शासन व्यवस्था
आधार अब भी वैध : सुप्रीम कोर्ट
- 27 Sep 2018
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संदर्भ
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट की पाँच न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ ने अपने एक निर्णय में आधार योजना को संवैधानिक रूप से मान्य माना है। हालाँकि, सर्वोच्च न्यायालय की इस पीठ ने आधार अधिनियम के संबंध में कई प्रावधान भी किये हैं। उल्लेखनीय है कि इससे पूर्व सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के बाद निजता के अधिकार को मूल अधिकार बना दिया गया था जिसके परिणामस्वरूप आधार को आलोचकों और विभिन्न कार्यकर्त्ताओं द्वारा नागरिकों की गोपनीयता पर घुसपैठ के रूप में पेश किया गया था। पाँच न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ में से चार ने हाल ही में फैसला दिया है कि इस कार्यक्रम के कार्यान्वयन को सक्षम बनाने वाला कानून नागरिकों की गोपनीयता के अधिकार का उल्लंघन नहीं करता है, बल्कि यह परियोजना हाशिये वाले वर्गों को प्रौद्योगिकी का लाभ उठाकर विभिन्न सेवाओं, लाभ और सब्सिडी को प्राप्त करने में सक्षम बनाती है।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले की कुछ मुख्य विशेषताएँ
- सुप्रीम कोर्ट ने आधार की वैधता को बरकरार रखते हुए कहा है कि डेटा की सुरक्षा के लिये पर्याप्त सुरक्षा उपाय किये गए हैं और आधार के द्वारा नागरिकों की निगरानी शुरू करना मुश्किल है।
- मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अगुवाई में पाँच न्यायाधीशीय खंडपीठ ने सरकार से अधिक सुरक्षा उपाय प्रदान करने के साथ-साथ डेटा के भंडारण की अवधि को कम करने के लिये कहा।
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि बैंक खाता खोलने और मोबाइल कनेक्शन प्राप्त करने के लिये आधार अनिवार्य नहीं किया जा सकता है।
- इसके अलावा कोर्ट ने कहा कि स्कूल में दाखिला लेने के लिये आधार को अनिवार्य नहीं किया जाना चाहिये और प्रशासन इसे अनिवार्य नहीं बना सकता है।
- हालाँकि, सुप्रीम कोर्ट ने आयकर रिटर्न (ITR) दाखिल करने के लिये आधार और पैन को अनिवार्य बना दिया है।
- सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि सामाजिक कल्याणकारी योजनाओं का लाभ प्राप्त करने के लिये अवैध प्रवासियों को आधार जारी नहीं किया जाएगा। इसके अलावा, सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि निजी कंपनियाँ आधार की मांग नहीं कर सकती हैं।
- उल्लेखनीय है कि आधार की संवैधानिक वैधता पर फैसला सुनाने के दौरान न्यायाधीश सिकरी ने कहा कि आधार कार्ड और पहचान के बीच एक मौलिक अंतर यह बना हुआ है कि इसमें एक बार बायोमीट्रिक जानकारी संग्रहीत होने के बाद, यह सिस्टम में बनी रहती है। साथ ही, आधार एक अद्वितीय पहचान है।
- सुप्रीम कोर्ट ने आधार कानून के उस प्रावधान को इज़ाज़त दे दी है, जिसमें राष्ट्रीय सुरक्षा के आधार पर डेटा साझा करने की बात शामिल है।
- आधार समाज के हाशिये वाले वर्गों को सशक्त बनाना है और उन्हें एक पहचान देता है। न्यायमूर्ति सिकरी ने कहा है कि "सर्वोत्तम होने की बजाय अद्वितीय होना बेहतर है” और आधार आनुपातिकता के सिद्धांत को पूरा करता है।
आधार क्या है?
- केंद्र सरकार की ओर से भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (Unique Identification Authority of India-UIDAI) द्वारा दिये जाने वाले आधार कार्ड की शुरुआत प्रत्येक भारतीय नागरिक को एक विशेष पहचान संख्या देने के लिये की गई थी।
- आज जिस स्वरूप में हम इसे देखते हैं उसमें सरकार द्वारा प्रदान किये जाने वाले अधिकांश लाभों का समान वितरण सुनिश्चित करने के लिये आधार संख्या का होना अनिवार्य है।
- इस योजना के तहत भारत सरकार की ओर से एक ऐसा पहचान-पत्र जारी किया जाता है जिसमें 12 अंकों की एक विशिष्ट संख्या होती है।
- चूँकि इसमें बायोमेट्रिक पहचान शामिल होती है, इसलिये अब किसी भी व्यक्ति के बारे में अधिकांश जानकारी इन 12 अंकों की संख्या के ज़रिये प्राप्त की जा सकती है।
- इसमें उसका नाम, पता, आयु, जन्म तिथि, उसके फिंगर-प्रिंट और आँखों की स्कैनिंग तक शामिल है।
हालिया निर्णय की प्रासंगिकता
- यह निर्णय इस दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है कि यह न केवल आधार के दायरे को बताता है, बल्कि एक ढाँचा भी प्रदान करता है जिसके अंतर्गत यह काम कर सकता है।
- हालिया निर्णय में बहुमत की राय ने कल्याणकारी लाभ, सब्सिडी और भारत के समेकित निधि से खर्च किये गए पैसे से संबंधित पहलुओं के लिये आधार योजना को सीमित करने की मांग की है।
- साथ ही आधार अधिनियम, 2016 की धारा 57 (वित्तीय और अन्य सब्सिडी, लाभ और सेवाओं के लक्षित वितरण) को काफी हद तक सीमित किया गया है उल्लेखनीय है कि यह धारा के तहत किसी अधिकृत संस्थान, कॉर्पोरेट और व्यक्तियों को किसी की पहचान स्थापित करने के लिये आधार संख्या का उपयोग करने के लिये प्राधिकृत करती है।
- सुप्रीम कोर्ट में आधार अधिनियम की धारा 57 को संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 का उल्लंघन करने वाला बताया गया और यह भी कहा गया है कि अगर निजी एजेंसियों को आधार नंबर के प्रयोग की छूट दी गई तो इन आँकड़ों का दुरुपयोग होगा।
- आधिकारिक आँकड़ों की मानें तो प्रमाणीकरण विफलता के कारण 24% से अधिक को छोड़कर इसमें शामिल होने वाले 99.76% लोगों ने इस योजना की निरंतरता को बनाए रखने का पक्ष लिया है।
- सुप्रीम कोर्ट ने मनी लॉंडरिंग अधिनियम (रिकॉर्ड्स रखरखाव नियम), 2005 की रोकथाम के नियम 9 में वर्ष 2017 में लाए गए संशोधन के हिस्से के रूप में आधार को बैंक खातों के साथ म्यूचुअल फंड, क्रेडिट कार्ड, बीमा पॉलिसी इत्यादि जैसे अन्य सभी वित्तीय उपकरणों से जोड़ना अनिवार्य था, को असंवैधानिक घोषित किया है।
- दरअसल, यह संशोधन बैंकिंग विवरण तक पहुँचकर व्यक्ति की गोपनीयता के अधिकार का उल्लंघन कर रहा था। इस निर्णय में कोर्ट ने इस बात पर ध्यान दिया है कि मनी लॉंडरिंग या ब्लैक मनी की रोकथाम के तहत ऐसे व्यापक प्रावधान नहीं हो सकते, जो देश के हर निवासी को एक संदिग्ध व्यक्ति के रूप में लक्षित करता है।
- सुप्रीम कोर्ट ने यह कहा कि आधार को रेगुलर बिल की तरह पारित किया जा सकता है, उल्लेखनीय है कि वर्ष 2016 में इसे मनी बिल के तौर पर पारित किया गया था। राज्यसभा को मनी बिल के संदर्भ में सीमित शक्तियाँ ही प्राप्त हैं, अतः सरकार के लिये यह आसान है कि किसी गतिरोध की स्थिति से बचने के लिये किसी बिल को मनी बिल घोषित करके राज्यसभा से पारित करवा ले।
- कोर्ट ने उपर्युक्त मुद्दे को संबोधित करते हुए कहा है कि धारा 7, जो किसी भी सरकारी सब्सिडी, लाभ या सेवा प्राप्त करने के लिये आधार के उपयोग को सक्षम बनाती है और जिनके लिये भारत के समेकित निधि से व्यय किया जाता है, को कानून के मूल प्रावधान में 'मनी बिल' माना जाता है।
- हालाँकि,बहुमत के फैसलों से हटते हुए सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ ने पूरी आधार परियोजना को असंवैधानिक कहा।
- दरअसल, आधार अधिनियम 2016 को धन विधेयक के रूप में पास करने को न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने असंवैधानिक कहा। उन्होने यह भी कहा कि किसी विधेयक को धन विधेयक के रूप में वर्गीकृत करने के अध्यक्ष के अधिकार की न्यायिक समीक्षा की जानी चाहिये।
- न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने विरोध में दिये अपने फैसले में कहा कि “अगर संविधान को राजनीतिक प्रभुत्व, ताकत के प्रभाव और अथॉरिटी से बचाना है तो कानून के शासन को मानना ज़रूरी है”।
निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट का हालिया निर्णय न केवल आधार के दायरे को बताता है, बल्कि एक ढाँचा भी प्रदान करता है जिसके अंतर्गत यह काम कर सकता है। यह आधार से जुड़े विभिन्न विवादास्पद मुद्दों जैसे- आधार से जुड़े नागरिकों के गोपनीय डेटा की सुरक्षा को सुनिश्चित करने हेतु सरकार को दिशा-निर्देशित करने के साथ ही राजनीतिक प्रभुत्व, ताकत का प्रभाव और अथॉरिटी से भी आम नागरिकों को सुरक्षा प्रदान करता है। हालाँकि, इस संबंध में जिन बिंदुओं पर न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने विरोध में फैसला दिया है उन पर भी गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है।