भारतीय अर्थव्यवस्था
15वाँ वित्त आयोग और संबंधित महत्त्वपूर्ण पक्ष
- 14 Apr 2018
- 12 min read
चर्चा में क्यों
15वें वित्त आयोग के गठन के बाद से ही कुछ राज्यों द्वारा इसके संदर्भ की शर्तों (terms of reference) को "सहकारी संघवाद" की अवधारणा पर कुठाराघात माना गया और उत्तरी एवं दक्षिणी राज्यों के बीच जान बूझकर किये गए भेदभाव के रूप में मानते हुए इस मामले में गंभीर आपत्तियाँ जताई जा रही हैं। इस लेख में वित्त आयोग के गठन, कार्य तथा 15वें वित्त आयोग से संबंधित प्रमुख चुनौतियों की चर्चा की गई है।
वित्त आयोग से संबंधित संवैधानिक प्रावधान
वित्त आयोग | |
संवैधानिक प्रावधान |
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संरचना/गठन |
♦ अध्यक्ष एक ऐसा व्यक्ति हो जो लोक मामलों का ज्ञाता हो। |
कार्य |
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शक्तियाँ |
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15वें वित्त आयोग का गठन
- केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 22 नवंबर, 2017 को 15वें वित्त आयोग के गठन को मंजूरी प्रदान की।
- 15वें वित्त आयोग का कार्यकाल 2020-25 तक होगा।
- अभी तक 14 वित्त आयोगों का गठन किया जा चुका है। 14वें वित्त आयोग की सिफारिशें वित्तीय वर्ष 2019-20 तक के लिये वैध हैं।
- प्रथम वित्त आयोग के अध्यक्ष के.सी. नियोगी थे।
- ध्यातव्य है कि 27 नवम्बर, 2017 को श्री एन.के. सिंह को 15वें वित्त आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया गया है।
- श्री एन.के. सिंह भारत सरकार के पूर्व सचिव एवं वर्ष 2008-2014 तक बिहार से राज्य सभा के सदस्य भी रह चुके हैं।
15वें वित्त आयोग के चार अन्य सदस्यों का विवरण निम्नवत है
- शक्तिकांत दास (भारत सरकार के पूर्व सचिव)
- डॉ. अनूप सिंह (सहायक प्रोफेसर, जॉर्जटाउन विश्वविद्यालय, वाशिंगटन डी.सी., अमेरिका)
- डॉ. अशोक लाहिड़ी (अध्यक्ष,बंधन बैंक) (अशंकालिक)
- डॉ. रमेश चंद्र (सदस्य, नीति आयोग) (अंशकालिक)
वित्त आयोग की आवश्यकता क्यों
- भारत की संघीय प्रणाली केंद्र और राज्यों के बीच शक्ति और कार्यों के विभाजन की अनुमति देती है और इसी आधार पर कराधान की शक्तियों को भी केंद्र और राज्यों के बीच विभाजित किया जाता है।
- राज्य विधायिका को अधिकार है कि वह स्थानीय निकायों को अपनी कराधान शक्तियों में से कुछ अधिकार दे सकते हैं।
- केंद्र कर राजस्व का अधिकांश हिस्सा एकत्र करता है और कुछ निश्चित करों के संग्रह के माध्यम से बड़े पैमाने पर अर्थव्यवस्था में योगदान देता है।
- स्थानीय मुद्दों और ज़रूरतों को निकटता से जानने के कारण राज्यों की यह ज़िम्मेदारी है कि राज्य अपने क्षेत्रों में लोकहित का ध्यान रखें।
- हालाँकि इन सभी कारणों से कभी-कभी राज्य का खर्च उनको प्राप्त होने वाले राजस्व से कहीं अधिक हो जाता है।
- इसके अलावा, विशाल क्षेत्रीय असमानताओं के कारण कुछ राज्य दूसरों की तुलना में पर्याप्त संसाधनों का लाभ उठाने में असमर्थ हैं। इन असंतुलनों को दूर करने के लिये, वित्त आयोग राज्यों के साथ साझा किये जाने वाले केंद्रीय निधियों की सीमा की सिफारिश करता है।
15वें FC के संदर्भ की शर्तों (terms of reference) के संबंध में चिंता के मुख्य कारण
- 15वें वित्त आयोग के विचार के लिये संदर्भ की शर्तों (terms of reference) से केंद्र की सहकारी संघवाद (Cooperative federalism) पर संदेह जताया जा रहा है।
- 15वें वित्त आयोग द्वारा 2011 की जनगणना को ध्यान में रखते हुए राज्यों के बीच संसाधनों का आवंटन किये जाने की अनुशंसा की गई है (वर्तमान में इस हेतु 1971 की जनगणना का उपयोग किया जाता है)।
- हालाँकि, एक दृष्टि से नवीनतम जनगणना के आँकड़ों का प्रयोग किया जाना उचित प्रतीत होता है,किंतु इससे उत्तरी और दक्षिणी राज्यों के मध्य विवाद का एक सबसे गंभीर मुद्दा उभर रहा है।
- जनगणना आधार के बदलाव के कारण सामाजिक-राजनीतिक क्षेत्र में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।
- खासकर उन दक्षिणी राज्यों को नुकसान होने की ज़्यादा संभावना है, जो दशकों से अपनी आबादी को नियंत्रित करने के लिये बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं, जबकि कम जनसंख्या वृद्धि स्वाभाविक रूप से ‘कम प्रजनन दर’ से जुड़ी हुई है, जो बेहतर शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं और विकास का एक परिणाम है।
- दक्षिणी राज्य जैसे- कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, केरल और केंद्रशासित प्रदेश पांडुचेरी आदि तेज़ी से आगे बढ़ रहे हैं।
- उन्हें विकास संबंधी कार्यों में उनकी सफलता के कारण निधि आवंटन में नुकसान उठाना पड़ सकता है जिसे दंड की तरह माना जा रहा है।
- यही कारण है कि मुख्यतः दक्षिणी राज्य 15वें वित्त आयोग के संदर्भित शर्तों (terms of reference) पर गंभीर आपत्ति जता रहे हैं।
- जनसंख्या नियंत्रण में प्रमुख भूमिका निभाने वाले इन प्रतियोगी राज्यों को देखें तो विशेष रूप से, दक्षिणी राज्यों को अधिक धनराशि का आवंटन हो सकता है क्योंकि उनके परिवार नियोजन पहल ने लगभग अपनी आबादी को स्थिर कर दिया है।
- यहाँ तक कि पश्चिम बंगाल और पूर्वोत्तर राज्यों में पूर्व स्थिति की अपेक्षा जनसंख्या नियंत्रण में काफी सफलता मिली है और नवीनतम जनगणना का आधार उनके आवंटन का हिस्सा कम कर सकता है।
- इसके विपरीत, कुछ उत्तरी राज्यों ने अपनी आबादी की बढ़ती प्रवृत्ति पर थोड़ा नियंत्रण जारी रखा है, अतः उनके लिये निधि आवंटन में वृद्धि भी हो सकती है।
- इस प्रकार यह स्थिति अंतर्राज्यीय तनाव पैदा कर रही है जो देश की अखंडता के लिये घातक है।
सहकारी संघवाद (Cooperative federalism) को बढ़ावा देने वाली प्रमुख पहलें
- 14वें वित्त आयोग ने केंद्रीय कर में से राज्यों की हिस्सेदारी बढ़ाकर 32% से 42% तक हस्तांतरण के लिये सिफारिश की थी। जिससे "सहकारी संघवाद" की ओर एक सकारात्मक गति पैदा हुई थी।
- इसके अतिरिक्त, पूर्व योजना आयोग को एक केंद्रीय संस्था के रूप में देखा गया, जो राज्य सरकारों के लिये अनुत्तरदायी मानी गई अतः इसके स्थान पर सहयोगात्मक संघवाद पर आधारित नीति आयोग का गठन किया गया।
- इन सबके अलावा, जीएसटी अधिनियम द्वारा एक "जीएसटी कौंसिल" को एक संवैधानिक निकाय के रूप में स्थापित किया गया है जो अपने निर्णयों में राज्यों को उचित प्रतिनिधित्व प्रदान करती है।
आगे की राह
- राज्यों में आबादी को नियंत्रित करने के प्रयासों को प्रोत्साहित करने के मामलों में प्रजनन दर अभी भी उच्च है ऐसे राज्यों के बीच तनाव कम करने के लिये रचनात्मक विकल्पों को अपनाए जाने की आवश्यकता है ।
- लगभग 6 करोड़ लोगों के रूप में अंतर्राज्यीय प्रवासन दर उच्च रहने का अनुमान लगाया गया है और इसलिए अधिक-से-अधिक प्रवासित होने वाले राज्यों का समर्थन करना भी महत्त्वपूर्ण है।
- इस प्रकार के समर्थन से राज्य बेहतर सेवाएँ प्रदान करेंगे और प्रवासियों के खिलाफ भेदभाव को हतोत्साहित करेंगे ।
- क्रिएटिव हैंडलिंग द्वारा संवेदनशील मुद्दों की बहुत सी समस्याएँ आगामी वर्ष 2026 के राजनीतिक परिसीमन की बड़ी लड़ाई के लिए मैदान तैयार करने में मदद मिलेगी।
- ध्यातव्य है कि वर्तमान में विशेष रूप से संसदीय निर्वाचन क्षेत्र और राज्यवार निरूपण भी 1971 की जनगणना पर ही आधारित हैं, जो 2011 की जनगणना में आधार प्रदान कर सकते हैं।