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भू-जल संकट

  • 27 Dec 2019
  • 12 min read

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में अटल भू-जल योजना के परिप्रेक्ष्य में भारतीय भू-जल संसाधन की स्थिति और उससे संबंधित विभिन्न महत्त्वपूर्ण पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ

हाल ही में प्रधानमंत्री मोदी ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती पर नई दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम में औपचारिक रूप से अटल भू-जल योजना (अटल जल) की शुरुआत की है। इस योजना का मुख्य उद्देश्य देश के भू-जल प्रबंधन में सुधार लाना है, ज्ञात हो कि देश भर में आज ऐसे कई क्षेत्र हैं जहाँ भू-जल का स्तर काफी नीचे चला गया है, जिसके कारण आम लोगों का जन-जीवन काफी प्रभावित हुआ है।

अटल भू-जल योजना

  • अटल जल या अटल भू-जल योजना की रूपरेखा भू-जल प्रबंधन के लिये संस्थागत संरचना को सुदृढ़ करने तथा सात राज्यों (गुजरात, हरियाणा, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान और उत्तर प्रदेश) में टिकाऊ भू-जल संसाधन प्रबंधन हेतु सामुदायिक स्तर पर व्यवहारगत बदलाव लाने के उद्देश्य के साथ बनाई गई है।
  • इस योजना के कार्यान्वयन से इन राज्यों के 78 ज़िलों में लगभग 8350 ग्राम पंचायतों को लाभ पहुँचने की उम्मीद है।
  • पाँच वर्षीय अवधि (2020-21 से 2024-25) वाली इस योजना की कुल लागत 6000 करोड़ रुपए है, जिसमें से 50 प्रतिशत हिस्सा विश्व बैंक (World Bank) द्वारा ऋण के रूप में दिया जाएगा और शेष 50 प्रतिशत का वहन केंद्र सरकार द्वारा किया जाएगा। ज्ञात हो कि विश्व बैंक बोर्ड ने इस कार्य हेतु वित्तपोषण की मंज़ूरी जून 2018 में दे दी थी।

भारत और जल दुर्लभता

  • आँकड़ों के अनुसार, भारत में विश्व की लगभग 16 प्रतिशत जनसंख्या निवास करती है और इतनी विशाल जनसंख्या के लिये भारत के पास वैश्विक जल संसाधनों का मात्र 4 प्रतिशत ही है।
  • केंद्रीय जल आयोग (CWC) के अनुसार, देश की अनुमानित जल संसाधन क्षमता तकरीबन 1,999 बिलियन क्यूबिक मीटर है।
  • देश की जनसंख्या बढ़ने के कारण पानी की मांग में तो बढ़ोतरी दर्ज की जा रही है, परंतु इस क्रम में पानी की पूर्ति अर्थात जल स्रोतों में वृद्धि नहीं हो रही है।
    • विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के आँकड़ों के मुताबिक, पिछले सात दशकों में विश्व की जनसंख्या दोगुनी से भी अधिक हो गई है और उसी के साथ पेयजल की उपलब्धता और लोगों तक इसकी पहुँच लगातार कम होती जा रही है।
    • इसकी वज़ह से दुनियाभर में स्वच्छता की स्थिति भी प्रभावित हुई है। अशुद्ध पेयजल के उपयोग से डायरिया, हैज़ा, टाइफाइड और जलजनित बीमारियों का खतरा तेज़ी से बढ़ रहा है। विश्व में लगभग 90% बीमारियों का कारण दूषित पेयजल है।
  • CWC के अनुमान के मुताबिक देश में प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता वर्ष 2025 में 1,434 क्यूबिक मीटर से घटकर वर्ष 2050 में 1,219 क्यूबिक मीटर हो जाएगी।
  • बीते वर्ष नीति आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि देश के लगभग 60 करोड़ लोग गंभीर जल संकट का सामना कर रहे हैं। साथ ही प्रत्येक वर्ष प्रदूषित जल के प्रयोग से तकरीबन 2 लाख लोगों की मृत्यु हो जाती है।

भारत में भू-जल की स्थिति

  • भू-जल को भारत में पीने योग्य पानी का सबसे प्रमुख स्रोत माना जाता है। आँकड़ों पर गौर करें तो भू-जल देश के कुल सिंचित क्षेत्र में लगभग 65 प्रतिशत और ग्रामीण पेयजल आपूर्ति में लगभग 85 प्रतिशत योगदान देता है।
  • बढ़ती जनसंख्‍या, शहरीकरण और औद्योगिकीकरण की बढ़ती हुई मांग के कारण देश के सीमित भू-जल संसाधन खतरे में हैं। देश के अधिकांश क्षेत्रों में व्‍यापक और अनियंत्रित भू-जल दोहन से इसके स्‍तर में तेज़ी से और व्‍यापक रूप से कमी दर्ज़ की जा रही है।
  • आँकड़ों के मुताबिक भारत विश्व में भू-जल के दोहन के मामले में सबसे आगे है, हालाँकि 1960 के दशक में भू-जल को लेकर देश में यह स्थिति नहीं थी, जानकारों का मानना है कि हरित क्रांति ने भारत को भू-जल दोहन के मामले में शीर्ष स्थान पर पहुँचाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
  • आर्थिक सर्वेक्षण 2015-16 के अनुसार, भू-जल के वर्तमान उपयोग ने भारत में जल स्तर को प्रति वर्ष 0.3 मीटर की दर से कम किया है।

भू-जल दुर्लभता का कारण

  • सतह पर मौजूद जल संसाधनों की सीमित मात्रा और घरेलू, औद्योगिक तथा कृषि क्षेत्रों में बढ़ती जल की मांग के कारण भू-जल संसाधनों के प्रयोग में भी बढ़ोतरी देखी जा रही है।
  • भू-जल की दुर्लभता का एक मुख्य कारण यह भी है कि सतही जल की अपेक्षा इसे दोबारा भरना थोड़ा मुश्किल होता है।
  • हरित क्रांति ने सूखे की आशंका वाले क्षेत्रों में पानी की गहन फसलों को उगाने में सक्षम बनाया है, जिससे भू-जल के प्रयोग में भी बढ़ोतरी हुई है।
  • लैंडफिल, सेप्टिक टैंक, उर्वरकों और कीटनाशकों के अति प्रयोग से भू-जल संसाधनों को काफी क्षति पहुँची है।
  • जल प्रबंधन संबंधी नियमों का अपर्याप्त विनियमन और भू-जल संसाधनों के अत्यधिक दोहन संबंधी नियमों के अभाव ने भी इस स्थिति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
  • वनों की कटाई, कृषि के अवैज्ञानिक तरीके, उद्योगों के रासायनिक अपशिष्ट, स्वच्छता की कमी भी भू-जल को प्रभावित करती है और वह प्रयोग योग्य नहीं रह जाता।

भू-जल प्रबंधन की आवश्यकता

  • इज़राइल के मुकाबले भारत में जल की पर्याप्त उपलब्धता है, परंतु वहाँ का जल प्रबंधन भारत से कहीं अधिक बेहतर है। इज़राइल में खेती, उद्योग, सिंचाई आदि कार्यों में पुनर्चक्रित (Recycled) पानी का इस्तेमाल होता है, इसीलिये वहाँ लोगों को पेयजल की कमी का सामना नहीं करना पड़ता।
  • भारत में 80% जनसंख्या की पानी की ज़रूरत भू-जल से पूरी होती है और यह भू-जल अधिकांशतः प्रदूषित होता है। ऐसे में बेहतर भू-जल प्रबंधन से ही जल संकट से उबरा जा सकता है और जल संरक्षण भी किया जा सकता है।
  • जल गुणवत्ता सूचकांक में भारत 122 देशों में 120वें स्थान पर था तथा यदि जल्द-से-जल्द इस संदर्भ में सरकार द्वारा कोई निर्णय नहीं लिया गया तो स्थिति और भी खराब हो सकती है।

राष्ट्रीय जल नीति

  • आज़ादी के बाद देश में तीन राष्ट्रीय जल नीतियाँ बनी हैं। पहली नीति वर्ष 1987 में बनी, दूसरी वर्ष 2002 में और तीसरी वर्ष 2012 में तैयार की गई। इसके अलावा कुछ राज्यों ने अपनी स्वयं की जल नीति भी बनाई है।
  • राष्ट्रीय जल नीति में जल को एक प्राकृतिक संसाधन मानते हुए इसे जीवन, जीविका, खाद्य सुरक्षा और निरंतर विकास का आधार माना गया है।
  • जल के उपयोग और आवंटन में समानता तथा सामाजिक न्याय का नियम अपनाए जाने की बात कही गई है।
  • भारत के बड़े हिस्से में पहले ही जल की कमी हो चुकी है। जनसंख्या वृद्धि, शहरीकरण और जीवन-शैली में बदलाव के चलते पानी की मांग तेजी से बढ़ने के कारण जल सुरक्षा के क्षेत्र में गंभीर चुनौतियाँ खड़ी हो गई हैं।
  • जल स्रोतों में बढ़ता प्रदूषण पर्यावरण तथा स्वास्थ्य के लिये खतरनाक होने के साथ ही स्वच्छ पानी की उपलब्धता को भी प्रभावित कर रहा है।
  • राष्ट्रीय जल नीति में इस बात पर बल दिया गया है कि खाद्य सुरक्षा, जैविक तथा समान और स्थायी विकास के लिये राज्य सरकारों को सार्वजनिक धरोहर के सिद्धांत के अनुसार सामुदायिक संसाधन के रूप में जल का प्रबंधन करना चाहिये।

केंद्रीय भू-जल बोर्ड की भूमिका

Central Ground Water Board- CGWB

  • केंद्रीय भू-जल बोर्ड 23,196 ‘राष्ट्रीय जल सर्वेक्षण निगरानी स्टेशनों’ के नेटवर्क के माध्यम से देश भर में जल स्तर और गुणवत्ता की निगरानी करता है।
  • भू-जल संसाधनों के संदर्भ में CGWB ने देश की मूल्यांकन इकाइयों (ब्लॉक, तालुका, मंडल आदि) को सुरक्षित, अर्द्ध-संकटमय और अति-शोषित के रूप में वर्गीकृत किया है।
    • आँकड़ों के मुताबिक जहाँ एक ओर वर्ष 2004 में अति-शोषित इकाइयों की संख्या 839 थी वह वर्ष 2017 में बढ़कर 1,186 हो गई।

आगे की राह

  • आवश्यक है कि हम भू-जल को एक व्यक्तिगत संसाधन के रूप में देखने के बजाय सामूहिक संसाधन के रूप में देखा जाए। अधिकांश लोग यह सोचते हैं कि ‘यदि यह ज़मीन मेरी है तो इसके नीचे का जल भी मेरा ही होगा’, परंतु जब तक हम इस धारणा को नहीं छोड़ेंगे तब तक भू-जल का उचित प्रबंधन संभव नहीं हो पाएगा।
  • CGWB द्वारा चिह्नित अति-शोषित इकाइयों में भू-जल निकासी पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगाया जा सकता है, ताकि इन क्षेत्रों में भू-जल दुर्लभता की स्थिति से निपटा जा सके।
  • जल भराव, लवणता, कृषि में रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग और औद्योगिक अपशिष्ट जैसे मुद्दों पर गंभीरता से ध्यान दिये जाने की आवश्यकता है।
  • किसी भी प्रकार के नीति निर्माण से पूर्व अनुसंधान और वैज्ञानिक मूल्यांकन आवश्यक है।
  • कई जानकारों का मानना है कि देश में भू-जल दुर्लभता को बिजली पर दी जाने वाली सब्सिडी को कम करके भी समाप्त किया जा सकता है।

प्रश्न: अटल भू-जल योजना के संदर्भ में भू-जल संसाधन की दुर्लभता और उसके कारण पर चर्चा कीजिये।

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