अनुच्छेद 35 (A): एक समग्र अवलोकन | 31 Oct 2017
संदर्भ
- हाल ही में केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय से अनुरोध किया है कि अनुच्छेद 35 (A) की संवैधानिकता को लेकर जारी सुनवाईयों को 6 माह के लिये रोक दिया जाए। केंद्र सरकार का तर्क यह है कि उसने जम्मू और कश्मीर के लिये एक वार्ताकार नियुक्त किया है और जम्मू कश्मीर को विशेष अधिकार देने वाले अनुच्छेद 35 (A) पर किसी भी तरह का फैसला सरकार के शांति प्रयासों में बाधा उत्पन्न कर सकता है। इस लेख में अनुच्छेद 35 (A) क्या है? इसे लेकर विवाद क्यों है और क्यों इसे खत्म किया जाना चाहिये अथवा नहीं किया जाना चाहिये जैसे प्रश्नों पर विचार करेंगे।
मामले की पृष्ठभूमि
- गौरतलब है कि एक गैर-सरकारी संगठन द्वारा सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष अनुच्छेद 35 (A) को इस आधार पर चुनौती दी गई कि:
♦ इसे अनुच्छेद 368 के तहत संविधान में शामिल नहीं किया गया था।
♦ इसे संसद के पटल पर रखे बिना ही शीघ्रता से लागू कर दिया गया था।
- ऐसे ही एक अन्य मामले में दो कश्मीरी महिलाओं द्वारा सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि अनुच्छेद 35 (A) कश्मीर में लैंगिक भेदभाव का एक बड़ा कारण और संविधान द्वारा प्रदत्त समानता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है।
- याचिका में कहा गया है कि संविधान ने महिला और पुरुष दोनों को समान अधिकार दिये हैं लेकिन 35-A पूरी तरह पुरुषों को अधिकार देता है, क्योंकि इसके तहत:
♦ यदि राज्य का कोई पुरुष नागरिक किसी दूसरे राज्य की महिला से विवाह करता है तो वो महिला भी जम्मू-कश्मीर की नागरिक बन जाती है और उसे भी स्थायी निवास प्रमाण-पत्र मिल जाता है।
♦ वहीं कश्मीर की कोई महिला नागरिक यदि राज्य से बाहर के व्यक्ति से शादी करती है तो वो स्थायी नागरिकता का हक खो बैठती है।
- यह मामला वर्तमान में सर्वोच्च न्यायालय में लंबित है और सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार के अनुरोध को आंशिक रूप से मानते हुए इस मामले की सुनवाई 6 माह के बजाय 12 सप्ताह के लिये टाल दी है।
क्या है अनुच्छेद 35 (A) ?
- भारतीय संविधान के परिशिष्ट 2 में निहित अनुच्छेद 35 (A) जम्मू-कश्मीर विधानमंडल को यह शक्ति प्रदान करता है कि वह राज्य के स्थायी निवासियों और उनके अधिकारों व विशेषाधिकारों को परिभाषित कर सकता है।
- गौरतलब है कि वर्ष 1954 में राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद द्वारा पारित एक आदेश के ज़रिये संविधान में एक नया अनुच्छेद 35 (A) जोड़ दिया गया।
- दरअसल, 35 (A) संविधान का वह अनुच्छेद है जो जम्मू-कश्मीर विधानसभा को यह अधिकार देता है कि वह राज्य में स्थायी निवासियों को पारभाषित कर सके।
- जहाँ तक राज्य के नागरिक माने जाने की शर्तों की बात है तो जम्मू कश्मीर के संविधान के मुताबिक, स्थायी नागरिक वह व्यक्ति है जो:
♦ 14 मई 1954 को राज्य का नागरिक रहा हो।
♦ 14 मई 1954 के पहले 10 वर्षों से राज्य में रह रहा हो और उसने वहाँ संपत्ति हासिल की हो।
- अनुच्छेद 35 (A) के मुताबिक अगर जम्मू-कश्मीर की कोई महिला किसी गैर-कश्मीरी से विवाह कर लेती है तो उसके सारे अधिकार खत्म हो जाते हैं और साथ ही उसके बच्चों के अधिकार भी खत्म हो जाते हैं।
अनुच्छेद 35 (A) को बनाए रखने के पक्ष में तर्क
- अनुच्छेद 35 (A) संविधान के अनुच्छेद 370 का एक उपबंध है जिसके तहत जम्मू और कश्मीर विभाजन के दौरान भारत में शामिल हुआ।
- यह ध्यान दिया जाना चाहिये कि महाराजा हरि सिंह ने कश्मीर का भारत में 'विलय' नहीं किया, बल्कि विशिष्ट परिस्थितियों में 'स्वीकृत' किया था।
- गौरतलब है कि इन्हीं विशिष्ट परिस्थितियों के तहत राज्य के निवासियों को विशेष अधिकार और सुविधाएँ प्रदान की गई थीं।
- अनुच्छेद 35 (A) राज्य सरकार को अपने राज्य के निवासियों के लिये विशेष कानून बनाने का अधिकार देता है।
- दरअसल, अनुच्छेद 35 (A) को इस आधार पर चुनौती नहीं दी जा सकती है कि यह अन्य भारतीय नागरिकों के मौलिक अधिकारों को प्रभावित करता है।
- अनुच्छेद 35 (A) के तहत राज्य विधायिका के अधिकार असीमित नहीं हैं और केवल रोजगार, संपत्ति, और छात्रवृत्ति के मामले में ही इन अधिकारों का प्रयोग किया जा सकता है।
- अनुच्छेद 35 (A) को असवैंधानिक घोषित करने से जुड़ी सबसे बड़ी समस्या यह है कि घाटी में हालत अत्यंत ही संवेदनशील हैं और इन हालातों में इसे खत्म करना कश्मीरियों के भारत से जुड़ाव को और भी कमज़ोर करने का काम करेगा।
अनुच्छेद 35 (A) को खत्म करने के पक्ष में तर्क
- यह अनुच्छेद भारतीय नागरिकों के मूलभूत अधिकारों को सीमित करता है। यह नागरिकों के मौलिक अधिकारों को नगण्य तो करता ही है साथ ही यह नैसर्गिक अधिकारों के प्रति भी विरोधाभाषी चरित्रों वाला है।
- इसको लागू करने की पद्धति भी अलोकतांत्रिक है, जैसा कि हम सभी जानते हैं कि विधि के शासन का प्रथम सिद्धांत है कि विधि के समक्ष देश का प्रत्येक व्यक्ति समान है और प्रत्येक व्यक्ति को विधि का समान संरक्षण प्राप्त होना चाहिये।
- विधि का समान संरक्षण सुनिश्चित करने हेतु संविधान लिखित आश्वासन (अनुच्छेद 14) भी प्रदान करता है। लेकिन अनुच्छेद 35 (A) भारत में ही दोहरी विधिक-व्यवस्था का निर्माण करता है।
- अनुच्छेद 35 (A) के संविधान में समाविष्टि की प्रक्रिया ही पूर्णतः असंवैधानिक है। संविधान में एक भी शब्द जोड़ने या घटाने की शक्ति जिसे संविधान संशोधन कहा जाता है, केवल भारतीय संसद को प्राप्त है। परंतु इस संबंध में ऐसा कुछ नहीं हुआ, क्योंकि:
♦ इस अनुच्छेद के लिये संसद में कोई बहस नहीं हुई।
♦ कोई मत विभाजन नहीं हुआ।
♦ स्पष्ट रूप से यह संपूर्ण प्रक्रिया ही अलोकतांत्रिक थी।
आगे की राह
- इसमें कोई दो राय नहीं है कि अनुच्छेद 35 (A) और धारा 370 अत्यंत ही संवेदनशील मुद्दे हैं और हाल के दिनों में कश्मीर जिस हिंसा के दौर से गुज़र रहा है उसे देखते हुए इस मामले में कोई अतिवादी कदम उठाने से बचना चाहिये।
- केंद्र सरकार ने कश्मीर में शांति बहाली के लिये हाल ही में एक वार्ताकार नियुक्त किया है जो कि निश्चित ही एक स्वागत योग्य कदम है| यदि एक बार कश्मीर में जन-जीवन पटरी पर लौट आता है तो इस मामले में सुनवाई को आगे बढ़ाया जा सकता है।
- सुनवाई आगे बढ़ाने का अर्थ यह नहीं है कि अनुच्छेद 35 (A) को खत्म करने की दिशा में कदम बढ़ाया जाए, बल्कि इस अनुच्छेद में सुधारात्मक बदलाव लाने के प्रयास होने चाहिये। बात जब सुधारात्मक प्रयासों की हो तो यह जानना आवश्यक है कि कौन से वे बिंदु हैं जहाँ सुधार की ज़रूरत है और ये बिंदु निम्नलिखित हैं।
♦ अनुच्छेद 370 में कहा गया है कि जम्मू-कश्मीर के सभी प्रवासी जो पाकिस्तान में आए थे, उन्हें राज्य के विषय के रूप में माना जाता है, जबकि अनुच्छेद 35 (A) भारत के ही नागरिकों को कश्मीर में बसने की अनुमति नहीं देता।
♦ यह प्रावधान लैंगिक भेदभाव को भी बढ़ावा देता है, क्योंकि नियमों के अनुसार कोई महिला गैर-कश्मीरी से विवाह करते ही अपने अधिकार खो बैठती है और यह उसके जीवनसाथी चुनने के अधिकार का हनन है।
निष्कर्ष
- जम्मू कश्मीर भारत के सबसे उत्तर में स्थित राज्य है| यदि भारत के मानचित्र के सामने खड़े होकर इसका अवलोकन करें तो यह राज्य ठीक हमारे सर के सामने आता है और विडंबना यह है कि हम विभाजन एवं स्वतंत्रता प्राप्ति के समय से ही प्रतिकूल हालातों के कारण इस सरदर्द का सामना करते आ रहे हैं।
- अनुच्छेद 35 (A) को खत्म करने से समस्या का समाधान होने के बजाय परिस्थितियाँ और भी बिगड़ सकती हैं। दरअसल इसे खत्म करने से इस संबंध में जारी सभी 41 राष्ट्रपति आदेशों को भी कानूनी चुनौती दी जा सकती है। ये आदेश इसलिये महत्त्वपूर्ण हैं, क्योंकि:
♦ जम्मू-कश्मीर के निवासियों को इन राष्ट्रपति के आदेशों के ज़रिये ही भारतीय नागरिक माना जाता है।
♦ भारतीय संविधान के 395 में से 260 अनुच्छेद कश्मीर में लागू हैं तो उनका कारण यही राष्ट्रपति आदेश हैं।
♦ जम्मू-कश्मीर में केंद्रीय शासन का कारण भी यही राष्ट्रपति आदेश हैं।
- हालाँकि अनुच्छेद 35 (A) के प्रावधान समानता और लैंगिक न्याय के सिद्धांतों के लिये विरोधाभाषी चरित्र पेश करते हैं और इन्हें दूर करने के उपाय होने चाहिये| लेकिन, कश्मीर की संवेदनशीलता को देखते हुए कोई भी कदम सोच-विचारकर आगे बढ़ाना होगा और इस दृष्टि से केंद्र सरकार का यह अनुरोध और सर्वोच्च न्यायालय का उसके प्रति सहमति दिखाना निश्चित ही सराहनीय है।