अंतर्राष्ट्रीय संबंध
कितना प्रासंगिक होगा बॉन सम्मेलन?
- 10 Nov 2017
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भूमिका
इस वर्ष 6 नवंबर से 17 नवंबर के बीच दुनिया के सभी नेताओं, विभिन्न देशों और व्यापारिक क्षेत्र के प्रतिनिधियों के साथ-साथ मीडिया और नागरिक समाज के प्रतिनिधियों द्वारा संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (United Nations Framework Convention on Climate Change - UNFCCC) के दलों के 23वें सम्मेलन (23rd Conference of Parties -COP) का आयोजन किया जा रहा है। इस सम्मेलन का आयोजन जर्मनी के बॉन शहर में किया जाएगा।
- इस बैठक के अंतर्गत मुख्य रूप से पेरिस समझौते (Paris Agreement - PA) के कार्यान्वयन से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।
- ध्यातव्य है कि कोप -21 के दौरान पी.ए. के संबंध में पहल शुरू की गई थी, जिसे 4 नवंबर, 2016 को कानूनी तौर पर बाध्यकारी बनाते हुए सभी सदस्य देशों पर लागू किया गया।
बॉन सम्मेलन से संबंधित तथ्य
- कोप-23 की अध्यक्षता फिजी के प्रधानमंत्री फ्रैंक बैनिमारामा (Frank Bainimarama) द्वारा की जाएगी।
- यह एक अच्छी बात है कि इस साल के कोप की अध्यक्षता प्रशांत द्वीप के किसी राष्ट्र द्वारा की जा रही है। इसका कारण यह है कि जलवायु परिवर्तन के कारण समुद्र के जल-स्तर में निरंतर वृद्धि हो रही है, जिससे छिछले जल वाले द्वीपों का अस्तित्व संकट में है।
- बॉन सम्मेलन में ऐसे बहुत से मुद्दों, जिनके अंतर्गत जलवायु परिवर्तन के कारण तापमान में होने वाली वृद्धि के साथ सामंजस्य स्थापित करना, जलवायु परिवर्तन के अनुकूलन एवं ग्रीनहाउस गैसों में कमी लाना तथा शमन संबंधी प्रयास करना आदि के संबंध में चर्चा होने की संभावना है।
- इसके अतिरिक्त सम्मेलन में जलवायु परिवर्तन के कारण अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले प्रभावों की समीक्षा करते हुए हानि और क्षति के संबंध में सत्र भी संचालित किये जाएंगे।
- अंततः इसके अंतर्गत पेरिस समझौते के दौरान तय किये गए लक्ष्यों के कार्यान्वयन के बारे में चर्चा की जाएगी। इन लक्ष्यों को एन.डी.सी. (Nationally Determined Contributions - NDCs) के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।
- साथ ही अमीर देशों से विकासशील देशों हेतु इन लक्ष्यों की पूर्ति के लिये वित्त, क्षमता निर्माण एवं प्रौद्योगिकी हस्तांतरण जैसे मुद्दे भी पेरिस समझौते के अंतर्गत शमिल हैं।
- यू.एन.एफ.सी.सी.सी. की प्रक्रियाओं के अनुसार, बॉन में होने वाली बैठकों में कोप -23 के सत्र को शामिल किये जाने के साथ-साथ सी.एम.पी. – 13 (Conference of the Parties serving as the meeting of the Parties to the Kyoto Protocol (CMP 13) और सी.एम.ए. - 1.2 (Conference of the Parties serving as the meeting of the Parties to the Paris Agreement (CMA 1.2) के पहले सत्र के दूसरे भाग को भी शामिल किया जाएगा।
- उल्लेखनीय है कि पेरिस समझौते और क्योटो प्रोटोकॉल के संबंध में निर्णय लेने वाले निकाय क्रमशः कोप, सी.एम.पी. एवं सी.एम.ए. हैं।
- इसके अलावा, बॉन बैठकों में विज्ञान और प्रौद्योगिकी के संबंध में सहयोग हेतु एस.बी.एस.टी.ए. - 47 (Subsidiary Body for Scientific and Technological Advice - SBSTA 47) के 47वें सत्र तथा एस.बी.आई. 47 (Subsidiary Body for Implementation - SBI 47), जो कि आकलन एवं समीक्षा के माध्यम उपरोक्त तीनों निकायों की सहायता करता है, को भी शामिल किया जाएगा।
- इसके साथ-साथ पेरिस समझौते के तदर्थ कार्य समूह की भी बैठक होगी तथा एन.डी.सी., अनुकूलन, पारदर्शिता एवं वैश्विक शेयरधारकों जैसे महत्त्वपूर्ण मुद्दों के संबंध में कार्यवाही की जाएगी।
तापमान में कमी करने का लक्ष्य
- पेरिस कोप में देशों द्वारा ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस पर सीमित करने की कोशिश करने हेतु सहमति व्यक्त की गई थी। लेकिन, पिछली चर्चाओं का मुख्य केंद्र बिंदु केवल 2 डिग्री सेल्सियस के बिंदु पर ही केंद्रित रहा, जिसमें आवश्यकतानुसार नीतियों को परिवर्तित करने तथा लक्ष्य के स्तर में कमी करने संबंधी मुद्दों पर अधिक ध्यान दिया गया।
- भले ही इन लक्ष्यों में आधा डिग्री की कमी वास्तविक रूप में बहुत कम लगे, लेकिन पारिस्थितिक तंत्र, भू-भौतिकीय चक्र एवं पृथ्वी के विविध जीवन रूपों पर इसके प्रभावों के संदर्भ में यह एक बहुत महत्त्वपूर्ण अंतर उत्पन्न करती है।
- आई.पी.सी.सी. (Intergovernmental Panel on Climate Change - IPCC) द्वारा तापमान के पूर्व औद्योगिक स्तरों से 1.5 डिग्री सेल्सियस के ऊपर रहने के कारण तापन के प्रभावों और इस संबंध में आवश्यक वैश्विक प्रतिक्रिया हेतु एक विशेष रिपोर्ट तैयार करने का कार्य किया जा रहा है।
- कई वैज्ञानिकों द्वारा जलवायु परिवर्तन के बारे में की गई शोध में यह माना है कि हम एक ऐसी स्थिति की ओर तेज़ी से अग्रसर हो रहे हैं जहाँ पृथ्वी का तापमान 4 डिग्री सेल्सियस से अधिक होगा। इसके बावजूद अभी भी हम तापमान में केवल 1.5 डिग्री सेल्सियस की कमी लाने के संबंध में जद्दोजहद कर रहे हैं।
- हाल ही में नेचर जीयो-साइंस में प्रकाशित एक पत्र में इस बात का पूरा विश्लेषणत्मक अध्ययन प्रस्तुत किया गया है कि ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करना अभी तक भू-भौतिकी रूप से असंभव ही प्रतीत होता है।
- हालाँकि, यह ग्लोबल वार्मिंग के संबंध में वर्ष 2030 हेतु हमारी वचनबद्धता को पूरा करने, शमन लक्ष्यों के संबंध में और अधिक तेज़ी लाने एवं गहराई से कार्य करने तथा वैश्विक चर्चाओं और राष्ट्रीय लक्ष्यों की मौजूदा परिस्थितियों के आधार पर प्रभावी कार्य करने को मज़बूती प्रदान करेगा।
- इस संबंध में पेरिस समझौते के अनुच्छेद 14 के अंतर्गत उक्त लक्ष्यों के बारे में उल्लेख करते हुए इसका समीक्षात्मक विवरण तथा दीर्घकालिक लक्ष्यों हेतु प्रगति करने के संबंध में विस्तार से जानकारी दी गई है।
- इसके प्रथम चरण में वर्ष 2023 तक शमन, अनुकूलन संचार और कार्यान्वयन हेतु सभी पहलुओं को कवर किया जाएगा। इस संबंध में आवश्यक बैठकों का संचालन होना आरंभ हो गया है।
- यही कारण है कि कोप बैठकों में अनुकूलन के केंद्रीय मुद्दे के रूप में मौजूद होने की उम्मीद की जा रही है, इसमें भी अधिकांश भाग शमन के मुद्दे पर केंद्रित है।
देश एवं उनके समक्ष उपस्थित चुनौतियाँ
- ध्यातव्य है कि संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा पी.ए. से बाहर निकलने के बाद यह कोप की पहली बैठक है। स्पष्ट है कि वैश्विक मंच पर इसका प्रभाव अधिक स्पष्ट रूप से परिलक्षित होने की संभावना है।
- अमेरिका के भीतर कई राज्यों एवं शहरों में रहने वाले हज़ारों व्यवसाइयों और मशहूर हस्तियों द्वारा इस संबंध में देश भर में स्वैच्छिक कार्य शुरू किये गए हैं।
- इसके अलावा, अमेरिका के बॉन कोप में शामिल होने के संबंध में बहुत सी अटकलें लगाई जा रही हैं। संभवतः अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल इन बैठकों में शामिल हो भी सकता है और नहीं भी, अभी कुछ भी कहना जल्दबाज़ी होगा। इसके इतर पी.ए. के अन्य प्रमुख हस्ताक्षरकर्त्ता देशों द्वारा इसके प्रति अपनी प्रतिबद्धता की दोबारा पुष्टि की गई है।
निष्कर्ष
विख्यात जलवायु वैज्ञानिक जेम्स हेन्सन के अनुसार, एक दशक पहले की तुलना में कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन के स्तर में तेज़ी से वृद्धि हो रही है और इस संबंध में वैश्विक एवं राज्य स्तरों पर जो प्रयास किये जा रहे हैं उनका लेवल बहुत निम्नस्तरीय है। नतीजतन, युवा लोग "परिणाम की अवधि में प्रवेश कर रहे हैं"। स्पष्ट है कि आज की प्रचलित राजनीतिक परिस्थितियाँ पेरिस समझौते की पुनर्व्याख्या के लिये अनुकूल प्रतीत नहीं होती हैं। चूँकि पृथ्वी के साथ-साथ इसके निवासियों को अभी भी जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटना होगा, इसलिये इस समय हमारी एकमात्र आशा विश्व के सभी देशों की ओर से तत्कालीन रूप से इस कठिन स्थिति के संबंध में समझौता करने और ईमानदारी से इसके तहत निर्धारित लक्ष्यों को साधने हेतु किये जाने वाले प्रयासों से बंधी हुई है। स्पष्ट रूप से इस दिशा में और अधिक गंभीरता से विचार किये जाने की आवश्यकता है।