भारतीय राजनीति
कैसे रुके प्रवासी श्रमिकों का पलायन?
- 26 Oct 2018
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संदर्भ
हाल ही में गुजरात के साबरकांठा ज़िले में भड़की हिंसा के पश्चात् उत्तरी गुजरात के औद्योगिक क्षेत्र से हज़ारों प्रवासी श्रमिक भाग गए। इसके चलते सानंद, साबरकांठा, पाटन और अरावली के आसपास के इलाकों में ऑटो, फार्मा, सिरेमिक, कपास ओटाई (ginning), उर्वरक और रसायन तथा निर्माण जैसे कई उद्योग प्रभावित हुए। प्रवासी श्रमिक भारतीय अर्थव्यवस्था का महत्त्वपूर्ण हिस्सा हैं और कोई भी अर्थव्यवस्था जो प्रवासी श्रमिकों पर बहुत अधिक निर्भर हो वह इन श्रमिकों के अभाव में बहुत अधिक विकास नहीं कर सकती। इस लेख के माध्यम से प्रवासन के कारणों, प्रवासी श्रमिकों की समस्याओं, उनसे जुड़े मुद्दों और उनके अधिकारों पर प्रकाश डालेंगे।
लोग प्रवास क्यों करते हैं?
- ग्रामीण इलाकों का कृषि आधार वहाँ रहने वाले सभी लोगों को रोज़गार प्रदान नहीं करता है। क्षेत्रीय विकास में असमानता लोगों को ग्रामीण से शहरी क्षेत्रों में स्थानांतरित होने के लिये मजबूर करती है।
- शैक्षणिक सुविधाओं की कमी के कारण विशेष रूप से उच्च शिक्षा प्राप्त लोग इस उद्देश्य की पूर्ति के लिये लिये ग्रामीण लोगों को शहरी क्षेत्रों में स्थानांतरित होने के लिये प्रेरित करते हैं।
- राजनीतिक अस्थिरता और अंतर-जातीय संघर्ष के कारण भी लोग अपने घरों से दूर चले जाते हैं। उदाहरण के लिये, पिछले कुछ वर्षों में अस्थिर परिस्थितियों के कारण जम्मू-कश्मीर और असम से बड़ी संख्या में लोग प्रवास कर चुके हैं।
- गरीबी और रोज़गार के अवसरों की कमी लोगों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने के लिये प्रेरित करती है।
- बेहतर तृतीयक स्वास्थ्य और वित्तीय सेवाओं का लाभ उठाने के लिये लोग बेहतर चिकित्सा सुविधाओं की तलाश में अल्पावधि के आधार पर भी प्रवासन करते हैं।
- भोजन की कमी, जलवायु परिवर्तन, धार्मिक उत्पीड़न, गृहयुद्ध जैसे अन्य कारक भी लोगों को आंतरिक प्रवासन की ओर अग्रसर करते हैं।
भारतीय अर्थव्यवस्था में प्रवासन का महत्त्व
- प्रवासी श्रमिकों का होना भारतीय अर्थव्यवस्था के लिये अनिवार्य हैं। गुजरात जैसे कई अन्य राज्यों में विनिर्माण और निर्माण क्षेत्रों से संबंधित कई छोटे और मध्यम उद्यमों में सस्ते श्रम प्रदान करके ये प्रवासी श्रमिक राज्य के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
- आर्थिक सर्वेक्षण (2016-17) प्रवासन पर एक पूरे अध्याय को शामिल करता है। इसके अनुसार, 2001 और 2011 के बीच सालाना औसत अंतर्राज्यीय श्रमिक प्रवासन 5-6 मिलियन था।
प्रवासियों से जुड़े मुद्दे
1. राजनीतिक मुद्दे
- राजनीतिक वर्ग प्रवासित श्रमिकों विशेष रूप से अंतर्राज्यीय प्रवासियों की समस्याओं को अनदेखा करता है क्योंकि उन्हें वोट बैंक के रूप में नहीं गिना जाता है।
- उनकी प्रवासन प्रकृति के कारण, उन्हें ट्रेड यूनियनों के घोषणापत्र में भी कोई जगह नहीं मिलती है।
- उचित दस्तावेज़ों की कमी उनकी स्थिति को और अधिक कमज़ोर बना देती है जिससे पुलिस और अन्य स्थानीय अधिकारियों द्वारा उनका उत्पीड़न किया जाता है।
2. सामाजिक-सांस्कृतिक मुद्दे
- लाखों अकुशल और प्रवासी श्रमिक अस्थायी झोपड़ियों (आमतौर पर टिन शीट से बने) या सड़कों पर अथवा नगर पालिकाओं द्वारा गैर-मान्यता प्राप्त झोपड़ियों और अवैध बस्तियों में रहते हैं।
- वे न तो अपने घरों में अपनी परिस्थितियों में सुधार करने और अधिक बचत करने में सक्षम होते हैं और न ही उस स्थान पर आराम से रहने के लिये पर्याप्त बचत कर पाते हैं जहाँ वे काम करते हैं।
- सांस्कृतिक मतभेद, भाषा संबंधी बाधाएँ, समाज से अलगाव, मातृभाषा में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की कमी जैसे कुछ अन्य मुद्दों का भी सामना करना पड़ता है।
- बहुत कम प्रवासियों को उनके कानूनी और आर्थिक अधिकारों के बारे में पता होता है। साथ ही बहुमत वर्ग के नागरिक भी पीड़ितों की दुर्दशा के प्रति उदासीन रहते हैं।
- नौकरी के अवसरों को सीमित करने के कारण प्रवासियों को नाराज़गी का शिकार होना पड़ता है, क्योंकि राज्य के लोग उनकी मौज़ूदगी को वर्तमान नौकरियों पर अतिक्रमण के रूप में देखते हैं।
3. आर्थिक मुद्दे
- मौसमी प्रवासियों को निर्माण, होटल, कपड़ा, विनिर्माण, परिवहन, सेवाएँ, घरेलू कार्य इत्यादि जैसी अनौपचारिक नौकरियाँ करने के लिये मजबूर होना पड़ता है। ये नौकरियाँ जोखिमपूर्ण और कम भुगतान वाली होती हैं।
- स्वास्थ्य सेवाओं तक प्रवासी श्रमिकों की उचित पहुँच न होने के कारण उन्हें प्रतिकूल स्वास्थ्य का सामना करना पड़ता है। चूँकि वे निजी अस्पतालों का खर्च नहीं उठा सकते हैं, इसलिये वे अक्सर बीमार पड़ने के बाद अपने गाँवों को वापस लौट जाते हैं। इससे उन्हें रोज़गार के अवसर के साथ-साथ मज़दूरी का भी नुकसान होता है।
- बड़ी संख्या में प्रवासियों को अकुशल मज़दूरों के रूप में काम मिलता है क्योंकि वे बहुत कम उम्र में नौकरी के क्षेत्र में प्रवेश करते हैं और अपने पूरे जीवन-काल के लिये सबसे अकुशल, कम भुगतान वाली और जोखिमपूर्ण नौकरियों में फँस जाते हैं।
- एक असंगठित और अराजक श्रम बाज़ार में प्रवासी श्रमिकों को नियमित रूप से कार्यस्थल पर विवादों का सामना पड़ता है।
- प्रवासी श्रमिकों द्वारा सामना किये जाने वाले आम मुद्दों में मज़दूरी का भुगतान न किया जाना, शारीरिक दुर्व्यवहार और दुर्घटनाएँ शामिल हैं।
आगे की राह
- यदि राज्य से प्रवासी श्रमिकों को जाने के लिये मज़बूर किया जाता है, तो उद्योग अपनी प्रतिस्पर्द्धात्मकता खो देंगे क्योंकि श्रम लागत में उल्लेखनीय वृद्धि होगी।
- राज्य को स्थानीय लोगों की उच्च भर्ती की बजाय रोज़गार को अधिक प्रोत्साहन प्रदान करने के लिये एक और समग्र नीति का पालन करना होगा।
- कार्यस्थलों पर श्रम कानूनों का प्रवर्तन और व्यापक कानून का अधिनियमन किया जाना चाहिये, अंतर्राज्यीय प्रवासी श्रमिक अधिनियम समेत मौजूदा श्रम कानूनों का कठोर प्रवर्तन आवश्यक है।
- प्रवासी श्रमिकों के लिये पूरे भारत में श्रम बाज़ार को विभाजित किया जाना चाहिये और कार्यकाल की सुरक्षा के साथ एक अलग श्रम बाज़ार विकसित किया जाना चाहिये।
- प्रवासी श्रमिक आवश्यक बुनियादी सुविधाओं का लाभ उठा सकें इसके लिये सरकार द्वारा उन्हें पहचान-पत्र जारी किया किया जा सकता है।
- ग्रामीण-शहरी प्रवास को कम करने के लिये छोटे और मध्यम उद्योगों जैसे- ग्रामीण और कुटीर उद्योग, हथकरघा, हस्तशिल्प तथा खाद्य प्रसंस्करण एवं कृषि उद्योगों का विकास किया जाना चाहिये।
- बुनियादी अधिकार और सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करने पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये। प्रवासित परिवारों को गंतव्य क्षेत्रों में नागरिक अधिकार मुहैया कराया जाना चाहिये ताकि वे गरीबों को मिलने वाली बुनियादी सुविधाएँ, सार्वजनिक कार्यक्रमों के लाभ और सामाजिक सुरक्षा योजनाओं तक पहुँच सकें और इन सभी सेवाओं को सुनिश्चित करने के लिये एक प्रमुख नीति की आवश्यकता होगी।
- प्रवासी मज़दूरों की शिक्षा तक पहुँच सुनिश्चित करने के लिये शिक्षा के अधिकार (RTE) अधिनियम के तहत विशेष नीति पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये। उन्हें संगठित क्षेत्रों में शामिल करने के लिये कौशल विकास को भी प्राथमिकता दी जानी चाहिये।
- पंचायतों को अपने क्षेत्र में रहने वाले प्रवासी श्रमिकों के लिये संसाधन पूल के रूप में उभरना चाहिये। उन्हें प्रवासी श्रमिकों का एक रजिस्टर बनाए रखना चाहिये और उन्हें पहचान-पत्र तथा पासबुक जारी करना चाहिये।
- प्रवासी श्रमिकों को उनके अधिकारों के बारे में जागरूक करना अधिकारियों का प्रथम कर्तव्य होना चाहिये।
प्रवासी श्रमिकों के समर्थन में कानून
- अंतर्राज्यीय प्रवासी श्रमिक (रोज़गार और सेवा शर्त विनियमन) अधिनियम (1979)
- बाल श्रम (निषेध और विनियमन) अधिनियम (1986)
- भवन एवं अन्य संनिर्माण श्रमिक (रोज़गार एवं सेवा शर्तों का विनियमन) अधिनियम (1996)
- असंगठित श्रमिक सामाजिक सुरक्षा अधिनियम (2008)
- अनुबंध श्रम (विनियमन एवं उन्मूलन) अधिनियम (1970)
संवैधानिक प्रावधान
- भारत का संविधान सभी नागरिकों के लिये आंदोलन की स्वतंत्रता की गारंटी देता है। मुक्त प्रवासन के आधारभूत सिद्धांत संविधान के अनुच्छेद 19(1) के खंड (D) और (E) में स्थापित हैं, जो सभी नागरिकों को पूरे भारत क्षेत्र में स्वतंत्र रूप से आवागमन करने और किसी भी हिस्से में निवास करने का अधिकार देता है।
- अनुच्छेद 15 अन्य आधारों के साथ-साथ जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव को प्रतिबंधित करता है।
- जबकि अनुच्छेद 16 सार्वजनिक रोज़गार के मामलों में सभी नागरिकों के लिये अवसर की समानता की गारंटी देता है और विशेष रूप से जन्म या निवास के स्थान पर सार्वजनिक रोज़गार तक पहुँच से इनकार कर देता है।
- चारू खुराना बनाम भारतीय संघ और अन्य मामलों में सुप्रीम कोर्ट का निर्णय स्पष्ट रूप से रोज़गार के प्रयोजनों के लिये निवास आधारित प्रतिबंधों को स्पष्ट रूप से असंवैधानिक करार देता है।
निष्कर्ष
- विभिन्न समूहों के बीच विविधता और मुक्त बातचीत राज्यों और देश को आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक रूप से मज़बूत बनाती है। चुनौतियाँ अभी भी जटिल हैं और प्रवासियों की मान्यता की कमी कि समस्या को पूरी तरह से हल किया जाना शेष है। जब तक हम प्रवासी श्रमिकों को एक बदलते भारत के गतिशील हिस्से के रूप में नहीं देखेंगे तब तक प्रवासित श्रमिकों की समस्या को हल करने में सक्षम नहीं होंगे।