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शासन व्यवस्था

स्वायत्त निकाय

  • 12 Sep 2020
  • 11 min read

यह संपादकीय विश्लेषण Autonomous bodies are crucial to the government’s functioning. Streamline them लेख पर आधारित है जिसे 11 सितंबर 2020 को हिंदुस्तान टाइम्स में प्रकाशित किया गया था। यह स्वायत्त निकायों के मुद्दों और उनकी उपयोगिताओं का विश्लेषण करता है।

संदर्भ

केंद्र सरकार ने हाल ही में अखिल भारतीय हस्तशिल्प बोर्ड, हथकरघा बोर्ड और पावर लूम बोर्ड को सरकार के न्यूनतम सरकार, अधिकतम शासन के दृष्टिकोण के अनुरूप समाप्त कर दिया है। वस्त्र मंत्रालय ने आठ वस्त्र अनुसंधान संघों का दर्ज़ा "संबद्ध निकाय" के बजाय "स्वीकृत निकाय" कर परिवर्तित कर दिया। तत्पश्चात, सरकार ने इन वस्त्र संघों के संचालन निकायों से वस्त्र मंत्रालय के अधिकारियों को हटा दिया। यह कम सरकारी हस्तक्षेप वाले तंत्र को प्राप्त करने एवं सरकारी निकायों के व्यवस्थित युक्तिकरण की शुरुआत करने के लिये साहसिक कदम है।इसके अतिरिक्त, कुछ समय से यह स्पष्ट था कि स्वायत्त निकायों में एक निर्धारित प्रशासनिक ढाँचे के बावजूद, शासन के कई मुद्दों की समीक्षा की आवश्यकता है।

स्वायत्त निकाय क्या हैं?

  • जब भी यह महसूस किया जाता है कि कुछ कार्यों को सरकारी तंत्र के दिन-प्रतिदिन के हस्तक्षेप के बिना स्वतंत्रता एवं कुछ लचीलेपन के साथ किये जाने की आवश्यकता है तब  स्वायत्त निकायों की स्थापना की जाती है।
  • ये मंत्रालय/विभागों द्वारा संबंधित विषय के साथ स्थापित किये जाते हैं और या तो पूर्णतः अथवा आंशिक रूप से अनुदान के माध्यम से वित्तपोषित होते हैं, यह इस पर निर्भर करता है कि इस तरह के संस्थान अपने स्वयं के आधार पर कितने आंतरिक संसाधन जुटाते हैं।
  • ये अनुदान वित्त मंत्रालय द्वारा उनके निर्देशों के साथ-साथ पदों के निर्माण की शक्तियों से संबंधित इत्यादि के लिये निर्देशों द्वारा विनियमित होते हैं।
  • अधिकतर स्वायत्त निकाय सोसायटी पंजीकरण अधिनियम के तहत सोसाइटी के रूप में पंजीकृत किये जाते हैं और कुछ मामलों में वे विभिन्न अधिनियमों में निहित प्रावधानों के तहत वैधानिक संस्थानों के रूप में स्थापित किये गये हैं।

स्वायत्त निकायों की कार्यक्षमता

  • स्वायत्त निकाय सरकार के कामकाज में एक प्रमुख हितधारक होते हैं क्योंकि वे नीतियों के लिये रूपरेखा तैयार करने, अनुसंधान का संचालन करने और सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने आदि से लेकर विभिन्न गतिविधियों में लगे हुए होते हैं।
  • स्वायत्त निकायों के शीर्ष प्रशासनिक निकाय को संचालन परिषद अथवा संचालन निकाय कहा जाता है और इनकी अध्यक्षता संबंधित मंत्रालय के मंत्री या सचिव द्वारा की जाती है।
  • इन स्वायत निकायों में नामित मंत्रालय के अधिकारियों के साथ क्रय समिति, कार्य समिति, वित्त समिति जैसी विशिष्ट समितियाँ होती हैं।
  • इन स्वायत्त निकायों का नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) द्वारा ऑडिट किया जाता है और प्रति वर्ष संसद में इनकी वार्षिक रिपोर्ट प्रस्तुत की जाती है।

स्वायत्त निकायों से संबंधित मुद्दे

उत्तरदायिता

  • ये निकाय करदाताओं के धन से वित्तपोषित होते हैं। हालाँकि, ऐसी शिकायतें आती रही हैं कि वे सरकार की नीतियों का पालन नहीं करते हैं, ये उसी प्रकार जवाबदेह हैं जिस तरह से सरकारी विभाग हैं।
  • यद्यपि मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों को स्वायत्त निकायों की समितियों की बैठकों में उपस्थित होना आवश्यक होता है, लेकिन उनमें से अधिकतर अपनी व्यस्तता के कारण उपस्थित नहीं होते हैं।
  • वे कनिष्ठ अधिकारियों को नामित करते हैं जिनके पास बैठकों के दौरान सार्थक निर्णय लेने के लिये अक्सर अधिकार क्षेत्र का अभाव होता है।

अपारदर्शी नियुक्तियाँ

  • इन निकायों की सटीक संख्या ज्ञात नहीं है, अनुमानों के मुताबिक इनकी संख्या 400 से 650 के मध्य है।
  • स्वायत्त निकाय काफी संख्या में लोगों को रोज़गार प्रदान करते हैं। उदाहरण के लिये, कृषि मंत्रालय के तहत एक स्वायत्त निकाय भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद में लगभग 17,000 कर्मचारी हैं।
  • हालाँकि, सरकारी एवं सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के विपरीत, जिनमें भर्ती नियम एक समान होते हैं और भर्ती एक केंद्रीकृत निकाय द्वारा की जाती है जैसे कि कर्मचारी चयन आयोग (SSC), संघ लोक सेवा आयोग (UPSC), ऐसी नियुक्तियों के लिये ऐसा कोई निकाय नहीं होता है।
  • परिणामस्वरूप इन निकायों में से प्रत्येक निकाय की नियुक्ति के नियम एवं नियुक्ति प्रक्रियाएँ अलग-अलग होती हैं, कभी-कभी समान मंत्रालय के तहत अलग स्वायत्त निकायों के नियुक्ति के नियम अलग-अलग होते हैं।

परिकल्पित लक्ष्य की अवेहलना

  • ये सभी बोर्ड अव्यवहारिक हो गए हैं और उन्होंने उस उद्देश्य की पूर्ति नहीं की है जिसके लिये उनकी कल्पना की गई थी।
  • बोर्डों की प्रकृति केवल सलाहकार की थी और वे नीति-निर्माण को प्रभावित करने में विफल रहे, जबकि वे एक 'बिचौलिया संस्कृति' के उद्भव के साथ "राजनीतिक संरक्षण" के साधन बन गए, जिन्होंने बुनकरों के हितों की पूर्ति नहीं की।
  • इन बोर्डों की संरचना में सरकार को सलाह देने के लिये बड़ी संख्या में गैर-आधिकारिक सदस्यों को जगह दी गई थी।

असमान ऑडिटिंग

  • ऑडिट की कोई एक समान प्रक्रिया नहीं है।
  • कुछ स्वायत्त निकाय CAG द्वारा ऑडिट किये जाते हैं जबकि कुछ चार्टेर्ड एकाउंटेंट द्वारा किये जाते हैं।

आगे की राह

कानूनी ढाँचा

  • एक कानूनी ढाँचा तैयार किया जाना चाहिये जो इनकी कार्य सीमाओं, इनकी स्वायत्तता और विभिन्न नीतियों को परिभाषित करे, जिनका पालन इन निकायों द्वारा किया जाना चाहिये।
  • साथ ही यह स्वायत्त निकायों की संख्या पता करने में मदद करेगा।

व्यापक समीक्षा

  • प्रत्येक मंत्रालय को अपने क्षेत्राधिकार के तहत आने वाले स्वायत्त निकायों की व्यापक समीक्षा करने की आवश्यकता होगी।
  • स्वायत्त निकायों, जिन्होंने उस कारण से अधिक कार्य किया है जिसके लिये उनकी स्थापना की गई थी, उन्हें बंद करने या किसी समान संगठन के साथ विलय करने की आवश्यकता हो सकती है या उनके अधिदेश को नये चार्टर के अनुसार बदल जा सकता है।

अखिल भारतीय नियुक्ति एजेंसी

  • नीतियों में एकरूपता लाने के लिये, एसएससी या यूपीएससी जैसी अखिल भारतीय एजेंसी के तहत एक कार्यबल स्थापित करने की आवश्यकता है।
  • यह नियुक्ति नियमों, वेतन संरचना और कर्मचारियों को दिये जाने वाले भत्तों और नियुक्ति प्रणाली को सुव्यवस्थित करेगा।

समन्वित दृष्टिकोण

  • मंत्रालय के अधिकारियों की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिये, समान स्वायत्त निकायों की समितियों की बैठकें एक साथ आयोजित की जानी चाहिये ताकि उपयुक्त अधिकारी सार्थक सुझाव प्रदान कर सकें।
  • यह भी आरोप लगाया जाता है कि स्वायत्त निकायों द्वारा उठाए गये अधिकांश एजेंडा आइटम प्रकृति में नियमित हैं। इसे हतोत्साहित किया जाना चाहिये, और इस तरह की बैठकों में केवल महत्त्वपूर्ण नीतिगत मुद्दों जिनमें मंत्रालय के हस्तक्षेप की आवश्यकता है, को उठाया जाना चाहिये।

समान स्वतंत्र ऑडिटिंग

  • स्वायत्त निकायों  की ऑडिट एक स्वतंत्र एजेंसी द्वारा की जानी चाहिये।
  • CAG ने वर्ष 2016 में स्वायत्त वैज्ञानिक निकायों का एक संपूर्ण प्रदर्शन ऑडिट किया था, जिसमें उनके प्रदर्शन में कमियों को उजागर किया गया था।
  • इस तरह के विषय आधारित ऑडिट अन्य स्वायत्त निकायों के लिये भी किये जाने चाहिये।

निष्कर्ष

  • इन सभी वर्षों के दौरान, ये स्वायत्त निकाय एक आधिकारिक मंच बने हुए हैं, जहाँ विभिन्न हितधारकों की आवाज़ और विचारों को प्रत्यक्ष रूप से व्यक्त किया जा सकता है।
    • ये विविधता लाते हैं और अधिक समावेशी तरीके से सरकार की नीतियों को आकार दे सकते हैं।
  • स्वायत्त निकायों की नीतियों में एकरूपता लाने, उनकी बैठकों में वरिष्ठ अधिकारियों की उपस्थिति सुनिश्चित करने और स्वतंत्र ऑडिट करने की तत्काल आवश्यकता है।

दृष्टि मेंस प्रश्न: "स्वायत्त निकाय सरकार के कामकाज के लिये बहुत महत्त्वपूर्ण हैं। अतः उन्हें सुव्यवस्थित करने की तत्काल आवश्यकता है”। कथन पर प्रकाश डालते हुए स्वायत्त निकायों की भूमिका और उनके संचालन के मुद्दों पर चर्चा करें।

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