लखनऊ शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 23 दिसंबर से शुरू :   अभी कॉल करें
ध्यान दें:



डेली अपडेट्स

भारतीय अर्थव्यवस्था

कृषि ऋण के लिये ARCs: आवश्यकता और चुनौतियाँ

  • 08 Dec 2021
  • 11 min read

यह एडिटोरियल 07/12/2021 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित ‘‘Farming Out’’ लेख पर आधारित है। इसमें कृषि क्षेत्र में व्याप्त ‘बैड लोन्स’ की समस्या पर चर्चा की गई है और इस तथ्य पर विचार किया गया है कि क्या कृषि क्षेत्र के लिये एक ‘परिसंपत्ति पुनर्निर्माण कंपनी’ (ARC) का निर्माण करना इसके समाधान का एक विवेकपूर्ण उपाय होगा।

संदर्भ

एक ओर भारत में किसान बैंक ऋण प्राप्त करने के लिये संघर्ष कर रहे हैं, क्योंकि औपचारिक क्षेत्र के ऋणदाता कोविड-19 महामारी के बीच और भी अधिक जोखिम विरोधी दृष्टिकोण अपना रहे हैं, वहीं दूसरी ओर बैंकों को बड़ी संख्या में ‘गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों’ (NPAs) की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि वे अपने कृषि ऋणों की वसूली में असमर्थ हैं।  

इस संदर्भ में, भारतीय बैंक संघ (IBA)  ने हाल ही में आयोजित एक बैठक में कृषि क्षेत्र के ‘बैड लोन्स’ की समस्या के समाधान के लिये एक परिसंपत्ति पुनर्निर्माण कंपनी (ARC) के गठन का प्रस्ताव किया है।     

हालाँकि, कृषि क्षेत्र में NPAs से निपटने के लिये एक एकल तंत्र स्थापित करने के संदर्भ से कई समस्याएँ भी संलग्न हैं।

कृषि क्षेत्र और ‘बैड लोन्स’

  • कृषि क्षेत्र के लिये सकल NPA: भारतीय रिज़र्व बैंक की वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट (Financial Stability Report) के अनुसार मार्च 2021 के अंत में कृषि क्षेत्र के लिये बैड लोन्स (सकल NPA) 9.8% के स्तर पर था। 
    • इसकी तुलना में यह उद्योग और सेवा क्षेत्रों के लिये क्रमशः 11.3% और 7.5% के स्तर पर थे।
  • कृषि ऋण माफी से उत्पन्न समस्याएँ: चुनावों के समय संबद्ध राज्यों द्वारा कृषि ऋण माफी (Farm Loan Waivers) की घोषणा एक ‘बिगड़ती साख संस्कृति’ (Deteriorating Credit Culture) की ओर ले जाती है।  
    • वर्ष 2014 के बाद से राजस्थान, मध्य प्रदेश, पंजाब, छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र, पंजाब और उत्तर प्रदेश सहित कम-से-कम 11 राज्यों ने कृषि ऋण माफी की घोषणा की है।
    • यह कृषि क्षेत्र में NPAs की वृद्धि के संबंध में बैंकों के बीच चिंता उत्पन्न करता है और बैंकों के लिये वसूली चुनौतियों का कारण बनता है।    
      • इससे बैंक फिर उधार देने के लिये अनिच्छुक होने लगते हैं। 
    • ये ऋण माफियाँ घोषण करने वाले राज्य या केंद्र सरकार के बजट पर बोझ डालती हैं।  
    • इसके साथ ही, ये माफियाँ अंततः ऋण के प्रवाह को कम करती हैं।  
  • कृषि क्षेत्र के NPAs से निपटने के लिये वर्तमान तंत्र: वर्तमान में कृषि क्षेत्र में NPAs से निपटने के लिये न तो कोई एकीकृत तंत्र मौजूद है, न ही कोई कानून जो कृषि भूमि पर सृजित बंधक/गिरवी (Mortgages) के प्रवर्तन के मुद्दे को संबोधित कर सके।      
    • वसूली कानून, जहाँ कहीं भी कृषि भूमि को संपार्श्विक के रूप में पेश किया जाता है, अलग-अलग राज्यों में भिन्न-भिन्न हैं।  
    • गिरवी रखी गई कृषि भूमि पर कानून का प्रवर्तन आमतौर पर राज्यों के ‘राजस्व वसूली अधिनियम’ (Revenue Recovery Act), ऋणों की वसूली एवं दिवालियापन अधिनियम- 1993 तथा अन्य राज्य-विशिष्ट नियमों के माध्यम से किया जाता है। 

कृषि क्षेत्र के लिये ARCs का निर्माण

  • हालिया प्रस्ताव: कृषि क्षेत्र में बैड लोन्स की वसूली में सुधार के लिये प्रमुख बैंकों ने, विशेष रूप से कृषि ऋणों के संग्रह एवं वसूली से निपटने हेतु, एक ARC स्थापित करने की मंशा जताई है।  
    • उद्योग क्षेत्र के बैंक NPAs से निपटने के लिये हाल ही में सरकार-समर्थित ARC की स्थापना के साथ कृषि क्षेत्र के लिये भी ARC के निर्माण के विचार को बैंकों के बीच स्वीकार्यता प्राप्त है। 
  • कृषि ऋणों के लिये ARC के पक्ष में तर्क: चूँकि कृषि बाज़ार बिखरे हुए हैं, कई बैंकों के विपरीत एक एकल संस्था वसूली की लागत को अनुकूलित करते हुए कृषि ऋणों के संग्रह और वसूली की समस्या से निपटने के लिये अधिक उपयुक्त होगी।   
    • कृषि भूमि पर सृजित बंधकों के प्रवर्तन से निपटने के लिये एक एकीकृत ढाँचे के अभाव को देखते हुए बकाया की वसूली के लिये निश्चित रूप से एक प्रभावी तंत्र का निर्माण किये जाने की आवश्यकता है। 

कृषि ऋणों के लिये ARC के विपक्ष में तर्क:

  • सबसे महत्त्वपूर्ण यह है कि ARCs के पास NPAs की बड़ी राशि से मेल कर सकने योग्य पर्याप्त धन की उपलब्धता होनी चाहिये।  
    • ARC के पास पर्याप्त धनराशि उपलब्ध हो तो भी विक्रेता (बैंक/बैंकों) और क्रेता (ARC) के बीच अपेक्षित मूल्य असंगति ARCs के लिये एक बड़ी चुनौती उत्पन्न करेगा।  
  • चूँकि ज़मीनी स्तर पर स्थानीय बैंकों की किसी एकल ARC की तुलना में अधिक उपस्थिति होगी, वे बकाया की वसूली के लिये स्थानीय उपायों की खोज में अधिक सक्षम साबित हो सकते हैं।  
    • स्थानीय बैंक अधिकारी किसी एकल ARC की तुलना में इन सैकड़ों-हज़ारों छोटे उधारकर्त्ताओं से निपटने में अधिक सफल साबित हो सकते हैं। 
  • चूँकि ग्रामीण भूमि बाज़ार स्पष्ट भूमि स्वामित्व के अभाव और कई हितधारकों की उपस्थिति की विशेषता रखते हैं, कृषि क्षेत्र के लिये विशेष रूप से ARC का गठन विवेकपूर्ण दृष्टिकोण नहीं है।  
    • इसके अलावा, भले ही भूमि एक गिरवी रखने योग्य संपत्ति है, यह एक भावनात्मक और राजनीतिक मुद्दा भी है।
  • एक संभावना यह भी है कि चूँकि ‘कृषि’ राज्य सूची का विषय है, इस तरह के दृष्टिकोण को राज्यों के अधिकारों के अतिक्रमण के रूप में देखा जा सकता है।

आगे की राह

  • अन्य ARCs की सफलता दर का अवलोकन: सरकार ने पहले से ही कॉरपोरेट क्षेत्र के खराब ऋणों के समाधान के लिये ARCs के रूप में एक ऐसा ढाँचा बना रखा है। 
    • चूँकि ARCs तंत्र की प्रभावशीलता पर पर्याप्त संदेह व्यक्त किया गया है, एक अधिक विवेकपूर्ण दृष्टिकोण यह होगा कि पहले इसके अनुभवों का आकलन किया जाए, फिर आगे की राह तय किया जाए।  
    • इसके अलावा, अगर वास्तव में कृषि ऋण के लिये भी ऐसे ही एक ढाँचे की आवश्यकता है, तो फिर इसी संरचना को नियोजित किया जा सकता है।
  • किसानों की सहायता के अन्य विकल्प: किसानों की सहायता करने के अन्य तरीके भी हो सकते हैं, जैसे अधिक अनुकूल शर्तों पर समयबद्ध रूप से ऋण तक उनकी पहुँच सुनिश्चित करना।  
    • खेती को अधिक लाभकारी व्यवसाय बनाने के लिये एक व्यापक नीतिगत ढाँचा उपलब्ध होना चाहिये।
  • NPAs बिक्री प्रक्रिया को आसान बनाना: बैंकों और ARCs के बीच मूल्य निर्धारण के लिये एक कठोर और यथार्थवादी दृष्टिकोण का मौजूद होना अत्यंत आवश्यक है।  
    • इस प्रकार, NPAs बिक्री, समाधान, वसूली और पुनरुद्धार की पूरी प्रक्रिया को तेज़ और सुचारू बनाने हेतु नियामक सहित सभी हितधारकों के एक साथ आने की तत्काल आवश्यकता है।

अभ्यास प्रश्न: कृषि क्षेत्र में मौजूद ‘बैड लोन्स’ की समस्या की चर्चा कीजिये और सुझाव दीजिये कि इस समस्या को कम करने के लिये कौन-से कदम उठाए जा सकते हैं।

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2