना चाहिये।
- उद्योग किसी भी प्रकार के मूल्य नियंत्रण का विरोध करता है, क्योंकि उद्योग का मानना है कि यह नवाचार को प्रभावित कर सकता है।
आगे की राह
- कृषि उत्पादन काफी हद तक बीज जैसे बेसिक इनपुट पर निर्भर करता है और इसीलिये जब तक बीज की शुद्धता एवं गुणवत्ता के मानकों का पालन नहीं किया जाएगा, तब तक उत्पादन कार्यक्रम सफल नहीं हो पाएगा। अतः इस दृष्टि से बीजों के विनियमन हेतु कानून बनाना काफी महत्त्वपूर्ण हो जाता है।
- राष्ट्रीय स्तर पर किसानों को उनके अधिकारों और मौजूदा बीज कानूनों के प्रति जागरूक करने के लिये व्यापक स्तर पर अभियानों की आवश्यकता है।
- बीज विधेयक मसौदे के मुख्यतः दो ही उद्देश्य होने चाहिये, पहला यह कि किसानों के लाभ हेतु बीज की आपूर्ति को विनियमित किया जाए और दूसरा, बीजों का विनियमन उद्योग के विकास में बाधा न बने।
- बीज विधेयक मसौदे से संबंधित सभी पक्षों से विचार-विमर्श कर इसकी कमियों को दूर किया जाना चाहिये और यह सुनिश्चित होना चाहिये कि इसका लाभ छोटे-से-छोटे किसान तक पहुँचे।
प्रश्न: मूल्यांकन कीजिये कि क्या हालिया बीज विधेयक मसौदा किसानों के हितों के विरुद्ध है।