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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

बांग्लादेश में फिर से अवामी लीग सरकार और भारत के हित

  • 01 Jan 2019
  • 8 min read

संदर्भ


पड़ोसी देश बांग्लादेश में 30 दिसंबर को आम चुनाव हुए, जिसमें शेख हसीना की अगुवाई में अवामी लीग गठबंधन को लगभग निरंकुश बहुमत मिला है। विपक्षी पार्टियों का महागठबंधन ओइकिया फ्रंट सिंगल डिजिट सीटों तक ही सिमट कर रह गया है। अब यह तय है कि शेख हसीना चौथी बार बांग्लादेश की प्रधानमंत्री बनने जा रही हैं। शेख हसीना के नेतृत्व वाली पार्टी अवामी लीग 2008 से बांग्लादेश में शासन कर रही है।

भारत के लिये ज़रूरी है बांग्लादेश में अवामी लीग सरकार


शेख हसीना सरकार के साथ भारत के रिश्ते बहुत अच्छे रहे हैं। ऐसे में उनका समर्थन करते हुए वहाँ की सरकार के साथ प्रत्यक्षतः तटस्थता बनाए रखना भारत के लिये ज़रूरी है, ताकि हमारा यह पड़ोसी देश विकास की राह पर निर्बाध आगे बढ़ सके।

  • भारत के साथ बांग्लादेश के न सिर्फ व्यापारिक संबंध पिछले कुछ सालों में बढ़े हैं, बल्कि अन्य पड़ोसी देशों की अपेक्षा बांग्लादेश हमेशा से भारत के निकट रहा है।
  • इसमें भाषा, भूगोल और सांस्कृतिक साम्य तो मददगार बने ही हैं, साथ ही मौके-बेमौके भारत के प्रति मित्रता और सहयोग का रवैया निभाकर बांग्लादेश ने इसके सुबूत भी दिये।
  • भारत के उत्तर-पूर्व में चल रही विद्रोही गतिविधियों को बांग्लादेश की धरती पर मिल रहे संरक्षण पर लगाम लगाने में शेख हसीना काफी हद तक सफल रही हैं।
  • दोनों देश आज रियल टाइम इंटेलीजेंस पर एक साथ काम करते हुए यदि आगे बढ़ रहे हैं, तो यह बांग्लादेश सरकार के भारत के प्रति सकारात्मक रुख के कारण ही संभव हुआ है।
  • पड़ोसियों के प्रति भारत की नीति इस ऑपरेटिव सिद्धांत पर आधारित है कि उन्हें अपनी नीतियाँ बनाते समय भारत के हितों को ध्यान में रखना होगा।
  • शेख हसीना की अगुवाई में बांग्लादेश ने इस सिद्धांत का न सिर्फ बखूबी पालन किया, बल्कि ऐसे किसी मौके का तीसरे पक्ष को लाभ उठाने का मौका भी नहीं दिया।
  • भारत और बांग्लादेश ने व्यापार तथा जहाज़ों के आवागमन के लिये अंतर्देशीय एवं तटीय जलमार्ग संपर्क बढ़ाने के संबंध में कई महत्त्वपूर्ण द्विपक्षीय समझौते किये हैं।
  • दोनों देशों के बीच 9 अरब डॉलर का द्विपक्षीय व्‍यापार होता है, जिसमें से बांग्‍लादेश 900 मिलियन डॉलर मूल्‍य की वस्‍तुओं का निर्यात करता है।
  • बांग्‍लादेश का खाद्य और पेय पदार्थों का वैश्विक आयात 5016.4 मिलियन डॉलर है, जिसमें भारत का 332.4 मिलियन डॉलर मूल्‍य के निर्यात के साथ पाँचवां स्‍थान है।
  • भारत और बांग्लादेश के बीच सीमा हाट भी बने हुए हैं, जो दोनों देशों की सीमा और दूर दराज रहने वाले लोगों का बाज़ार की पारंपरिक व्‍यवस्‍था, स्‍थानीय मुद्रा में स्‍थानीय उत्‍पादों की खरीद-बिक्री और वस्‍तु विनिमय को बढ़ावा देते हैं।

बांग्लादेश में शेख हसीना सरकार भारत के लिये क्यों ज़रूरी है, इस उदाहरण से स्पष्ट करते हैं...

खालिदा जिया के नेतृत्व वाले BNP के शासनकाल में भ्रष्टाचार विरोधी निगरानी संस्था ट्रांसपरेंसी इंटरनेशनल ने लगातार पाँच वर्षों तक बांग्लादेश को दुनिया में सबसे भ्रष्ट देश बताया था। उस दौरान बांग्लादेश में कट्टरवाद फला-फूला, राजनीतिक विरोधियों और देश के अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ हिंसा की कई घटनाएँ भी हुईं। अब देखना यह है कि एक बार फिर से बांग्लादेश में शेख हसीना की सरकार बनने के बाद भारत-बांग्लादेश संबंध और कितना मज़बूत होते हैं। लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं कि बांग्लादेश में शेख हसीना सरकार का मज़बूती से बने रहना ही भारत के हित में है।


शेख हसीना ने दिया था विकास का नारा


पिछले कुछ वर्षों में अवामी लीग के नेतृत्व में बांग्लादेश ने आर्थिक रूप से अपनी स्थिति में उल्लेखनीय सुधार किया है। अभी उसकी हालत पाकिस्तान से बेहतर है और यह चुनाव भी शेख हसीना ने विकास के मुद्दे पर ही लड़ा था। नतीजों से यह स्पष्ट है कि चौथी बार प्रधानमंत्री बनने वाली शेख हसीना बहुत मज़बूत होकर उभरी हैं और बांग्लादेश की जनता ने उनके शासनकाल में हुए विकास कार्यों की अनदेखी करना मुनासिब नहीं समझा है। उन्होंने ‘डेवेलपमेंट एंड डेमोक्रेसी फर्स्ट’ के साथ स्थायी विकास का नारा दिया था। बांग्लादेश के यह चुनाव बीते दशक में शेख हसीना द्वारा अपनाई गई नीतियों, उनके द्वारा चलाए गए कार्यक्रमों की परीक्षा भी बन गए थे। लेकिन ये नतीजे न सिर्फ उनकी नीतियों पर जनता की मुहर है, बल्कि इनमें भविष्य में संयत होकर काम करने का संदेश भी छिपा है।

शेख हसीना के सामने चुनौतियाँ


लेकिन शेख हसीना के लिये सब कुछ सुनहरा ही नहीं है, उनके सामने चुनौतियाँ भी कम नहीं हैं। पिछले कुछ समय से बांग्लादेश में इस्लामिक कट्टरपंथियों का उभार हुआ है और उन्होंने लोकतंत्र समर्थक कुछ ब्लॉगर्स की हत्या कर दी थी। इन कट्टरपंथियों पर अंकुश लगाना उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती है। राजनीतिक मतभेदों को लेकर अक्सर होने वाली हिंसा भी अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में बांग्लादेश की छवि को धूमिल करती है। शेख हसीना को अपनी सरकार को समावेशी बनाना होगा, जो कानून का सम्मान करते हुए सभी वर्गों से सरोकार रखने वाली हो।


विरोध न होना भी अच्छा नहीं


गौरतलब है कि बांग्लादेश की ‘जातीय संसद’ में कुल 350 सदस्य होते हैं, जिनमें 300 सीटों के लिये मतदान होता है, शेष 50 सीटें महिलाओं के लिये आरक्षित हैं, जिनके लिये निर्वाचित 300 प्रतिनिधि एकल समानुपातिक प्रतिनिधित्व के आधार पर वोट डालते हैं। बांग्लादेश की राजनीति लंबे समय से शेख हसीना और खालिदा जिया के इर्द-गिर्द ही सिमटी हुई है। बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) की अध्यक्ष बेगम खालिदा जिया भ्रष्टाचार के मामलों में दोषी ठहराए जाने के बाद जेल में सज़ा काट रही हैं। उनके बेटे तारिक रहमान को शेख हसीना को जान से मारने के षड्यंत्र में आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई गई है और वे लंदन में स्व-निर्वासन में रह रहे हैं। किसी सरकार का तीसरी बार इतने भारी बहुमत से सत्ता में लौटना आसान नहीं होता; और जब ऐसा होता है, तो उसके निरंकुश होने की आशंकाएँ भी बढ़ जाती हैं। 

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