भारत की स्वास्थ्य सेवाओं की चिंताजनक स्थिति | 21 Feb 2017

सन्दर्भ

हमारे देश में स्वास्थ्य सेवाएँ अत्यधिक महँगी हैं जो गरीबों की पहुँच से काफी दूर हो गई हैं। स्वास्थ्य, शिक्षा, भोजन व आवास जीवन की मूलभूत आवश्यकताएँ हैं। गौरतलब है कि हमारे संविधान में इस बात का प्रावधान होते हुए भी कि नागरिकों को स्वास्थ्य व शिक्षा प्रदान करना हमारी प्राथमिकता है, हम एक राष्ट्र के रूप में इस लक्ष्य की प्राप्ति में असफल रहे हैं। स्वास्थ्य सेवाओं का निजीकरण जारी है जिससे आम लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।

भारत की स्वास्थ्य चिंताएँ

  • भारत संक्रामक रोगों का पसंदीदा स्थल तो है, ही साथ में गैर-संक्रामक रोगों से ग्रस्त लोगों की संख्या में भी उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। प्रत्येक वर्ष लगभग 5.8 भारतीय ह्रदय और फेफड़े से संबंधित बीमारियों के कारण काल के गाल में समा जाते हैं। प्रत्येक चार में से एक भारतीय हृदय संबंधी रोगों के कारण 70 वर्ष की आयु तक पहुँचने से पहले ही मर जाता है।
  • स्वास्थ्य सुविधाओं की उपलब्धता में विषमता का मुद्दा भी काफी गंभीर है। शहरी क्षेत्रों के मुकाबले ग्रामीण क्षेत्रों की स्थिति ज़्यादा बदतर है। इसके अलावा बड़े निजी अस्पतालों के मुकाबले सरकारी अस्पतालों में सुविधाओं का घनघोर अभाव है। उन राज्यों में भी जहाँ समग्र औसत में सुधार देखा गया है, उनके अनेक जनजातीय बहुल क्षेत्रों में स्थिति नाजुक बनी हुई है। निजी अस्पतालों की वज़ह से बड़े शहरों में स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता संतोषजनक है, लेकिन चिंताजनक पहलू यह है कि इस तक केवल संपन्न तबके की पहुँच है।
  • तीव्र और अनियोजित शहरीकरण के कारण शहरी निर्धन आबादी और विशेषकर झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वालों की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई है। आबादी का यह हिस्सा सरकारी और निजी अस्पतालों के समीप रहने के बावजूद स्वास्थ्य सुविधाओं को पर्याप्त रूप में नहीं प्राप्त कर पाता है। सरकारी घोषणाओं में तो राष्ट्रीय कार्यक्रमों के तहत सभी चिकित्सा सेवाएँ सभी व्यक्ति को निःशुल्क उपलब्ध हैं और इन सेवाओं का विस्तार भी काफी व्यापक है। हालाँकि, ज़मीनी सच्चाई यही है कि सरकारी स्वास्थ्य सुविधा आवश्यकताओं के विभिन्न आयामों को संबोधित करने में विफल रही है।
  • महँगी होती चिकित्सा सुविधाओं के कारण, आम आदमी द्वारा स्वास्थ्य पर किये जाने वाले खर्च में बेतहासा वृद्धि हुई है। एक अध्ययन के आधार पर आकलन किया गया है कि केवल इलाज पर खर्च के कारण ही प्रतिवर्ष करोड़ों की संख्या में लोग निर्धनता का शिकार हो रहे हैं। ऐसा इसलिये हो रहा है क्योंकि कि समाज के जिस तबके को इन सेवाओं की आवश्यकता है, उसके लिये सरकार की ओर से पर्याप्त वित्तीय संरक्षण उपलब्ध नहीं है, और जो कुछ उपलब्ध हैं भी वह इनकी पहुँच से बाहर है।

क्या हो आगे का रास्ता ?

  • चूँकि भारत दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी जनसंख्या वाला देश है और इसकी वज़ह से स्वास्थ्य सेवाओं पर अत्यधिक दबाव है। मृत्यु दर घटी है, लेकिन जन्म दर दुनिया के ज़्यादातर देशों से अधिक है। जन्म दर और मृत्यु दर के संबंध में आदर्श स्थिति यह है कि दोनों में ही कमी आनी चाहिये।
  • देश में एक विशाल स्वास्थ्य सुविधा उद्योग पनप रहा है, जो 15 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि दर से बढ़ रहा है। यदि अन्य क्षेत्रों की बात करें तो स्वास्थ्य सेवाओं में वृद्धि भारत के विकास दर की दुगुनी है। हालाँकि इस सुनहरी तस्वीर का एक स्याह सच यह भी है कि, देश में मौजूद इन सुविधाओं का उपभोग आर्थिक कारणों से आम आदमी नहीं कर पाता है। इसलिये, इस क्षेत्र के विकास की रूपरेखा राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीतियों और उद्देश्यों के अनुरूप होनी चाहिये।
  • भारत में स्वास्थ्य सेवाओं में बेहतरी के लिये यह भी सुनिश्चित करना होगा कि निजी चिकित्सा उद्योग कुछ चुने हुए शहरों तक ही सीमित न रहें और सार्वजनिक क्षेत्र से वित्तपोषण के लिये अधिक दबाव न डाला जाए। स्वास्थ्य सुविधा लागत के कारण आपातिक व्यय में बढ़ोतरी हो रही है और अब इसे गरीबी बढ़ने का एक प्रमुख कारण माना जाने लगा है। स्वास्थ्य सेवा लागत में बढ़ोतरी, परिवार की बढ़ती हुई आय और गरीबी कम करने वाले सरकारी योजनाओं को निष्प्रभावी कर रही है। अतः चिकित्सीय लागत और गरीबी को ध्यान में रखते हुए हमें अपने लक्ष्य निर्धारित करने होंगे।
  • आर्थिक विकास के कारण उपलब्ध राजकोषीय क्षमता में वृद्धि हुई है। इसी के अनुरुप स्वास्थ्य पर सरकार के बजट में बढ़ोतरी भी हुई है। लेकिन जब हम भारत में बदहाल स्वास्थ्य सेवाओं पर नज़र दौड़ाते हैं तो यह समझना मुश्किल हो जाता है कि इतना व्यय करने के बाद भी हम वांछित परिणाम से क्यों वंचित हैं? अतः देश को एक ऐसी नई स्वास्थ्य नीति की आवश्यकता है, जो इन प्रासंगिक परिवर्तनों के प्रति संवेदनशील एवं उत्तरदायी हो।

निष्कर्ष

  • हमें बचपन से ही सिखाया जाता है कि स्वस्थ जीवन ही सफलता की कुंजी है। किसी भी व्यक्ति को अगर जीवन में सफल होना है तो इसके लिये सबसे पहले उसके शरीर का स्वस्थ होना आवश्यक है। व्यक्ति से इतर एक राष्ट्र पर भी यही सिद्धांत लागू होता है।
  • किसी देश के नागरिक जितने स्वस्थ होंगे देश विकास सूचकांक की कसौटियों पर उतना ही अच्छा प्रदर्शन करेगा। उदारीकरण के बाद आर्थिक क्षेत्र में हमारी महत्वाकांक्षाएँ आसमान छू रही हैं। भारत दुनिया की सबसे तेज़ी से उभरती हुई अर्थव्यवस्था है। लेकिन, जब बात देश में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति की आती है तो हमारा सारा उत्साह ठंडा पड़ जाता है।
  • बीमारियों की रोकथाम और उपचार के लिये आज हमारे पास जिस स्तर की सुविधाएं, संसाधन एवं तकनीक उपलब्ध हैं उन्हें देखते हुए देश में व्याप्त असमय मृत्यु, अनावश्यक बीमारियाँ और अस्वस्थ परिस्थितियों को एक विडंबना कहना ही ठीक होगा। अतः हमें अपनी प्रौद्योगिकियों और ज्ञान के  भंडार का भरपूर उपयोग करना चाहिये।
  • बहुत से आँकड़े यह दिखाते हैं कि भारत में लोग बीमारियों को लेकर उतने सजग नहीं रहते किन्तु बीमार पड़ने के बाद कहीं ज़्यादा खर्च कर डालते हैं। अतः हमें अपनी नीतियों में इस बात का समावेशन करना होगा कि हमारा खर्च रोगों के इलाज में कम रहे जबकि रोगों के रोकथाम में अधिक।