विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
स्वास्थ्य आपातकाल- पोलियो
- 14 Jan 2020
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इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में स्वास्थ्य आपातकाल के रूप में पोलियो की वैश्विक स्थिति पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।
संदर्भ
पोलियो वायरस के अंतर्राष्ट्रीय प्रसार के जोखिम को देखते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने इसे आगामी 3 महीनों के लिये अंतर्राष्ट्रीय चिंता संबंधी सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल (Public Health Emergency of International Concern- PHEIC) के रूप में बरकरार रखने की घोषणा की है। पोलियो वायरस को लेकर यह निर्णय WHO द्वारा आपातकालीन समिति की सिफारिशों के आधार पर लिया गया है, जिसने बीते महीने विश्व भर में पोलियो के प्रसार का विश्लेषण किया था।
आपातकालीन समिति की बैठक
- पोलियो वायरस के प्रसार को देखते हुए समिति ने सर्वसम्मति से स्वीकार किया था कि इसका खतरा अंतर्राष्ट्रीय चिंता का विषय है। साथ ही आगामी 3 महीनों के लिये पोलियो को PHEIC के रूप में बरकरार रखने की भी सिफारिश की थी।
- समिति के अनुसार, यह निर्णय टाइप-1 वाइल्ड पोलियो वायरस के अंतर्राष्ट्रीय प्रसार के ‘बढ़ते जोखिम’ के आधार पर सर्वसम्मति से लिया गया है।
- ज्ञात हो कि पोलियो को वर्ष 2014 में PHEIC के रूप में घोषित किया गया था और तब से यह उसी रूप में बना हुआ है। पोलियो का इतनी लंबी अवधि तक PHEIC के रूप में बने रहने पर भी समिति ने अपनी चिंताएँ ज़ाहिर की थीं।
पोलियो (पोलियोमाइलिटिस)- एक संक्रामक रोग
- ‘पोलियो’ या पोलियोमाइलिटिस एक संक्रामक वायरल रोग है जो केंद्रीय तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करता है और अस्थायी या स्थायी पक्षाघात कर सकता है।
- ज्ञातव्य है कि पोलियोमाइलिटिस एक ग्रीक शब्द पोलियो से आया है जिसका अर्थ है ‘भूरा’, माइलियोस का अर्थ है मेरु रज्जु और आइटिस का अर्थ है प्रज्जवलन।
- यह रोग मुख्यतः एक से पाँच वर्ष की आयु के बच्चों को ही प्रभावित करता है, क्योंकि उनमें रोग प्रतिरोधक क्षमता पूरी तरह विकसित नहीं हुई होती है।
- विदित हो कि पोलियो का पहला टीका जोनास साॅल्क द्वारा विकसित किया गया था।
- यह भारत के लिये एक बड़ी उपलब्धि है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने दक्षिण-पूर्व एशिया सहित भारत को वर्ष 2014 में पोलियो-मुक्त घोषित कर दिया था।
- पोलियो-मुक्त होने के बावजूद भारतीय नीति-निर्माता अब भी पोलियो को लेकर काफी सचेत हैं, क्योंकि पोलियो वायरस के भारत में वापस आने का खतरा है।
वैश्विक स्तर पर क्या है स्थिति?
- आँकड़ों के मुताबिक, जहाँ एक ओर वर्ष 2018 में विश्व भर में वाइल्ड पोलियो टाइप-1 के 28 मामले सामने आए वहीं 2019 में इसके 156 मामले दर्ज किये गए।
- वर्ष 2019 में वाइल्ड पोलियो टाइप-1 के सबसे अधिक मामले पाकिस्तान (128) में दर्ज किये गए, जबकि भारत का ही एक अन्य पड़ोसी देश अफगानिस्तान (28) इस सूची में दूसरे स्थान पर रहा।
- आँकड़ों से स्पष्ट है कि पाकिस्तान और अफगानिस्तान में इस रोग की स्थिति काफी भयानक है और उन्हें इस संदर्भ में जल्द-से-जल्द कोई गंभीर कदम उठाने की आवश्यकता है। भारत के दो पड़ोसी देशों में पोलियो की इस स्थिति को देखते हुए इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता है कि इसका सीधा प्रभाव भारत पर भी देखने को मिलेगा।
- छोटे बच्चों को प्रभावित करने के अलावा यह वायरस पाकिस्तान के वातावरण में भी फैल रहा है और कुछ ऐसी ही स्थिति अफगानिस्तान में भी बनती दिख रही है।
- वाइल्ड पोलियो टाइप-1 के अलावा टीका-व्युत्पन्न पोलियो वायरस (VDPV) भी एक बड़ी समस्या बना हुआ है। वर्ष 2019 में VDPV से संबंधित कुल 249 मामले दर्ज किये गए थे।
- WHO की आपातकालीन समिति का कहना है कि “टीका-व्युत्पन्न पोलियो वायरस (VDPV) का तेज़ी से प्रसार एक गंभीर समस्या है और इसे अब तक पूर्णतः समझा नहीं जा सका है।”
- विदित हो कि अफगानिस्तान से वैक्सीन व्युत्पन्न पोलियो वायरस (VDPV) का एक भी मामला सामने नहीं आया, जबकि पाकिस्तान में इसके मात्र 12 मामले दर्ज किये गए। वहीं दूसरी ओर अंगोला (Angola) और कांगो में VDPV के मामलों की संख्या क्रमशः 86 और 63 थी।
- एक ओर नाइज़ीरिया में VDPV के 18 मामले दर्ज किये गए, जबकि वहाँ वाइल्ड पोलियो टाइप-1 का एक भी मामला दर्ज नहीं हुआ।
पोलियो मुक्त है भारत
- यदि किसी देश में लगातार तीन वर्षो तक एक भी पोलियो का मामला नहीं आता, तो विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) उसे ‘पोलियो मुक्त देश’ घोषित कर देता है। भारत में पोलियो का अंतिम मामला 13 जनवरी, 2011 को पश्चिम बंगाल में दर्ज किया गया था। जिसके पश्चात् लगातार नजर रखी गयी और अगले तीन वर्षों में कोई मामला सामने नहीं आया।
- इसे देखते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने भारत को वर्ष 2014 में ‘पोलियो मुक्त देश’ घोषित कर दिया।
- भले ही भारत को पोलियो मुक्त घोषित कर दिया गया है, परंतु भारत के पड़ोसी देशों में अभी भी यह एक गंभीर समस्या बनी हुई है। जिसका स्पष्ट प्रभाव भारत पर देखने को मिल सकता है।
कैसे संभव हुआ भारत में यह
- विभिन्न गंभीर समस्याओं से घिरे होने के बावजूद भी भारत की भारत की स्वास्थ्य प्रणाली ने वर्ष 2014 में पोलियो के समग्र उन्मूलन के साथ ही एक नया मुकाम हासिल कर लिया था।
- वर्ष 1985 में भारत में पोलियो के करीब 1 लाख 50 हज़ार मामले सामने आये थे। वहीं वर्ष 2009 तक दुनिया भर में पोलियो के जितने मामले थे, उनमें से आधे भारत में ही थे।
- पोलियो उन्मूलन के सफर में भारत को तमाम तरह चुनौतियों का सामना करना पड़ा। जिनमें उच्च जनसंख्या घनत्व और जन्म दर, स्वच्छता की कमी, दुर्गम इलाके एवं आबादी के एक हिस्से विशेषतः मुस्लिम समुदाय की अनिच्छा जैसे कई मुद्दे शामिल थे।
- आँकड़ों के अनुसार इस कार्य हेतु देश में करीब 33 हज़ार से अधिक निगरानी केंद्र बनाये गये और 23 लाख से ज़्यादा लोग पोलियो की खुराक पिलाने के लिये तैनात किये गये थे।
प्रश्न: “तमाम प्रयासों के बावजूद भी पोलियो दुनिया भर एक चिंता का विषय बना हुआ है।” चर्चा कीजिये।