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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

‘निरस्त्रीकरण’ और ‘निवारण’ के मध्य मार्ग को चुनने का औचित्य

  • 17 Oct 2017
  • 11 min read

संदर्भ 

पिछले एक दशक में दूसरी बार नोबल समिति ने अपना वार्षिक शांति पुरस्कार परमाणु निरस्त्रीकरण के सराहनीय लक्ष्य को प्रदान किया है। इस वर्ष का नोबल शांति पुरस्कार प्राप्तकर्त्ता आई.सी.ए.एन (The International Campaign to Abolish Nuclear Weapons-ICAN) परमाणु खतरे के विषय में राष्ट्रों में जागरूकता लाने के लिये अथक् प्रयास कर रहा है।

महत्त्वपूर्ण तथ्य

  • आई.सी.ए.एन लगभग 100 देशों के गैर-सरकारी संगठनों का एक गठबंधन है, जिसने लोगों को प्रेरित करने, उनकी सरकारों को मनाने और उन पर दबाव बनाने तथा परमाणु हथियारों पर प्रतिबंध लगाने वाली संधि (संयुक्त राष्ट्र में परमाणु हथियारों के निषेध पर संधि-Treaty on the Prohibition of Nuclear Weapons at the United Nations) की शुरुआत करने के लिये एक वैश्विक अभियान चलाया है।
  • यह संधि परमाणु हथियार निषेध पर किया गया पहला  बाध्यकारी कानूनी अंतर्राष्ट्रीय समझौता है। 
  • अतः परमाणु निषेध की दिशा में आगे बढ़ने के लिये सुरक्षा बलों को उपयोग किये जाने वाले परमाणु हथियार के जोखिमों को कम करने के लिये व्यावहारिक कदम उठाने होंगे। 
  • हालाँकि यह संधि महत्त्वपूर्ण है परंतु यह परमाणु हथियारों के उपयोग पर पूर्ण प्रतिबंध नहीं लगाती है। 
  • ‘परमाणु हथियारों पर प्रतिबंध’ (nuclear weapon ban) एक लैंडमार्क संधि है, जिसका अत्यधिक राजनीतिक और ऐतिहासिक महत्त्व है। यह प्रतिबंध संधि राष्ट्रों के मध्य परमाणु हथियारों पर प्रतिबंध लगाने के लिये एक कानूनी आधार तो तैयार करती है, परंतु वास्तव में यह ऐसे हथियारों पर पूर्ण प्रतिबंध नहीं लगाती है। ध्यातव्य है कि आज भी विश्व के अधिकांश राष्ट्रों के पास परमाणु शस्त्रागार मौजूद हैं, और यह आने वाले वर्षों में भी मौजूद रहेंगे।
  • यह संधि परमाणु हथियार युक्त राष्ट्रों के लिये परमाणु हथियारों को नष्ट करने के लिये कोई नई प्रक्रिया स्थापित नहीं करती है।
  • इसके अलावा, यह संधि अंधाधुंध मानवतावादी प्रभावों के आधार पर राष्ट्रों के परमाणु हथियारों का प्रतिनिधि करने की इच्छाशक्ति भी रखती है।
  • एक राज्य जो परमाणु हथियारों का निर्माण करने के दौरान ही इस संधि में शामिल हो जाता है उसे अपने हथियारों के निराकरण तक किसी भी प्रकार के सुरक्षा उपाय को स्वीकार करने की आवश्यकता नहीं होगी। यही इस संधि की सबसे बड़ी कमज़ोरी है, क्योंकि परमाणु हथियारों के पूर्ण निराकरण में कई वर्ष लग जाएंगे जिस दौरान राष्ट्र अपने द्वारा निरसित किये जाने वाले हथियारों के विकल्प के तौर पर नए हथियारों का उत्पादन भी करने लगेंगे।
  • इसमें कोई संदेह नहीं कि परमाणु निषेध आंदोलन को गति मिल चुकी है परंतु न तो परमाणु निषेध संधि का आगमन और न ही परमाणु खतरों में वृद्धि परमाणु निवारण में राष्ट्रों के दृढ़ हो चुके विश्वास को कमज़ोर कर रही है।

परमाणु निवारण क्या है?

  • निवारण की रणनीतिक अवधारणा ‘युद्ध को रोकना’ है। यह ऐसी अवधारणा है जिसका उपयोग प्रत्येक परमाणु संपन्न राष्ट्र अपने परमाणु शस्त्रागारों के प्रबंधन के लिये करता है।  
  • निवारण की अवधारणा को एक दल द्वारा अन्य दल की सुविधा के लिये किसी युद्धक कार्यवाही की शुरुआत करने से बचने के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।
  • परमाणु प्रतिरोध की अवधारणा 'प्रथम उपयोगकर्त्ता' के सिद्धांत के तर्क का अनुसरण करती है।
  • राष्ट्रों के पास किसी सशस्त्र आक्रमण (जो उनके महत्त्वपूर्ण सुरक्षा हितों के लिये खतरा उत्पन्न करता हैं) के विरुद्ध आत्मरक्षा में परमाणु हथियारों का उपयोग करने का अधिकार है।
  • इस तरह की अवधारणा के तहत अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति में परमाणु हथियारों पर कब्ज़ा करने को एक अंतिम उपकरण के तौर पर देखा जा सकता है।
  • इस अवधारणा के समर्थकों का तर्क यह है कि परमाणु हथियारों के बिना अधिक हिंसा होगी। निषेध संधि का विरोध करने वाले अनेक राष्ट्र यूरोप और पूर्वी एशिया में स्थित हैं। ये ऐसे क्षेत्र हैं जिनकी राजनीति पर द्वितीय विश्वयुद्ध के आघात और नतीजे का असर अभी भी शेष है।

परमाणु हथियारों की खोज के लिये अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा समस्याएँ किस प्रकार ज़िम्मेदार हैं?

  • वर्तमान अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा समस्याओं के कारण चलाए जा रहे वर्तमान प्रतिबंध आंदोलन और परमाणु निषेध संधि से अस्तित्व के संभावित खतरों का सामना कर रहे राष्ट्र अस्तित्व परमाणु निवारण के नए विकल्प प्राप्त कर सकते हैं। 
  • कई राज्य इस आशा में इस संधि में शामिल होंगे कि यह परमाणु हथियारों की समाप्ति कर देगी, परंतु कई राज्य इस संधि को अस्वीकार करेंगे और यह अपेक्षा रखेंगे कि उनके द्वारा समर्थित परमाणु हथियार और गठबंधन उनकी सुरक्षा की गारंटी देंगे।
  • वास्तव में परमाणु हथियार युक्त देश अब अपने शस्त्रागारों को उपयोगी बनाने के प्रयासों में लगे हुए हैं जो दशकों तक उनके लिये उपयोगी रहेंगे।
  • हालाँकि परमाणु हथियारों से संबंधित समस्या अब भी जस की तस बनी हुई है। अमेरिका छोटे परमाणु हथियारों का निर्माण करने के लिये नष्ट की जा चुकी अपनी सुविधाओं को पुनः उपयोग में लाने पर विचार कर रहा है।
  • पाकिस्तान अपने परमाणु हथियारों का परीक्षण कर चुका है, जिन्हें अब युद्ध के मैदान में तैनात किया जा सकेगा।
  • रूस अमेरिका के साथ की गई एक ‘हथियार नियंत्रण संधि’ (arms control treaty) के विरोध में नई, मध्यम सीमा वाली मिसाइल को विकसित कर सकता है।
  • भारत अपनी नई पनडुब्बियों में परमाणु हथियार तैनात कर रहा है।
  • चीन अनेक परमाणु वारहेड युक्त लंबी दूरी की मिसाइलों को अपने क्षेत्र में तैनात कर रहा है।
  • उत्तर कोरिया परमाणु मिसाइलों के एक भयानक व्यूह का  परीक्षण कर उन्हें तैनात कर रहा है।
  • वास्तव में निषेध और परमाणु निरस्त्रीकरण कैंप इतने विभाजित है कि इनके लिये विश्वसनीय मध्य मार्ग की खोज करना काफी मुश्किल है। परंतु ऐसे उपयोगी साधन भी मौजूद हैं जिनके माध्यम से एक सुरक्षित राह की ओर कदम बढ़ाए जा सकते हैं। 
  • परमाणु हथियारों वाले राज्यों में, सिविल सोसाइटी के कार्यकर्त्ता उन विशाल और भयावह विचारों को चुनौती दे सकते हैं जो परमाणु हथियारों के प्रयोग को बढ़ावा देते हैं।
  • गहन विश्लेषण परमाणु निवारण नीति के नकारात्मक परिणामों को प्रदर्शित कर सकते हैं।
  • विवादों को बढ़ावा देने के लिये यह उपयोगी है कि नीति निर्माताओं द्वारा परमाणु हथियारों में किये गए उनके निवेश को सही ठहराया जाए।
  • परमाणु हथियारों को प्रतिबंधित करने की इच्छा रखने वाले राष्ट्रों में, सिविल सोसाइटी के कार्यकर्त्ता ऐसी कार्रवाई और नीतियों को प्रोत्साहित कर सकते हैं जो सुरक्षा खतरों को कम करती हैं। 

आगे की राह

  • परमाणु निरस्त्रीकरण और परमाणु निवारण के मध्यमार्ग की तलाश करने के लिये उसी लक्ष्य और आदर्श की आवश्यकता होगी जो परमाणु प्रतिबंध संधि में निहित हैं।
  • परमाणु उपयोग के खतरे को न्यूनतम तथा इस तंत्र को पहचानने और बढ़ावा देने के लिये नवाचार और दृढ़ इच्छाशक्ति की आवश्यकता होगी।
  • युद्ध क्षेत्र के दोनों ओर स्थित राष्ट्रों और सिविल सोसाइटी कार्यकर्त्ताओं के मध्य विश्वास का सृजन करने की आवश्यकता होगी ताकि दोनों ओर के नागरिकों के मध्य आपसी सुरक्षा को साझा किया जा सके। 
  • उन राष्ट्रों में जो परमाणु हथियारों का निषेध करने की इच्छाशक्ति रखते हैं अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों और तंत्रों को इतना मज़बूत बनाया जाना चाहिये जिससे परमाणु हथियारों के प्रसार को रोका जा सके और परमाणु प्रौद्योगिकी के विश्वसनीय व शांतिपूर्ण उपयोग को बढ़ावा दिया जा सके।
  • परमाणु हथियार प्रतिबंध संधि और एनपीटी, सीटीबीटी (व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि) व परमाणु हथियार मुक्त क्षेत्र संधियों जैसी अन्य संधियों के बीच संबंध को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया जाना चाहिये।
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