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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

ई-मनी के सुरक्षा संबंधी पक्ष तथा उनके समाधान

  • 06 Nov 2017
  • 13 min read

भूमिका

एक डिजिटल भारत की खोज में दिनोंदिन होने वाला लेन-देन धीरे-धीरे भौतिक स्वरूप की तुलना में डिजिटल स्वरूप की ओर अग्रसर हो रहा है। जैसा की हम सभी जानते ही हैं कि मौजूदा ई-पैसा और मोबाइल वोलेट्स वित्तीय लेन-देन की दिशा में बेहतर सुरक्षा, दक्षता, गोपनीयता, सामर्थ्य और पारदर्शिता प्रदान करते हैं। इस प्रकार के साधनों के इस्तेमाल से जहाँ एक ओर भुगतान की व्यवस्था सुरक्षित हो जाती है वहीं दूसरी ओर इससे बिचौलियों की भूमिका भी खत्म हो जाती है। हालाँकि, इस प्रकार की निजी ई-पैसा योजनाओं में उपभोक्ताओं की सुरक्षा के संबंध में बहुत सी नई चुनौतियाँ भी सामने आ रही हैं, जिनके विषय से गंभीरता से विचार करते हुए समय पर समाधान ढूंढने की आवश्यकता है ताकि समय रहते इस समस्या का हल किया जा सके। 

प्रमुख बिंदु

  • ई-मनी के वर्तमान रूपों के संबंध में दायित्व संबंधी मुद्दे प्रमुख चिंता का कारण बने हुए हैं। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि इन निजी ई-मुद्राओं को कानूनी निविदा प्राप्त मुद्रा रुपए में परिवर्तित करने का मुद्दा, सेवा प्रदाताओं के वित्तीय प्रबंधन और परिचालनात्मक सुदृढ़ता के अधीन आता है। 
  • विभिन्न योजनाओं में ई-मनी को स्वीकार्यता प्रदत्त नहीं की गई है। वस्तुतः यही कारण है कि यह सेवा प्रदाताओं के बीच आपसी समझौतों का मुद्दा बन जाती है। 
  • अक्सर देखने को मिलता है कि धन के लेन-देन में होने वाली धोखाधड़ी और त्रुटियों जैसे व्यवधान जहाँ एक ओर धन के नुकसान को बढ़ावा प्रदान करते हैं, वहीं दूसरी ओर इस प्रकार की क्षतिपूर्ति का भुगतान उपभोक्ताओं अथवा प्रदाताओं को करना होता है जिससे उनके ऊपर दोहरी मार पड़ती है।

एस्क्रो खाते (Escrow account) से संबद्ध मुद्दे

  • वस्तुतः उपभोक्ताओं के धन की सुरक्षा करने का सबसे प्रभावी प्रशासनिक उपाय एस्क्रो खातों का विनियमन होता है। ई-मनी सेवा प्रदाताओं द्वारा बैंकों में एस्क्रो खातों को खोलने की आवश्यकता होती है।
  • एस्क्रो खातों में उतनी ही मात्र में धन का संचयन किया जाता है जितनी मात्र में सेवा प्रदाताओं द्वारा धन जारी किया गया है। 
  • सैद्धांतिक रूप से यह इस बात को सुनिश्चित करता है कि ग्राहकों की मांग के अनुरूप ई-मनी बैलेंस को बैंक खाता धन या नकदी में बदलने के लिये बैंकों के पास हमेशा पर्याप्त मात्रा में धन मौजूद होना चाहिये। 
  • हालाँकि, ई-मनी सेवा प्रदाताओं द्वारा जारी किये जाने वाले ऑडिट बैलेंस शीट को व्यवस्थित करने में बहुत अधिक समय और श्रम लगता है।
  • इस संबंध में ऐसे भी बहुत मामले सामने आए हैं जहाँ लोगों द्वारा न केवल "नकली" ई-पैसे को बनाने के लिये ई-मनी व्यवस्था में हेर-फेर करने के लिये सहयोग किया गया, बल्कि उसके बाद नकली ई-मनी को नकदी में भी परिवर्तित किया गया। स्पष्ट रूप से इससे एस्क्रो अकाउंट बैलेंस में बड़ी विसंगतियाँ उत्पन्न होती हैं जिससे सेवा प्रदाताओं को नुकसान उठाना पड़ता है।
  • वस्तुतः हम नकद लेन-देन के निश्चित स्वरूप से भली-भाँति परिचित होने के साथ-साथ इसमें बहुत अधिक सहज भी हैं। जब आप किसी व्यापारी को ₹100 का बैंक नोट सौंपते हैं, तो (बैंक नोट देने वाला एवं प्राप्त करने वाला) दोनों जानते हैं कि ऋण का निपटारा हो गया है, यानि अब यह गैर-खंडित हो गया है। लेकिन यह व्यवस्था ई-मनी लेन-देन के संबंध में उतनी अधिक स्पष्ट नहीं है जितनी कि नकदी के संबंध में है। खासकर जब इस प्रक्रिया में कई ई-मनी सेवा प्रदाता, निपटान बैंक तथा मध्यस्थ शामिल होते हैं। 
  • ई-मनी लेन-देन के अंतर्गत प्रेषक और प्राप्तकर्त्ता दोनों को लेन-देन के पुष्टिकरण का संदेश प्राप्त होने के बाद भी इस प्रकार के लेन-देन को सम्पन्न होने में सेवा प्रदाताओं, बैंकों और मध्यवर्ती साधनों के बीच कई स्तर पर सामंजस्य और निपटान संबंधी गतिविधियाँ संपन्न करनी होती हैं। 
  • ई-मनी लेन-देन की उच्च मात्रा और निम्न मूल्य प्रकृति के सापेक्ष में इस प्रकार की प्रक्रियाओं का सटीक एवं व्यवस्थित संचालन कर पाना काफी बोझिल होता है। इस संबंध में काफी विसंगतियों के उत्पन्न होने की संभावना भी है और अतीत में भी ऐसा कई बार हो चुका है। सौभाग्य से उपभोक्ताओं को संतुष्ट एवं प्रसन्न रखने के लिये इस प्रकार की किसी भी विसंगति का सामना सेवा प्रदाताओं द्वारा ही किया जाता है।
  • पिछले कुछ समय से डिजिटल संसार में व्यक्तिगत जानकारी और गोपनीयता के संरक्षण के संबंध में बहुत से मुद्दों पर चर्चा की जा रही है। हालाँकि इस संबंध में सेवा प्रदातों के साथ-साथ सरकार भी बेहद चिंतित है। सरकार की चिंता का सबसे अहम् कारण यह है कि बहुत सी सुरक्षा संबंधी व्यवस्थाओं के बावजूद अवैध गतिविधियों हेतु डिजिटल साधनों का धड़ल्ले से इस्तेमाल किया जा रहा है, जोकि देश की सुरक्षा के संबंध में एक बेहद गंभीर चिंता की स्थिति को ओर इशारा करता है।
  • वस्तुतः साइबर स्पेस जगत में मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकवादियों के वित्तपोषण के विरुद्ध चल रही गतिविधियों को तेज़ी से नियंत्रित एंव ट्रैक करने तथा मॉनिटर करने करने की आवश्यकता है। हालाँकि, वित्तीय संस्थानों और ई-मनी सेवा प्रदाताओं द्वारा एकत्र किये जाने वाले धन एवं निकासित धन से संबद्ध सभी प्रकार की जानकारियों को संगृहित एवं व्यवस्थित करने के लिये शक्तिशाली चैनल का प्रयोग किया जाता है। तथापि अभी इस दिशा में बहुत से गंभीर प्रयास किये जाने की आवश्यकता है। इस संदर्भ में निरंतर व्यक्तिगत सूचनाओं, गोपनीयता संबंधी सुरक्षा तथा कानून प्रवर्तन के बीच सही संतुलन की आवश्यकता पर बल दिया जा रहा है।
  • बढ़ते उपभोक्तावाद के इस युग में बिना किसी सवाल-जवाब के किसी पर भरोसा करना बहुत साहसी काम है और उसमें यदि बात धन के लेन-देन की हो तो यह और भी अधिक कठिन हो जाता है। ऐसे में इन तरीकों को अपनाने वाले सेवा प्रदाताओं के मध्य इस लेन-देन के विनियमन, जवाबदेहिता तथा एक सार्वभौमिक दृष्टिकोण का सवाल एक बड़ा मुद्दा बनकर उभरता है।

डिजिटल भारत का प्रतीक बनता : रुपया

  • चूँकि भारत की औपचारिक अर्थव्यवस्था का भविष्य पूर्ण रूप से डिजिटलीकृत होता प्रतीत हो रहा है। अत: ऐसी स्थिति में उपभोक्ताओं के हितों को सुरक्षित बनाए रखना सबसे महत्त्वपूर्ण एवं चुनौतीपूर्ण काम है। 
  • ऐसी किसी भी स्थिति में सबसे बेहतर उपाय यह होगा कि एक संप्रभु डिजिटल कानूनी निविदा प्राप्त मुद्रा (sovereign digital fiat currency) के इस्तेमाल को बढ़ावा दिया जाना चाहिये। यह एक ऐसी मुद्रा होनी चाहिये जिसे भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा कानूनी निविदा प्राप्त मुद्रा के रूप में जारी किया जाना चाहिये।
  • चूँकि डिजिटल भारत रुपए को भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा जारी किया जाएगा, तो स्वत् ही इस मुद्रा का मूल्य देश की साख, संपत्ति और उत्पादकता से समर्थित हो जाएगा। 
  • ऐसा होते ही इसे स्तरित हार्डवेयर, सॉफ्टवेयर, प्रोटोकॉल सुरक्षा और मुद्रा कानूनों के साथ सुरक्षा प्रदत्त हो जाएगी। इसके साथ-साथ यह मौद्रिक आपूर्ति, डिजिटल जाली मुद्रा, परिवर्तनीयता और स्वीकार्यता के मुद्दों से भी संबद्ध जो जाएगी। 
  • मौजूदा ई-मनी सेवाओं के माध्यम से डिजिटल भारत रुपए का उपयोग करने के लिये इसके अंतर्गत किसी अन्य प्रकार के महँगे बुनियादी ढाँचे या परिवर्तनकारी तकनीकों को अपनाने की आवश्यकता नहीं रह जाएगी। 
  • इससे अतिरिक्त इसके संबंध में ई-मनी सेवा प्रदाताओं, एस्क्रो अकाउंट बैंकों और अन्य मध्यस्थों के क्रमबद्ध संचालन की भी आवश्यकता नहीं रह जाएगी, क्योंकि डिजिटल भारत रुपया पेपर नोट्स और सिक्कों की तरह धन का एक वाहक साधन है। 
  • डिजिटल मुद्रा के रूप में आयोजित होने वाले लेन-देन को नकदी के माध्यम से होने वाले भुगतान की भाँति आसानी से व्यवस्थित किया जा सकता है। इससे जहाँ एक ओर श्रम गहन कारकों में कमी आएगी, वहीं दूसरी ओर विभिन्न संस्थाओं के मध्य आपसी सामंजस्य एवं सुलह की स्थिति को बनाए रखने में आने वाली लागत एवं वित्तीय जोखिमों में भी कमी आएगी।
  • डिजिटल भारत रुपया गोपनीयता संरक्षण बनाम कानून प्रवर्तन के बीच एक अनुकूल संतुलन प्रदान करता है। लेन-देन करने वाले व्यक्ति या ट्रांजैक्शन की सामग्री का तब तक खुलासा नहीं किया जाता है, जब तक कि लेन-देन के संदर्भ में पर्याप्त संदेह की स्थिति नहीं बनती है। ऐसी स्थिति में अधिकारियों द्वारा अतिरिक्त सूचनाओं के विषय में जाँच-पड़ताल करने की आवश्यकता होती है।

स्पष्ट रूप से इसमें कोई संदेह नहीं है कि डिजिटल भारत रुपया नकद की अपेक्षा डिजिटल पेमेंट के रूप में अधिक विश्वसनीय एवं दक्ष माध्यम साबित होगा। अर्थव्यवस्था में होने वाला यह बदलाव अनौपचारिक अर्थव्यवस्था से औपचारिक अर्थव्यवस्था की ओर तो गतिमान होगा ही साथ ही यह काला बाज़ार जैसी आर्थिक खामियों के संदर्भ में भी स्थिर गिरावट लाने का काम करेगा। स्पष्ट रूप से ऐसा होने से जहाँ एक ओर अर्थव्यवस्था को आगे की ओर उन्मुख होने के लिये बल मिलेगा, वहीं दूसरी ओर वित्तीय प्रणाली से 'नकारात्मक तत्वों को भी आसानी से बाहर किया जा सकेगा। इस प्रकार अर्थव्यवस्था में आने वाली समग्र स्थिरता अप्रत्यक्ष रूप से उपभोक्ता को बेहतर मूल्य-उत्पादन स्थिरता प्रदान करेगी, जिसका लाभ देश की समग्र अर्थव्यवस्था में परिलक्षित होगा।

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