प्रयागराज शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 29 जुलाई से शुरू
  संपर्क करें
ध्यान दें:

डेली अपडेट्स


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

लोगों के मानसिक स्वास्थ्य में बेहतरी के लिये बेसिक इनकम

  • 24 Feb 2017
  • 9 min read

सन्दर्भ

आपने मन में किसी मानसिक रोगी को देखते ही क्या विचार आते हैं? हम में से अधिकांश लोग उन्हें या तो दया की दृष्टि से देखते हैं, मानो वह दुनिया का सबसे अभिशप्त जीव हो, या फिर घृणा की दृष्टि से देखते हैं। भारत में मानसिक रोगों को लेकर लोगों के मन में अजीब अवधारणा है, मानसिक रोग को रोग माना ही नहीं जाता जबकि सच्चाई यह है कि जैसे हम सर्दी-जुकाम और बुखार से पीड़ित होते हैं ठीक वैसे ही मानसिक रोगों का भी शिकार बनते हैं। हालाँकि सरकार ने इस संबंध में कोई उल्लेखनीय प्रयास नहीं किया है, लेकिन हाल ही में चर्चा में आए बेसिक इनकम की अवधारणा की मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में उपयोगिता क्या है, इसको देखना दिलचस्प होगा।

उलझी हुई मानसिक स्वास्थ्य चिंताएँ

  • भारत तो मानसिक रोगियों का गढ़ है। हाल ही में राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य और स्नायु विज्ञान संस्थान ने बताया है कि भारत में 150 मिलियन लोग किसी न किसी प्रकार के मानसिक विकारों से ग्रसित हैं। राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य नीति की व्यावहारिकता पर गंभीर प्रश्नचिन्ह पहले ही लगा हुआ है। 
  • हम सभी इस तथ्य से अवगत हैं कि गरीबी और बीमारियाँ एक-दूसरे की पूरक हैं, लेकिन यदि हम मुख्य रूप से मानसिक रोगों की बात करें तो हमें स्वास्थ्य समस्याओं के संबंध में एक नया आयाम देखने को मिलता है। वह नया आयाम यह है कि भारत में महिलाएँ मानसिक रोगों का अधिक शिकार हैं। गौरतलब है कि भारत में आर्थिक विकास ने बिना किसी लैंगिक विभेद के हम सबको मानसिक रोगों को उपहार में दिया है लेकिन आज यदि महिलाएँ इस समस्या से ज़्यादा ग्रसित हैं तो इसके वाज़िब कारण भी हैं।
  • लैंगिक समानता के मामले में भारत अभी भी दुनिया के 150 देशों कि सूचि में नीचे से उच्च स्थानों पर काबिज़ है। बालिकाएँ स्कूल इसलिये नहीं जातीं ताकि अपने छोटे भाई बहनों का ख्याल रख सकें, उनके माता पिता अपने बच्चों का ख्याल इसलिये नहीं रख पाते क्योंकि उन्हें काम पर जाना है, बिना कमाए उन्हें खाने को नहीं मिलेगा क्योंकि वे असंगठित क्षेत्र में कार्य करने को विवश हैं। लड़कियों की वैधानिक उम्र से पहले ही शादी कर दी जाती है, फिर उन्हें स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ता है। लैंगिक भेदभाव, घरेलु हिंसा तथा अन्य सामाजिक समस्याओं के झेलने वाली महिला आज यदि पुरुषों की तुलना में अवसाद और तनाव का अधिक शिकार है तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिये।

क्या हो आगे का रास्ता 

  • बजटीय आवंटन की चिंताजनक स्थिति भी मानसिक स्वास्थ्य सुधारों में एक रोड़ा है, हमने देखा कि इस वर्ष आम बजट में स्वास्थ्य पर उल्लेखनीय व्यय के बावजूद मानसिक सुधारों के संबंध में कुछ नहीं किया गया है। लेकिन भारत में मानसिक स्वास्थ्य की बेहतरी के लिये बेसिक इनकम की अवधारणा का सफलतापूर्वक उपयोग किया जा सकता है।
  • विदित हो कि इसमें कोई दो राय नहीं है कि बेसिक इनकम का विचार भारत को अपनी जनता के स्वास्थ्य, शिक्षा और अन्य नागरिक सुविधाओं में सुधार के साथ उनके जीवन-स्तर को ऊपर उठाने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण प्रयास होगा लेकिन सबके लिये एक बेसिक इनकम तब तक सम्भव नहीं है जब तक कि वर्तमान में सभी योजनाओं के माध्यम से दी जा रही सब्सिडी को खत्म न कर दिया जाए। यहाँ एक महत्त्वपूर्ण काम किया जा सकता है, सभी भारतवासियों के लिये एक बेसिक इनकम की व्यवस्था करने के बजाए राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य और स्नायु विज्ञान संस्थान तथा अन्य एजेंसियों द्वारा मानसिक समस्यायों से ग्रसित लोगों की पहचान करते हुए, मानसिक रोगों के प्रति सर्वाधिक सन्वेदनशील तबके के लिये एक निश्चित आय की व्यवस्था कर देनी चाहिये।
  • हमारे यहाँ मानसिक रोगों को रोग माना ही नहीं जाता, नतीजन मानसिक रोग के शिकार दस में एक ही व्यक्ति का उपचार हो पाता है, बाकि 9 हमारे समाज में ही छिपे रहते हैं। हमारे समाज में ऐसे लोगों के प्रति अपमानजनक व नकारात्मकता का भाव रहता है, अतः लोगों को इस संबंध में जागरुक करना होगा और इसके लिये मानसिक रोगों के संबंध में कम से कम एक जागरूकता अभियान तो चलाना ही चाहिये लेकिन दुर्भाग्य से हम अब तक ऐसा करने में असफल रहें हैं।
  • एक बड़ी समस्या यह है कि मानसिक स्वास्थ्य की व्यवस्था में दवाइयों के माध्यम से उपचार पर ज़्यादा ध्यान दिया जा जाता है, जबकि वास्तव में परामर्श, समझ विकास, समाज में पुनर्वास, और मानसिक स्वास्थ्य शिक्षा पर सबसे अधिक ध्यान देने की ज़रूरत है। विदित हो कि वर्ष 2014 में मानसिक स्वास्थ्य नीति बनी और इसके साथ ही मानसिक स्वास्थ्य देखभाल विधेयक, 2013 संसद में आया था लेकिन यह विधेयक मानसिक रोगियों के साथ होने वाले दुर्व्यवहार और हिंसा के संबंध में बहुत स्पष्ट व्यवस्था बनाने में असफल रहा था, अतः भारत में मानसिक स्वास्थ्य में बेहतरी के लिये उपयुक्त कानूनी प्रावधानों का निर्माण को प्राथमिकता देना होगा।

निष्कर्ष 

  • आज अवसाद एवं तनाव हमारे जीवन के हिस्से बन चुके हैं जब महिलाओं के साथ उचित व्यवहार नहीं किया जाता और उनकी पीड़ा को महसूस करने की कोशिश नहीं की जाती है, तो वे अवसाद में चली जाती हैं। मजदूर को जब काम के बदले में मजदूरी नहीं मिलती है या जब किसान की फसल खराब हो जाती है, तब वह फसल संरक्षण के अभाव और उपेक्षा के कारण अवसाद में चला जाता है। अतः बेसिक इनकम के माध्यम से उनकी समस्याओं का समाधान किया जा सकता है। यहाँ सवाल यह उठता है कि कैसे लोगों को एक निश्चित राशि देना समस्याओं का समाधान होगा जब मनोचिकित्सक और अस्पताल ही न हों। हालाँकि इन चिंताओं के भी निर्मूल साबित होने की सम्भावना अधिक है, क्योंकि

→ एक शोध के अनुसार दिखाया गया है कि जैसे ही लोगों की आय बढ़ती है लोगों के पोषण में सुधार होता है स्कूलों में बच्चों की उपस्थिति और प्रदर्शन दोनों बेहतर होते हैं। बेसिक इनकम के माध्यम से गाँवों में लोगों के रहन-सहन के स्तर को सुधारा जा सकता है।
→ बेसिक इनकम से भूख और बीमारी से विवेकपूर्ण ढंग से निपटने में मदद मिल सकती है। यदि एक वाक्य में कहें तो बेसिक इनकम का विचार आय असमानता और इसके दुष्प्रभावों के श्राप से भारत को मुक्त कर सकता।

  • हम इस बात पर चर्चा कर चुके हैं कि कैसे गरीबी और सामाजिक असमानता से लोगों में अवसाद बढ़ता है, अतः बेसिक इनकम के माध्यम से लोगों के मानसिक स्वास्थ्य को सुधारने का यह विचार निश्चित ही स्वागत योग्य है।
close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2