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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और जलवायु परिवर्तन

  • 04 Feb 2022
  • 12 min read

यह एडिटोरियल 03/02/2022 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित “The Climate Costs of AI” लेख पर आधारित है। इसमें AI प्रौद्योगिकी के विकास और जलवायु परिवर्तन के बीच के अंतर्संबंध के विषय में चर्चा की गई है।

संदर्भ

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) प्रौद्योगिकियों को प्रायः भविष्य के प्रवेश द्वार के रूप में देखा जाता है।

वर्ष 2022-23 के केंद्रित बजट में भी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) को ‘सनराइज़ टेक्नोलॉजी’ के रूप में वर्णित किया गया है, जो ‘‘वृहत पैमाने पर सतत् विकास में सहायता प्रदान करेगी और देश का आधुनिकीकरण सुनिश्चित करेगी।’’

जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में पर्यावरण-अनुकूल अवसंरचना के विकास हेतु AI बेहद मददगार साबित हो सकता है, जो जलवायु अनुमानों और उद्योगों के डी-कार्बोनाइजिंग में सहायक हो सकता है। लेकिन विडंबना यह है कि AI स्वयं में प्रौद्योगिकी विकास के संबंध में एक पर्यावरणीय लागत रखता है।

यदि हम एक बेहतर भविष्य की आकांक्षा रखते हैं तो यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि जलवायु परिवर्तन से निपटने में AI के उपयोग से प्राप्त लाभ इसमें निहित कमियों से अधिक महत्त्वपूर्ण साबित हों।

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और जलवायु के बीच संबंध

AI क्या है?

  • AI मशीनों द्वारा उन कार्यों को पूरा करने की क्रिया है जिनके लिये ऐतिहासिक रूप से मानव क्षमता/बुद्धि की आवश्यकता रही थी।
    • वर्ष 1956 में अमेरिकी कंप्यूटर वैज्ञानिक जॉन मैकार्थी (John McCarthy) द्वारा आयोजित डार्टमाउथ कॉन्फ्रेंस (Dartmouth Conference) में पहली बार 'आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस' शब्द को अपनाया गया था।
  • इसमें मशीन लर्निंग, पैटर्न रिकग्निशन, बिग डेटा, न्यूरल नेटवर्क्स, सेल्फ एल्गोरिदम जैसी प्रौद्योगिकियाँ शामिल हैं।
    • AI हार्डवेयर से चलने वाले रोबोटिक ऑटोमेशन से अलग होते हैं। मैन्युअल कार्यों को स्वचालित करने के बजाय AI आवृत्तिगत उच्च मात्रा कम्प्यूटरीकृत कार्यों को विश्वसनीय तरीके से पूरा करता है।
  • विकासशील देशों की सरकारें जटिल सामाजिक-आर्थिक समस्याओं को हल करने के लिये AI को किसी जादुई उपाय के रूप में देखती हैं, इसलिये आने वाले दशकों में प्रौद्योगिकी-संबद्ध उत्सर्जन में AI की उच्च हिस्सेदारी नज़र आना तय है।

AI प्रौद्योगिकी के विकास के लिये वैश्विक रुझान

  • AI में प्रभुत्व के लिये जारी होड़ या दौड़ बेहद असंगत है जहाँ कुछ विकसित अर्थव्यवस्थाओं के पास आरंभ से ही कुछ भौतिक लाभ उपलब्ध हैं और वे ही नियम निर्धारित करते हैं।
    • वे अनुसंधान एवं विकास में एक लाभप्रद स्थिति रखते हैं और उनके पास एक कुशल कार्यबल के साथ AI में निवेश के लिये आवश्यक धन उपलब्ध है।
    • AI, पेटेंट और प्रकाशनों में अकेले उत्तरी अमेरिका और पूर्वी एशिया कुल वैश्विक निजी निवेश के तीन-चौथाई भाग की हिस्सेदारी रखते हैं।
  • शासन के संदर्भ में AI में असमता या पक्षपात की वर्तमान स्थिति विकासशील एवं अल्पविकसित देशों में नीति निर्माताओं की प्रौद्योगिकीय धाराप्रवाहिता (Technological Fluency) और AI के संबंध में नियम एवं मानकों को निर्धारित करने वाले अंतर्राष्ट्रीय निकायों में उनके प्रतिनिधित्व और सशक्तिकरण के संबंध में एक चिंता उत्पन्न करती है।
    • विकासशील और अल्पविकसित देशों को इस प्रौद्योगिकी का अधिक लाभ प्राप्त नहीं हुआ है क्योंकि AI के सामाजिक-आर्थिक लाभ कुछ ही देशों तक सीमित हैं।

जलवायु परिवर्तन से निपटने में AI का महत्त्व 

  • वर्तमान समय में मानव जाति के लिये सबसे बड़े खतरे- जलवायु परिवर्तन से मुकाबला करने में AI अत्यंत मूल्यवान साबित हो सकते हैं। AI निम्नलिखित भूमिकाएँ निभा सकता है:
    • जलवायु पूर्वानुमानों का सुदृढ़ीकरण। 
    • निर्माण से परिवहन तक उद्योगों की डी-कार्बोनाइजिंग के लिये कुशल निर्णयन सक्षम करना।
    • अक्षय ऊर्जा के आवंटन के तरीके पर विचार।
  • शहरों को हरा-भरा करना या वेंटिलेशन निर्माण के लिये विंड चैनल आर्किटेक्चर का उपयोग करना शहरों को चरम गर्मी से मुकाबला करने में सक्षम बनाने के कुछ तरीके हैं जिन्हें AI द्वारा निर्देशित किया जा सकता है।
  • AI स्मार्ट ग्रिड डिज़ाइन निर्माण और निम्न-उत्सर्जन वाली अवसंरचना का विकास कर जलवायु संकट के प्रभावों को कम करने में मदद कर सकता है।

जलवायु पर AI प्रौद्योगिकी का प्रभाव 

  • कार्बन फुटप्रिंट: AI का जलवायु पर प्रभाव मुख्य रूप से वृहत AI मॉडल्स के प्रशिक्षण और संचालन में होने वाले ऊर्जा उपयोग के कारण है।
    • वर्ष 2020 में वैश्विक उत्सर्जन में डिजिटल प्रौद्योगिकियों का योगदान 1.8% से 6.3% के बीच रहा था।
      • इसी अवधि में विभिन्न क्षेत्रों में AI विकास और अंगीकरण में वृद्धि हुई थी और इसके साथ ही  वृहत से वृहतर AI मॉडल्स से संबद्ध प्रसंस्करण शक्ति की मांग भी बढ़ी थी।
    • AI के जलवायु प्रभाव को कम करने में एक मुख्य समस्या है इसकी ऊर्जा खपत और कार्बन उत्सर्जन की मात्रा निर्धारित करना तथा इस सूचना को पारदर्शी बनाना।
  • यूनेस्को के प्रयास: AI की नैतिकता और सतत् विकास पर मुख्यधारा बहस में तेज़ी से संवहनीयता (Sustainability) के विचार का प्रवेश हो रहा है। हाल ही में यूनेस्को ने ‘कृत्रिम बुद्धिमत्ता की नैतिकता पर अनुशंसा’ (Recommendation on the Ethics of Artificial Intelligence) को स्वीकार कर लिया और विभिन्न अभिकर्त्ताओं से आह्वान किया कि ‘‘AI प्रणाली के पर्यावरणीय प्रभाव को कम किया जाए, जिसमें कार्बन फुटप्रिंट को कम करना भी शामिल है।’’
    • इस संदर्भ में अमेज़न, माइक्रोसॉफ्ट, अल्फाबेट और फेसबुक जैसे टेक-दिग्गजों ने अपनी ‘नेट ज़ीरो’ नीतियों एवं पहलों की घोषणा की है, जो एक अच्छा संकेत है, लेकिन ये प्रयास मामूली और अपर्याप्त ही हैं।
  • विकासशील और अल्पविकसित देशों की समस्या: इन देशों को विशेष रूप से चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि AI और जलवायु प्रभाव के बीच के संबंधों पर वर्तमान प्रयास एवं आख्यान विकसित पश्चिमी देशों द्वारा संचालित किये जा रहे हैं।

आगे की राह

  • समर्पित अनुसंधान: जलवायु परिवर्तन और AI के बीच के संबंधों पर अधिक अध्ययन नहीं हुआ है। इस विषय का अध्ययन करने वाली बड़ी कंपनियाँ न तो इस अध्ययन के लिये सार्थक रूप से प्रतिबद्ध रही हैं, न ही वे पारदर्शी हैं। वे बाहरी दिखावा तो करती हैं लेकिन अपने परिचालनों के जलवायु प्रभावों को पर्याप्त रूप से सीमित करने को लेकर अधिक गंभीर नहीं हैं।
    • इस क्षेत्र में समर्पित अध्ययन, अनुसंधान एवं विकास में आधिकारिक निवेश और बेहतर नीतिगत हस्तक्षेप की आवश्यकता है।
    • AI को विकसित एवं कार्यान्वित करने की ज़रूरत है, ताकि यह समाज की आवश्यकताओं को पूरा कर सके और खर्च से अधिक ऊर्जा बचाकर पर्यावरण की रक्षा कर सके।
  • सतत् विकास के साथ प्रौद्योगिकी का विलय करना: यह सुनिश्चित करने के लिये कि AI का उपयोग सहायता प्रदान के लिये किया जाए न कि समाज में बाधा डालने के लिये, यह उपयुक्त समय है कि वर्तमान समय के दो बड़े विषयों- डिजिटल प्रौद्योगिकी और सतत् विकास (विशेष रूप से पर्यावरण) को आपस में संयुक्त कर दिया जाए।
    • यदि हम डिजिटल प्रौद्योगिकी का उपयोग सतत् विकास को बचाने के लिये करेंगे तो यह निश्चय ही हमारे पास उपलब्ध संसाधनों का सर्वोत्तम संभव उपयोग हो सकता है।
  • विकासशील विश्व के लिये अवसरों की खोज: भारत सहित सभी विकासशील देशों की सरकारों को AI की जलवायु लागत के संदर्भ में अपनी प्रौद्योगिकी आधारित विकास प्राथमिकताओं का आकलन करना चाहिये।
    • विकासशील राष्ट्र किसी प्रकार की विरासत अवसंरचना से त्रस्त नहीं हैं, इसलिये उनके लिये ‘बेहतर निर्माण’ करना आसान होगा।
      • इन देशों को उसी AI नेतृत्व वाले विकास प्रतिमान का पालन करने की आवश्यकता नहीं है जिसका पालन पश्चिमी देश करते हैं।
  • WEF की सिफारिश: वर्ष 2018 में विश्व आर्थिक मंच (WEF) की एक रिपोर्ट से पता चला कि जबकि AI पृथ्वी की कुछ पर्यावरणीय चुनौतियों का समाधान कर सकता है, इसे बेहतर तरीके से प्रबंधित करना महत्त्वपूर्ण है।
    • किसी प्रतिकूल स्थिति से बचने के लिये WEF ने प्रस्ताव किया कि सरकारों और कंपनियों को ‘सुरक्षित’ AI में प्रगति की ओर आगे बढ़ना चाहिये ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि मानव जाति इस तरह के AI का विकास नहीं कर रही जो पर्यावरण के लिये हानिकारक है।
      • AI डेवलपर्स को ‘‘प्राकृतिक पर्यावरण के स्वास्थ्य को एक मौलिक आयाम के रूप में सन्निहित करना चाहिये।’’

अभ्यास प्रश्न: यह उपयुक्त समय है AI को अधिक पर्यावरण अनुकूल तरीके से विकसित करने के बारे में विचार किया जाए। टिप्पणी कीजिये।

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