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सामाजिक न्याय

क्रीमीलेयर के तहत अनुसूचित जाति एवं जनजाति

  • 31 Jan 2018
  • 8 min read

संदर्भ:

  • हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय अनुसूचित जाति और जनजाति से संबंध रखने संपन्न व्यक्तियों को क्रीमीलेयर की अवधारणा के तहत आरक्षण के लाभ से वंचित करने की माँग करने वाली एक याचिका पर सुनवाई को तैयार हो गया है। 
  • विदित हो कि ओबीसी यानी अन्य पिछड़ा वर्गों के लिये क्रीमीलेयर का प्रावधान लागू है, लेकिन अनुसूचित जाति एवं जनजाति को इससे दूर रखा गया है। हालाँकि, इस संबंध में सर्वोच्च न्यायालय  अब सुनवाई को तैयार है। 
  • यह पहला अवसर है जब सर्वोच्च न्यायालय में अनुसूचित जाति और जनजाति के लिये क्रीमीलेयर की व्यवस्था के समर्थन में कोई याचिका दायर की गई है। 

क्या है क्रीमीलेयर?

  • क्रीमीलेयर’ शब्द अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के अपेक्षाकृत अमीर और बेहतर शिक्षित समूहों को संबोधित करता है, जो सरकार प्रायोजित शैक्षिक और पेशेवर लाभ कार्यक्रमों के योग्य नहीं माने जाते हैं। 
  • वर्तमान नियमों के मुताबिक, ओबीसी वर्ग के केवल वैसे उम्मीदवार जिनकी पारिवारिक आमदनी 6 लाख से कम है आरक्षण के हकदार हैं। हालाँकि पारिवारिक आमदनी की सीमा को बढ़ाकर हाल ही में 8 लाख कर दिया गया है।

पृष्ठभूमि:

  • विदित हो कि वर्ष 1992 में प्रसिद्ध मंडल मामला जिसे कि इंदिरा साहनी बनाम यूनियन ऑफ इंडिया भी कहा जाता है में सर्वोच्च न्यायालय ने 27% आरक्षण को कुछ शर्तों के साथ वैध करार दिया। 
  • उन शर्तों में से एक महत्त्वपूर्ण शर्त यह थी कि ओबीसी वर्ग के सुविधा संपन्न लोगों को क्रीमीलेयर की व्यवस्था के ज़रिये आरक्षण के लाभ लेने से रोकना होगा। 
  • सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद क्रीमीलेयर के संदर्भ में तत्कालीन सरकार द्वारा राम नंदन समिति गठित की गई।  समिति ने वर्ष 1993 में अपनी रिपोर्ट दी और सरकार द्वारा इसकी सिफारिशें स्वीकार कर ली गई। 

पिछड़ा वर्ग की संवैधानिक स्थिति

  • गौरतलब है कि संविधान के अनुच्छेद 15 (4), 16 (4) और 340 (1) में 'पिछड़े वर्ग' शब्द का उल्लेख मिलता है।
  • अनुच्छेद 15(4) एवं 16(4) में प्रावधान किया गया है कि राज्य द्वारा सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिये विशेष प्रावधान किया जा सकता है। 
  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 340 में सामाजिक व शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गो के लिये आयोग बनाने का उल्लेख किया गया है और इसके आधार पर ही 1953-55 में काका कालेकर आयोग का व 1978-80 में मंडल कमीशन का गठन किया गया था।
  • 123वें संशोधन ने पिछड़े वर्गों के अनुच्छेद 340 से संबंधित सभी पृष्ठों को रद्द कर दिया है और इसे अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति से संबंधित प्रावधानों के करीब ला दिया है।
  • उल्लेखनीय है कि पिछले वर्ष लोकसभा में 123वाँ संविधान संशोधन विधेयक पेश किया है। विधेयक में यह भी प्रावधान है कि पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्ज़ा दिया जाए।
  • उल्लेखनीय है कि “सामाजिक एवं शैक्षणिक पिछड़ा वर्ग आयोग” के नाम से बनाया जा रहा यह आयोग “पिछड़ा वर्ग आयोग” की जगह लेगा।
  • “सामाजिक एवं शैक्षणिक पिछड़ा वर्ग आयोग” यह नाम संवैधानिक शब्दावली के अनुरूप है, गौरतलब है कि वर्ष 1951 में जवाहरलाल नेहरू ने अनुच्छेद 15 (4) में इसी नाम पर बल दिया था।
  • हम इस विधेयक पर चर्चा इसलिये कर रहे हैं, क्योंकि इसमें यह प्रस्ताव है कि क्रीमीलेयर की व्यवस्था में सुधारों की समीक्षा की जाए। 

याचिका में क्या?

  • इस याचिका में दावा किया गया है कि आज भारत में कोई भी जातीय वर्ग समान रूप से पिछड़ा नहीं है यानी एक ही जाति से संबंध रखने वाला कोई समूह सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ा हुआ है तो कोई सशक्त है। 
  • सच यह भी है कि अनुसूचित जाति/जनजाति के 95 प्रतिशत लोग पिछड़े हैं लेकिन क्रीमीलेयर का कोई प्रावधान न होने के कारण अत्यधिक पिछड़े समूह इसका लाभ नहीं उठा पाते हैं।

अनुसूचित जाति/ जनजाति के लिये क्रीमीलेयर की व्यवस्था क्यों नहीं?

  • ‘क्रीमी लेयर’ वर्गीकरण वर्तमान में ओबीसी के लिये है और अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिये लागू नहीं है।
  • दरअसल, अनुसूचित जाति/ जनजाति के लिये आरक्षण का प्रावधान उन्हें आर्थिक लाभ पहुँचाने के उद्देश्य से नहीं बल्कि उनके सामाजिक उत्थान के लिये किया गया है। 

आगे की राह

  • वस्तुतः आरक्षण हमेशा से एक विवादित विषय रहा है, लेकिन आज़ादी के बाद के दशकों में आरक्षण सर्वाधिक ज्वलंत मुद्दा बन गया है। विडम्बना यह है कि भारत में उद्यमिता का अभाव है। 
  • ऐसे में हर कोई सरकारी नौकरी की तरफ देखता है और अपनी सुविधानुसार आरक्षण की व्याख्या करता है।
  • इसमें कोई दो राय नहीं है कि देश में सामाजिक सहभागिता को बढ़ावा देने के लिये आरक्षण की नितांत आवश्यकता है, किन्तु एक सच यह भी है कि आरक्षण के उद्देश्यों के बारे में अधिकांश लोग अनजान हैं।
  • आज आवश्यकता इस बात की है कि लोगों को आरक्षण की ऐतिहासिक, सामाजिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि को समझने में मदद की जाए। 
  • भारत की जातीय, लैंगिक और क्षेत्रीय विविधताओं के बारे में बच्चों को बताया जाए और आरक्षण के लिये व्यावहारिक सहमति बनाई जाए। 
  • जहाँ तक अनुसूचित जाति/जनजाति के लिये क्रीमीलेयर की व्यवस्था का प्रश्न है तो हमें यह ध्यान रखना होगा कि पहले सभी आयामों के व्यापक विश्लेषण की आवश्यकता है। 
  • मसलन अनुसूचित जाति/जनजाति के सामाजिक उत्थान का पैमाना कोई आय से संबंधित आँकड़ा नहीं हो सकता है। 
  • यही कारण है कि नागराज मामले में दिये अपने ही निर्णय को सर्वोच्च न्यायालय ने इंदिरा साहनी मामले में बदल दिया था और क्रीमीलेयर की व्यवस्था केवल ओबीसी तक ही सीमित कर दी थी।
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