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नज़रअंदाज़ हैं आधार की वास्तविक चिंताएँ

  • 09 Sep 2017
  • 9 min read

सन्दर्भ

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के बाद निजता के अधिकार को मूल अधिकार बना दिया गया है। आधार को लेकर न्यायालय द्वारा अलग से सुनवाई की जा रही है। दरअसल, कई लोगों का मानना है कि आधार को जिस तरीके से लागू किया जा रहा है वह आम आदमी की निजता का हनन है। आज जहाँ अधिकांश लोग इस बात से परिचित हैं कि आधार में कुछ तो खामियाँ हैं, वहीं जो थोड़ा जानकार वर्ग है वह इस बात से चिंतित है कि आधार के तहत एकत्रित लोगों की निजी सूचनाएँ जहाँ रखी गई हैं, वो कहीं अन्यों से साझा तो नहीं की जा रहीं? जबकि आधार को लेकर जो वास्तविक चिंताएँ हैं वे कुछ और ही हैं। इस लेख में हम उन्हीं चिंताओं के बारे में बात करेंगे, लेकिन पहले नज़र दौड़ाते हैं आधार की पृष्ठभूमि पर।

पृष्ठभूमि

  • आधार का आरम्भ इस उद्देश्य से किया गया था कि प्रत्येक भारतीय को एक विशेष पहचान संख्या दे दी जाए, जिसकी मदद से सरकार द्वारा प्रदान किये जाने वाले लाभों का एक समान वितरण सुनिश्चित किया जा सके।
  • इस योजना के तहत भारत सरकार एक ऐसा पहचान पत्र देती है जिसमें 12 अंकों का एक विशेष नंबर दिया जाता है। अब किसी व्यक्ति के बारे में अधिकांश बातें 12 अंकों वाले एक कार्ड के ज़रिये प्राप्त की सकती हैं। जिसमें उसका नाम, पता, उम्र, जन्म तिथि, उसके उँगलियों के निशान यानी फिंगरप्रिंट और आँखों की स्कैनिंग तक शामिल है।
  • विदित हो कि आधार योजना को यूपीए सरकार ने पहले बिना किसी कानूनी सरंक्षण के ही जारी कर दिया था| हालाँकि बाद में सरकार को अपनी गलती का एहसास हुआ और वर्ष 2010 के दिसम्बर महीने में ‘आधार’ को कानूनी आधार देने के उद्देश्य से एक साधारण विधेयक लाया गया।
  • साधारण विधेयक लाने का अर्थ यही था कि राज्यसभा और लोकसभा दोनों सदनों में पारित हो जाने के पश्चात् ही यह कानून का रूप ले सकता था। दोनों सदनों में आधार को लेकर खूब हो-हल्ला मचा, आधार और निजता के अधिकार को लेकर एक व्यापक बहस छिड़ गई।
  • संसद की स्थायी समिति ने अपनी रिपोर्ट में आधार को लेकर अहम् चिंताएँ व्यक्त कीं और सुप्रीम कोर्ट में पीआईएल दायर किये गए। तब माननीय सुप्रीम कोर्ट ने आधार को अनिवार्य किये जाने पर प्रतिबंध लगा दिया और कहा कि सरकार की कुछ ही योजनाओं में आधार की अनिवार्यता बनी रहनी चाहिये।
  • वर्ष 2014 में सत्ता में आते ही एनडीए सरकार ने आधार को हर मर्ज़ की दवा समझ लिया और धीरे-धीरे सभी योजनाओं में आधार अनिवार्य करने की तरफ कदम बढ़ाना शुरू कर दिया। हालाँकि इस संबंध में न्यायालय के आदेशों का जमकर उल्लंघन भी हुआ। बाद में आधार को संसद में धन-विधेयक के तौर पर पेश कर दिया गया। वर्तमान में आधार की वैधानिकता को लेकर सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई चल रही है।

आधार से संबंधित वास्तविक समस्याएँ

CIDR

  • आधार को लेकर एक आम धारणा यह है कि केंद्रीय पहचान डाटा भंडार (Central Identities Data Repository-CIDR) जहाँ कि निजी सूचनाएँ एकत्र कर रखी जाती हैं, एक ऐसा स्थान है जहाँ से जानकारियाँ साझा नहीं की जाती हैं। जबकि आधार अधिनियम 2016 में सीआईडीआर की जानकरियों को साझा ही करने के लिये कुछ प्रावधान बनाए गए हैं।
  • आधार से जुड़ी हुई जो दूसरी और सबसे बड़ी समस्या है उसे समझने के लिये पहले हमें यह जानना होगा कि आधार के तहत कैसी सूचनाएँ एकत्रित की जा रही हैं।

► दरअसल, आधार के तहत तीन तरह की सूचनाएँ जुटाई जा रही हैं-बायोमेट्रिक जानकारियाँ, पहचान संबंधी जानकारियाँ और व्यक्तिगत जानकारियाँ।
► बायोमेट्रिक जानकारियाँ वे जानकारियाँ हैं, जिनमें किसी व्यक्ति के उँगलियों के निशान यानी फिंगरप्रिंट, आँखों की स्कैनिंग यानी आयरिश और उसके फोटोग्राफ आदि शामिल हैं।
► पहचान संबंधी जानकारियाँ में व्यक्ति के आधार नंबर से जुड़ी तमाम स्थान विशेष की जानकारियाँ हैं जैसे- व्यक्ति का नाम क्या है, वह कहाँ रहता है, उसका जन्म कब हुआ, उसका फोन नंबर क्या है इत्यादि।
► जो तीसरे प्रकार की जानकारी है उसे लेकर सर्वाधिक चिंता व्यक्त की जा रही है। "व्यक्तिगत जानकारी" शब्द का आधार अधिनियम में प्रयोग नहीं किया जाता है, लेकिन यह व्यापक अर्थों वाला है।

  • इसके तहत किसी व्यक्ति के बारे में निजी सूचनाएँ एकत्र की जाती हैं जैसे- वह कहाँ यात्रा कर रहा है, वह किससे फोन पर बात करता है, वह कितना कमाता है, वह क्या खरीदता है और इंटरनेट पर क्या देखता है।
  • विदित हो कि आधार में प्रत्यक्ष तौर पर निजी जानकरियाँ एकत्र करने संबंधी कोई प्रावधान है, लेकिन जिस तरह से इसे लागू किया जा रहा है उसमें यह निहित है कि किसी की व्यक्तिगत जानकारियों तक आराम से पहुँच बनाई जा सकती है।

कैसे हासिल की जा सकती हैं व्यक्तिगत जानकारियाँ

  • आधार अधिनियम में यह सुनिश्चित किया गया है कि व्यक्ति की बायोमेट्रिक जानकारियाँ सुरक्षित हाथों में रहें, लेकिन निजी जानकारियों को साझा किये जाने से रोकने के लिये कोई प्रावधान नहीं है।
  • इस अधिनियम की धारा 8 में जानकारियों को ‘थर्ड पार्टी यूज़र’ से साझा करने संबंधी प्रावधान हैं। आरम्भ में प्रावधान यह था कि यदि कोई थर्ड पार्टी किसी व्यक्ति के फिंगर प्रिंट को दिखाते हुए यूआईडीएआई से बस यह पूछ सकता था कि यह फलाँ व्यक्ति है या नहीं? लेकिन बाद में धारा 8 में व्यापक बदलाव कर दिया गया। अब थर्ड पार्टी यूज़र संबंधित व्यक्ति के बारे में उसकी पहचान से जुड़ी जानकारियाँ भी माँग सकता है।

आगे की राह

  • यदि ट्रेन टिकट, सिम कार्ड आदि के लिये भी आधार अनिवार्य कर दिया गया तो सरकार के साथ-साथ थर्ड पार्टी यूज़र के पास भी व्यक्ति की वे तमाम जानकारियाँ होंगी, जिसे वह किसी से बाँटना नहीं चाहता जैसे- वह कहाँ यात्रा करता है, वह किससे बात करता है इत्यादि। इससे एक सर्विलांस समाज के निर्माण को बल मिलेगा।
  • हालाँकि आधार एक कल्याणकारी उद्देश्यों वाली योजना है, जिसकी सहायता से “डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर” जैसे उपक्रमों को आसान बनाया जा सकता है, भ्रष्टाचार में कमी लाई जा सकती है और अपराधियों को कानून की जद में लेना आसान बनाया जा सकता है, लेकिन इससे जुड़ी हुई तमाम चिंताओं को नज़रन्दाज करना उचित नहीं कहा जा सकता है।

निष्कर्ष

आधार के संबंध में सरकार का प्रयास निश्चित ही सराहनीय है, लेकिन लोगों की निजी सूचनाएँ निजी ही बनी रहें, इसके लिये निजता संबंधी ठोस कानून लाना होगा। यह जानकर हैरानी के साथ-साथ दुःख भी होता है कि हाल ही में न्यायालय द्वारा ताकीद किये जाने से पहले देश में डाटा सरंक्षण कानून बनाने का प्रयास तक नहीं हुआ था। न्यायालय ने निजता को अब मूल अधिकार का दर्ज़ा दे दिया है और आधार मामले में सुनवाई जारी है, ऐसे में उम्मीद की जानी चाहिये कि न्यायपालिका एक बार फिर विधि निर्माण की व्यावहारिक दिशा तय करने वाली है।

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