आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के उपयोग और उनसे जुड़ी सावधानियाँ! | 08 Aug 2017

हॉलीवुड फिल्मों में हम मशीनों एवं मानवों की जंग देख चुके हैं और प्रायः इन्हें हम फंतासी कथाओं की संज्ञा देते आए हैं। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस अर्थात् मशीनों को मानवीय भावों से युक्त करने की कवायद आरम्भ हो चुकी है।

हाल ही में सोशल नेटवर्क फेसबुक के संस्थापक मार्क ज़ुकरबर्ग एआई यानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के समर्थन में दिखे थे, वहीं ‘ओपन एआई’ (open AI) नामक एक गैर-लाभकारी कंपनी चलाने वाले एलोन मस्क ने इसे विनाशकारी बताया है।

दरअसल, जुकरबर्ग और मस्क दो अलग-अलग विचारों के चेहरे मात्र हैं, एआई की अवधारणा के प्रतिपादन के समय से ही इसके विघटनकारी प्रभावों को लेकर बहस ज़ारी है।

यह सच है कि एआई विघटनकारी प्रमाणित हो सकता है, लेकिन इसके फायदे भी कम नहीं हैं। इस आलेख में हम एआई से होने वाले लाभ और नुकसान दोनों की चर्चा करेंगे, लेकिन पहले देखते हैं कि एआई है क्या ?

क्या है आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ?

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (Artificial Intelligence) के जनक जॉन मैकार्थी के अनुसार यह बुद्धिमान मशीनों, विशेष रूप से बुद्धिमान कंप्यूटर प्रोग्राम को बनाने का विज्ञान और अभियांत्रिकी है। दूसरे शब्दों में यह मशीनों द्वारा प्रदर्शित इंटेलिजेंस है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस एक कंप्यूटर द्वारा नियंत्रित रोबोट या फिर मनुष्य की तरह इंटेलिजेंस तरीके से सोचने वाला एक सॉफ़्टवेयर बनाने का तरीका है।

यह इसके बारे में अध्ययन करता है कि मानव मस्तिष्क कैसे सोचता है और समस्या को हल करते समय कैसे सीखता है, कैसे निर्णय लेता है और कैसे काम करता। माना जाता है कि एआई का आरंभ 1950 के दशक में ही हो गया था, लेकिन इसकी महत्ता को 1970 के दशक में पहचान मिली।

जापान ने सबसे पहले इस ओर पहल की। उन्होंने 1981 में फिफ्थ जनरेशन नामक योजना की शुरुआत की थी। इसमें सुपर कंप्यूटर के विकास के लिये दस वर्षीय कार्यक्रम की रूपरेखा प्रस्तुत की गई थी। इसके बाद अन्य देशों ने भी इस ओर ध्यान दिया।

ब्रिटेन ने इसके लिये एल्वी नाम का एक प्रोजेक्ट बनाया। यूरोपीय संघ के देशों ने भी एस्प्रिट नाम से एक कार्यक्रम की शुरुआत की थी। इसके बाद 1983 में कुछ निजी संस्थाओं ने मिलकर एआई पर लागू होने वाली उन्नत तकनीकों जैसे वीएलएसआई का विकास करने के लिये एक संघ ‘माइक्रोइलेक्ट्रॉनिक्स एण्ड कम्प्यूटर टेक्नॉलॉजी’ की स्थापना की।

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की उपयोगिता:

रोज़गार पर प्रभाव:- तीसरी औद्योगिक क्रांति के दौरान इलेक्ट्रॉनिक्स तथा सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी ने उम्मीद के ठीक विपरीत रोज़गार के प्रचुर अवसर उपलब्ध कराए। गौरतलब है कि 1970 के दशक में जब पहली बार स्वचालित टेलर मशीन (एटीएम) बाज़ारों में पहुँचा तो लोगों को लगा कि यह खुदरा बैंकिंग में श्रमिकों के लिये एक आपदा के समान है। 

लेकिन, वास्तव में बैंकिंग सेवा क्षेत्र की नौकरियों में वृद्धि देखी गई। अनेक विशेषज्ञों का मानना है कि तकनीकीकरण से रोज़गार की उपलब्धता में कमी नहीं आती, बल्कि रोज़गार के तरीके बदल जाते हैं। अतः एआई से रोज़गार में कमी नहीं आएगी, बल्कि रोज़गार की प्रकृति बदल जाएगी।

क्षमता वृद्धि:- मशीनों का प्रयोग जटिल कार्यों के लिये किया जाता है। एआई द्वारा किया गया कार्य मनुष्यों की तुलना में कम खतरनाक होता है। एआई के उपयोग से गलतियों की कम संभावना होगी और जटिल सॉफ्टवेयर को आसानी से समझने लायक बनाया जा सकता है। संसाधनों तथा समय के व्यय को कम किया जा सकता है, जिससे कम समय में वांछित परिणाम प्राप्त किए जा सकते हैं।

क्यों ज़रूरी है सावधानी बरतना ?

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से हमारे रहने और कार्य करने के तरीकों में व्यापक बदलाव आएगा। रोबोटिक्स और वर्चुअल रियलिटी जैसी तकनीकों से तो उत्पादन और निर्माण के तरीकों में क्रान्तिकारी परिवर्तन देखने को मिलेगा। ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय के एक अध्ययन के मुताबिक अकेले अमेरिका में अगले दो दशकों में डेढ़ लाख रोज़गार खत्म हो जाएंगे।

हो सकता है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की दुनिया में रोज़गार जनित चुनौतियों से हम निपट लें, लेकिन सबसे बड़े खतरे को टालना मुश्किल होगा। अतः स्पष्ट है कि आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस युक्त मशीनों से जितने फायदे हैं, उतने ही खतरे भी हैं।

विशेषज्ञों का कहना है कि सोचने-समझने वाले रोबोट अगर किसी कारण या परिस्थिति में मनुष्य को अपना दुश्मन मानने लगें, तो मानवता के लिये खतरा पैदा हो सकता है। सभी मशीनें और हथियार बगावत कर सकते हैं। ऐसी स्थिति की कल्पना हॉलीवुड की "टर्मिनेटर" जैसी फिल्म में की गई है।

यही कारण है कि जल्द ही संयुक्त राष्ट्र संघ में इस मुद्दे पर विचार-विमर्श के लिये विभिन्न देशों के विशेषज्ञों के एक आधिकारिक समूह की बैठक होने वाली है।

निष्कर्ष

इंटेलिजेंट यानी अक्लमंद होना मानव का मुख्य गुण है। हमारी सभ्यता ने जो भी उपलब्धियाँ हासिल की हैं, वे मानव-बुद्धि का ही नतीजा हैं। फिर चाहे आग के इस्तेमाल में महारत हासिल करना हो, अनाज उपजाना हो या ब्रह्मांड को समझना।

दरअसल, आज आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी कृत्रिम बुद्धिमता पर दुनिया भर में बड़े पैमाने पर अध्ययन हो रहे हैं। इसमें भारी निवेश भी हो रहा है। जब हमारा दिमाग किसी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से संचालित होगा, तो हम किस उपलब्धि को पा सकते हैं, यह अनुमान भी नहीं लगाया जा सकता। संभव है कि इस नई क्रांति के बूते हम उस नुकसान की भी भरपाई कर सकें, जो औद्योगिकीकरण की वज़ह से इस संसार को हुआ है।

इसके पास यह ताकत भी है कि हम गरीबी और बीमारी को खत्म करने का अपना लक्ष्य पाने में सफल होंगे। संक्षेप में कहें, तो आर्टिफिशियल इंजेलिजेंस का निर्माण हमारी सभ्यता के इतिहास की सबसे बड़ी घटना होगी।

हालाँकि सच यह भी है कि अगर हमने इसके जोखिम से बचने का तरीका नहीं ढूँढा, तो सभ्यता खत्म भी हो सकती है। तमाम लाभ के बावजूद आर्टिफिशियल इंजेलिजेंस के अपने खतरे हैं। इसकी मदद से शक्तिशाली स्वचालित हथियार बन सकते हैं या फिर ऐसे उपकरण, जिनके सहारे चंद लोग एक बड़ी आबादी का शोषण कर सकें। यह अर्थव्यवस्था को भी बड़ी चोट पहुँचा सकती है। 

कुल मिलाकर एक सशक्तिशाली कृत्रिम बुद्धिमता का उदय हमारे लिये फायदेमंद भी होगा और नुकसानदेह भी। फिलहाल हम नहीं जानते कि इसका स्वरूप आगे क्या होगा? इसीलिये इस संदर्भ में और ज़्यादा शोध किए जाने की ज़रूरत है।