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भारतीय अर्थव्यवस्था

ज़ीरो कूपन पुनर्पूंजीकरण बॉण्ड

  • 29 Dec 2020
  • 7 min read

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में सरकार ने पंजाब और सिंध बैंक के पुनर्पूंजीकरण (Recapitalise) हेतु 5,500 करोड़ रुपए की कीमत के स्पेशल ज़ीरो कूपन रिकैपिटलाइजेशन बॉण्ड्स (Special Zero Coupon Recapitalisation Bonds) जारी किये हैं। पंजाब एंड सिंध बैंक भारत सरकार का उपक्रम है।

प्रमुख बिंदु: 

बैंक पुनर्पूंजीकरण:

  • इसका तात्पर्य है राज्य द्वारा संचालित बैंकों में पूंजी पर्याप्तता मानदंडों को पूरा करने के लिये उनमें पूंजी डालना है।
    • भारतीय सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को 12% की पूंजी पर्याप्तता अनुपात (Capital Adequacy Ratio- CAR) बनाए रखने पर ज़ोर दिया जाता है।
    • CAR जोखिम भारित संपत्ति और वर्तमान देनदारियों के मध्य बैंक की पूंजी का अनुपात है।
  • सरकार विभिन्न उपकरणों का उपयोग करते हुए पूंजी की कमी का सामना कर रहे बैंकों में पूंजी लगाती है। चूंँकि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में सरकार सबसे बड़ी शेयरधारक है इसलिये बैंकों के पूंजी भंडार को मज़बूत करने की ज़िम्मेदारी सरकार की है।
  • सरकार नए शेयरों की खरीद कर या बॉण्ड जारी करके बैंकों में पूंजी लगाती है।

पुनर्पूंजीकरण का कारण:

  • भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India-RBI) द्वारा निर्धारित दिशा- निर्देश जो बेसल मानदंडों पर आधारित होते हैं, के तहत बैंकों को अपने पास कुछ निश्चित मात्रा में पूंजी भंडार आरक्षित रखना आवश्यक होता है।

पुनर्पूंजीकरण बॉण्ड:

  • सरकार बॉण्ड जारी करती है जो बैंकों द्वारा स्वीकार किया जाता हैं। सरकार द्वारा एकत्र किया गया धन इक्विटी पूंजी के रूप में बैंकों में जाता है, अत: सरकार इक्विटी हिस्सेदारी में अपना हिस्सा बढ़ाती है जिससे बैंकों के पूंजी भंडार में वृद्धि होती है।
  • बैंकों द्वारा पुनर्पूंजीकरण हेतु बॉण्ड में निवेश किये गए धन को एक ऐसे निवेश के रूप में वर्गीकृत किया जाता है जिस पर ब्याज मिलता है। इससे सरकार को अपने राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को बनाए रखने में मदद मिलती है क्योंकि कोई भी धनराशि सीधे सरकारी कोष से नहीं ली जाती है।

विशेष शून्य कूपन पुनर्पूंजीकरण बॉण्ड:

  • ये विशेष प्रकार के बॉण्ड्स हैं जो केंद्र सरकार द्वारा विशेष रूप से किसी संस्थान को जारी किये जाते हैं।
  •  केवल वे ही बैंक उनमें निवेश कर सकते हैं, जिन्हें इसके लिये निर्दिष्ट किया गया है,  कोई और नहीं।
  • यह बॉण्ड व्यापार योग्य नहीं है तथा न ही इनका हस्तांतरण किया जा सकता है। यह केवल एक विशिष्ट बैंक तक ही सीमित है तथा इन्हें एक निर्दिष्ट अवधि के लिये ही जारी किया जाता है।
  • यह कोई कूपन नहीं है तथा अंकित मूल्य पर ही जारी किया गया है जिसका भुगतान निर्दिष्ट अवधि के अंत में किया जाएगा।
    • कूपन निवेशक को एक बॉण्ड पर प्राप्त होने वाला ब्याज़ है।
  • इन बॉण्ड को RBI के दिशा निर्देशों के अनुसार बैंक की परिपक्कव प्रतिभूतियों (Held-To-Maturity- HTM) की श्रेणी में शामिल किया जाता है।
    • HTM प्रतिभूतियों को परिपक्वता अवधि तक के लिये खरीदा जाता है।
  • ये ऐसे उपकरण हैं जिनमें विभिन्न पुनर्पूंजीकरण बॉण्ड शामिल हैं लेकिन प्रभावी रूप से एक ही उद्देश्य को पूरा करते हैं तथा इन्हें आरबीआई के दिशा-निर्देशों के अनुरूप जारी किया जाता है।
  • वित्तीय नवाचार: इन विशेषबॉण्डों के जारी होने से राजकोषीय घाटे (Fiscal Deficit) पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा जबकि एक ही समय में बैंक के पास काफी अधिक मात्रा में आवश्यक पूंजी उपलब्ध होगी।

सामान्य ज़ीरो कूपन बॉण्ड और विशेष ज़ीरो कूपन बॉण्ड के मध्य अंतर:

  • ज़ीरो-कूपन बॉण्ड:
    • इन्हें शुद्ध छूट बॉण्ड या डीप डिस्काउंट बॉण्ड के रूप में भी जाना जाता है। इसे एक रियायती मूल्य पर खरीदा जाता है और फंडधारकों को कोई कूपन या आवधिक ब्याज़ का भुगतान नहीं किया जाता है।
    • ज़ीरो कूपनबॉण्ड की खरीद मूल्य और परिपक्वता अवधि के मध्य बराबर  का अंतर, निवेशक की वापसी का संकेत देता है।
    • ज़ीरो कूपन बॉण्ड सामान्यत 10 से 15 वर्ष की समयावधि के लिये ज़ारी किये जाते हैं।
    • अंतर: विशेष ज़ीरो कूपन बॉण्ड समान रूप से ही जारी किये जाते हैं, परंतु उन पर कोई ब्याज़ प्राप्त नहीं होता है। सामान्य ज़ीरो कूपन बॉण्ड पर छूट दी जाती है, इसलिये वे तकनीकी रूप से ब्याज वहन करते हैं।
  • बॉण्ड:
    • बॉण्ड एक निश्चित आय के साधन हैं जो एक निवेशक द्वारा किसी उधारकर्त्ता को किये गए ऋण का प्रतिनिधित्त्व करता है। दूसरे शब्दों में, बॉण्ड निवेशक और उधारकर्त्ता के मध्य एक अनुबंध के रूप में कार्य करता है।
    • अधिकांशतः कंपनियांँ और सरकार बॉण्ड जारी करती हैं तथा निवेशक उन बॉण्ड को बचत एवं प्रतिभूति विकल्प के रूप में खरीदते हैं।
    • इन बॉण्ड की एक अवधि होती है इसे परिपक्वता अवधि/मैच्योरिटी पीरियड कहते हैं। मैच्योरिटी पीरियड खत्म होने के बाद, बॉण्ड जारीकर्त्ता कंपनी निवेशक को लाभ के एक हिस्से के साथ राशि का भुगतान करती है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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